लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया जा चुका है। मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने 7 चरणों में चुनाव संपन्न कराने की घोषणा की है। इसमें तीन राज्य ऐसे हैं, जिनमें सभी 7 चरणों में चुनाव होंगे। ये राज्य हैं- उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल। किस राज्य में कब और कितने चरणों में चुनाव होंगे, इसके बारे में हम पहले ही बता चुके हैं। इन सबके बीच एक सवाल ऐसा है जो कितनी बार उठ चुका है। भारत में एक राज्य स्तरीय चुनाव भी कई चरणों में होते हैं। 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव भी 5 चरणों में संपन्न कराए गए थे। इसी तरह अन्य राज्यों के चुनाव भी कई फेज में आयोजित कराए जा चुके हैं। सवाल यह है कि आख़िर क्या कारण है कि एक ही चरण में पूरे भारत में चुनाव आयोजित नहीं कराए जा सकते? क्या एक विशाल और विविधताओं (भौगोलिक और राजनीतिक रूप से) से भरे देश होने के कारण ऐसा होता है या फिर सुरक्षा व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए ऐसा किया जाता है? एक सवाल यह भी उठता है कि क्या चुनाव आयोग को राज्य पुलिस पर अब भरोसा नहीं रहा?
यहाँ हम कई चरणों में होने वाले चुनाव के पीछे जो कारक हैं, उनकी चर्चा करेंगे और साथ ही यह भी देखेंगे कि इसके पक्ष में क्या तर्क दिए जाते हैं। जनवरी 2017 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम ज़ैदी ने कहा था कि भारत में कई चरणों में चुनाव आगे भी होते रहेंगे। उन्होंने कहा था कि इसका सीधा कारण है चुनाव को निष्पक्ष और शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराने के लिए केंद्रीय बलों का उपयोग करना। पाँच राज्यों में चुनाव संपन्न कराने के बाद तनावमुक्त ज़ैदी ने कहा था कि चुनाव आयोग द्वारा केंद्रीय बलों का प्रयोग करना और राज्य पुलिस पर भरोसा कम होना। उन्होंने कहा था कि सिर्फ़ चुनाव आयोग ही नहीं बल्कि उम्मीदवार, मतदाता और राजनीतिक दल भी इसके लिए ज़िम्मेदार हैं। उनका कहना था कि ख़ुद राजनीतिक पार्टियों, मतदाताओं व उम्मीदवारों को केंद्रीय बलों पर ज़्यादा भरोसा है।
Lokasabha Elections will be held in 7 Phases.
— Sushant Sinha (@SushantBSinha) March 10, 2019
1st phase- 11th April
2nd Phase- 18th April
3rd Phase- 23rd April
4th Phase- 29th April
5th Phase- 6th May
6th Phase- 12th May
7th Phase- 19th May
Counting- 23rd May#ElectionCommission
पूर्व चुनाव आयुक्त नसीम ज़ैदी ने समझाया था कि कैसे चुनाव आयोग हर एक बूथ पर अर्धसैनिक बलों की तैनाती करने की कोशिश करता है क्योंकि राज्य पुलिस के बारे में राजनीतिक दलों के अपने-अपने अलग विचार होते हैं। उन्होंने कहा था कि मतदाता भी अर्धसैनिक बलों की तैनाती से निश्चिन्त रहते हैं और चुनाव कई चरणों में होने के बावजूद वे धैर्य बनाए रखते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव तो 9 चरणों में हुए थे। 36 दिनों तक चलने वाला वह चुनाव विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के इतिहास में सबसे लम्बा चलने वाला चुनाव था। इसी तरह 2009 के लोकसभा चुनाव 5 चरणों में आयोजित हुए थे। इसके पीछे भारत के भौगोलिक भागों के अलग-अलग शासकीय और राजनीतिक परिस्थितियाँ होती हैं।
जैसे उत्तर-पूर्व भारत को ही ले लीजिए। उत्तर पूर्व भारत में आने वाले आठ राज्यों को देखिए। उन आठ राज्यों में 25 लोकसभा सीटें आती है (अरुणाचल प्रदेश-2, असम-14, मणिपुर-2, मेघालय-2, मिजोरम-1, नागालैंड-1, सिक्किम-1, त्रिपुरा-2)। इन राज्यों में अलग-अलग मुद्दों को लेकर दशकों से अलगाववादी संगठनों और भारत सरकार में ठनी रही है। चीन, बांग्लादेश और म्यांमार से सीमा लगी होने के कारण इन सभी राज्यों में विशेष सुरक्षा व्यवस्था की ज़रूरत पड़ती है। सर्वविदित है कि भारत से सटा चीन कई भारतीय राज्यों के क्षेत्रों पर अपना दावा ठोकता रहा है। उत्तर-पूर्वी राज्यों में भारतीय लोकतंत्र की सफलता उसे चुभती है। ऐसे में, ऐसी ताक़तों के रहते पूर्ण सुरक्षा व्यवस्था की ज़रूरत पड़ती है। यही कारण है कि इन राज्यों में कई चरणों में चुनाव होते आए हैं।
बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड देश के सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित इलाक़ों में से एक रहे हैं। अब स्थिति कुछ सुधर गई है लेकिन पहले हालात इतने कठिन थे कि राज्य पुलिस तो छोड़िए, अर्धसैनिक बलों को भी नक्सलियों को क़ाबू में करने के लिए काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती थी। छत्तीसगढ़ में तो नक्सलियों ने एक बार कॉन्ग्रेस के कई बड़े नेताओं की एक साथ हत्या कर उनका पूरा नेतृत्व ही साफ़ कर दिया था। ऐसे में, इन संवेदनशील इलाक़ों में ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा व्यवस्था मुक़म्मल कर जनता को इस बात का एहसास दिलाना पड़ता है कि वे वोट देने निकले तो किसी प्रकार की हिंसा नहीं होगी। इन राज्यों में चुनाव के वक़्त हिंसक माओवादी वारदातों की संख्या बढ़ती रही है। अतः इनका प्रभाव कम होने के बावजूद कोई रिस्क नहीं लिया जा सकता।
इसके अलावा भारत जैसे विशाल देश में सबसे बड़ी चुनौती होती है, अर्धसैनिक बलों की टुकड़ियों को एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना। हो सकता है कि सीआरपीएफ की एक टुकड़ी आज बिहार में चुनाव संपन्न करा रही है और 2 दिनों बाद उनकी तैनाती आंध्र प्रदेश में हो। ऐसे में, उनकी सुगमता के लिए भी ज़रूरी है कि चुनाव एक से ज्यादा चरणों में हों और उनके बीच प्रॉपर गैप हो ताकि ये एक जगह से दूसरे जगह पहुँच सकें। एक राज्य से दूसरे राज्य में जाना और काम पर लग जाना उतना आसान भी नहीं होता। उनके रहने, खाने-पीने व ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था भी करनी होती है। इसमें समय लगाना लाजिमी है। जम्मू-कश्मीर के बारे में सर्विदित है कि वहाँ कैसे हालात रहते हैं और इन कार्यों के लिए सुरक्षा बलों को कितनी मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ता है?
Elections in Bihar, UP & West Bengal are going to be held over 7 phases. Clearly these are India’s most complicated states to conduct elections. Don’t see why in this age of instant connectivity & surfeit of TV & social media why the process needs to be drawn out over so long.
— Rahul Kanwal (@rahulkanwal) March 10, 2019
ऐसा नहीं है कि भारत में चुनाव हमेशा से इतने ज्यादा चरणों में ही होते रहे हैं। हाँ, 1951-52 में हुए पहले ऐतिहासिक चुनाव को संपन्न कराने में ज़रूर 3 महीने लगे थे लेकिन 1980 में एक ऐसा समय भी आया जब 4 दिनों में ही लोकसभा चुनाव निपटा दिया गया। यह भारतीय लोकतान्त्रिक इतिहास में अभी तक एक रिकॉर्ड है। इसके बाद जैसे-जैसे चुनौतियाँ बढ़ती गयीं, चुनाव लम्बे होते गए। पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी कहते हैं कि पहले के चुनावों में बूथ लूटना और वोटरों को प्रभावित करना आम बात हो गई थी। राज्य पुलिस पर स्थानीय नेताओं के दवाब में किसी पक्ष विशेष की तरफदारी करने के आरोप लगते थे। अतः 1990 के दशक में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने केंद्रीय बलों की नियुक्ति का निर्णय लिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार को ये सुनिश्चित करने को कहा।
क़ुरैशी के मुताबिक़, केंद्रीय बलों को एक जगह से दूसरी जगह आवागमन करने में लगने वाले समय की वजह से चुनाव लम्बे होने लगे। केंद्रीय सुरक्षा बलों के इन जवानों को बस और ट्रेन से सफ़र कर गंतव्य तक पहुँचना होता है, जिसमें समय लगता है। इसी तरह पाकिस्तान सीमा से लगे इलाक़ों में विशेष सतर्कता की ज़रूरत पड़ती है। लिट्टे के दिनों में तमिलनाडु व दक्षिण भारतीय राज्यों में विशेष सतर्कता बरती जाती थी। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की हत्या भी एक जनसभा को सम्बोधित करने के दौरान कर दी गई थी। वे दक्षिण भारतीय राज्यों में चुनाव प्रचार के लिए निकले थे। इसी तरह भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग समय पर विभिन्न समस्याएँ आती रहती है, जिस कारण पूरे भारत में एक साथ चुनाव नहीं कराए जा सकते।
कई बार कहा जाता है कि अमेरिका या इंग्लैंड में एक चरण में ही चुनाव हो जाते हैं लेकिन हमें ये समझना जरूरी है कि 125 करोड़ से भी अधिक जनसंख्या वाले एक देश और 10 करोड़ से भी कम जनसंख्या वाले देश में सारे नियम एक समान नहीं हो सकते। भौगोलिक परिस्थितियाँ, जनसंख्या, सुरक्षा बलों के आवागमन, अशांत अंतरराष्ट्रीय सीमाएँ व विभिन्न हिंसक संगठनों के कारण भारत में एक चरण में चुनाव संपन्न कराना संभव नहीं है।