सपा नेता आज़म ख़ान नित नए स्तर पर गिरते चले जा रहे हैं। कभी महिलाओं के अंगवस्त्रों पर टिप्पणी करते हैं तो कभी हनुमानजी को लेकर अनाप-शनाप बकते हैं। अब उन्हीं आज़म ख़ान ने डीएम से जूते साफ़ करवाने की बात कही है। आज़म ख़ान ने नया विवादित बयान देते हुए कहा, “सब डटे रहो, कलेक्टर-पलेक्टर से मत डरियो, ये हैं तनखैया.. हम इनसे नहीं डरते हैं। देखे हैं मायावती के कई फोटो कैसे बड़े-बड़े अफसर रुमाल निकालकर जूते साफ़ करते रहे हैं। हाँ उन्हीं से है गठबंधन, हाँ उन्हीं से जूते साफ कराऊँगा इनसे अल्लाह ने चाहा तो…। आज़म ख़ान ने मायावती राज का उदाहरण देते हुए ऐसा कहा। ज्ञात हो कि फरवरी 2011 में एक डीएसपी लेवल के पुलिस अधिकारी पद्म सिंह ने झुक कर मायावती की जूती को साफ़ किया था। उन्होंने अपने पॉकेट से रुमाल निकाल कर मायावती की जूती साफ़ की थी।
आज जो आज़म ख़ान मायावती की उसी हरकत को उदाहरण के तौर पर पेश कर रहे हैं, उन्हीं आज़म ख़ान ने तब इसका विरोध किया था। सपा का सम्प्रदाय विशेष का चेहरा माने जाने वाले आज़म ने तब मुख्यमंत्री रहीं मायावती पर निशाना साधते हुए कहा था, “यह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती की सामंती मानसिकता को दर्शाता है। वो शाही राजतन्त्र को फिर से जीना चाहती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि सुरक्षा अधिकारी की कुछ गंभीर मजबूरियाँ थीं जिसने उसे शर्मनाक कृत्य करने के लिए मजबूर किया। मैं सुझाव दूंगा कि मायावती अपने मार्ग पर धूल की देखभाल करने और अपने सैंडल की सफाई जैसे कामों को करने के लिए एक अलग दल की नियुक्ति करेंगी।“
आज़म ख़ान को ख़ुश होना चाहिए क्योंकि मायावती ने उनकी बात सुन ली, भले ही उसमें 7 वर्ष लग गए। उन्होंने शायद अब उस दल की नियुक्ति कर ली है, जो उनके मार्ग पर धूल की देखभाल करेगा और उनके सैंडल की सफाई करेगा। उसका नाम समाजवादी पार्टी ही है, जिसके आज़म संस्थापक सदस्य हैं।
कितनी असमानता है आज़म ख़ान के दोनों बयानों में। इन 7 वर्षों में ऐसा नहीं है कि आज़म ख़ान की प्रकृति बदल गई है। वो तब भी इतने ही विवादित थे, जितने आज हैं। वो तब भी ऐसे ही अलूल-जलूल बयान दिया करते थे, जैसे आज देते हैं। वो तब भी इतने ही महिला विरोधी और हिन्दू विरोधी थे, जितने आज हैं। फ़र्क़ बस इतना है कि राजनीतिक समीकरण बदल गया है। जो मायावती और यादव परिवार एक दूसरे को कोसते थकते नहीं थे, आज वो एक ही थाली में लपेस-लपेस कर खा रहे हैं। अखिलेश-माया एक हो गए हैं और अपने नेता अखिलेश की तरह मायावती का भी गुणगान करना आज़म ख़ान का नया मज़हब बन गया है। तभी तो जो घटना सामंती मानसिकता और शाही राजतन्त्र का परिचायक थी, वो अब छाती चौड़ी करने वाली और गर्व से भर देने वाली घटना हो गई है उनके लिए।
Latest by #AzamKhan — कलेक्टर फ्लेक्टर से मत डरयो। जूते साफ कराउंगा अल्लाह ने चाहा तो।
— Raj Shekhar Jha (@rajshekharTOI) April 15, 2019
.. And we wondered why UP was so lawless all these years. Good that these people are on leash now. All they can do is talk now. pic.twitter.com/3Y3gdmsWSk
9 बार विधायक चुने गए आज़म ख़ान सपा सरकारों के दौरान मंत्री रह चुके हैं। मोदी के आ जाने से एक-दूसरे के साथ सड़क पर गठजोड़ कर घूमने वाले इन नेताओं को जनता ने अब सही जगह पहुँचाया है। डीएम से जूता साफ़ करवाने वाले आज़म ख़ान को समझना चाहिए कि उनकी इसी मानसिकता के कारण आज वो न तो सत्ता में हैं और न ही सत्ता की रेस में। असल में मायावती की जूती साफ़ करने का काम तो उनकी अपनी ही समाजवादी पार्टी कर रही है, जिसके वो संस्थापक सदस्य हैं। लोकसभा में शून्य सीट वाली मायावती को सपा ने ख़ुद से 1 ज्यादा सीट दी, इससे ज्यादा झुकने का कोई अन्य उदाहरण कहीं और कहाँ मिल सकता है?
आज़म ख़ान को समझना चाहिए कि अब वो ज़माना गया जब उनकी खोई भैंसे खोजने के लिए पूरा सरकारी महकमा सड़कों पर उतर आता था। यूपी में अब वो ज़माना गया जब अधिकारियों को सत्ताधीशों के जूते साफ़ करने पड़ते थे। अब वो ज़माना गया जब मुख़्तार अंसारी, राजा भैया और अतीक अहमद की तूती बोलती थी और सत्ता के संरक्षण के कारण पुलिस और अधिकारी तक उनके सामने झुकते थे। इस यूपी में अपराधी भाग कर पड़ोस के राज्यों की जेल में बंद हो जाते हैं। जो जेल में हैं, वो बाहर नहीं निकलना चाहते। जो बाहर हैं वो फूँक-फूँक कर क़दम रखते हैं। इस यूपी में सड़कों पर विचर रहे बौखलाए आज़म ख़ान को कभी ख़ुद को भी निराहना चाहिए कि जनता ने उनकी और उनकी पार्टी की क्या हालत की है।
अव्वल तो यह कि सम्प्रदाय विशेष के एक अन्य नेता उमर अब्दुल्ला ने भी जूती साफ़ करने वाली घटना के समय मायावती पर तंज कसा था। आज वो भी चुप रहेंगे क्योंकि उनके ही साथी अब उसी घटना को गर्वित करने वाला वृत्तांत की तरह पेश करते फिर रहे हैं। कट्टरपंथियों के स्वघोषित नेताओं के बयानों पर कोई ख़ास आउटरेज नहीं होता, इसे नॉर्मल मान लिया जाता है। माना जाता है कि इनका तो काम ही है ये सब बोलना, किसी पर भी भद्दी टिप्पणियाँ कर देना, हिन्दू देवी-देवताओं का मज़ाक उड़ाना, महिलाओं का अपमान करना और साल दर साल प्राथमिकताएँ बदलते हुए अपने ही बयानों से पलट जाना। इसीलिए, इनके बयानों को ज्यादातर नज़रअंदाज़ ही किया जाता है।
1. In 2018, BJP’s Naresh Agarwal made a derogatory jibe on Jaya Bachchan (filmo me nachne wali). Akhilesh called it “insult to all women.”
— Krishnkant Singh (@Krishnk65062680) April 15, 2019
2. Today Azam Khan said Jaya Prada’s underwear is Khaki (RSS) colored in @yadavakhilesh‘s presence ..#आजम_खान#azamkhankaticketkato pic.twitter.com/pgnFK6HJ12
आज़म ख़ान सपा नेता अखिलेश यादव के समक्ष ही ऐसे बयान दिया करते हैं। उस समय नैतिकता, राजनीतिक शुचिता और युवाओं की बात करने वाले अखिलेश यादव हँस कर बगले झाँकते नज़र आते हैं। अगर ऐसा ही बयान किसी भाजपा के सरपंच के समधी के साले की तरफ से आया होता तो इस पर यही अखिलेश आज हंगामा कर रहे होते और कह रहे होते कि भारत में महिलाओं का सम्मान नहीं किया जाता, भाजपा के नेतागण महिलाओं की इज़्ज़त नहीं करते और देश में महिला विरोधी माहौल को बढ़ावा दिया जा रहा है। अगर सरकारी अधिकारियों के बारे में किसी भाजपा नेता का ऐसा बयान आता तब तो कहना ही क्या। इससे ‘मोदी सारी सरकारी संस्थाओं को अपने इशारे पर नचा रहा है‘ वाले नैरेटिव को और मज़बूती मिल जाती। हालाँकि, निंदा हर मामले में होनी चाहिए, चाहे बयान भाजपा नेता का हो या सपा नेता का।
लेकिन, होता इसके एकदम उलट है। जैसा कि हमने ऊपर चर्चा किया, भाजपा के वार्ड सदस्य के रिश्तेदार के व्यक्तिगत बयान या हरकत को ऐसे पेश किया जाता है, जैसे ख़ुद मोदी ने ऐसा किया हो या कहा हो। वहीं दूसरी तरफ चुनावी मंच पर एक बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की मौजूदगी में उनके वरिष्ठ नेता द्वारा महिला विरोधी बयान दिया जाता है और इसे आयाराम-गयाराम मान कर हवा में उड़ा दिया जाता है। वैसे सही है, आज़म ख़ान डीएम से अपना जूता साफ़ करवाएँ न करवाएँ, उनकी पार्टी तो मायावती के सामने दंडवत हो ही रखी है। ख़ुद मुलायम सिंह यादव ने भी कह दिया है कि अपने ही लोग पार्टी को बर्बाद करने में लगे हुए हैं। कहीं उनका इशारा आज़म ख़ान जैसे लोगों की तरफ ही तो नहीं था? वैसे आज़म को बोया मुलायम ने ही है, अब फसल काटिए बैठ कर।