इन दिनों सोशल मीडिया पर पश्चिम बंगाल के स्वास्थ्य विभाग का एक सर्कुलर वायरल हो रहा है। इसमें दावा किया जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में 22 लोगों की वैकेंसी में से सभी सीटों पर सिर्फ समुदाय विशेष के अभ्यर्थियों के ही नाम हैं। व्हाट्सएप पर वायरल हो रहे इस फोटो में ममता सरकार को घेरते हुए सवाल भी किया जा रहा है कि 22 में से 22 सीटों पर खास समुदाय ही क्यों? ये पश्चिम बंगाल का ऑफिस है या फिर पाकिस्तान का?
हम बताते हैं आपको कि वायरल हो रहे इस फोटो की सच्चाई क्या है और क्यों ममता बनर्जी सरकार पर इस तरह से सवाल उठाए जा रहे हैं। दरअसल पश्चिम बंगाल के स्वास्थ्य विभाग के एक सर्कुलर में विभिन्न पदों पर चयनित हुए अभ्यर्थियों के नाम, पोस्ट और रिपोर्टिंग की तारीख एवं तिथि अंकित की गई है।
सच क्या है?
70 सीटों पर की गई यह वैकेंसी पश्चिम बंगाल के नाडिया जिले की है। यह सर्कुलर 8 जुलाई 2020 को जारी किया गया था। इसमें स्टाफ नर्स (NUHM) और कई विभागों में लैब टेक्नीशियन से लेकर कुक एवं मेडिक ऑफिसर के पद पर अभ्यर्थियों का चयन किया गया है। इन्हें 17 जुलाई 2020 को रिपोर्ट करना है।
गौर करने वाली बात यह है कि 70 सीटों की वैकेंसी में से 26 सीटों पर मजहब विशेष के कैंडिडेट का चयन हुआ है। यानी कुल वैकेंसी में से 37.14% पर समुदाय विशेष के कैंडिडेट का सेलेक्शन हुआ है। बाकी सीटों पर अन्य धर्म के लोगों के नाम हैं।
बता दें कि सोशल मीडिया पर जो पेज वायरल हो रहा है, उसमें 22 के 22 सीटों पर जिन लोगों का चयन हुआ है, वो सब समुदाय विशेष के हैं। इसलिए ऐसा दावा किया जा रहा है कि वहाँ सभी सीटों पर सिर्फ समुदाय विशेष के अभ्यर्थियों का ही चयन हुआ है। लेकिन यह जानकारी आधी-अधूरी है।
जब हम आधिकारिक सर्कुलर को देखते हैं तो पाते हैं कि इसके अलावा भी अन्य पेज पर 4 समुदाय विशेष के कैंडिडेट के नाम हैं। और ये सारे के सारे OBC-A (OBC क्रीमी लेयर) कैटेगरी में हैं। लोगों ने इसी पेज को वायरल कर ममता सरकार पर सवाल उठाने शुरू कर दिए।
आखिर क्यों उठ रहे सवाल
अगर हम इन आँकड़ों के साथ पश्चिम बंगाल की जनसंख्या और वहाँ पर खास समुदाय के प्रतिशत पर गौर करें तो ये बातें वाकई सोचने पर मजबूर करती हैं। आपको बता दें कि 2011 के जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल के नाडिया जिले की जनसंख्या 5,167,600 थी। जिसमें से 1382682 यानी कुल जनसंख्या का 26.76 % मजहब विशेष की आबादी है। जबकि हिंदुओं का प्रतिशत 72.15 है।
72.15 फीसदी हिंदुओं के बावजूद दूसरे समुदाय के तकरीबन 27 फीसदी लोगों में से 37.14 फीसदी सीटों पर समुदाय विशेष के छात्रों का चयन हो जाता है। अगर इनका चयन आरक्षण के आधार पर किया गया है तो भी यह सवालों के घेरे में है, क्योंकि पश्चिम बंगाल में सरकारी नौकरी में समुदाय विशेष को 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। और यहाँ तो समुदाय विशेष के 37 फीसदी को नौकरी दी जा रही है।
एक बात और जो नागवार गुजर रही है, वो ये कि यह कैसे संभव है कि OBC-A (OBC क्रीमी लेयर) कैटिगरी में सिर्फ खास समुदाय वाले ही सेलेक्ट हुए? उसमें किसी अन्य जाति के एक भी लोग क्यों नहीं हैं? ये तुष्टिकरण नहीं तो और क्या है?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तानाशाही बढ़ती ही जा रही है। ममता बनर्जी की वोट बैंक की राजनीति के कारण बंगाल के कई इलाके मजहब विशेष बहुल हो चुके हैं और हिंदुओं का इन इलाकों में जीना भी दूभर हो गया है।
राज्य में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या एक करोड़ से भी ज्यादा हो चुकी है। अवैध घुसपैठ ने राज्य की जनसंख्या का समीकरण बदल दिया है। उन्हें सियासत के चक्कर में देश में वोटर कार्ड, राशन कार्ड जैसी सुविधाएँ मुहैया करवा दी जाती हैं और इसी आधार पर वे देश की आबादी से जुड़ जाते हैं। बांग्लादेश के रास्ते पहले इन्हें पश्चिम बंगाल में प्रवेश दिलाया जाता है। फिर उनका राशन कार्ड, आधार कार्ड, वोटर कार्ड बनवा जम्मू से केरल तक पहुँचा दिया जाता है।
40 वर्षों से अधिक वामपंथी वर्चस्व के राज्य में हिन्दुओं की आबादी कुछ क्षेत्रों में लगातार घटती गई जहाँ से हिन्दुओं को पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया गया। 24 परगना, मुर्शिदाबाद, बिरभूम, मालदा आदि ऐसे कई उदाहरण सामने हैं। हालात तब ज्यादा बिगड़ने लगे हैं जबकि बांग्लादेशी और रोहिंग्या शरणार्थी भी राज्य में डेरा जमाए हुए हैं।
राज्य में हिन्दू आबादी का संतुलन बिगाड़ने की साजिश लगातार जारी है। और अभी भी ममता सरकार दूसरे समुदाय को अधिक से अधिक मौका देकर उन्हें खुश करना चाहती हैं। वोट बैंक के दम पर ही वो शासन करती आई हैं, तो ऐसे में उनके पास तुष्टिकरण के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता है।