स्वयं को निष्पक्ष और क्रांतिकारी पत्रकारिता कहकर खुद ही अपनी पीठ थपथपाने वाले मुख्यधारा की मीडिया का खोखलापन अक्सर सामने आता रहता है। इस बार मीडिया में यह कारस्तानी कोई और नहीं बल्कि देश के कुछ प्रमुख समाचार चैनल्स कर रहे हैं।
सनसनी के उद्देश्य से किसी भी काल्पनिक घटना को हवा देना कोई लिबरल और कथित निष्पक्ष मीडिया गिरोह से सीख सकता है। ‘प्रोपेगैंडा परमो धर्मः’ को अगर कोई चरितार्थ करता है तो वह हमारे देश की मुख्यधारा की मीडिया ही है।
दरअसल, हाल ही में इंडिया टुडे ने धर्मांतरण से जुड़ी हुई एक ऐसी घटना को प्रकाशित किया था, जिसका ऑपइंडिया दिसंबर में ही फैक्ट चेक कर उसे फर्जी ख़बर साबित कर चुका था। लेकिन भारतीय मीडिया और उसका अतिरेक के प्रति लगाव कोई नई बात नहीं है, खासतौर पर तब, जब यह हिन्दू धर्म के लोगों में जातिगत भेदभाव बढ़ाकर उनमें दरार डालने के उद्देश्य से प्रसारित की जा रही हो।
‘इंडिया टुडे’ के बाद इस फर्जी खबर को अब ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ द्वारा अपने समाचार पत्र में छापा गया है। ख़ास बात यह है कि इस खबर को सिर्फ छाप देने के उद्देश्य से ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ ने बेहद सावधानी से लेकिन मूर्खतापूर्ण तरीके से पेश किया है।
कुछ दिन पहले ही ‘द हिन्दू’ और ‘इंडिया टुडे’ जैसे नामी मीडिया संस्थानों ने कुछ महीने पुरानी फर्जी ख़बर दोबारा प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया है कि तमिलनाडु के कोयम्बटूर में दीवार गिरने से 17 दलितों की मौत के बाद 430 दलितों ने इस्लाम अपना लिया है। दिसंबर में धर्मान्तरण की यह फेक ख़बर ख़ूब शेयर हुई थी। उस समय इन समाचार पत्रों द्वारा 3,000 लोगों के मजहबी धर्मान्तरण के आँकड़े दिए जा रहे थे।
‘इंडिया टुडे’ ने संगठन ‘तमिल पुलिगल कच्ची’ के हवाले से लिखा कि 430 दलितों ने इस्लाम अपना लिया है और कई अन्य इसी राह पर हैं। साथ ही ये भी लिखा गया कि क्षेत्र के दलितों ने भेदभाव की बात कही है। कुछ दलितों के बयान भी प्रकाशित किए गए हैं।
आज के टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने इस फर्जी खबर को एक बार फिर से प्रकाशित किया है। TOI ने हेडलाइन में लिखा है- “Outfit claims several Dalits converted to islam” जिसका अर्थ है- “सूत्रों के अनुसार कुछ दलितों ने इस्लाम में धर्मांतरण किया।”
इस हेडलाइन के साथ ही टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने ‘सूत्रों का दावा’ जैसे अस्वीकरण को जोड़कर पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वो सिर्फ हवा में निशाना लगाने का प्रयास कर रहे हैं। मीडिया अक्सर इस तरह की कारस्तानी सस्ती चर्चा, बहस और लोकप्रियता कमाने के उद्देश्य से किया करती है। इनमें किसी भी चर्चा को हवा देकर प्रासंगिक बने रहने का सबसे आसान तरीका होता है कि खबर के साथ ‘सूत्र’ ‘मीडिया’ ‘रिपोर्ट्स’ जोड़ दिया जाए।
TOI की इस खबर को पूरा पढ़ने पर आप देखते हैं कि ‘हालाँकि, TOI इस दावे की पुष्टि नहीं कर पाया।’ आजकल यह ‘हालाँकि’ ही मुख्यधारा की निष्पक्षता का सबसे बड़ा हथियार बना हुआ है। इसी रिपोर्ट में यह भी लिखा गया है कि तमिलनाडू के नाडूर गाँव में, जहाँ कि दीवारी ढह गई थी, किसी ने भी धर्मान्तरण नहीं किया है।
इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि नाडूर के ही लोगों ने कहा है- “हम भगवान पेरुमल में कट्टरता से विश्वास करते हैं और हिंदू धर्म नहीं छोड़ेंगे।”
इस फर्जी और मनगढ़ंत खबर में यह साबित करने की कोशिश की गई थी कि सवर्णों द्वारा प्रताड़ित किए जाने के बाद ही इन दलितों ने इस्लाम अपनाने और धर्मांतरण का फैसला लिया था। फर्जी रिपोर्ट्स में कहा गया कि तमिलनाडू के नाडूर गाँव के शिवसुब्रमन्यम ने अपने पड़ोस में दलितों का घर न हो, इसलिए बीचों-बीच एक दीवार खड़ी कर दी थी। लेकिन दिसंबर 02, 2019 को बीच की दीवार गिरने की वजह से 17 दलितों की जान चली गई थी।
रिपोर्ट्स इस तरह के दावे भी करती नजर आती है कि धर्मांतरण कर चुके लोग डर के कारण यह बात स्वीकार नहीं करते हैं, इसलिए धर्मान्तरण के दावे वाहियात बताए जा रहे हैं।
रिपोर्टिंग के इस पूरे हास्यास्पद प्रकरण से गुजरने के बाद एक बार सोचिए कि ‘द हिन्दू’ से लेकर ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ जैसे संस्थानों द्वारा इस प्रकार की एकदम मनगढ़ंत खबरों को सनसनी बना देने से पहले इस खबर की एक बार पुष्टि कर पाना कितना मुश्किल था?
जब ऑपइंडिया जैसा एक छोटा सा मीडिया संस्थान इस प्रकरण की तह तक जाकर इसकी वास्तविकता पता कर सकता था, तो फिर बड़े और ‘निष्पक्ष मीडिया’ संस्थानों के विश्वसनीय रिपोर्टर्स ने आखिर इस घटना की प्रमाणिकता सिद्ध करने के बजाए सब कुछ ‘सूत्रों के’ सिर क्यों आरोपित करना ही बेहतर समझा?
दिसंबर में फेक न्यूज साबित हुई खबर को इंडिया टुडे ने वापस चलाया: दलितों ने नहीं अपनाया इस्लाम