अम्बानी और अडानी के खिलाफ कई वर्षों से लिबरल्स समुदाय द्वारा चलाए जा रहे जागरूकता अभियान के नतीजे अब सामने आने लगे हैं। सूट-बूट वाली मोदी सरकार शिपिंग कॉरपोरेशन में 63.75% हिस्सेदारी बेचने जा रही है और इसकी लिए बोलियाँ लगाने जा रही है।
पूँजीवादी अम्बानी और अडानी के बढ़ते हुए कारोबार से एक आदर्श पड़ोसी की तरह मन ही मन जलने वाले क्रन्तिकारी कॉमरेड एवं लिबरल्स ने इस बार सब तैयारियाँ पहले से कर डाली थीं। लिबरल्स ने बोलियाँ लगने से पहले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और प्रियंका गाँधी वाड्रा के पति रॉबर्ट वाड्रा के कानों में ये बात डाल दी, कि ये प्रोजेक्ट अम्बानी या अडानी के हाथ नहीं जाना चाहिए।
हालाँकि, जेएनयू में ही प्रकाशित एक शोधपत्र में खुलासा हुआ है कि वामपंथियों ने जितनी ऊर्जा अम्बानी और अडानी के प्रचार अभियान में लगा दी, उसका एक प्रतिशत भी अगर उन्होंने अपने मानसिक विकास पर खर्च की होती तो उन्हें आज उधार की बीड़ी माँगकर जीवनयापन के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता।
एक ख़ुफ़िया सूत्र ने हमें नाम न बताने की शर्त पर बताया कि वामपंथियों ने अम्बानी और अडानी के बिजनेस को घाटे में ले जाने के लिए अपने कुदाल, फावड़ा, सब्बल और दराँती लेनी शुरू कर दी हैं। सर से लेकर पाँव तक कर्ज में डूबे एक साथी ने तो अम्बानी को मजा चखने के लिए अपनी ही जेसीबी तक खरीद डाली। उनका कहना है कि तेल खोदने से लेकर अनाज भंडार बनाने तक का काम अब अम्बानी को नहीं मिलेगा बल्कि वो खुद ही ये सभी काम करने जा रहे हैं।
लेकिन खुद ही तेल की खुदाई करने के लिए क्रन्तिकारी कॉमरेड्स द्वारा उठाए गए इस कदम को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में पहला कदम बताया तो वामपंथियों ने फैसला किया कि अब वो खुद ही तेल की खुदाई ना कर के मशीनों को ही इसका ठेका देंगे। उन्होंने कहा कि वो कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहते जो ‘साहेब’ की किसी योजना का महिमामंडन करती हो।
वामपंथियों ने इसके लिए जेएनयू से भर्तियाँ करनी जब शुरू की तो उन्हें यह जानकार बहुत दुःख हुआ कि आधे कॉमरेड्स अम्बानी-अडानी की कम्पनी में अपनी प्लेसमेंट के लिए सीवी बना रहे थे। बाकी जो कुछ कॉमरेड्स अपने कमरों में बैठे थे उनके दरवाजे पर स्पष्ट शब्दों में लिखा था- ‘अजगर करे न चाकरी… पंछी करे न काम।’
एक क्रन्तिकारी वामपंथी मित्र ने साथी कॉमरेड की इन हरकतों पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कठोर शब्दों में कहा कि ‘भैया ऐसे तो नहीं चलने वाला।’ हालाँकि, उन्हीं में से एक वामपंथी कॉमरेड्स ने कहा कि वास्तविकता यही है कि पूँजीवादियों के खिलाफ धरना प्रदर्शन करना और ढपली बजाना पूँजीवादियों के लिए काम कर के पेट पालने से कहीं अधिक आसान और गरिमामय है।