सेक्रेटरी: CM साहब, ठाकुर आया है।
इतनी रात गए, CM सोच मे पड़ गए? पहले सोचा कल बुला लेते हैं। नजर उठा के सेक्रेटरी को प्रश्नसूचक नजरों से देखा। सेक्रेटरी समझ गया। खुद ही बोल पड़ा- टेलीग्राफ वाला।
ऐसा नहीं था कि CM साहब जानते नहीं थे। पर सेक्रेटरी का मतलब था, “मिल लीजिए।” मुख्यमंत्री अनिच्छा से बोले, “भेजिए।”
ठाकुर भी मानो दरवाजे से लगा ही खड़ा था, झट से अंदर आ गया। CM साहब ने दूर से ही संबोधित किया, “आओ ठाकुर… अब देश का राजधानी छोड़ हमारा राजधानी पसंद आने लगा?” ठाकुर संकोचपूर्वक मुस्कुरा कर एक-एक कदम धीरे-धीरे रखता आगे आया। मुख्यमंत्री जी हँस कर बोले, “अरे आओ बैठो। तुमसे मिलने के लिए तो मै हमेशा बेताब रहता हूँ।”
भोलानाथ ठाकुर CM साहब को सालों से जानता था, पर आज भी वे उसके बारे में क्या सोचते थे, इसकी थाह नहीं पाता था। वह धीरे से सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया। मेज पे रखा पानी पिया और चाय का कप हाथ में लेकर, बिना समय नष्ट किए सीधा मुद्दे पे आया, “यह मजदूरों का इशू गरमाया हुआ है। आपके बंधू पार्टी वाले भी पूरा फायदा लेंगे।” ठाकुर, चाय की चुस्की लेने के लिए रुका, CM साहब, ध्यान देके सुन रहे थे।
“इन सबमें, सबसे ज्यादा हमारी छवि को नुकसान हुआ है।”
CM की नजर में सवाल था। “राज्य की छवि को…” ठाकुर ने स्पष्ट किया। CM, “क्यों, UP में तो हमसे ज्यादा लोग वापस गए?” ठाकुर, “CM साहब, UP की बात अलग है। वहॉं तो कुछ गलत हो नहीं सकता। वहाँ आपके कर्मठ मित्र कुछ गलत होने नहीं देंगे।”
CM ने आग में तेल डाला, “तो यह कौन सा पराया राज्य है।” ठाकुर, “क्या सर, आप मुझ से ही मजाक कर रहे हैं? आप भी जानते हैं सच्चाई क्या है। सरजी, यह सुशासन बाबू का इमेज बनने में 15 साल लगे। यह एक कोरोना पूरा बॅंटाधार कर देगा।” CM साहब ने ठाकुर को पैनी नजर से देखा, “ठाकुर बात तो तुमने सही कही, पर यह या तो हम जानते हैं या तुम। और अगर हम तुमको ठीक से जानते है तो, यह बतलाने के लिए तो तुम ना आए।”
ठाकुर शर्माया, बोला, “आप तो दिल की बात पकड़ लेते हैं। CM साहब, ये जो अपने डॉक्टर साहब हैं, कमाल का काम करते है टीवी पर…” और अंदाज़ा लेने के लिए रुक गया। CM सुन रहे थे, “पर कभी-कभी बहुत ज्यादा मात्रा हो जा रहा रामधुन का… और देशभक्ति का… लगता है अपनी अपनी पार्टी के हैं भी कि नहीं।”
CM सोच में दिखे। उसने फिर बोलना शुरू किया, “उनकी बातों का हमको तो कोई फायदा होता हुआ नहीं दिख रहा। इनसे अच्छे तो वही थे।”
इस बात से CM का गुस्सा उमड़ पड़ा, “अरे धत्त…क्या बोल रहे हैं? आप तो जानते है हमको। यही सब हमको अच्छा नहीं लगता आप पत्रकार लोगों का। चरवाहों के साथ? एक बार आपही के बात में आकर… और वोह आपकी दिल्ली वाली TV स्टार पत्रकार। पूरा टाइम उसी के साथ फोटो, इंटरव्यू…और हमारा सामने तरफदारी। जब बाद में जेल हुआ तब? सब गायब?”
और CM रुक गए। ठाकुर को कुछ पल के लिए लगा, कहीं भगा न दे। ऐसा कुछ नहीं हुआ। पर वह उठ के खड़े हो गए, बोले “और बताओ कब तक हो?” ठाकुर समझ गया। बोला “चलते-चलते एक बात कहने की इजाजत दीजिए। छोड़िए उनको। मैडम के साथ जाने में क्या खराबी है?” बिना जवाब दिए CM उठ के चल दिए। ठाकुर भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ा।
CM काफी देर ठाकुर की बात पर सोचते रहे। नेशनल लीडर बनने का उनका ख्वाब, हिन्दू पॉलिटिक्स के चक्कर मे एक बार चकनाचूर हो चुका था। अब क्या यह ब्राह्मण-बनिया पार्टी मेरी इस कुर्सी की भी क़ुर्बानी लेगी? कैसे इतना सबकुछ बदल सकता है सिर्फ दो लोगों से? हजारों नेताओ की, लाखों कार्यकर्ताओं की और करोड़ों सदस्यों की पार्टी सिर्फ 2 लोगों ने बदल दी?
उनको 20 साल पुराना समय याद आया। कैसा सौहार्द्रपूर्ण वातावरण था दोनों पार्टियों में। फिर 2002 भी याद आया। तभी अगर कविवर, गुजरात मे किसी और को CM बना देते, तो आज NDA अपनी गिरफ्त में होता। और शायद आज प्रधानमंत्री भी…
पर 2014 तक तो सब ठीक ही था। ये दोनों जब से दिल्ली पहुँचे हैं सब बदल गया। अब तो डर लगता है हिन्दू शब्द से और इस पार्टी से। लगता है खा जाएँगे किसी दिन। ठाकुर बात तो सही कर रहा था। PK की बात से मेल खाती!!!
PK की याद से CM के हृदय में आश्वासन का भाव जागा।
सुबह इस खबर से हुई कि डिजिटल रैली को लोगों ने जबरदस्त सराहा है। CM को यह भी ठीक नहीं लगा था। अभी सीट शेयरिंग भी नहीं हुई और ये निकल भी पड़े, TV से लोगों को लुभाने। Seat Sharing से उनको तीसरे हिस्सेदार को भी समायोजित करना हैं, यह बात फिर चुभी। यह कौन कम थे, तो साथ में इनके मामा के लड़के…मौसम वैज्ञानिक बाप-बेटा। (राष्ट्रप्रेमी पार्टी के एक प्रेमी पत्रकार ने TV पर CM को भी मौसम वैज्ञानिक बुलाया था यह बात अलग है) हमेशा कुछ न कुछ माँगते रहते हैं… पिछड़ा-पिछड़ा बोल के मलाई खींचने के काम करते हैं दोनों।
इन सब चिंताओं के साथ में कोरोना (corona) का डर था ही। पर CM को migrant labour वाली बात खाए जा रही थी। अगर ये नवंबर तक वापस नहीं गए तो? कितनी सीट पर असर होगा? CM जानते थे, मोटा भाई उनको 100 से ज्यादा सीटे देना नहीं चाहते। इस माइग्रेंट लेबर इश्यू के चलते CM को मोलभाव करनते की ताकत क्षीण होती दिख रही थी।
PK और ठाकुर जैसे अवसरवादियों की बातों पे गौर करना तो ठीक है, पर इस परिस्थिति में क्या इन पर भरोसा कर सकते हैं? CM इसका जवाब जानते थे। ऐसे में उनको लगा, उनके सबसे पुराने साथी, भले ही वो उस तरफ हो, पर उन पर ही भरोसा करना ठीक रहेगा।
CM को पूरा भरोसा था सूमो बाबू पर! पर उनकी दिल्ली में आज की परिस्थिति में कितनी सुनी जाती है? खैर, और कोई चारा नजर नहीं आ रहा था। चारा- यह शब्द कितने पुराने समीकरण याद दिला देता था।
शाम होते-होते CM के मन में योजना तैयार हो गई थी। 120 सीटों से कम कुछ भी मान लेना खतरनाक हो सकता है। सूमो बाबू ही हैं, जो यह करा सकते हैं। भले उसके लिए उन्हें कुछ अपनी पार्टी में तोड़-मरोड़ करनी पड़े। उन्होंने सूमो बाबू को मिलने के लिए संदेशा भेजा और काम में जुट गए।