महाकाल की नगरी कही जाती है, अवन्तिका अर्थात वर्तमान समय का उज्जैन। अनंतकाल से ही उज्जैन का धार्मिक महत्व सर्वोच्च रहा है जो हिंदुओं के लिए 7 सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। उज्जैन में कई ऐसे मंदिर स्थित हैं जिनका इतिहास सहस्त्राब्दियों पुराना है और जो पौराणिक महत्व के हैं। इनमें से एक मंदिर है, मंगलनाथ जहाँ देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग अपनी कुंडली के मंगल दोष के निवारण के लिए आते हैं। मोक्षदायिनी क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित इस मंदिर की विशेषता है यहाँ होने वाली ‘भात पूजा’, तो आइए आपको इस मंदिर के महत्व और प्राचीन इतिहास के बारे में बताते हैं।
पौराणिक इतिहास
मत्स्य पुराण के अनुसार मंगलनाथ ही मंगल का जन्म स्थान माना गया है। कहा जाता है कि अंधकासुर नामक दैत्य को भगवान शिव का वरदान प्राप्त था कि उसके रक्त की बूंदों से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे। इसी वरदान के चलते अंधकासुर पृथ्वी पर उत्पात मचाने लगा। इस पर सभी ने भगवान शिव से प्रार्थना की। उन्होंने अंधकासुर के अत्याचार से सभी को मुक्त करने के लिए उससे युद्ध करने का निर्णय लिया। दोनों के बीच भयानक युद्ध हुआ। इस युद्ध में भगवान शिव का पसीना बहने लगा जिसकी गर्मी से धरती फट गई और उससे मंगल का जन्म हुआ। इस नवउत्पन्न मंगल ग्रह ने दैत्य के शरीर से उत्पन्न रक्त की बूंदों को अपने अंदर सोख लिया। इसी कारणवश मंगल का रंग लाल माना गया है।
यह मंदिर बहुत पुराना है लेकिन इसके जीर्णोद्धार का श्रेय सिंधिया राजघराने को जाता है। दरअसल मंगलनाथ मंदिर में भगवान शिव ही मंगलनाथ के रूप में विराजमान हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव, एक शिवलिंग के रूप में स्थापित हैं। वैसे तो सम्पूर्ण उज्जैन ही सनातन ज्ञान का एक महान केंद्र है लेकिन महाकाल मंदिर और मंगलनाथ दोनों ही खगोल अध्ययन के केंद्र भी माने गए हैं।
मंगल दोष निवारण
इस मंदिर में किसी भी तरह के अमंगल को मंगल में बदलने का सामर्थ्य है। यहाँ भारत ही नहीं अपितु विदेशों में रहने वाले लोग भी अपनी कुंडली के मंगल दोष के निवारण के लिए आते हैं। जिन लोगों को ज्योतिषशास्त्र और कर्मकांड में भरोसा है उनके लिए यह मंदिर विशेष महत्व का है।
मंगलनाथ मंदिर में मंगल की शांति के लिए विधि-विधान से पूजा-पाठ का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है यहाँ की भात पूजा। इस विशेष पूजा के दौरान मंदिर में स्थापित भगवान शिव का भात श्रृंगार किया जाता है। कुंडली में मंगल दोष के निवारण के लिए भक्तों के द्वारा मंदिर में भात पूजा कराई जाती है। अत्यंत पवित्र क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित होने के कारण इस मंदिर का और यह होने वाली पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसके अलावा इस मंदिर में नवग्रह पूजा भी संपन्न होती है।
हर मंगलवार को इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन कुछ विशेष पर्वों पर यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ जाती है, जैसे महाशिवरात्रि, अंगारक चतुर्थी और श्रावण मास।
कैसे पहुँचे?
उज्जैन में भी हवाईअड्डा है लेकिन यहाँ का सबसे नजदीकी व्यस्त हवाईअड्डा अहिल्याबाई होल्कर इंदौर है जो यहाँ से लगभग 55 किमी की दूरी पर है। इंदौर के इस हवाईअड्डे से दिल्ली, मुंबई, पुणे, बेंगलुरु, हैदराबाद, भोपाल और कोलकाता जैसे शहरों के लिए नियमित उड़ाने हैं। उज्जैन पश्चिम रेलवे जोन का एक व्यस्त रेलवे स्टेशन है। यहाँ से भारत के सभी बड़े शहरों के लिए ट्रेनें उपलब्ध हैं। उज्जैन जंक्शन से मंगलनाथ मंदिर की दूरी लगभग 6 किमी है। इसके अलावा उज्जैन सड़क मार्ग से भली-भाँति सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। मध्यप्रदेश की शानदार सड़कें और राष्ट्रीय राजमार्ग उज्जैन को इंदौर, भोपाल, मुंबई, दिल्ली, अहमदाबाद, ग्वालियर, कोटा, जयपुर और ऐसे ही बड़े शहरों से जोड़ते हैं।