Saturday, September 14, 2024
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सनातन और जनजातीय संस्कृति का अनूठा संगम: शक्तिपीठों में से एक दंतेश्वरी माता मंदिर, जिसके नाम से प्रसिद्ध हुआ एक जिला

देवी दंतेश्वरी बस्तर क्षेत्र के चालुक्य राजाओं की कुल देवी थीं। इसी कारण उन्होंने इस मंदिर की स्थापना की थी। यह प्राचीन मंदिर डाकिनी और शाकिनी नदी के संगम पर स्थित है।

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में स्थित है, दंतेश्वरी माता मंदिर। कहा जाता है कि यहाँ माता सती का दाँत गिरा था। यही कारण है कि इस जिले का नाम भी दंतेवाड़ा हो गया। बस्तर क्षेत्र की सबसे पूज्य और सम्मानित देवी हैं दंतेश्वरी माता। यह मंदिर छत्तीसगढ़ के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है जो हिंदुओं और विशेष तौर पर छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

दंतेश्वरी माता मंदिर का इतिहास :

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान विष्णु ने भगवान शिव के प्रचंड क्रोध को शांत करने के लिए माता सती की मृत देह को कई भागों में विभाजित कर दिया था। इसी कारण जहाँ भी माता सती की देह के हिस्से गिरे वहाँ स्थापित हुए शक्ति पीठ। दंतेवाड़ा का दंतेश्वरी माता मंदिर भी उन्हीं शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार यहाँ माता सती के दाँत गिरे थे।

देवी दंतेश्वरी बस्तर क्षेत्र के चालुक्य राजाओं की कुल देवी थीं। इसी कारण उन्होंने इस मंदिर की स्थापना की थी। यह प्राचीन मंदिर डाकिनी और शाकिनी नदी के संगम पर स्थित है। मंदिर का कई बार निर्माण हो चुका है लेकिन मंदिर का गर्भगृह लगभग 800 वर्षों से भी पुराना है।

मंदिर की संरचना और माता दंतेश्वरी की प्रतिमा :

पूरे बस्तर क्षेत्र में सर्वाधिक महत्व रखने वाला यह मंदिर 4 भागों में विभाजित है। चालुक्य राजाओं ने मंदिर का निर्माण द्रविड़ शैली में कराया था। इस मंदिर के अवयवों में गर्भगृह, महा मंडप, मुख्य मंडप और सभा मंडप शामिल हैं। गर्भगृह और महामंडप का निर्माण पत्थरों से किया गया है।  

मंदिर में माता दंतेश्वरी की ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित काले रंग की प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा 6 भुजाओं वाली है। इनमें से दाईं ओर की भुजाओं में देवी ने शंख, खड्ग और त्रिशूल धारण कर रखे हैं जबकि बाईं ओर देवी के हाथों में घंटी, पद्म और राक्षसों के बाल हैं। प्रतिमा नक्काशीयुक्त है जिसके ऊपरी भाग में भगवान नरसिंह अंकित हैं। इसके अलावा देवी की प्रतिमा के ऊपर चाँदी का एक छत्र है।

होली से पहले यहाँ नौ दिवसीय फाल्गुन मड़ई नामक त्यौहार का आयोजन होता है। यह त्यौहार पूर्ण रूप से आदिवासी संस्कृति और जनजातीय विरासत से सुसज्जित त्यौहार है। इस त्यौहार के दौरान हर दिन माता दंतेश्वरी की डोली लगभग 250 देवी-देवताओं के साथ नगर भ्रमण पर निकलती हैं। आदिवासी समुदाय नृत्य आदि के द्वारा इस त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं। हर साल नवरात्रि के दौरान पंचमी तिथि को यहाँ गुप्त पूजा का आयोजन किया जाता है। इस अनुष्ठान में मात्र मंदिर के पुजारी और उनके सहयोगी ही उपस्थित रहते हैं। आम लोगों को इस दौरान मंदिर में प्रवेश की मनाही होती है।

कैसे पहुँचे?

रायपुर और विशाखापट्टनम, सबसे नजदीक स्थित प्रमुख हवाईअड्डे हैं जो सड़क मार्ग से दंतेवाड़ा से क्रमशः लगभग 350 किमी और 400 किमी की दूरी पर स्थित हैं। इसके अलावा जगदलपुर (लगभग 85 किमी) निकटतम मिनी हवाईअड्डा है जहाँ से रायपुर और विशाखापट्टनम के लिए उड़ान उपलब्ध हो जाती है। दंतेवाड़ा में रेलवे स्टेशन स्थित है जहाँ से विशाखापट्टनम और अन्य शहरों के लिए ट्रेनें उपलब्ध हैं। इसके अलावा सड़क मार्ग से दंतेवाड़ा पहुँचा जा सकता है। रायपुर, जगदलपुर और बिलासपुर जैसे शहरों से दंतेवाड़ा के लिए नियमित तौर पर बस सेवाएँ उपलब्ध हैं।

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ओम द्विवेदी
ओम द्विवेदी
Writer. Part time poet and photographer.

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