Saturday, November 23, 2024
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ज्ञान से इतना खौफ खाता है इस्लाम कि 3 महीने तक जलती रहीं किताबें, नालंदा विश्व​विद्यालय से बची थी बख्तियार खिलजी की जान फिर भी मजहब के लिए मचाया कत्लेआम

नालंदा के आचार्य वैद्य राहुल ने बख्तियार खिलजी की जान बचाई, पर खिलजी एहसान मानने की जगह भीतर ही भीतर भारतीय वैद्यों से चिढ़ने लगा। उसे अपनी जान बचने की खुशी नहीं हुई बल्कि गुस्सा आया कि उसके हकीमों से ज्यादा ज्ञान भारतीय वैद्यों के पास क्यों है। इसी चिढ़ में कहा जाता है कि खिलजी ने 1193 में नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आज (19 जून 2024) नालंदा यूनिवर्सिटी के नए कैंपस का उद्घाटन किए जाने के बाद विश्व की सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय की चर्चा चारों ओर है। हर कोई इस यूनिवर्सिटी के इतिहास और इससे जुड़ी कहानियाँ जानना चाहता है। तो चलिए एक संक्षिप्त विवरण इस विश्वविद्यालय का दें जिसे सदियों पहले मुगल आक्रांता बख्तियार खिलजी ने आग लगाकर मिटाने का प्रयास किया था, लेकिन ज्ञान का मंदिर कहे जाने वाले इस विश्वविद्यालय की नींव इतनी मजबूत थी कि लोग आज भी इसकी महत्वता को जानते-समझते हैं। साल 2016 में यूनेस्को ने नालंदा के प्राचीन अवशेषों को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया था। आज प्रधानमंत्री मोदी ने भी नालंदा को एक विश्वविद्यालय नहीं बल्कि एक गौरव गाथा कहा है।

कब हुई थी नालंदा की स्थापना

नालंदा विश्वविद्यालय की शुरुआत सन् 450 ईस्वी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। इसे शुरू करने का मकसद यही था कि ध्यान और अध्यात्म के लिए बनाए गए स्थान पर लोगों को ज्ञान भी मिले। स्वयं गौतम बुद्ध ने कई बार इस विश्वविद्यालय की यात्रा की थी और यहाँ पर ध्यान भी लगाया था। धीरे-धीरे ये विश्वविद्यालय भारत में उच्च शिक्षा का सबसे महत्तवपूर्ण केंद्र तो बना ही, साथ में पूरी दुनिया में भी इसे प्रसिद्ध होने में समय नहीं लगा।

नालंदा विश्वविद्यालय का विशाल पुस्तकालय

सबसे खास बात इस विश्वविद्यालय की यह थी कि इसमें 9 मंजिला पुस्तकालय था। इस पुस्तकालय का नाम धर्म गूंज था जिसे तीन हिस्सों में बाँटा गया था- रत्नरंजक, रत्नोदधि, रत्नासागर। इस पुस्तकालय में एक समय में 90 लाख से ज्यादा किताबें थीं। ये इतना विशाल था कि जब मुगल आक्रांता बख्तियार खिलजी ने इसमें आग लगवाई तो किताबें करीबन 3 महीने तक जलती रहीं थीं।

नालंदा यूनिवर्सिटी

चिढ़ में लगाई खिलजी ने नालंदा में आग

बख्तियार खिलजी को बिहार का पहला मुस्लिम शासक माना जाता है जिसके हाथ अनेक धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं के खून के सने थे। उसने ही नालंदा में भी तबाही मचाई थी वो भी तब जब इस विश्वविद्यालय के एक वैद्य ने उसे मरते-मरते बचाया था।

बताया जाता है कि एक ख्तियार खिलजी बहुत ज्यादा बीमार पड़ गया था। उस समय उसके हकीमों ने उसका काफी उपचार किया लेकिन कहीं से कोई फायदा नहीं हुआ। तब उसे नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्रजी से उपचार कराने की सलाह दी गई। कट्टर इस्लामी बख्तियार खिलजी किसी कीमत पर हिंदुस्तानी दवा नहीं खाना चाहता था इसलिए उसने जान बचाने के लिए आचार्य राहुल को बुलवाया तो मगर उनकी कोई भी दवा खाने से मना कर दी। इसके साथ उसने ये धमकी भी दी कि अगर वह ठीक नहीं हुआ तो आचार्य की हत्या करवा देगा।

वैद्य ने खिलजी की बात सुनी और अगले दिन सके पास कुरान लेकर गए। उन्होंने खिलजी से कहा- “कुरान की पृष्ठ संख्या इतने से इतने तक पढिए ठीक हो जाएँगे।” बताया जाता है कि वैद्य ने कुरान के कुछ पन्नों पर एक अदृश्य दवा लगा दी थी जिससे जब खिलजी ने उन पन्नों को पढ़ना शुरू किया तो वो दवा उसके शरीर में जाती गई और पृष्ठ खत्म होते होते वो ठीक हो गया।

वैद्य राहुल ने बख्तियार खिलजी की जान तो बचा दी, पर इसके बाद खिलजी एहसान मानने की जगह भीतर ही भीतर भारतीय वैद्यों से चिढ़ने लगा। उसे अपनी जान बचने की खुशी नहीं हुई बल्कि गुस्सा आया कि उसके हकीमों से ज्यादा ज्ञान भारतीय वैद्यों के पास क्यों है। इसी चिढ़ में कहा जाता है कि खिलजी ने 1193 में नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी। वहाँ इतनी पुस्तकेंं थीं कि आग लगी भी तो तीन माह तक पुस्तकें जलती रहीं। इसी दौरान उसने हजारों धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार डाले।

नालंदा यूनिवर्सिटी लगा इस्लाम के लिए खतरा

कुछ इतिहासकार कहते हैं कि खिलजी के नालंदा विश्वविद्यालय तबाह करने के पीछे कारण ये था कि वो इसे इस्लाम के प्रसार के बीच चुनौती मानता था। उसे लगता ता नालंदा विश्वविद्यालय में जिस तरीके से बौद्ध और हिंदू धर्म फल-फूल रहा है, उससे इस्लाम को खतरा हो सकता है। इसके बारे में फारसी इतिहासकार मिनहाजुद्दीन सिराज अपनी किताब ‘तबाकत-ए-नासिरी’ में भी जिक्र किया है। उन्होंने लिखा था कि खिलजी किसी कीमत पर बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार नहीं चाहता था, पहले उसने नालंदा विश्वविद्यालय में इस्लाम की शिक्षा का दबाव डाला, फिर हमला कर दिया। उस बर्बर कार्रवाई में पूरा विश्वविद्यालय तबाह हो गयाष

तक्षिला के बाद दूसरी प्राचीन यूनिवर्सिटी

आज लोगों को लगता है कि लंदन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और यूरोप की बोलोग्ना यूनिवर्सिटियाँ देश की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटियाँ हैं, लेकिन हकीकत यह है कि नालंदा का इतिहास इन यूनिवर्सिटियों से भी 500 साल पहले का है। तक्षिला के बाद इसी विश्वविद्यालय को दुनिया के सबसे पुराना विश्वविद्यालय कहा जाता है इस संबंध में सातवीं शताब्दी में चीन के यात्री ह्नेनसांग और इत्सिंग अपनी किताबों में लिख चुके हैं। वो दोनों भारत के दौरे पर आए थे जब उन्होंने इस यूनिवर्सिटी को देखा और बिन इसके बारे में लिखे रह नहीं पाए। विश्वविद्यालय की खासियत थी कि यहाँ शिक्षक और छात्रों के साथ सन्यासियों के विचारों को भी महत्व दिया जाता था। खास बात ये भी थी इस यूनिवर्सिटी में सामान्य विषयों के अलावा धर्म, दर्शन, तर्कशास्त्र, चित्रकला, वास्तु, अंतरिक्ष विज्ञान, धातु विज्ञान, अर्थशास्त्र की जानकारियाँ दी जाती थीं। इसमें न केवल भारत के छात्र पढ़ते थे बल्कि कोरिया, जापान, तिब्बत, चीन, ईरान, इंडोनेशिया, ग्रीस, मंगोलिया समेत कई अन्य जगहों पर भी लोग यहाँ आते थे। इसके अलावा आवासीय परिसर के तौर पर यह पहला विश्वविद्यालय है, जो 800 साल तक अस्तित्व में रहा। खिलजी द्वारा इसे तबाह किए जाने के बाद जब इसकी खुदाई हुई तो वहीं, आवासीय परिसर के तौर पर यह पहला विश्वविद्यालय है, यह 800 साल तक अस्तित्व में रहा।

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