कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी वाड्रा अब लगातार मेहनत करते नजर आते हैं। देश में चुनाव हों या ना हों, कल ही होने हों या फिर पाँच साल बाद; वो अब तन, मन और धन से जनता के बीच मौजूद हैं। इसके लिए कभी बहन गंगा स्नान करने लगी हैं, तो कभी भैया राहुल कॉन्ग्रेस के लिए रात-दिन एक करते हुए पार्टी का भूत-भविष्य और वर्तमान एक करते देखे जाते हैं।
आज ही राहुल गाँधी ने पुडुचेरी के मुथियालपेट में कहा कि मछुआरे समुद्र के किसान हैं और उनके लिए मोदी जी ने कोई मंत्रालय नहीं बनाया। एक ओर, जहाँ लोगों को भय है कि युवराज ने आज कहीं किसी दो साल पुराने भाषण को तो नहीं पढ़ लिया तो वहीं दूसरी ओर, राहुल गाँधी के इस बयान के बाद केंद्र सरकार एक ऐसा विधेयक लाने पर भी विचार कर रही है, जिसके बाद तमाम राजनीतिक पार्टी के नेताओं को सामान्य ज्ञान की किताबें पढ़ना आवश्यक कर दिया जाएगा।
उधर, प्रियंका गाँधी वाड्रा ने किसान हितों का समर्थन करने की ऐसी जिम्मेदारी उठा ली है कि इसके लिए अब वो फेक न्यूज़ फ़ैलाने के अलावा राह चलते आदमी को भी ये पूछने लगी हैं कि उसके खाते में गन्ने के रूपए आए या नहीं? गन्ने का जूस बेचने वालों की जेब में तो इंदिरा की पोती ने जबरन रूपए ठूँसकर उन्हें फासीवाद सरकार के दौरान ही मालामाल करने की कसम खा डाली होगी।
समाज में नैरेटिव विकसित करने के लिए कॉन्ग्रेस को पहले इतने प्रयोग करते हुए कभी नहीं देखा गया। एक दौर था, जब सदियों बाद ही ये पार्टी कभी पेड़ गिरने और धरती हिलने जैसा बयान देकर मामला इकतरफा करने का कांफिडेंस लेकर चलती थी, लेकिन अब हालात ये हैं कि एक ही साल के भीतर इसके युवा नेता, जो कि संयोग से भाई-बहन हैं, अपनी दादी की नाक से लेकर पापा का हेयर स्टाइल तक अपनी राजनीति के बीच ले आए मगर ‘पॉलिटिकल ग्रिप’ है कि कमजोर ही हुए जा रही है।
राहुल गाँधी आज ‘समुद्र के किसानों’ से मिलते हुए जिस कॉन्फिडेंस में नजर आए, उसे देखकर तो लगता है कि अगर ‘बाय चांस’ कभी उनकी पार्टी सत्ता में वापसी करती है, तो वो आसमान के किसानों के लिए भी किसी मंत्रालय की घोषणा ना कर बैठें।
किसान हित सर्वोपरी हैं मगर राहुल गाँधी इन हितों के लड़ते-लड़ते ये भूल बैठे हैं कि उनके आए दिन ऐसे बयानों को सुनने और सहन करने वालों के भी कुछ अधिकार होते हैं, जिन्हें कि मानवाधिकार कहा जाता है और वो हैं कि इन अधिकारों की निर्मम हत्या किए जा रहे हैं और पारी की घोषणा करने को भी तैयार नहीं।