Friday, November 15, 2024
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अरब को जीतने वाले बप्पा रावल से लेकर औरंगजेब को हराने वाले राज सिंह तक: ओमेंद्र रत्नू की पुस्तक में हजार वर्षों का इतिहास, महाराणाओं की गाथा

भारतीय इतिहास के सही पक्ष को पेश कर के ओमेंद्र रत्नू उसी क्रम को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसकी शुरुआत सीताराम गोयल ने की थी। पूरे भारत में मंदिरों को ध्वस्त कर बनाए गए मस्जिदों को एक दस्तावेज के रूप में पेश करने का काम उन्होंने ही किया था, जिन्हें 'Maharana: A Thousand Year War For Dharma' के लेखक 'महर्षि' कहते हैं।

पिछले कई वर्षों से हमारे सामने ये सत्य उजागर हो रहा है कि कैसे वामपंथी इतिहासकारों ने हमारे इतिहास को बदल कर ऐसा बना दिया, जिसे पढ़ कर खुद की ही मातृभूमि और धर्म को हम घृणा भरी नज़र से देखने लगे। हाल के दिनों में कई बुद्धिजीवियों ने इसे ठीक करने का बीड़ा उठाया और उन्हीं में से एक डॉक्टर ओमेंद्र रत्नू भी हैं, जिन्होंने ‘महाराणा: सहस्र वर्षों का धर्मयुद्ध (Maharanas: A Thousand Year War For Dharma)’ नामक पुस्तक लिख कर देश-धर्म के प्रति सराहनीय कार्य किया है।

पुस्तक के बारे में बताने से पहले जानकारी दे दें कि ये हिंदी और अंग्रेजी, दोनों भाषाओं में उपलब्ध है। ‘प्रभात’ संस्थान ने इसका प्रकाशन किया है। 398 पन्नों वाली इस इस पुस्तक के कवर पर ही आपको भगवान शिव दिखाई देंगे। साथ ही भाला लिए घोड़े पे बैठे युद्ध के लिए कूच करते ‘महाराणा’ की तस्वीर है। गढ़ के ऊपर लहराता भगवा ध्वज भी आपको दिखेगा। ये पुस्तक 299 रुपए में उपलब्ध है और आप इसे ऑनलाइन खरीद सकते हैं।

अब पुस्तक के कंटेंट्स की बात कर लेते हैं। इसकी शुरुआत बप्पा रावल के जीवन से होती है, जिन्हें ‘अरब का विजेता’ बताया गया है। प्रतिहार राजाओं नागभट्ट और पुलकेशी ने कैसे बप्पा रावल के साथ मिल कर शुरुआती इस्लामी आक्रमणों को नेस्तनाबूत किया, ये बताया गया है। इसके बाद रावल खुमान का इतिहास है, जिन्होंने कई बार अरबों को बाहर खदेड़ा। रावल रतन सिंह का इतिहास है, जिनकी पत्नी महारानी पद्मिनी थीं।

गोरा और बादल के शौर्य के साथ-साथ हजारों स्त्रियों का जौहर – भारत में हुई इस अभूतपूर्व घटना का जिक्र सिहरन पैदा करने वाला है। तुगलकों को नेस्तनाबूत कर के चित्तौरगढ़ की गरिमा को वापस लौटाने वाले महाराणा हम्मीर सिंह और हिन्दुओं की रक्षा करने वाले महाराणा लक्ष्य सिंह के बारे में भी आपको पढ़ने को मिलेगा। पुस्तक के भाग एक का अंत राणा कुम्भा और राणा सांगा की शौर्य गाथा के साथ होती है। ये इतने बड़े वीर योद्धा थे, लेकिन इनके बारे में देश तो छोड़िए, राजस्थान के पाठ्य पुस्तकों में भी शायद ही कुछ मिले।

पुस्तक के दूसरे भाग में महाराणा प्रताप की वीर गाथा है। हल्दीघाटी के युद्ध के बारे में तो हमें खूब बताया जाता है और दावा किया जाता है कि महाराणा प्रताप की इसमें हार हुई थी, लेकिन लेखक ने हल्दीघाटी युद्ध के सही पक्ष को पेश करते हुए उस ‘देवायर’ के युद्ध की भी बात की है, जिसकी चर्चा कम की जाती है। फ़ारसी और तुर्की साहित्यों के बल पर कैसे मुगलों और इस्लामी शासकों को महान और शक्तिशाली बताने का षड्यंत्र रचा गया, ये भी आपको इस पुस्तक में जानने-समझने के लिए मिलेगा।

एक तरह से देखा जाए तो भारतीय इतिहास के सही पक्ष को पेश कर के ओमेंद्र रत्नू उसी क्रम को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसकी शुरुआत सीताराम गोयल ने की थी। पूरे भारत में मंदिरों को ध्वस्त कर बनाए गए मस्जिदों को एक दस्तावेज के रूप में पेश करने का काम उन्होंने ही किया था, जिन्हें ‘Maharana: A Thousand Year War For Dharma’ के लेखक ‘महर्षि’ कहते हैं। ये किताब सिर्फ राजपूत ही नहीं, बल्कि राजस्थान के भील योद्धाओं का इतिहास भी बताती है। ये किताब हिन्दुओं के लिए है, भारतीयों के लिए है – किसी खास जाति के लिए नहीं।

अब समय आ गया है जब हमें इस तरह की पुस्तकों का समर्थन करना चाहिए। इतिहास की पथ्य पुस्तकों में भले अब भी कचरा पढ़ाया जा रहा हो, लेकिन छात्रों को, खासकर युवाओं को ऐसी पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। वामपंथियों की पोल खोल रहे अनंत विजय हो, सावरकर पर दशकों चले प्रोपेगंडा के कचरे को साफ़ कर रहे विक्रम संपत हों या फिर महाराणाओं की गाथा को आम लोगों तक पहुँचाने का मैराथन कार्य कर रहे ओमेंद्र रत्नू, हमें ऐसे लेखकों और इनकी पुस्तकों को न सिर्फ पढ़ना चाहिए बल्कि इनका प्रचार-प्रसार भी करना चाहिए।

पुस्तक की शुरुआत में ही ओमेंद्र रत्नू ने बता दिया है कि कैसे भारत का इतिहास उसी हिसाब से ढाला गया, जहाँ ‘गोरे साहबों’ द्वारा ‘कॉन्ग्रेस के ब्राउन साहबों’ को स्थानांतरित की गई सत्ता के अंतर्गत मुल्ले, मार्क्सिस्ट और मिशनरियों के विस्तारवादी एजेंडे को बल देने वाला इतिहास ही लिखा गया। इस लेफ्टिस्ट-जिहादी कॉम्बिनेशन से सवाल तक नहीं किए गए। किस तरह पश्चिम बंगाल में 80 के दशक के अंत में बजाप्ते सर्कुलर जारी कर के मुस्लिम शासकों की आलोचना से बचने का आदेश दिया गया और उनके द्वारा तोड़े गए मंदिरों का जिक्र न करने को कहा गया, ये भी उन्होंने बताया है।

यहाँ ओमेंद्र रत्नू ने सिर्फ राजाओं का जीवन चित्रण नहीं किया है, बल्कि उस वक्त के माहौल को उकेरते हुए पूरी भारतीय पृष्ठभूमि में चीजों को रखने की कोशिश की है। जब वो मोहम्मद बिन कासिम के हमले के बारे में बताते हैं, तो ये भी जानकारी देते हैं कि इस इस्लामी हमले से पहले भारत में ‘सेक्स स्लेवरी (यौन दासता)’ के बारे में किसी ने सुना तक नहीं था। महिलाओं के साथ घृणित अत्याचारों का क्रम इस्लामी शासन से ही शुरू हुआ।

जब वो महारानी पद्मिनी का इतिहास लिखते हैं, तो ये भी बताते हैं कि कैसे अल्लाउदीन खिलजी के आदेश पर चित्तौर में 30,000 निर्दोष नागरिकों का खून बहाया गया। जब वो महाराणा लक्ष्य सिंह की बात करते हैं तो चूंडा सिसोदिया के त्याग की कहानी भी बताते हैं जो महाभारत में भीष्म पितामह के जैसी ही है। महाराणा प्रताप और अमर सिंह के बारे में बताते समय ओमेंद्र रत्नू भामाशाह की जीवनपर्यंत मातृभूमि की सेवा सेवा और उनके बाद उनके बेटे ने कैसे जिम्मेदरी संभाली, ये भी बताते हैं।

कुछ प्रसंग ऐसे ही, जिनसे अपने-आप आपकी आँखों में आँसू आ जाएँगे। महाराणा प्रताप का निधन उनमें से ही एक है, जिसका विवरण देते समय लेखक ने बताया है कि जब योगेश्वर श्रीकृष्ण प्रकृति के नियमों से बँधे थे तो हम तो भला मनुष्य हैं। ‘राणा रासो’ के हवाले से महराणा प्रताप के इस पृथ्वी पर अंतिम दिन का प्रसंग लेखक ने उकेरा है। इसी तरह जौहर वाले विवरण भी रुला देने वाले हैं। हमारी उन वीर माँओं के जौहर वाले स्थलों को देखने के लिए आप इस पुस्तक को पढ़ने के बाद तरस उठेंगे।

सबसे बड़ी बात तो ये कि हिन्दुओं का कत्लेआम मचाने वालों को किस तरह इतिहास में नायक बनाया गया, ये आपको देखने को मिलेगा। चाहे तैमूर लंग द्वारा 1 लाख हिन्दुओं को एक दिन में ही मौत के घाट उतार दिए जाने का जिक्र हो या फिर अकबर के आदेश पर साढ़े 9 घंटों तक लगातार चला कत्लेआम, ये पढ़ कर आप सिहर उठेंगे कि कैसे अल्लाह वाला नारा लगाते हुए महिलाओं-शिशुओं तक को नहीं बख्शा गया। टोडरमल और भगवन दास जैसों ने मुगलों की वफादारी में ये सब देखते रहना उचित समझा।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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