शाहीन बाग़, जामिया नगर में मतदान के लिए बुर्के और टोपी में उमड़ी हुई भीड़ इस बात का सबूत है कि सत्ता और ताकत की ‘च्वाइस’ इंसान को क्या कुछ करने के लिए मजबूर कर सकती है। करीब दो महीनों से ‘कागज़ नहीं दिखाएँगे’ और ‘कागज बकरी खा गई और बकरी अब्बा खा गए’ जैसे नारे लगाने वाले आज सुबह से मतदान केंद्रों की लाइन पर लगे हैं। वो भी बकायदा दस्तावेज (वोटर कार्ड) हाथ में लेकर।
शाहीन बाग़ को धरती पर ही जन्नत बताने वाले विचारक पत्रकारों ने भी ये मंजर देखकर एक बार खुद को चूँटी जरूर काटी होगी कि अचानक से ये इतने सारे कागज़ लेकर कहाँ से उमड़ पड़े। वरना ‘बिरियानी बाग़’ में विरोध-प्रदर्शन के नाम पर बाँटी जा रही बिरयानी के लिए तो पात्रता ही कागजों का ना होना था।
VIDEO- Check out the long queue at the polling booth in #ShaheenBagh
— Zeba Warsi (@Zebaism) February 8, 2020
Less than a km from the protest site. People coming out in large numbers to vote. #DelhiElections2020 pic.twitter.com/e2Wsp5A4gx
शरीयत की ‘सेक्युलेरियत’ को कितना भी नकारते रहें लेकिन जब शुक्रवार की शाम मौलवियों ने घोषणा जारी करते हुए दिल्ली में मतदान करने के आदेश दिए तो उसके बाद मजहबी साथियों के लिए इस आदेश को नकारना बहुत कठिन था। या यह कहें कि चूँकि यह आदेश संविधान निर्माताओं द्वारा बनाए गए कानून से नहीं, बल्कि मस्जिद के सेक्युलर स्पीकर्स से जारी किए गए, इसलिए इनकी अवहेलना करने का तो कोई विकल्प ही मौजूद नहीं होता है।
“Kaagaz Nahi Dikayenge Hum” ! ! !
— BJP Karnataka (@BJP4Karnataka) February 8, 2020
Keep the documents safe, you will need to show them again during #NPR exercise.#DelhiPolls2020 pic.twitter.com/bEojjeKlwI
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के नाम पर आम आदमी पार्टी ने शाहीन बाग़ को खड़ा किया है, यह बात चुनाव आते-आते पूरी तरह से स्पष्ट होती गई। लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि एक ऐसा आदमी, जिसके राजनीतिक करियर की शुरुआत ही धरना-प्रदर्शन से हुई थी, उसने अपना पहला कार्यकाल पूरा होते-होते दिल्ली को एक आधिकारिक धरना राजधानी में तब्दील कर ही दिया।
इससे भी दिलचस्प बात यह कि एक विधानसभा चुनाव से दूसरे विधानसभा चुनाव के बीच दिल्ली ने इन विरोध-प्रदर्शनों के बीच शायद ही कुछ देखा हो और आज जब चुनाव की बारी एक बार फिर से आई, तो लोग धरना राजधानी में धरने से ही उठकर मतदान देने भी जा रहे हैं।
इस सब के बावजूद भी अरविंद केजरीवाल से इससे भी बड़ी उपलब्धि की उम्मीद अगर कोई अभी भी कर रहा है, तो उसे जाकर पहली फुरसत में कॉन्ग्रेस में शामिल हो जाना चाहिए। क्योंकि आज की तारीख में ना कॉन्ग्रेस का कोई भविष्य नजर आता है, और ना ही केजरीवाल से धरना-प्रदर्शन के अलावा कोई और उम्मीद करने वाले का कोई सुनहरा भविष्य हो सकता है। जो आदमी राहुल गाँधी से उम्मीद लगाए बैठे हों, वे अगर एक बार के लिए केजरीवाल से भी उम्मीद लगा ले तो कोई गुनाह है क्या?
राहुल गाँधी का जिक्र आते ही कि दिल्ली चुनाव और ‘कागज नहीं दिखाएँगे’ के इस पूरे ड्रामे के बीच एक राजनीतिक दल ऐसा भी था, जिसे ना ही किसी को कागज़ दिखाने थे और ना ही किसी से कागज माँगने थे; वो है कॉन्ग्रेस! कॉन्ग्रेस जिस तरह से इस पूरे प्रकरण के बीच सोई हुई नजर आई, उसे देखकर तो यही लगता है कि वो वर्षों तक इस देश में सत्ता में रहने की थकान उतार रही है और जिम्मेदारी का यह बोझ राजमाता सोनिया और चिर-युवा युवराज राहुल गाँधी के ही कन्धों पर था।
इस चुनाव में कॉन्ग्रेस के हालात ये हैं कि आज मतदान देकर जब सॉल्ट न्यूज़ के एक सस्ते फैक्ट चेकर ने EVM पर कॉन्ग्रेस का निशान दबाया तो बदले में मशीन से हँसने की आवाजें आई। इस घटना से दहशत में जब फैक्ट चेकर मतदान देकर बाहर निकला, तो उसे तुरंत चाचा नेहरू अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। इसकी सूचना ‘न्यूज़लॉन्डी’ नामक हास्य व्यंग्य का फैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट ने दी है।
इस राज परिवार को शाहीन बाग़ से कोई ख़ास लेना देना नहीं रहा। सुनने में तो यह भी आ रहा है कि कॉन्ग्रेस कार्यालय में इस बात की मिठाइयाँ बाँटी जा रहीं कि उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव में कुछ भी ना कर के कम से कम इतने रुपए तो बचा ही लिए हैं, जिससे वो राहुल गाँधी की एक और थाईलैंड यात्रा का इंतजाम कर सकें।
अगर इस चुनाव में दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत होती है, तो अरविन्द केजरीवाल को सब कुछ (फिल्म रिव्यु, बेवजह हर जगह कंटाप खाना, आदि आदि) पहली फुरसत में छोड़कर एक ‘धरना मंत्रालय’ का गठन करना चाहिए। जिस स्ट्राइक रेट से पिछले पाँच सालों में दिल्ली में धरना प्रदर्शन होते रहे, उससे तो यही संदेश जाता है कि दिल्ली को एक मुख्यमंत्री की नहीं बल्कि एक धरना मंत्री की ज्यादा जरूरत है।
इन सभी तथ्यों के बावजूद केजरीवाल के मीडिया प्रमुख अपने प्राइम टाइम में यह भी कहते सुने और देखे गए कि दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल को हरा पाना नामुमकिन है। लेकिन सॉल्ट न्यूज़ द्वारा सत्यापित आँकड़ों वाली ग्राउंड रिपोर्ट तो यही बताती है कि अरविन्द केजरीवाल दिल्ली में सिर्फ एक ही कंडीशन में हार सकते हैं, अगर भाजपा उन्हें दिल्ली में अपना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर देती।
खैर, सॉल्ट न्यूज़ और सभी आँकड़े क्या कुछ नहीं कहते। ये तो यह भी कहते थे कि पाँच साल में केजरीवाल दिल्ली को लंदन बना देने वाले थे। वो तो भला हो मोदी सरकार, दिल्ली के गवर्नर, हाशमी दवाखाना और हर उस आदमी का जिन्होंने अरविन्द केजरीवाल को कभी कुछ करने ही नहीं दिया, वरना शाहीन बाग़ वालों को लंदन में बिरियानी के लिए लंगर लगाने और धरना प्रदर्शन करने की इजाजत ही कैसे मिल पाती, क्योंकि लंदन में तो हर काम के लिए कागज दिखाने पड़ते हैं और शाहीन बाग़ वालों के कागज़ तो कब की बकरी खा गई थी।
मतदान के बाद बाबा भीमराव आम्बेडकर और संविधान निर्माताओं पर आखिरी एहसान ये ‘शाहीन बाग़’ अब सिर्फ यही कर सकता है कि जिन कागजों को लेकर वो पोलिंग बूथ पहुँचे हैं, उन्हीं कागजों को उस वक़्त भी दिखा दें, जब NRC और CAA के लिए कागज माँगे जाएँगे। क्योंकि संविधान के अनुसार नागरिकता की पहचान के लिए यही कागज़ वहाँ भी दिखाने हैं, जिन्हें हाथ में लेकर आप मतदान करने गए हैं।
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