Thursday, April 25, 2024
Homeदेश-समाजमनमोहन सिंह जो अपने समुदाय के लिए नहीं कर सके वह नरेंद्र मोदी ने...

मनमोहन सिंह जो अपने समुदाय के लिए नहीं कर सके वह नरेंद्र मोदी ने करने का वादा किया है

वास्तव में अनुच्छेद 35-A के कारण ही जम्मू कश्मीर राज्य में शरणार्थियों की समस्याएँ उत्पन्न हुईं जिन्हें हल करने का प्रयास करना तो दूर उनकी बात तक कोई नहीं करता। ऐसे में भाजपा द्वारा इस मुद्दे को अपने संकल्प पत्र में स्थान देना अन्य राजनैतिक पार्टियों के लिए एक नई चुनौती खड़ा करने जैसा है।

भारतीय जनता पार्टी ने कुछ दिन पहले जारी किए अपने चुनावी ‘संकल्प पत्र’ में अनुच्छेद 370 के अतिरिक्त अनुच्छेद 35-A को भी हटाने की बात कही है। चुनाव आने पर लोक लुभावनी घोषणाएँ करना, जनता को वचन देना और बाद में मुकर जाना यह हर पार्टी करती है इसमें कोई दो राय नहीं, और भाजपा कोई अपवाद नहीं। उदाहरण के लिए राम मंदिर और अनुच्छेद 370 के मुद्दे को ही लिया जाए तो हर बार भाजपा अपना संकल्प दोहराती है कि सत्ता में आने पर 370 हटाएंगे और राम मंदिर बनाएंगे। लेकिन आज तक जम्मू कश्मीर राज्य के लिए संविधान में अनुच्छेद 370 यथावत है और भगवान राम अयोध्या में टेंट में विराजमान हैं।

बहरहाल, 2019 के लोकसभा निर्वाचन में कुछ अलग हुआ है। भारत के इतिहास में पहली बार किसी पार्टी के घोषणापत्र में अनुच्छेद 35-A को समाप्त करने की बात कही गई है। साथ में यह भी कहा गया कि यदि भाजपा सत्ता में आती है तो पश्चिमी पाकिस्तान, छम्ब और पाक-अधिक्रान्त जम्मू कश्मीर से आए शरणार्थियों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी। अनुच्छेद 35-A और उपरोक्त शरणार्थियों के बीच सीधा संबंध है जिस पर आगे विस्तार से चर्चा की जाएगी।

वास्तव में अनुच्छेद 35-A के कारण ही जम्मू कश्मीर राज्य में शरणार्थियों की समस्याएँ उत्पन्न हुईं जिन्हें हल करने का प्रयास करना तो दूर उनकी बात तक कोई नहीं करता। ऐसे में भाजपा द्वारा इस मुद्दे को अपने संकल्प पत्र में स्थान देना अन्य राजनैतिक पार्टियों के लिए एक नई चुनौती खड़ा करने जैसा है। ध्यान से देखें तो भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में तीन प्रकार के शरणार्थियों का उल्लेख किया है।

इनमें एक वे हैं जो 1947 में विभाजन के समय पश्चिमी पाकिस्तान से आए थे, दूसरे जो उसी समय पाक-अधिक्रान्त जम्मू कश्मीर से आए थे और तीसरे वे हैं जो 1965 और 1971 युद्ध के पश्चात कारण छम्ब से विस्थापित हुए थे। इनमें सर्वाधिक संख्या पाक अधिक्रान्त जम्मू कश्मीर या ‘PoJK’ से आए शरणार्थियों की है। वाधवा कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार 1947 में पश्चिमी पाकिस्तान से आए 5,764 परिवारों (कुल 47,215 लोग) ने जम्मू में शरण ली थी। उसी समय PoJK से विस्थापित हुए 31,619 परिवारों ने शरण ली थी। सन 1965 और 1971 के युद्ध के कारण छम्ब से लगभग 17000 परिवार विस्थापित हुए थे।

वैसे तो 35-A के कारण इन तीनों प्रकार के शरणार्थियों को जम्मू कश्मीर राज्य की सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता। लेकिन विडंबना यह भी है कि भारत द्वारा इन सभी शरणार्थियों को अपना नागरिक मानने के बावजूद जम्मू कश्मीर राज्य में बसने के बाद इन्हें समान रूप से राहत नहीं दी गई। छम्ब और PoJK से विस्थापित हुए लोगों को समय-समय पर मुआवजा और कई कनाल (जम्मू कश्मीर में भूमि क्षेत्रफल मापने की इकाई) कृषि और ग़ैर-कृषि भूमि दी गई। लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान से आकर जम्मू कठुआ और राजौरी में बसे शरणार्थियों को कुछ नहीं मिला। उन्हें अस्थाई तौर पर रहने के लिए जो भूमि मिली थी उसी पर आज भी रह रहे हैं।

पश्चिमी पाकिस्तान से जम्मू कश्मीर में आए शरणार्थी (West Pakistani Refugees)

सन 1947 में जब देश को स्वतंत्रता की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। यह कीमत थी विभाजन से उपजी एक ऐसी त्रासदी जिसमें लगभग डेढ़ करोड़ लोगों को विस्थापित होना पड़ा था। वह भयानक दंगों, मारकाट और विप्लव का कालखंड था। पश्चिमी भारत में वस्तुतः पंजाब का विभाजन हुआ था। पंजाब के 16 ज़िले, जिनमें 55% जनसंख्या रहती थी और जो पूरे पंजाब का 62% क्षेत्रफल था, उसे पाकिस्तान को सौंप दिया गया था और भारत के हिस्से में पंजाब के 13 ज़िले आए थे जिनमें 45% जनसंख्या थी।

रैडक्लिफ रेखा का निर्णय होते ही अधिक से अधिक संख्या में हिन्दुओं और सिखों का पलायन नवनिर्मित पाकिस्तान से भारत की ओर होने लगा। जिसको जो साधन उपलब्ध हुआ उसी से चलकर वह भारत की तरफ भागा। लाल कृष्ण आडवाणी और भूतपूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह भी अपने परिजनों समेत पश्चिमी पाकिस्तान से भाग कर भारत आए थे।

पलायन और अराजकता के उस दौर में किसी को कुछ समझ में नहीं आता था कि कहाँ जाएँ क्या करें। हमारे नेताओं को भी इतने बड़े स्तर पर पलायन की आशा नहीं थी। उन भयावह परिस्थितियों में पश्चिमी पाकिस्तान स्थित सियालकोट से भारत में प्रवेश करने वाले लोगों के लिए अमृतसर या गुरदासपुर से ज्यादा निकट जम्मू था। इसलिए उन्होंने जम्मू में शरण लेना उचित समझा। कुछ लोगों को यह भी लगा कि जम्मू कश्मीर राज्य के राजा हिन्दू हैं इसलिए वहाँ शरण लेना ठीक होगा। कुछ लोगों के सगे संबंधी जम्मू में रहते थे इसलिए वे वहाँ चले गए।

जम्मू कश्मीर में शरण लेने वालों में से कुछ तो आगे बढ़ गए और दिल्ली पंजाब आदि में चले गए लेकिन विस्थापितों की अधिकांश जनसंख्या को शेख अब्दुल्ला ने रोक लिया और उन्हें यह भरोसा दिलाया कि उन्हें राज्य में सब कुछ दिया जाएगा। सब कुछ देने के नाम पर पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को 1954 में अनुच्छेद 35-A का संवैधानिक छल उपहार स्वरूप दिया गया।

अनुच्छेद 35-A जम्मू-कश्मीर राज्य को यह निर्णय लेने का अधिकार देता है कि राज्य के स्थाई निवासी कौन होंगे। अर्थात यह राज्य तय करेगा कि स्थाई निवास प्रमाण पत्र किसको देना है और किसे नहीं। जम्मू-कश्मीर राज्य को जब यह अधिकार दिया गया तब तक राज्य का संविधान भी नहीं बना था। बाद में राज्य का संविधान बनते ही उसमें यह लिख दिया गया कि जम्मू-कश्मीर के स्थाई निवासी का दर्ज़ा उन्हें ही दिया जाएगा जो 1944 या उसके पहले से राज्य में रह रहे हैं।  

लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थी तो 1947 में अपनी जान बचाकर आए थे इसलिए आजतक उन्हें जम्मू-कश्मीर का स्थाई निवासी नहीं माना गया और उन्हें स्थाई निवास प्रमाण पत्र- जिसे PRC कहा जाता है- नहीं दिया गया। स्थाई निवास प्रमाण पत्र न होने से वे शरणार्थी जम्मू कश्मीर राज्य में भूमि नहीं खरीद सकते, उनके बच्चे कक्षा 9 से आगे पढ़ाई नहीं कर सकते, वे लोकसभा के लिए तो वोट कर सकते हैं लेकिन विधानसभा के लिए मतदान नहीं कर सकते।

दूसरे शब्दों में वे भारत के नागरिक तो हैं लेकिन उन्हें जम्मू कश्मीर राज्य द्वारा प्रदान किए जाने वाली किसी भी सुविधा का लाभ नहीं मिलता। एक अनुमान के मुताबिक पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों की संख्या आज बढ़कर सवा से डेढ़ लाख के करीब हो गई है लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों में 80% अनुसूचित जाति, 10% अन्य पिछड़ा वर्ग और मात्र 10% सामान्य वर्ग के लोग हैं। यह राज्य सभा में प्रस्तुत की गई जॉइंट पार्लियामेंट्री कमिटी की रिपोर्ट में दर्ज़ है। डॉ मनमोहन सिंह जो स्वयं पश्चिमी पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत आये थे और दस वर्षों तक देश के प्रधानमंत्री रहे उन्होंने पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थियों की समस्याओं पर कभी कुछ नहीं बोला न उन्हें सुलझाने का कभी प्रयास किया।   

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

माली और नाई के बेटे जीत रहे पदक, दिहाड़ी मजदूर की बेटी कर रही ओलम्पिक की तैयारी: गोल्ड मेडल जीतने वाले UP के बच्चों...

10 साल से छोटी एक गोल्ड-मेडलिस्ट बच्ची के पिता परचून की दुकान चलाते हैं। वहीं एक अन्य जिम्नास्ट बच्ची के पिता प्राइवेट कम्पनी में काम करते हैं।

कॉन्ग्रेसी दानिश अली ने बुलाए AAP , सपा, कॉन्ग्रेस के कार्यकर्ता… सबकी आपसे में हो गई फैटम-फैट: लोग बोले- ये चलाएँगे सरकार!

इंडी गठबंधन द्वारा उतारे गए प्रत्याशी दानिश अली की जनसभा में कॉन्ग्रेस और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता आपस में ही भिड़ गए।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe