देश की शिक्षा व्यवस्था में सुधार की माँग अक्सर उठती रहती है, क्योंकि पाठ्यक्रम और एनसीईआरटी में तथ्यों की विश्वसनीयता शक के घेरे में है। लेखक नीरज अत्री ने इस पर वृहद रिसर्च किया है। अत्री ने कहा कि जब उन्होंने पाया कि इन पुस्तकों में एक तरफ मुगलों और इस्लामिक शासकों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया है, वहीं दूसरी तरफ हिन्दू राज्यों को ऐसे प्रस्तुत किया गया है, जैसे उनकी कोई विशेषता ही न हो।
उन्होंने बताया कि एनसीईआरटी के माध्यम से ऐसा नैरेटिव बनाया जाता है जैसे ब्राह्मण बाहर से आए थे और उन्होंने यहाँ के लोगों का शोषण किया है। अत्री ने एनसीईआरटी में तथ्यों के साथ हुए इस छेड़छाड़ के लिए 100 से भी अधिक आरटीआई लगाए। उन्होंने एनसीईआरटी पुस्तकों के बारे में बताया कि UPA सरकार के आने के बाद उसमें आर्य-द्रविड़ की थ्योरी परोसी गई, जिससे बच्चों के मन में गलत धारणाएँ बैठीं।
अत्री ने बताया कि डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने पूरी रिसर्च कर इसे पहले ही गलत साबित किया था। उन्होंने बताया कि तमिलनाडु के पेरियार ने इन चीजों को हवा दी थी। उन्होंने कहा कि इतिहास का लक्ष्य होता है कि बच्चों को उनकी गौरवमयी इतिहास पढ़ाया जाए और अतीत में हुई गलतियों से सीख ली जाए। इसके लिए उन्होंने पाकिस्तान और अमेरिका का उदाहरण दिया। भारत सबसे पुरानी सभ्यता है और हमारे पास गौरव करने के लिए इतनी चीजें हैं, फिर भी हम अकेले देश हैं जो अपने ही बच्चों का आत्मविश्वास ख़त्म करता है। बताता है कि आपके देश में महिलाओं का शोषण होता है।
जैसे- अगर एक बच्चे पढ़ेगा कि शूद्रों या महिलाओं को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं हैं तो उन पर क्या असर पड़ेगा? अत्री ने ध्यान दिलाया कि वेदों में महिलाओं ने ऋचाएँ लिखी हैं। उन्होंने कहा कि मनुस्मृति को इतनी गाली दी जाती है, लेकिन उसी मनुस्मृति में लिखा है कि जब एक बच्चे का जन्म होता है तो उसे शूद्र कहा जाता है। इसका अर्थ है कि जिन्हें शूद्र की परिभाषा तक नहीं पता है, वो भारत-विरोधी चीजें पढ़ाने में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।
नीरज अत्री ने कहा कि मनुस्मृति भी दो तरह की बाजार में मिलती है। इनमें से एक क्रिटिकल एडिशन है। दूसरे वाले में काफी गलत चीजें लिखी हुई हैं, जिससे पता चलता है कि बाद में उससे काफी छेड़छाड़ की गई और नैरेटिव गढ़ने के लिए उसका इस्तेमाल किया गया। उन्होंने बताया कि एनसीईआरटी ने इसे ऐसे पेश किया, जैसे प्राचीन काल में कानून की यही एकमात्र किताब थी। मनुस्मृति मनु का विचार है, जो वो कुछ ऋषियों को बताते हैं।
अत्री ने कहा कि कहीं उन्हें ऐसा प्रमाण नहीं मिलता है, जहाँ प्राचीन राजाओं में से किसी ने कहा हो कि उनका शासन मनुस्मृति के हिसाब से चलेगा। उन्होंने कहा कि सन्दर्भ से अलग हटाकर चीजों को पेश कर उसका अर्थ बदल दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर, इन पुस्तकों में पढ़ाया गया कि सीमा विवाद के समय मनुस्मृति में प्रावधान है कि राजा को छिपाकर बाउंड्री की मार्किंग करनी चाहिए। इसके बाद बच्चों से पूछा जाता है कि क्या इससे समस्याएँ सुलझेंगी?
असली मनुस्मृति में सीमा की मार्किंग के लिए फल-फूल के पेड़ लगाने की बात कही गई है। देवालय और तालाब बनाने की बात कही गई है। कहीं भी विवादों को सुलझाने के लिए अजीबोंगरीब प्रावधानों का जिक्र नहीं है। उन्होंने एनसीईआरटी की सातवीं की पुस्तक का एक उदाहरण दिया। उसमें लिखा है कि राजपूतों के उद्भव के साथ कई ट्राइब्स ने ख़ुद को जाति व्यवस्था का हिस्सा बनाया, लेकिन रूलिंग कास्ट को ज्वाइन करने की किसी को इजाजत नहीं दी। साथ ही लिखा है कि जिन्होंने जाति व्यवस्था को नकार दिया, उन्होंने इस्लाम अपना लिया।
अत्री ने बताया कि पंजाब और सिंध के समुदायों को लेकर ये झूठा नैरेटिव गढ़ा गया है, जिसका कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है। जाट से लेकर सभी समुदायों का उलटा इस्लामिक आक्रान्ताओं के खिलाफ लड़ने का इतिहास है। फिर बताया गया है कि अहोम पहले अलग देवी-देवताओं की पूजा करते थे, लेकिन ब्राह्मणों के वहाँ जाने के साथ हिन्दू धर्म का उद्भव हुआ। लेकिन वहाँ के राजाओं ने पूरी तरह अपनी संस्कृति नहीं छोड़ी। ये बात भी गलत है।
नीरज अत्री कहते हैं कि एक-एक टॉपिक पर इसी तरह अलग नैरेटिव बनाया गया है। उन्होंने जानकारी दी कि चन्द्रगुप्त मौर्य के समय मेगास्थनीज ने अपने भारत दौरे के समय लिखा है कि कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण बन सकता है लेकिन ब्राह्मणों का जीवन सबसे कठिन है। यानी, कसी भी अन्य जाति के लोगों के पास ब्राह्मण बनने का अधिकार था। इसलिए ब्राह्मणों को लेकर जो भ्रांतियाँ फैलाई गई हैं, वो सब गलत हैं।
अत्री ने बताया कि नालंदा विश्वविद्यालय के सम्बन्ध में भ्रान्ति फैलाई गई है कि दो ब्राह्मणों ने उसे जला दिया, क्योंकि वे वहाँ के छात्रों की हरकत से गुस्सा हो गए थे। डीएन झा खुद को कम्युनिस्ट बताते हैं और चमत्कार में विश्वास नहीं रखते। लेकिन यहाँ पर उन्होंने दैवीय शक्ति से पानी का झरना फूटने से लेकर सिद्धि से आग लगने तक की बातों को स्वीकार किया है। इसी तरह की कई भ्रान्तियाँ वामपंथियों ने कहीं-कहीं से लाकर फैलाई है।