सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक तस्वीर वायरल हो रही है। इसमें दावा किया जा रहा है कि 1971-72 के दौरान 10 लाख रुपए की कमाई पर 9.33 लाख रुपए टैक्स देना पड़ता था। क्या यह सच हो सकता है? या बस अफवाह है?
1971-72 मतलब जब कॉन्ग्रेस नेता इंदिरा गाँधी भारत की प्रधानमंत्री थीं। तब कोई 10 लाख रुपए कमाता था, तो वह 9.33 लाख से अधिक टैक्स के रूप में भुगतान करता था? आखिर क्यों हो रहा यह दावा वायरल? हुआ यह कि कॉन्ग्रेस नेता शशि थरूर ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर चुटकी ली 1945 की आयकर दरों को पोस्ट कर दिया। इसके बाद सोशल मीडिया पर 1971-72 का टैक्स स्लैब वायरल होना शुरू हो गया।
शशि थरूर वाले तंज के जवाब में, ट्विटर यूजर अंकुर सिंह ने 1971-72 के टैक्स स्लैब की तस्वीर पोस्ट की, जो अभी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल है। अगर उनके ट्वीट पर विश्वास किया जाए, तो उस अवधि के दौरान, दस लाख से अधिक आय वाले किसी भी व्यक्ति को 85% टैक्स और 10% सबचार्ज का भुगतान करना होता था। यानी कुल मिलाकर उन्हें 95% का भुगतान करना पड़ता था।
10 लाख पर 9 लाख टैक्स? क्या है सच
फैक्ट हंट ने 1971-72 के उपरोक्त टैक्स स्लैब का विस्तृत विश्लेषण साल 2020 में किया था। इस दौरान उन्होंने पाया था कि फोटो सही है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने 28 फरवरी, 1970 को अपने केंद्रीय बजट भाषण के दौरान व्यक्तिगत आयकर स्लैब दरों की घोषणा की थी। बता दें कि उस दौरान इंदिरा गाँधी वित्त मंत्री भी थीं।
वित्तीय वर्ष 1970-71 (कर निर्धारण वर्ष 1971-72) के लिए व्यक्तिगत आयकर स्लैब दरों के अनुसार, 5000 से 10000 के बीच आय वाले किसी भी व्यक्ति के लिए आयकर की दर 10% थी। आय में अतिरिक्त 5000 के अंतराल पर आयकर की दर में वृद्धि हुई और जो लोग 30001 से 40000 रुपए कमा रहे थे, वे अपनी मेहनत की कमाई का 50% कर के रूप में भुगतान कर रहे थे।
कर निर्धारण वर्ष 1971-72 में जैसे-जैसे आय स्लैब अधिक होता गया, 2 लाख रुपए या उससे अधिक कमाने वाले लोगों के लिए टैक्स की दर कुल आय का 85% हो गया था। यहाँ ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात यह थी कि उस समय सरकार ने कुल आय 5000 रुपए से अधिक होने पर आय पर 10% सबचार्ज भी लगाया था।
इंदिरा गाँधी चाहती थी वाम समर्थक छवि
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, “1969 में कॉन्ग्रेस का विभाजन हो गया था। उस समय, सरकार अपनी वाम समर्थक छवि दिखाना चाहती थी। रिपोर्ट में कहा गया है, “यह पूरी तरह से एक ऐसी राजनीति के अनुरूप था जिसमें धन बनाने वालों को मुफ्तखोर और उच्च आय अर्जित करने वाले और कर देने वाले नागरिकों को बुरी नजर से देखा जाता था।”
इसमें आगे कहा गया, “उच्च करों के लिए वित्त मंत्री सीडी देशमुख द्वारा दो दशक पहले 27 फरवरी, 1953 के केंद्रीय बजट भाषण में बौद्धिक ढाँचा निर्धारित किया गया था। उन्होंने जॉन मथाई की अध्यक्षता में कर निर्धारण जाँच आयोग (Taxation Enquiry Commission) की स्थापना की, जिसमें वीकेआरवी सहित छह अन्य सदस्य थे। राव ने 150000 रुपए से अधिक आय पर अधिकतम मार्जिनल रेट 85 प्रतिशत की सिफारिश की थी। हालाँकि उच्च टैक्स फिर भी पर्याप्त नहीं थे।”
इसके अलावा, 1973-74 में, किसी व्यक्ति के लिए उच्चतम टैक्स स्लैब 97.50% पर जाकर आसमान छू गया था। उल्लेखनीय है कि उस अवधि के दौरान, इस तरह की उच्च टैक्स दरों ने करदाताओं को करों का भुगतान करके राष्ट्र निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेने से हतोत्साहित किया। भ्रष्टाचार और कर चोरी एक आदर्श बन गया था और आज भी सरकार की करों के मामले में अक्सर बुराई की जाती है।
टैक्स रिफॉर्म कमिटी, 1991 की सिफारिशों के बाद ही कर दरों में कमी आई और 1992-92 में केवल 20%, 30% और 40% के तीन कर ब्रैकेट पेश किए गए। इसके अलावा, 1997-98 में इसे घटाकर 10%, 20% और 30% कर दिया गया था।