किसान आंदोलन और उनके नेताओं की मंशा कैसे बदली है, इसका इससे बेहतर उदाहरण नहीं मिल सकता। 27 साल पहले जिन सुधारों को लेकर किसानों के अब तक के सबसे बड़े नेता महेंद्र सिंह टिकैत सरकार से लड़े थे, आज नए कृषि कानूनों में उन्हें पूरा किए जाने के खिलाफ ही उनके बेटे राकेश टिकैत ने केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।
उत्तर प्रदेश के चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत 27 साल पहले किसान आंदोलनों का चेहरा हुआ करते थे। टिकैत और भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के चार अन्य नेताओं ने तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव के निमंत्रण पर उनसे मुलाकात की थी। टिकैत ने सरकार से कहा था कि वह किसानों को देश में कहीं भी अपने उत्पाद को बेचने की अनुमति दें।
प्रधानमंत्री@narendramodi के नेतृत्व में कैबिनेट ने किसानों की उस मांग को पूरा किया है जो 27 साल पहले बाबा टिकैत में 1993 में तब के प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव के समक्ष उठाया था। अब किसान अपनी उपज को देश में कही भी बेच सकेंगे। @drsanjeevbalyan ,@PMOIndia @myogiadityanath pic.twitter.com/z76xMGkXQ4
— Arvind Bhardwaj (@arvindb1964) June 5, 2020
उन्होंने माँग की थी कि किसान उनको अपना अनाज बेच सकें जो उन्हें अच्छी कीमत देने के लिए तैयार हो। किसान के लिए पूरे देश का बाजार खोला जाए। उसे किसी मंडी के लाइसेंसी को फसल बेचने की बाध्यता नहीं हो।
उस समय कृषि मंत्रालय के सचिव एमएस गिल भी टिकैत और बीकेयू के अन्य नेताओं से मिले थे। उस समय पीवी नरसिम्हा राव ने माँगों को पूरी तरह से पूरा करने में असमर्थता दिखाई थी। टिकैत ने सरकार के खिलाफ विद्रोह किया और अपनी माँगों को पूरा करने के लिए विरोध-प्रदर्शन का नेतृत्व किया। हालाँकि चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के किसानों के लिए किए गए आंदोलन के बावजूद इस माँग को पूरा नहीं किया जा सका। उन्होंने यह भी माँग की थी कि 1967 की कीमत के आधार पर गेहूँ की कीमत तय की जानी चाहिए।
हाल ही में पारित कृषि कानूनों में, सरकार ने किसानों को देश में कहीं भी अपने उत्पाद बेचने की अनुमति दी है। टिकैत की माँग के 27 साल बाद पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार कृषि कानूनों में सुधार लेकर आई। हालाँकि वह इस क्षण के गवाह नहीं बन सके, क्योंकि 2011 में उनका निधन हो गया। अब वही बीकेयू उन कानूनों का विरोध कर रहा है जो 27 साल पहले टिकैत की माँगों के अनुरूप हैं। इस समय बीकेयू के नरेश टिकैत हैं। लेकिन, संगठन की बागडोर असल मायनों में उनके छोटे भाई राकेश टिकैत ने सॅंभाल रखी है। केंद्र सरकार से बातचीत करने वाले किसानों के कोर ग्रुप का भी राकेश हिस्सा हैं। AAP सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के भी BKU के साथ लिंक सामने आए हैं।
कौन थे महेंद्र सिंह टिकैत
1935 में जन्मे टिकैत स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे प्रसिद्ध किसान नेता थे। उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर जिले के सिसौली गाँव से आने वाले टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष थे। किसानों के लिए किए गए उनके काम के लिए उन्हें अक्सर किसानों का ‘दूसरा मसीहा’ कहा जाता था।
टिकैत का नाम पहली बार सुर्खियों में तब आया था जब उन्होंने 1987 में मुजफ्फरनगर में किसानों के लिए बिजली बिल-माफी की माँग की थी। 1988 में, दिल्ली में किसानों के विरोध का नेतृत्व करने पर उनका कद बड़ा हो गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के नेतृत्व वाली सरकार को पाँच लाख से अधिक किसानों के क्रोध का सामना करना पड़ा, जिन्होंने सात दिनों के लिए दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। उस समय, पुलिस द्वारा उन पर गोलियाँ चलाने के बाद भी प्रदर्शनकारी पीछे नहीं हटे थे। इस दौरान राजेंद्र सिंह और भूप सिंह नाम के दो किसानों की मौत हो गई थी।
उस समय टिकैत ने कहा था, “पीएम ने दुश्मन की तरह व्यवहार किया है। किसानों की नाराजगी उन्हें महँगी पड़ेगी।” किसानों का आंदोलन इतना आक्रामक था कि सरकार को पूर्व पीएम इंदिरा गाँधी की पुण्यतिथि पर कार्यक्रम स्थल बदलना पड़ा। टिकैत द्वारा रखी गई सभी 35 माँगों पर सरकार की सहमति के बाद विरोध-प्रदर्शन समाप्त हो गया था।