Sunday, November 17, 2024
Homeरिपोर्टमीडियाArticle 370: BBC के लिए कश्मीर पर अब सिर्फ यूगांडा-लोसोटो से ही बयान लेना...

Article 370: BBC के लिए कश्मीर पर अब सिर्फ यूगांडा-लोसोटो से ही बयान लेना बाकी

हालात ये हैं कि ख़ुदा-न-ख़ास्ता आज की डेट पर अगर यूगांडा में कहीं जोर से 2 लोग खाँस भी दें तो BBC की खबर यही होगी- "अनुच्छेद-370 पर यूगांडा में भी उठी भारत सरकार की दमनकारी अमानवीय नीतियों के खिलाफ आवाज, जनता पर मोदी सरकार कर रही है आँसू गैस का इस्तेमाल।"

देश त्यौहार मना रहा हो और बीबीसी जैसे ‘प्रगतिशील’ मीडिया को इस से समस्या न हो, यह संभव नहीं है। शायद कम लोग यह बात जानते होंगे कि औपनिवेशिक ब्रिटिश साम्राज्य भारत से जाते-जाते यहाँ पर जो विष्ठा छोड़ गए थे, BBC उसी से अंकुरित बीजों का एक उदाहरण मात्र है। जो कसर बाकी थी, वो नेहरुघाटी सभ्यता के विचारकों ने इसे अपने कुत्सित विचारों और कुतर्कों से खूब सींचा।

वास्तव में होना तो यह चाहिए था कि सरकार के अनुच्छेद-370 को इतनी सावधानी और सुरक्षित तरीके से, बिना किसी रक्तपात, हिंसा और विरोध के ही निष्क्रीय करने के फैसले पर मोदी सरकार की इच्छाशक्ति पर उनकी पीठ थपथपाई जाए और कॉन्ग्रेस से पूछा जाए कि जब यही कार्य इतनी आसानी से किया जा सकता था, तो फिर उसने आखिर इतने वर्षों तक इस विषय पर मूक रहकर इतनी सारी लाशें आखिर क्यों बिछने दीं?

लेकिन सिर्फ अपने नमक का कर्ज अदा कर रहे बीबीसी (BBC) का सबसे ताजा मर्म तो यही है, यानी बिना शोर-शराबे के मोदी सरकार द्वारा अनुच्छेद-370 के प्रावधानों को निष्क्रीय कर दिया गया। देखा जाए तो सिर्फ बीबीसी ही नहीं बल्कि देश में एक ऐसा पूरा ‘प्रगतिशील’ वर्ग है जिसे बीबीसी ने आवाज देने का काम किया है। इस वर्ग की ख़ास बात सरकार विरोधी और सदैव असंतुष्ट रहने की प्रवृत्ति है।

BBC की जिंदगी का फिलहाल सिर्फ एक ही मकसद है और वो है ‘पत्थरकारिता’

मसलन, यदि आप कहें कि सूर्य पूरब से उगता है, तो यह वर्ग अपनी फेसबुक प्रोफ़ाइल पिक्चर को यह कहकर काला कर देगा कि आखिर सदियों से चली आ रही पूरब दिशा की पितृसत्ता और मोनोपोली नहीं चल सकती, सूर्योदय पर मात्र पूर्व का एकाधिकार नहीं हो सकता है। आप इसके पीछे तर्क पूछेंगे तो जवाब मिलेगा कि हमें बने बनाए नियमों के विरोध में खड़े होने के लिए कुछ मुद्दा तो पकड़ना ही होगा न साथी? आखिर विचारधारा के अस्तित्व का सवाल है। अपने विरोध के अजेंडे के लिए यह प्रगतिशील विचारक वर्ग सूर्योदय जैसी काल्पनिक घटनाओं में यकीन करता है यही जानकर संतुष्टि कर लेनी चाहिए।

बीबीसी ने अनुच्छेद-370 पर प्रलाप करके इस बार अपने अस्तित्व को बहुत ही सावधानीपूर्वक बचा लिया है। रही बात राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून व्यवस्था की तो उस पर तो बाद में भी बात की जा सकती है। बीबीसी ने अल जज़ीरा का सहारा लेकर सौरा-श्रीनगर से एक ऐसे वीडियो को ‘विरोध प्रदर्शन’ बताया, जिसका ओरिजिनल वीडियो गृह मंत्रालय उनसे माँग रहा है लेकिन न ही बीबीसी और न ही अल जज़ीरा ने इस वीडियो का रॉ (Raw/Unedited) वर्जन अभी तक सरकार को सौंपा है।

यह भी पढ़ें: नेहरुघाटी सभ्यता का आखिरी प्रतीक है BBC

वीडियो पर स्पष्टीकरण के उलट, बीबीसी ने अपनी क्लिकबेट पत्रकारिता की करामात से अपनी भ्रामक रिपोर्टिंग को सबूत के तौर पर जरूर पेश किया है, जिसकी हेडलाइन भी उन्हें बाद में बदलनी पड़ी। कठुआ रेप पीड़ितों के नाम पर कथित तौर पर चंदा अकेले डकार जाने वाली जेएनयू की फ्रीलांस प्रोटेस्टर का कहना है कि उन्हें सरकार से ज्यादा बीबीसी पर विश्वास है।

ये वही शेहला रशीद हैं जिन्होंने पुलवामा आतंकी हमले के वक़्त ट्विटर पर अपने फर्जी आरोपों से अफवाह फैलाने का काम किया। हालाँकि, मैं उस दिन देहरादून में ही था और इस वजह से यह बात भी अच्छी तरह से जानता हूँ कि सच्चाई शेहला रशीद के आरोपों से एकदम अलग थी। पुलिस को लगातार स्पष्टीकरण देना पड़ा कि देहरादून में ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है जैसा कि शेहला रशीद और उनका पसंदीदा मीडिया दावा करता रहा। कम से कम यह स्पष्ट था कि शेहला रशीद किस प्रकार की खबर देखना और आगे बढ़ाना पसंद करती हैं।

अब बीबीसी के जीवन का ‘एक्के मकसद’ सिर्फ जनमानस को यह सन्देश देना हो चुका है कि अनुच्छेद-370 के फैसले का श्रीनगर की जनता तो सरकार का विरोध कर ही रही है, लेकिन उनके साथ-साथ पाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, ‘लोसोटो’, यूगांडा, बुर्किना फासो यहाँ तक कि निकारागुआ तक की जनता भी परेशान है और भयानक प्रदर्शन कर रही है।

हालात ये हैं कि ख़ुदा-न-ख़ास्ता आज की डेट पर अगर यूगांडा में कहीं जोर से 2 लोग खाँस भी दें तो Big BC की खबर यही होगी- “अनुच्छेद-370 पर यूगांडा में भी उठी भारत सरकार की दमनकारी अमानवीय नीतियों के खिलाफ आवाज, जनता पर मोदी सरकार कर रही है आँसू गैस का इस्तेमाल।”

यह भी पढ़ें: BBC यानी, मीडिया का हाशमी दवाखाना

हमारे देश के प्रगतीशील बुद्धिपीड़ित वर्ग का भी अपना ही अलग दर्द और दुनिया है। मीडिया के इस ख़ास वर्ग का दर्द यह है कि इतना बड़ा ऐतिहासिक फैसला बिना किसी हिंसा और संघर्ष के इतने शानदार होम वर्क के साथ आखिर कैसे सम्भव हो गया? बुद्धिपीड़ितों को तो अभी भी यह उम्मीद है कि काश कहीं तो कुछ खूनखराबा हो, ताकि सरकार के निर्णय पर प्रश्नचिन्ह लगाया जा सके।

एक और ख़ास बात यह कि श्रीनगर के लोगों की आवाज को उठाने की बात वह मीडिया कर रहा है जिसके मालिकों की मानसिक विकृति से हुए मानवाधिकारों के हनन ने युगों तक विश्व के मानचित्र पर अपनी ऐसी छाप छोड़ी है। यह उत्पीड़न इतना भीषण था कि इसका नतीजा लोग आज तक भुगत रहे हैं। ये वही देश है जिसकी नस्लीय और औपनिवेशिक नीतियों की वजह से कई महाद्वीप आज भी प्रभावित हैं।

मीडिया और विपक्षी दलों की ताजातरीन हरकतों पर व्यंग्यकार नीरज बधवार जी लिखते हैं- “कश्मीर में 2 दिन हिंसा और न हुई, तो कॉन्ग्रेसी हवन कराने भी बैठ सकते हैं।” यह व्यंग्य इस वक़्त अनुच्छेद 370 के विरोध में कमर कस कर बैठे हर दूसरे व्यक्ति की मानसिक स्थिति को सटीक रूप से बयाँ करता है। उम्मीद बस इतनी की जा सकती है कि घाटी में शांति और कानून व्यवस्था इसी तरह बनी रहे और यह देखकर उन परम-प्रलापी मीडिया चैनल्स की मानसिक शांति के लिए दुआएँ करते रहिए, जिनके अनुच्छेद-370 जैसे बड़े फैसले को इतना आसानी से लागू होते देखकर डिप्रेशन में जाने के समीकरण बनते जा रहे हैं।

पाकिस्तान पूरे विश्व में इस समय अलग पड़ चुका है। ऐसा लग रहा है मानो अनुच्छेद-370 के फैसले ने पाकिस्तान की विश्व स्तर पर उसकी हैसियत की पोल खोल दी हो। खैर, इस समय पाकिस्तान को मानसिक दिलासा देने की सबसे ज्यादा जरूरत है। ऐसे में बीबीसी और तमाम ऐसे ही संस्थान उसके साथ अगर खड़े हैं भी, तो हमें मानवीय आधार पर कम से कम उनकी तारीफ़ करनी चाहिए। क्योंकि, हारे का सहारा, बीबीसी नेटवर्क हमारा

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

आशीष नौटियाल
आशीष नौटियाल
पहाड़ी By Birth, PUN-डित By choice

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

महाराष्ट्र में महायुति सरकार लाने की होड़, मुख्यमंत्री बनने की रेस नहीं: एकनाथ शिंदे, बाला साहेब को ‘हिंदू हृदय सम्राट’ कहने का राहुल गाँधी...

मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने साफ कहा, "हमारी कोई लड़ाई, कोई रेस नहीं है। ये रेस एमवीए में है। हमारे यहाँ पूरी टीम काम कर रही महायुति की सरकार लाने के लिए।"

महाराष्ट्र में चुनाव देख PM मोदी की चुनौती से डरा ‘बच्चा’, पुण्यतिथि पर बाला साहेब ठाकरे को किया याद; लेकिन तारीफ के दो शब्द...

पीएम की चुनौती के बाद ही राहुल गाँधी का बाला साहेब को श्रद्धांजलि देने का ट्वीट आया। हालाँकि देखने वाली बात ये है इतनी बड़ी शख्सियत के लिए राहुल गाँधी अपने ट्वीट में कहीं भी दो लाइन प्रशंसा की नहीं लिख पाए।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -