Tuesday, March 19, 2024
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व्यंग्य: NDTV के संकेत को रिपब्लिक ने दिए ₹500, देखता रहता है पूरे दिन

रवीश कुमार संकेत के इस व्यवहार से नाराज थे और कहा कि वो 'आपातकाल आ चुका है' ऐसा जताने के लिए छः सालों से मरियल सा चेहरा लिए घूमते हैं, और यहाँ लोग हँस कर ट्वीट कर रहे हैं।

हाल ही में ‘अटैक’ शब्द की नई व्याख्या ले कर आए संकेत नामक एनडीटीवी कर्मचारी ने आज एक ट्वीट किया है। इस ट्वीट में वो काफी प्रसन्न नजर आ रहे हैं। यूँ तो, एनडीटीवी में रह कर प्रसन्न होने का कोई औचित्य नहीं है, लेकिन फिर भी कोरोना के दौर में खुशी के दो पल तो व्यक्ति निजी विषयों में विनोद खोज कर पा ही सकता है। हालाँकि, उनकी इस तरह से हँसने की तस्वीर देख कर श्री प्रणय रॉय को काफी गुस्सा आया कि NDTV का एक कर्मचारी ऐसा प्रसन्नचित्त कैसे हैं!

वो भी दीवाली के बोनस के समय में जबकि सबको सीरियस दिखना होता है ताकि बॉस को लगे कि काम ठीक से हो रहा है। इसका संज्ञान प्रणय जी ने ले लिया है और गुप्त सूत्रों के हिसाब से जल्द ही संकेत को ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी किया जाने वाला है। अगर मेरी निजी राय ली जाए तो ये सही भी है। कर्मचारियों को हमेशा गंभीर रहना चाहिए। बिना बात के भी गंभीर रहिए, तभी तो रवीश कुमार जैसों का सामूहिक अजेंडा चलेगा कि NDTV चैनल के प्रसारण को सैटटॉप बॉक्स के दौर में यूपी के ‘केबल वाले’ गायब कर देते हैं।

अगर कर्मचारी पब्लिक में ऐसे खुश दिखेगा तो चार लोग (जो इस चैनल को देखते हैं) पूछेंगे कि आप तो कहते हैं कि चैनल का नंबर बदल दिया जाता है, केबल वाले बंद कर देते हैं प्रसारण… और यहाँ तो संकेत मुस्कुराता हुआ फोटो लगा रहा है। प्रणय रॉय ने एडिटर्स की मीटिंग में इस मुद्दे को उठाया कि जहाँ इंडिया टुडे ने दो महीने तक कर्मचारियों को अपने सोशल मीडिया हैंडल पर निजी बात रखने से मना किया है, वैसे दौर में लोग अगर हँसते दिखेंगे तो उनकी विश्वसनीयता क्या रह जाएगी!

रिपब्लिक टीवी चल रहा है बैकग्राउंड में

प्रणय रॉय ने कई ऐसी बातें भी कहीं, जो हम आगे बताएँगे, लेकिन पहले तस्वीर के अन्य पहलुओं पर भी ध्यान देना आवश्यक है। संकेत के ट्वीट वाली तस्वीर में बैकग्राउंड में ‘लाल और पीले’ रंग के थीम वाला एक चैनल टीवी पर दिख रहा है। जब हमने सॉल्टन्यूज के पंचरछाप जुबैर से इस बाबत बात की तो उन्होंने ‘सुलेशन’ से चिप्पी साटने के बाद वॉल्व पर थूक लगा कर हवा के बुलबुले चेक करते हुए हमसे कहा:

“देखिए अजीत जी, यूँ तो मैं संघियों की मदद नहीं करता, लेकिन बोहनी के टाइम में आपने अपने सायकिल बनवाई है तो मना भी नहीं कर सकता। मैंने अपने गंजे दोस्त के अर्धगोलाकार एंटेना पर इस तस्वीर का प्रिंट आउट रख कर पता किया तो सीधा नासा से कनेक्ट हुए। फिर वहाँ से डाउनलोड की हुई जानकारी में पता चला कि चूँकि रंग लाल और पीला है, तो धुँधला होने के बाद भी इसे ‘रिपब्लिक टीवी’ का ही माना जाए।”

मैंने दस रूपया पंचर के, और ढाई रुपया सर्विस के देने के बाद जुबैर को धन्यवाद कहा और आगे के शोध हेतु निकल गया। संकेत जी से भी संपर्क करने की कोशिश की मैंने लेकिन उन्होंने सीधे जवाब देने से मना कर दिया। हालाँक, उन्होंने कहा कि अगर मैं उनका शो आधे घंटे देख लूँ तो वो असली बात ‘ऑफ दी रिकॉर्ड’ बताएँगे।

राष्ट्रवाद के लिए जब मैंने अपने अखंड सिंगलत्व को बरकरार रखा हुआ है तो वामपंथी चैनल का आधा घंटा भी सह लेंगे थोड़ा… वीडियो कॉल पर उस आदमी ने मुझे अपना एक शो दिखाया दूसरे मोबाइल पर चला कर और तब मेरी विवशता पर आनंद लेने के बाद बोला:

“देखिए भारती जी, यह तो किसी से छुपा नहीं है कि कम्पनी की हालत ठीक नहीं है। कोरोना के समय में सैलरी भी कटी है, लोग भी गए हैं। ऐसे में अगर ₹500 कहीं से आ रहा है, तो क्या समस्या है। चाय-नाश्ते का तो प्रबंध हो जाएगा कम से कम… है कि नहीं।”

मुझे भी लगा कि बात तो सही है, अगर प्रैक्टिकली देखा जाए तो। ये लोग कई तरह से परेशान हैं फंडिंग को ले कर। वामपंथी चैनलों, पोर्टलों को वैसे भी दर्शकों और पाठकों ने नकार दिया है, रही-सही कसर NGO के बंद होने से पूरी हो गई। फिर कोरोना हो गया। तब ऐसे में मुझे महान क्रिकेट कमेंटेटर अरुण लाल जी की कालजयी पंक्तियों का सहसा ही स्मरण हो उठता है कि ‘रन चाहे बाय से बनें, या लेग बाय से, रन तो रन होते हैं’।

फिर मैंने अन्य तस्वीरों पर गौर किया तो पाया कि वो किसी और व्यक्ति से भी बातचीत करने में व्यस्त हैं। फिर गुप्त सूत्रों ने बताया कि वहाँ पर भी दूसरे व्यक्ति को यही समझाया जा रहा है कि वो भी रिपब्लिक को दिन भर देखा करे। कथित तौर पर वह व्यक्ति संकेत से कह रहा है, “अरे पता चल जाएगा तो नौकरी चली जाएगी यार!” लेकिन संकेत ने इसका भी उपाय सुझाया, “अरे, कमप्टीशन में क्या चल रहा है ये देखना भी जरूरी होता है। यही बोल देना अगर कोई पूछे तो।”

साभार: संकेत जी की ट्विटर फीड से

मैंने फिर संकेत से बातों-बातों में, एकदम कैजुअली, ताकि संदेह न हो, पूछा लिया, “लेकिन यार, ऐसी तस्वीरें ट्विटर पर कौन डालता है। अब देखो ऑपइंडिया में बैठा हुआ कोई आदमी मजे ले लेगा।” तब संकेत ने जो बात कही वो सीधे मेरे दिल को छू गई। सिंगल आदमी की समस्या ये है कि उसको कोई भी बात दिल को छू जाती है। खैर, निजी विषयों पर विलाप करने से अच्छा है कि मैं आपको वो बात बताऊँ।

“देखिए अजीत जी, रिपब्लिक वालों ने पैसे तो दे दिए, लेकिन उन्हें पता कैसे चलेगा कि मैं क्या देख रहा हूँ? आजकल तो ऑनलाइन का जमाना है, पैसे भी ऑनलाइन आते हैं, तो सबूत भी वैसे ही जाएगा। जान-बूझ कर मैंने इतना ही ब्लर किया है कि पता चल भी जाए, और न भी चले। मतलब, समझने वाले समझ गए, जो न समझें वो अनाड़ी हैं। जिसको देखना है, वो देख लेगा और अगले महीने का इंतजाम कर देगा। समझ रहे हैं बात?”

मैं तो सारी बात समझ ही गया था। अब मैंने प्रणय रॉय वाली मीटिंग के बारे में सूचना इकट्ठा करना शुरु किया।

क्या हुआ एडिटोरियल बोर्ड मीटिंग में

जब गुप्त सूत्र से बात की तो उसने कहा कि डेढ़ सौ रुपए लेगा। मोल-भाव के बाद बात कुल दौ सौ पर तय हुई क्योंकि मेरे पास पाँच सौ के ही नोट थे और दो हजार मैं देना नहीं चाहता था। उसने बताया कि मीटिंग में रवीश जी सबसे ज्यादा भड़के हुए थे। उन्होंने अपनी बात रखी, “एक मैं हूँ जो फेसबुक लाइव में भी सीरियस चेहरा लिए रहता हूँ। कैरेक्टर में इतना घुसा हुआ हूँ कि छः साल से मेरे लिए तो आपातकाल ही चल रहा है इस देश में।”

“ऐसे में कोई आदमी ट्विटर पर मुस्कुराती तस्वीर डाल दे तो क्या इज्जत रह जाएगी ब्रांड की? मैं तो ट्विटर पर हूँ भी नहीं, किसी ने लोक पत्र संभाग में मुझे पूछा कि ‘रवीश जी, आपके संस्थान के लोग गंभीर नहीं हैं देश की स्थिति को ले कर’। अब बताइए कि मैं क्या जवाब दूँ उस आदमी को? उसने हैशटैग भी लगाया कि ‘रवीश जी, आपसे उम्मीद है।’ यहाँ आदमी उम्मीद लगाए बैठा है और वहाँ रिपब्लिक देखी जा रही है। मेरा प्राइम टाइम तो यूट्यूब पर भी आता है, उसको क्यों नहीं देखा जाता?”

प्रणय रॉय भी खासे चिढ़े हुए दिखे क्योंकि ब्रांड के नाम पर अब नाम ही बचा है NDTV का। वो भी किसी दिन योगी जी का दिमाग फिरा तो कहा देंगे कि ‘आज से तुम्हारे चैनल का नाम R&D TV होगा।’ कुछ लोग तो ऐसा ही मिलता जुलता नाम सोशल मीडिया पर इस्तेमाल भी करते हैं, ऐसा रवीश जी ने मीटिंग में ध्यान दिलाया। प्रणय रॉय ने संकेत से कहा कि आइंदा ऐसी गलती न हो तो बेहतर है।

ऑपइंडिया की राय

जब मैंने ऑपइंडिया हिन्दी के एडिटर अजीत भारती से बात की, जो कि स्वयं मैं ही हूँ, तो उन्होंने कहा, “एक तरफ तो ये लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देते हैं, वहीं इस तरह के गैग ऑर्डर लगाए जाते हैं कि किसको क्या देखना है, क्या नहीं। हो सकता है कि संकेत के लंच का टाइम हो और वो अपना मनपसंद चैनल देख रहा हो। क्या हमने यह जानने की कोशिश की? चाणक्य भी कार्यालय के समय में काम का तेल इस्तेमाल करते थे, और निजी कार्यों के लिए निजी। तो संकेत पर इस तरह की मीटिंग और कारण बताओ नोटिस का क्या औचित्य है?”

देखा जाए तो ये सब होना नहीं चाहिए। संकेत भी एहतियात बरत सकते थे अगर रिपब्लिक वालों को ₹500 के लिए सबूत भेजने थे तो। व्हाट्सएप्प पर वीडियो कॉल हो सकता था। कई तरीके हैं आज के दौर में। ये बात और है कि NDTV के पत्रकारों को इंटरनेट रिचार्ज कराने में आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हो। वो कोई फेसबुकिया जानेमन टाइप के तो लोग हैं नहीं कि कोई ‘शोना बाबू’ एक महीने का रिचार्ज डलवा देगा राते के बारह बजे।

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अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

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