Sunday, November 17, 2024
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‘नहीं हुई रथयात्रा तो 1 साल तक क्वारंटाइन रह सकते हैं भगवान जगन्नाथ, ओडिशा सरकार ने SC में बोला झूठ’

‘‘किसी आस्तिक सज्जन की यह भावना हो सकती है कि अगर इस आपदा की स्थिति में रथयात्रा की अनुमति दी जाए तो भगवान जगन्नाथ कभी माफ नहीं करेंगे, लेकिन अगर विख्यात पुरातन परंपरा का विलोप हो जाए तो क्या भगवान जगन्नाथ क्षमा कर देंगे?"

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जगन्नाथ पुरी में होने वाली वार्षिक रथयात्रा पर कोरोना वायरस संक्रमण के कारण रोक लगा दी है। इसके बाद से ही हिन्दुओं में आक्रोश का माहौल है। लोगों का कहना है कि जब अनलॉक के तहत सारी चीजें खुल ही रही हैं तो फिर रथयात्रा पर रोक क्यों?

पुरी शंकराचार्य ने भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को ये निर्णय लेने से पहले उनसे विमर्श करना चाहिए था। उन्होंने इस फ़ैसले की समीक्षा करने को कहा है।

ओडिशा हाईकोर्ट के पूर्व वकील और जगन्नाथ पुरी मुक्ति मंडल के उपाध्यक्ष अशोक महापात्रा ने इस विषय में ऑपइंडिया से बातचीत करते हुए कहा कि पुरी में श्री जगन्नाथ की पूजा ऋग्वैदिक काल से होती रही है। उन्होंने बताया कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को इस्लामी आक्रांताओं से छिपाने के लिए कहीं और रख दिया गया था, जिसे आदि शंकराचार्य ने बाद में खोजा और उन्हें पुनर्स्थापित किया।

जगन्नाथ भगवान की पूजा स्कन्द पुराण और अन्य पवित्र पुस्तकों में वर्णित रीति-रिवाजों के अनुसार होती रही है। 1960 में ओडिशा सरकार ने जगन्नाथ पुरी का प्रबंधन अपने हाथों में लिया। महापात्रा बताते हैं कि 1964 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि मंदिर के सारे धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन किया जाए और पुरातन परम्पराओं और पवित्र पुस्तकों में लिखित विधि के अनुसार सारी प्रक्रिया पूरी की जाए।

गोवर्धन मठ के शंकराचार्य को जगन्नाथ मंदिर का मुख्य पुजारी माना जाता है। उनकी मदद के लिए ब्राह्मणों का एक समूह होता है, जिसे मुक्ति मंडप के नाम से जाना जाता है। बकौल महापात्रा, सुप्रीम कोर्ट ने ही निर्देशित किया था कि शंकराचार्य और मुक्ति मंडप पंडित सभा की सलाह के बाद धार्मिक क्रियाकलाप का आयोजन किया जाए। साथ ही महापात्रा ने ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार पर आरोप लगाया कि वह इन परम्पराओं को ध्वस्त कर रही है।

बकौल माहापात्रा, ओडिशा सरकार ने ऐसा दिखावा किया कि वो जगन्नाथ पुरी मंदिर परिसर का विकास करना चाहती है। उन्होंने ध्यान दिलाया कि इस मंदिर परिसर को संरक्षण की ज़रूरत है, लेकिन विकास और जीर्णोद्धार की आड़ में ओडिशा सरकार ने एक मठ को ही ढाह दिया। महापात्रा ने बताया कि पुरातन परम्पराओं के हिसाब से ही सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रथयात्रा की योजना बनी थी।

उन्होंने बताया कि इसकी तैयारी के लिए सरकार के साथ पूरी तरह सहयोग किया गया, क्योंकि शुरू में ओडिशा सरकार ने भी ऐसा ही दिखाया कि वो रथयात्रा को लेकर गंभीर है। महापात्रा की मानें तो केंद्र सरकार द्वारा कुछ छूट दिए जाने के बावजूद ओडिशा सरकार ने 30 जून तक सारी धार्मिक गतिविधियों पर रोक लगा दी। उन्होंने आरोप लगाया कि ओडिशा सरकार द्वारा जान-बूझकर ऐसा करना बताता है कि वो रथयात्रा को लेकर गंभीर ही नहीं थी।

बता दें कि ओडिशा में मंदिरों, मठों और हिन्दू धार्मिक स्थलों पर नवीन पटनायक सरकार की बुरी नज़र होने की बात सामने आई थी। बीजद सरकार ने सैकड़ों करोड़ रुपयों के नए प्रोजेक्ट का ऐलान किया था, जिसके तहत पुरी को एक ‘वर्ल्ड हेरिटेज सिटी’ के रूप में विकसित किया जाएगा। लेकिन, इसके लिए मठों को ढहाया जा रहा है। लांगुली मठ 300 वर्ष पुराना था। इसे रैपिड एक्शन फोर्स और पुलिस की मौजूदगी में ढाह दिया गया। 900 वर्ष पूर्व निर्मित एमार मठ को भी नहीं बख्शा गया।

अशोक महापात्रा ने कहा कि हाईकोर्ट में भी ओडिशा सरकार ने कह दिया कि वो इस साल जगन्नाथ पुरी रथयात्रा के प्रबंधन में सक्षम नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार कहने को तो म्यूजियम बना कर चीजों को संरक्षित करना चाहती है, लेकिन उनका असली उद्देश्य इसके माध्यम से पैसे कमाना है, इसे कमर्शियलाइज करना है। उन्होंने कहा कि विभिन्न एनजीओ ने भी मिलकर रथयात्रा में व्यवधान डालने की कोशिश की है। महापात्रा ने कहा:

“जगन्नाथ जी की उपासना पुरातन काल से होती आ रही है, ऋग्वैदिक काल से। इस्लामी आक्रांताओं के कारण उन्हें भूगर्भ में छिपाया गया था लेकिन आदि शंकराचार्य ने उसका उद्धार कर के मंदिर की पुनर्स्थापना की थी। शंकराचार्य और पवित्र पुस्तकों में वर्णित विधि-विधान से अब तक रथयात्रा और पूजा-पाठ होते आ रहे हैं। ओडिशा सरकार द्वारा इसमें व्यवधान डालना दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार जान-बूझकर ऐसा कर रही है। रथयात्रा आयोजित कराने में उसकी रूचि ही नहीं थी।”

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विश्व हिन्दू परिषद ने भी रथयात्रा आयोजित कराए जाने की बात कही है। परिषद के प्रवक्ता विनोद बंसल ने ऑपइंडिया को इस सम्बन्ध में सूचना दी। विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के केन्द्रीय महामंत्री श्री मिलिंद परांडे ने कहा कि गत सैकड़ों वर्षों से अनवरत रूप से पुरी में निकाली जाने वाली भगवान श्रीजगन्नाथ की परम्परागत रथ यात्रा इस वर्ष भी निकाली जानी चाहिए। कोविड महामारी के संकट काल में भी सभी नियमों तथा जन स्वास्थ्य सम्बन्धी उपायों के साथ यात्रा निकाली जा सकती है।

उन्होंने आह्वान किया कि यात्रा की अखण्डता सुनिश्चित करने हेतु कोई मार्ग अवश्य ढूँढ़ा जाना चाहिए। उन्होंने याद दिलाया कि आज की परिस्थितियों में यह अपेक्षा कदापि नहीं है कि यात्रा में दस लाख भक्त एकत्रित हों। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की प्रार्थना भी की। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के संकट काल में भी, जन-स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए, प्राचीन परम्परा की अखण्डता सुनिश्चित करने हेतु उचित मार्ग निकालना राज्य सरकार का दायित्व है।

विहिप ने ओडिशा की नवीन पटनायक सरकार पर भी निशाना साधा। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार अपने इस दायित्व के पालन में पूरी तरह विफल रही है। उन्होंने यहाँ तक कहा कि ओडिशा सरकार सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इस सम्बन्ध में सभी पहलू ठीक से नहीं रख पाई। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस सम्बन्ध में निर्णय लेने से पूर्व सभी सम्बन्धित पक्षों को सुनना चाहिए था। उन्होंने कहा:

“कम से कम पुरी के शंकराचार्य गोबर्धन पीठाधीश्वर पूज्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज के साथ मंदिर के ट्रस्टियों तथा यात्रा प्रबंधन समिति को तो सुना ही जाना चाहिए था। भगवान के रथ को प्रतीकात्मक रूप से हाथियों, यांत्रिक सहायता या कोविड परीक्षित पूरी तरह से स्वस्थ व सक्षम सीमित सेवाइतों के माध्यम से भी खींचा जा सकता है। यात्रा की इस पुरातन महान परम्परा के टूटने पर मंदिर के धार्मिक विधि-विधानों में व्यवधान उपस्थित होने की सम्भावना अनेक भक्तों ने व्यक्त की है।”

ऑपइंडिया से बात करते हुए अधिवक्ता अशोक महापात्रा ने कहा कि अगर भगवान को रथयात्रा के जरिए मंदिर नहीं पहुँचाया जाता है तो वो अगले 1 साल क्वारंटाइन ही रहेंगे, जो कि कहीं से भी न्यायोचित नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश का पूरी तरह पालन किया जाए तो रथयात्रा तो दूर, भगवान की पूजा तक नहीं हो पाएगी। हालाँकि, अब विरोध के बाद ओडिशा सरकार का रुख नरम हुआ है।

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उन्होंने ओडिशा सरकार को घेरते हुए कहा कि उसने सुप्रीम कोर्ट में रथयात्रा के लिए 12 से 15 लाख लोगों के इकट्ठे होने की संभावना जता दी, जबकि इसमें 1000 से ज्यादा लोग शामिल नहीं होंगे। महापात्रा ने कहा कि ओडिशा सरकार ने हाल ही में जब एक कार्यक्रम आयोजित किया था तब उसमें काफ़ी लोगों ने शिरकत की थी फिर रथयात्रा में दिक्कत क्या है? उन्होंने कहा कि मुद्दा लोगों का शामिल होना नहीं, बल्कि रथयात्रा का संचालित होना है।

इधर एक अन्य याचिका में पुरी शहर को पूरी तरह शटडाउन करके और जिले में बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगाकर रथयात्रा निकालने का प्रस्ताव दिया गया है। श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष और पुरी के गजपति महाराज दिव्यसिंह देब ने भी ओडिशा सरकार से कहा है कि वो तुरंत सुप्रीम कोर्ट को अपने फ़ैसले की समीक्षा करने को कहे। वहीं शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने कहा

‘‘किसी आस्तिक सज्जन की यह भावना हो सकती है कि अगर इस आपदा की स्थिति में रथयात्रा की अनुमति दी जाए तो भगवान जगन्नाथ कभी माफ नहीं करेंगे, लेकिन अगर विख्यात पुरातन परंपरा का विलोप हो जाए तो क्या भगवान जगन्नाथ क्षमा कर देंगे? विशेष परिस्थिति में न्यायालय अवकाश के दिनों में भी खुल सकता है। परसो रथयात्रा है; मध्य में केवल एक दिन शेष है। अतः रथयात्रा को पूर्णतः बन्द करने का यह सुनियोजित प्रकल्प है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रणय कुमार महापात्रा भी सुप्रीम कोर्ट में रथयात्रा आयोजित किए जाने के पक्ष में समाजसेवक आफताब हुसैन की तरफ से याचिका दायर की थी। अब सोमवार (जून 22, 2020) को उन याचिकाओं पर सुनवाई होनी है, जिसके बाद स्थिति स्पष्ट होगी। हालाँकि, बहुत कुछ राज्य सरकार पर निर्भर करता है। अगर वो गंभीर रही तो विधि-व्यवस्था बनाए रखकर रथयात्रा आयोजित हो सकती है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
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