Thursday, November 14, 2024
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बॉलीवुड में लगातार फ्लॉप हो रहे बायोपिक्स, अपने फायदे पर ज्यादा ध्यान दे रहे फिल्म निर्माता: तापसी के विवादों के कारण फ्लॉप हुई ‘शाबाश मिठू’?

हॉलीवुड और साउथ फिल्मों की तुलना में बॉलीवुड फिल्ममेकर्स के लिए एक अच्छी स्क्रिप्ट ढूँढना बहुत बड़ी चुनौती है। भारत में क्रिकेट बहुत लोकप्रिय खेल है और यहाँ क्रिकेट खेलने और देखने वालों की संख्या सबसे अधिक है।

बॉलीवुड में बायोपिक काफी वक्त से बनती आ रही हैं। बायोपिक (Biopic) का फॉर्मूला अपनाकर फिल्ममेकर्स मोटी कमाई करते रहे हैं। किसी मशहूर शख्सियत की बायोपिक बनाने में ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती है। साथ ही पहले से ही जाना पहचाना चेहरा होने के कारण दर्शक उनसे जल्दी कनेक्ट कर जाते हैं और फिल्म को बिना किसी प्रचार के अटेंशन मिल जाती है। हालाँकि, इन सबके बावजूद बेहद कम ही बायोपिक हिट हुईं, लेकिन फ्लॉप होने वाली की कतार लंबी है।

हाल ही में भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान मिताली राज (Mithali Raj) के जीवन पर आधारित फिल्म डायरेक्टर श्रीजीत मुखर्जी की फिल्म ‘शाबाश मिठू’ रिलीज हुई। इस फिल्म में बॉलीवुड एक्ट्रेस तापसी पन्नू (Taapsee Pannu) लीड रोल में हैं। रिलीज ​के तीसरे दिन ही ‘शाबाश मिठू’ बॉक्स ऑफिस पर हाँफती नजर आई। हॉलीवुड फिल्म ‘थॉर: लव एंड थंडर’ ने दूसरे हफ्ते शानदार कमाई करते हुए तापसी पन्नू की फिल्म ‘शाबाश मिठू’ (Shabaash Mithu Biopic) का बॉक्स ऑफिस पर बुरा हाल कर दिया। इस फिल्म को दर्शक ही नहीं मिल रहे हैं। 30 करोड़ रुपए के बजट में बनी यह फिल्म तीन दिन में 2 करोड़ रुपए भी नहीं कमा सकी। इस तरह क्रिकेट पर बनी एक और फिल्म सुपरफ्लॉप की कैटेगरी में चली गई।

‘शाबाश मिठू’ फिल्म की स्क्रिप्ट, डायरेक्शन, बैकग्राउंड म्यूजिक से लेकर गाने दर्शकों को ये सब रास नहीं आए। तापसी पन्नू की बॉडी लैंग्वेज में ना कोई नयापन दिखता है और ना ही उनके चेहरे के हाव भाव इस तरह के है ​कि उन्हें एक पल के लिए मिताली राज समझा जा सके। दरअसल, हिंदी में बायोपिक बनाते हुए डायरेक्टर अपने कलाकारों का चयन ठीक से नहीं कर पाने के कारण उन्हें मूल शख्सियत से जैसे अलग ही कर देते हैं। इसके अलावा देश और दर्शकों के बीच अपनी विवादित छवि को लेकर जाने जाने वाले कलाकार को दिग्गज खिलाड़ी की भूमिका निभाने के लिए चुनना भी एक बड़ा फैक्टर है।

यह ज्यादातार सभी लोग जानते हैं कि ‘मुल्क’ फिल्म की अभिनेत्री शाहीन बाग, किसान आंदोलन के अलावा कई मुद्दों को लेकर पीएम मोदी पर हमला कर चुकी हैं। तापसी श्रमिकों के विषय को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी से तुलना कर सरदार पटेल की प्रतिमा को अनुपयोगी सिद्ध करने की कोशिश भी कर चुकी हैं। इसके अलावा दर्शकों को अपमानित करने और हिंदी भाषा को तवज्जो ना देने के कारण भी उनकी सोशल मीडिया पर भी काफी आलोचना हुई है। फिल्म क्रिटिक अजय ब्रह्मात्मज ने साल 2019 में ट्वीट कर तापसी को इसको लिए लताड़ा था।

उन्होंने लिखा था, “फिल्में हिंदी की, निर्देशक और कलाकार हिंदी फिल्मों के, भारत के अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में शामिल हुए हिंदी फिल्मों की बदौलत… लेकिन संदेश देना हो कि बातचीत करनी हो या टिप्पणी करनी हो यह सब कुछ अंग्रेजी में होगा। क्यों?” इसके अलावा भी कई ऐसे फैक्टर्स हैं, जिससे बायोपिक फ्लॉप हो जाती हैं।

हॉलीवुड और साउथ फिल्मों की तुलना में बॉलीवुड फिल्ममेकर्स के लिए एक अच्छी स्क्रिप्ट ढूँढना बहुत बड़ी चुनौती है। भारत में क्रिकेट बहुत लोकप्रिय खेल है और यहाँ क्रिकेट खेलने और देखने वालों की संख्या सबसे अधिक है। इसलिए बीते कुछ ​समय से हिंदी सिनेमा में क्रिकेटर्स के जीवन पर आधारित फिल्में बनाना का रास्ता चुना गया, क्योंकि जिस शख्स पर बायोपिक बन रही होती है उसके बारे में पहले से ही बहुत लिखा पढ़ा जा चुका होता है। ऐसे में बायोपिक बनाने में ना तो कोई खास मेहनत करनी पड़ती और लॉस की संभावना भी कम होती है। इसके अलावा फिल्ममेकर्स किक्रेट प्रेमियों और जिस शख्स पर बायोपिक बन रही है उसके चाहने वालों को सिनेमाघरों तक खींच लाने में कामयाब रहते हैं।

लेकिन अब लगता है हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का ये फॉर्मूला भी दर्शकों के गले नहीं उतर रहा है। दर्शक बायोपिक को सिरे से नकार रहे हैं और साउथ और हॉलीवुड फिल्में को ज्यादा पसंद कर रहे हैं। सुशांत सिंह राजपूत की फिल्म ‘धोनी अनटोल्ड स्टोरी’ को छोड़ दिया जाए तो किक्रेट पर बनी ज्यादातर फिल्में फ्लॉप रही हैं। 1983 विश्वकप में भारत को मिली एतिहासिक जीत पर बनी फिल्म 83, अजहर, सचिन: अ बिलियन ड्रीम्स को भी बड़े पर्दे पर सफलता नहीं मिली है।

इसके बाद भी बॉलीवुड में इस तरह के कंटेट पर फिल्में बनना जारी, जबकि इन फिल्मों ने बता दिया है कि बायोपिक से फिल्में हिट नहीं होती हैं। बायोपिक के केस में कई चीजें आसान हो जाती हैं, लेकिन फिल्ममेकर्स को फिल्म को हमेशा के लिए यूनिक और ऐतिहासिक बनाने के लिए कलाकार के चयन से लेकर इसकी बारिकियों पर पूरी मेहनत करनी चाहिए। ताकि दर्शकों को भी ये ना लगे कि उन्होंने अपने ढाई घंटे केवल मैच की हाई लाइट्स देखने में ही बर्बाद कर दिए।

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