BBC का हिन्दूफ़ोबिया अब बारिश में खुले गटर की तरह छलक-छलक कर बाहर आ रहा है। इस नफ़रती प्रोपेगंडा फ़ैलाने वाले मीडिया आउटलेट के लिए हिन्दुओं का “जय श्री राम” कत्ल का नारा हो गया है, इसलिए कि एक भीड़ ने किसी समुदाय विशेष के शख्स को चोरी के संदेह में पीटा (जोकि गलत ज़रूर है लेकिन ‘सेक्युलर’ रूप से सर्वव्यापी है), और कुछ दिन बाद वह हिरासत में मर गया। और यह वही बीबीसी है, जो 1500 के करीब ब्रिटिश युवा लड़कियों और बच्चियों का बलात्कार करने वाले पाकिस्तानी का पाप उन्हें ‘एशियन’ बता कर चीनी-जापानी-हिंदुस्तानी-लंकाईयों में बाँट देता है, और जिसे दहशतगर्दी का इस्लामिक कनेक्शन “अल्लाहू अकबर” चिल्ला कर बार-बार होने वाले बम धमाकों और गोलीबारी के बाद भी नहीं दिखता।
लेकिन बीबीसी इस गंदगी में अकेला नहीं है। इसके चाचा के साले, फूफा के लड़के और गाँव वाली भाभी के दामाद भी हैं इस खेल में- और इन सबकी भारत और हिन्दुओं के बारे में रिपोर्टिंग को आप वायर, स्क्रॉल, या कारवाँ से अलग करके नहीं बता सकते कि कौन सा हिन्दूफ़ोबिक कथन इंडिपेंडेंट के सम्पादक का है, कौन सा वायर के मौसमी संवाददाता का। वही हिन्दुओं का दानवीकरण, वही समुदाय विशेष के अपराधियों की पहचान ढकने की कोशिश, वही ‘डरा हुआ शांतिप्रिय’ का नैरेटिव और हिंदुस्तान को ‘लिंचिस्तान’ बताना।
बीबीसी के कारनामों की लम्बी फेहरिस्त
बीबीसी बेशक इस ‘क्लब’ का ‘क्वीन’ है- इसमें दोराय की कोई गुंजाईश नहीं। और यह इसका आज का खेल नहीं है। 2004 में एक एनजीओ ने बिना किसी आधार, बिना किसी आँकड़े के समुदाय विशेष के 2002 दंगों के पीड़ितों के पुनर्वास के लिए काम कर रहे ‘सेवा’ नामक एक हिन्दू संगठन पर गबन का आरोप लगाया। बीबीसी ने निराधार आरोप लगाने वाले को उस इस्लामी और वामपंथियों के संगठनों के आरोपों का जवाब देने के लिए ‘सेवा’ को महज़ एक-तिहाई समय दिया। उसी साल ‘ईश्वर’ के विषय पर बनी 90 मिनट की एक डॉक्यूमेंट्री में एक भी हिन्दू या सिख को अपना पक्ष रखने का मौका बीबीसी ने नहीं दिया था।
आज एक भीड़-हत्या में न केवल मज़हबी एंगल, बल्कि जय श्री राम को हत्या का नारा बना देने का औचित्य ढूँढ लाया बीबीसी इस बात पर मुँह में दही जमाकर बैठा है कि पिछले डेढ़ महीने में हिन्दुओं पर मज़हबी उन्माद में हुए डेढ़ दर्जन हमलों को मज़हबी हमले बोलने की इसे फुर्सत नहीं है।
बीबीसी के काले कारनामों की फेहरिस्त इतनी लम्बी है कि बाकी पापी बच के निकल जाएँगे, इसलिए नमूने के तौर पर ऊपर लगा शाम शर्मा का यह वीडियो देख लीजिए। इसी में उस घटना का ज़िक्र भी है जब बीबीसी ने पाकिस्तानियों के बलात्कार का पाप पूरे एशियाई-ब्रिटिश समुदाय के सर लादने का प्रयास किया था।
मुंबा देवी से इंडिपेंडेंट वालों की एलर्जी
इंडिपेंडेंट के ‘आखिरी प्रिंट सम्पादक’ ने, जोकि हिंदुस्तान के दुर्भाग्य से भारतवंशी है, और हिन्दुओं के किसी बुरे कर्म के चलते उनके जैसे नाम वाला भी है, ने मुंबई को ‘बम्बई/बॉम्बे’ पुकारे जाने की वकालत की थी। हिन्दू मुम्बा देवी के नाम पर शहर का नाम रखे जाना ही आपत्ति का कारण था। इसकी बजाय लाखों हिन्दुस्तानियों को भूखा तरसा कर मार देने वाले और गुलाम बनाकर रखने वाले औपनिवेशिक शासकों का दिया हुआ नाम इंडिपेंडेंट के सम्पादक को ज्यादा प्यारा था।
CNN के लिए अघोरी ही इकलौते हिन्दू
CNN, जोकि भारत में CNN-News18 का साझीदार भी है, ने अपनी ‘बिलीवर’ डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ में हिन्दुओं के प्रतिनिधित्व/चित्रण के लिए चुना अघोरियों को- और उनमें भी विशिष्ट रूप से उन अघोरियों को, जो जले शवों पर से मानव-माँस खाते हैं। हम हिन्दुओं को इस पंथ या आस्था के लोगों में कोई शर्म नहीं है, लेकिन बिना परिप्रेक्ष्य के इसे दिखाकर ‘स्कॉलर’ रेज़ा असलन ने समूचे हिन्दू समाज को ही श्वेत समुदाय के दिमाग में बने ‘कैनिबल’ यानी मानवभक्षी जंगलियों के समुदाय में फिट करने का प्रयास किया था।
हालाँकि यह ‘डिस्क्लेमर’ दे दिया कि अघोरी समस्त हिन्दू समुदाय के प्रतिनिधि नहीं हैं, लेकिन यह केवल एक कोरम पूरा करना भर था- अगर सचमुच हिन्दुओं को गलत चित्रित करना मकसद नहीं था, तो अघोरियों की जगह शाक्त, वैष्णव, कबीरपंथी, नाथपंथी से लेकर आदिवासी समुदाय भी हजारों नहीं तो सैकड़ों की तादाद में थे, और उन सभी की अपनी एक अनूठी संस्कृति थी। लेकिन उससे हिन्दूफ़ोबिया का मकसद कहाँ पूरा होता?
New York Times- खुले में शौच शास्त्रों के सर मढ़ दिया
न्यू यॉर्क टाइम्स में 13 जून 2014 को एक लेख छपा, जिसमें लेखक ने खुले में शौच की बात करते हुए हिन्दू धर्म शास्त्रों को हिन्दुओं के खुले में शौच करने के लिए ज़िम्मेदार बता दिया। यह दिमाग में पुराने शौच की तरह बजबजाते हुए हिन्दूफ़ोबिया के अतिरिक्त क्या हो सकता है? सौभाग्यवश हिन्दू अमेरिकन फाउंडेशन ने इसका विस्तृत खण्डन प्रकाशित कर दिया था, वरना साँप-मदारी वाले देश की तरह यह भी हिंदुस्तान और हिन्दुओं का अगला स्टीरियोटाइप बन गया होता कि हिन्दू खुले में शौच इसलिए करते हैं कि उनका धर्म उन्हें ऐसा करने के लिए कहता है।
सरस्वती नदी के अस्तित्व के वैज्ञानिक प्रमाण अब मिलने लगे हैं। लेकिन उन सभी को झुठला कर, केवल इसलिए कि इस नदी का नाम हिन्दुओं की एक देवी के नाम पर है, न्यू यॉर्क टाइम्स ने बाकायदा एक वीडियो प्रकाशित किया, जिसका मकसद विज्ञान, प्रमाण, तथ्य आदि ‘छोटी-मोटी’ चीज़ों को परे रखकर केवल हिन्दुओं की आस्था पर हमला करना था। इस बार उनका भंडाफोड़ हिन्दू लेखक और स्कॉलर राजीव मल्होत्रा ने किया।
LATEST HINDUPHOBIA BY @nytimes – Video wanting to completely debunk Saraswati river. Using political lens and ignoring the scientific evidence. https://t.co/enjMIzkJHg
— Rajiv Malhotra (@RajivMessage) July 26, 2018
अंत में तबरेज़ अंसारी के विषय पर एक अंतिम बात, जो बीबीसी जानता है, लेकिन बताता नहीं, क्योंकि वह हिन्दूफ़ोबिक नैरेटिव को काट देगी। तबरेज़ की जगह अगर कोई ‘राजू’ होता तो उसकी भी पिटाई, उसके साथ भी हिंसा तय बात थी। चोर-उचक्कों के साथ भीड़-हिंसा, कानून हाथ में लेकर अपराधियों को सजा देना, यह सब कतई समर्थन लायक नहीं हैं, शर्तिया दंडनीय हैं, लेकिन अंततः यह सब ‘सेक्युलर’ हैं। इसका सबूत यह है कि जिस झारखंड में तबरेज़ की हत्या हुई, उसी झारखण्ड में एक नसीम ने राजू बनकर, हाथ में कलावा पहनकर चोरी की कोशिश की। फिर भी पकड़े जाने पर पिटाई हुई ही।
मीडिया का यह अंतरराष्ट्रीय गिरोह हिन्दूफ़ोबिया से पीड़ित है। इसीलिए इतनी घिनौनी कवरेज कर रहा है। इसके इन कुचक्रों को लगातार काटे जाने की ज़रूरत है, वरना जैसा कि ऊपर बताया है, यह गिरोह तैयार बैठे हैं हिन्दुओं को एक बार फिर दुनिया की नज़रों में साँप-मदारियों वाली कौम बना देने के लिए।