हिन्दू मंदिरों के सम्बन्ध में स्वामी श्रद्धानंद ने आज से लगभग 100 वर्षों पहले जो विचार रखे थे, ‘काशी-विश्वनाथ कॉरिडोर’ उसका जीवंत दृष्टान्त है। 1920 के दशक में भारत की जनसंख्या 25 करोड़ के आसपास थी, जिसमें मुस्लिमों की संख्या 3-4 करोड़, यानी 15% के आसपास थी। बावजूद उनके पास जामा और फतहपुरी जैसी बहुत सी ऐसी मस्जिदें थी जहाँ एक साथ 25 से 30 हजार मुस्लिम श्रोता एक साथ बैठ सकते थे। किन्तु हिन्दुओं के पास केवल एक मात्र लक्ष्मीनारायण धर्मशाला थी, जहाँ पर कठिनाई से 800 व्यक्ति ही बैठकर सभा कर सकते थे।
स्वामीजी ने अपनी पुस्तक ‘हिन्दू संगठन क्यों और कैसे?’ में लिखा था, “आज के हिन्दू एक दूसरे मिलने को नितांत उदासीन रहते हैं। उसका प्रमुख कारण है कि उनके पास मिलने के लिए तथा सभा आदि करने के आयोजन के लिए कोई सार्वजनिक स्थान नहीं है। जातिगत मंदिरों में इतना भी स्थान नहीं है कि वहाँ 100 या 200 व्यक्ति इकट्ठे बैठ जाएँ।” ऐसे में उन्होंने सुझाव दिया था, “प्रत्येक नगर और शहर में एक हिन्दू-राष्ट्र मंदिर की स्थापना अवश्य की जानी चाहिए जिसमें एक साथ 25 हजार लोग समा सकें।”
आज जब हिन्दुओं की संख्या 100 करोड़ से अधिक है, ऐसे में यह बहुत आवश्यक हो जाता है कि ऐसे मंदिरों में कम से कम 1 से 2 लाख हिन्दुओं के इकट्ठे होने की सुविधा हो। और मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो ‘काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर’ में इस बात का बहुत सावधानी से ध्यान रखा गया है। स्वामीजी ने मंदिर परिसर में भारत माता के एक सजीव नक़्शे की बात कही थी, ताकि प्रत्येक भारतीय इसके सामने खड़े होकर यह प्रतिज्ञा दोहराए कि वह अपनी मातृभूमि को उसी प्राचीन गौरव के स्थान पर पहुँचाने के लिए प्राणों तक की बाजी लगा देगा, जिस स्थान से उसका पतन हुआ था।
मैंने कल्पना नहीं की थी कि स्वामीजी के इस विचार को कभी उतनी महत्ता मिलेगी, किन्तु काशी कॉरिडोर के चित्रों देखते हुए मेरी दृष्टि भारत माता की उस प्रतिमा पर ठहर गई जो स्वामीजी के विचारो के साक्षी होने का प्रमाण देती है। यहाँ आदि शंकराचार्य एवं अहिल्याबाई होल्कर के साथ-साथ भारत माता की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। इन्हीं स्वामीजी ने कॉन्ग्रेस एवं गाँधी को दलितोद्धार, अस्पृश्यता, महिला सशक्तिकरण, हिन्दू पुनरुत्थान, बाल-विवाह, धर्मांतरण और शिक्षा जैसे विषयों पर एक से बढ़कर एक उपचारात्मक उपाय सुझाए थे, किन्तु किसी ने उसपर तनिक भी ध्यान देना आवश्यक नहीं समझा।
उस समय दिल्ली एवं आगरा के चर्मकार समाज की एक मात्र यह माँग थी कि उन्हें उन कुओं से पानी भरने दिया जाए, जहाँ से हिन्दू एवं मुसलमान दोनों भरते हैं। स्वामीजी ने इस सम्बन्ध में कॉन्ग्रेस के एक मुस्लिम नेता से सहायता माँगी तो उसने उत्तर दिया, “यदि हिन्दुओं ने आज्ञा दे भी दी तो जब चर्मकार समाज के लोग कुआँ तक आएँगे तो मुस्लिम उन्हें बल-प्रयोग कर के भगा देंगे।” स्वामीजी उस कॉन्ग्रेसी नेता के इस उत्तर से बहुत आहत हुए और उन्होंने 1921 में एक पत्र के माध्यम से महात्मा गाँधी को इस बात से अवगत करवाया ।
लेकिन, गाँधी ने भी इसकी कोई सुध नहीं ली। आज इतने वर्षों बाद जब हम तुलना करते हैं कि गाँधी और नेहरू के नामों की माला जपते हुए कैसे असंख्य स्वामीजी जैसे महापुरुषों की उपेक्षा की गई, वहीं भाजपा सरकार जिस प्रकार से इन महापुरुषों का अनुसरण कर रही है यह वास्तव में हिन्दुओं के लिए हर्ष का विषय होना चाहिए। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार (14 दिसंबर, 2021) को काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का उद्घाटन किया। साथ ही उन्होंने कई विकास परियोजनाओं की भी समीक्षा की।