Sunday, November 17, 2024
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‘400 हिन्दुओं को मार डाला, बहुत राहत मिली’: महिला मित्र को ‘Love’ के साथ नेहरू की चिट्ठी, गाँधी ने पूरे बिहार के हिन्दुओं को कहा ‘कुकर्मी’ और ‘पापी’

जवाहरलाल नेहरू ने बाद में डैमेज कंट्रोल के लिए बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर श्रीकृष्ण सिंह को पत्र लिखा और और उन्हें इस गोलीबारी के संबंध में बयान जारी करने को कहा। इस पत्र में उन्होंने मृतकों की संख्या 250 बताई और ये भी कहा कि ये आँकड़ा तो किसी भी हिसाब से बड़ा है ही नहीं।

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बारे में काफी कुछ लिखा जा चुका है, चर्चाएँ हो चुकी हैं। उनमें प्रमुख हैं भारत का विभाजन और कश्मीर को लेकर उनकी नीति। देश खंडित हो गया और जम्मू कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। आपको ये जान कर हैरानी होगी कि जिस व्यक्ति को देश का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया, वही हिन्दुओं के नरसंहार पर खुश होता था। लेकिन हाँ, महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू को मुस्लिमों को लेकर बड़ी फ़िक्र रहती थी।

ये तो सबको पता है कि जब भारत को स्वतंत्रता मिलने और सत्ता हस्तांतरण से पहले बंगाल और पंजाब जैसे इलाके विभाजन के कारण दंगों से त्रस्त थे। बंगाल के नोआखली में दंगे सबसे ज़्यादा भड़के हुए थे और ये आग बिहार तक भी फैल गई। तब अंतरिम सरकार चला रहे जवाहरलाल नेहरू भी बिहार पहुँचे और उन्होंने देश की जनता पर ही हवाई बमबारी की धमकी दे डाली। सोचिए, बल-प्रयोग की आवश्यकता कश्मीर में थी तो उस मामले को वो अंतरराष्ट्रीय अदालत में घसीट कर ले गए और उससे पहले दंगों के कारण बौखला कर अपने देश की जनता पर ही हवाई हमले की धमकी देते थे।

उनका ये भाषण गया शहर में हुआ था जब उन्होंने एक जनसभा के दौरान ये धमकी दी थी। उन्होंने कहा था कि नोआखली में जो हुआ वो ठीक नहीं था लेकिन इससे बिहार में जो पाप हुआ वो नहीं धुल जाता। उन्होंने कहा था कि उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि बिहार के सीधे-सादे किसान इस तरह से कैसे पागल हो गए और जानवर बन गए। नेहरू ने यहाँ तक कहा था कि वो हत्याओं से व्याकुल नहीं हैं, क्योंकि सबको एक न एक दिन मरना है। साथ ही उन्होंने कहा था कि अगर कोई पागल हो जाए तो उसे पागलखाने ही भेजना पड़ेगा, ऐसे लोगों के हाथ में सत्ता देने को लेकर विश्वास नहीं किया जा सकता।

अपने ही देशवासियों पर बमबारी की धमकी दी थी जवाहरलाल नेहरू ने

इस दौरान जवाहरलाल नेहरू खुद स्वीकार करते हैं कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए बल-प्रयोग करना पड़ा है और सेना का इस्तेमाल करना पड़ा है। उन्होंने कहा था कि जब सरकार को गोलीबारी, मशीनगन से फायरिंग और लोगों पर बमबारी का रास्ता अख्तियार करना पड़े, तो ऐसे में जो दोषी हैं और जो निर्दोष हैं उन सभी को भुगतना पड़ेगा। उन्होंने धमकाया था कि अगर अराजकता कायम रही तो ऐसा होने से इनकार नहीं किया जा सकता। यानी, बंदूकों, मशीनगन और हवाई बम का इस्तेमाल किया जाएगा।

उन्होंने छात्रों से यहाँ तक अपील कर दी थी कि वो गाँवों में जाएँ और लोगों को समझाएँ, अगर इस प्रयास में वो मर भी जाते हैं तो ये श्रेयस्कर होगा, वो व्यक्तिगत रूप से उन्हें इस त्याग के लिए बधाई देंगे। जवाहरलाल नेहरू की ये बातें सुन कर स्पष्ट लगता है कि देश भर में फैले दंगों के कारण वो अशांत थे और इसका असर उनके मानसिक संतुलन पर भी पड़ा था। आम जनता को हवाई हमलों की धमकी देना, छात्रों को मरने के लिए कहना और किसानों को पागल बताना – क्या ये किसी हिसाब से ठीक है?

स्रोत: ‘सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ जवाहरलाल नेहरू’, सीरीज 2, वॉल्यूम 1

अब आते है उनके उस पत्र पर, जिसमें उन्होंने हिन्दू किसानों की हत्याओं पर जश्न मनाया था। इसके पीछे एक घटना थी – बिहार की राजधानी पटना से 40 किलोमीटर दूर स्थित स्थित नगरनौसा गाँव की। प्रखर श्रीवास्तव अपनी पुस्तक ‘हे राम‘ में बताते हैं कि कैसे नेहरू की उस धमकी के बाद से पुलिस और फ़ौज के हौसले बुलंद थे। घटना 5 नवंबर, 1946 की है। मद्रास रेजिमेंट ने भीड़ पर गोलीबारी की और 400 हिन्दू मारे गए। बिहार में चर्चा थी कि मृतकों की संख्या 1000 से ऊपर हो सकती है, नेहरू इसे 50-60 तक गिनते रहे।

महिला मित्र पद्मजा नायडू को जवाहरलाल नेहरू का पत्र

उसी दिन रात को जवाहरलाल नेहरू ने अपनी करीबी मित्र और स्वतंत्रता सेनानी सरोजिनी नायडू की बेटी पद्मजा नायडू को एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने लिखा है, “आधी रात के आसपास मैं थका-हारा होने के बावजूद तुम्हें क्यों लिख रहा हूँ, मैं खुद नहीं जानता। इस शाम मैं भागलपुर से हवाई मार्ग से लौटा। पहुँचने पर मुझे पता चला कि फ़ौज ने ग्रामीण इलाके में किसानों की एक भीड़ पर गोलीबारी की है, जिसमें 400 मारे गए हैं। सामान्यतः इस तरह का कुछ मुझे डरा देता, लेकिन क्या तुम यकीन करोगी? मैं ये जान कर अत्यंत चिंतामुक्त हो गया।”

उन्होंने आगे इस पत्र में लिखा है, “बात ये है कि हम बदलती परिस्थितियों के साथ खुद भी बदलते हैं क्योंकि ताज़ा अनुभवों एवं एहसासों की परतें हमारे पुराने विचारों को ढँक लेती हैं। हिन्दू किसानों की भीड़ ने कुछ ऐसा व्यवहार किया है, जो क्रूरता और अमानवीयता की चरम सीमा है। मैं नहीं जानता इन्होंने कितनों को मारा होगा, लेकिन ये संख्या बहुत ज़्यादा होगी। पिछले कुछ दिनों से इन्होंने बिना रोकटोक ये सब किया। इसीलिए, जब मुझ तक खबर पहुँची कि इनमें से 400 को मार डाला गया है, मुझे लगता है संतुलन थोड़ा ठीक किया गया है।”

अपनी अंतरंग मित्र पद्मजा नायडू को जवाहरलाल नेहरू ने लिखा पत्र

पत्र के अंत में वो पद्मजा नायडू को ‘Love’ लिखते हैं। सोचिए, 400 किसानों की हत्या पर जवाहरलाल नेहरू अपनी अंतरंग मित्र को लिखे पत्र में सिर्फ इसीलिए ख़ुशी जता रहे हैं क्योंकि वो हिन्दू थे। क्या ये व्यक्ति सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध उस देश के नेतृत्व के लायक था, जो उस समय विकट परिस्थितियों से गुजर रहा था और जहाँ एक ऐसे नेता की आवश्यकता थी जो उसकी पुरानी महिमा को वापस दिलाए, जनता को एक रख कर वापस अपनी मातृभूमि पर गौरव करना सिखाए।

जवाहरलाल नेहरू ने बाद में डैमेज कंट्रोल के लिए बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर श्रीकृष्ण सिंह को पत्र लिखा और और उन्हें इस गोलीबारी के संबंध में बयान जारी करने को कहा। इस पत्र में उन्होंने मृतकों की संख्या 250 बताई और ये भी कहा कि ये आँकड़ा तो किसी भी हिसाब से बड़ा है ही नहीं। असल में नेहरू चाहते थे कि इस गोलीबारी से उनका पल्ला झड़ जाए और बिहार सरकार पर सारी जिम्मेदारी चली जाए, नेता सार्वजनिक रूप से ये कह कर उन्हें बचाएँ कि उनके कहने पर कुछ हुआ ही नहीं।

जवाहरलाल नेहरू का तिहरा रवैया देखिए। पद्मजा नायडू को लिखे पत्र में वो आँकड़ा 400 बताते हैं, डॉ श्रीकृष्ण सिंह को लिखे पत्र में 250 और इस घटना के 20 दिन बाद 25 नवंबर, 1946 को वो कॉन्ग्रेस पार्टी के मेरठ अधिवेशन में ये आँकड़ा 50-60 बताते हैं। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने भी नगरनौसा में हुई गोलीबारी का जिक्र अपनी पुस्तक ‘लोकदेव नेहरू’ में किया है। जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें 1952 में राज्यसभा सांसद भी बनाया था।

इसमें उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि 1946 में बिहार में भड़के सांप्रदायिक दंगों के दौरान जब नेहरू बिहार आए थे तब वो अपनी ही देखरेख में फ़ौज से काम ले रहे थे। यानी, भारत की आज़ादी से पहले ही फ़ौज नेहरू के हाथों में आ गई थी। रामधारी सिंह दिनकर लिखते हैं कि फौजियों ने जब सैकड़ों हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया तो पटना में नाराज़गी फ़ैल गई। जब वो नौजवानों के बीच भाषण देने सीनेट हॉल पहुँचे तब लड़कों ने उनका कुर्ता तक फाड़ डाला और उनकी टोपी उड़ा डाली।

तो ये थी जवाहरलाल नेहरू की इज्जत! जवाहरलाल नेहरू मुस्लिमों को बचाने के इरादे के साथ बिहार तो आए लेकिन नोआखली नहीं गए। महात्मा गाँधी ने तो इन दंगों के विरोध में बकरी का दूध और अन्न त्याग कर अर्ध-अनशन शुरू कर दिया था। 6 नवंबर को इसका ऐलान करते हुए उन्होंने पूरे बिहार को पापी कह डाला था। क्या बिहार में अगर कुछ लोगों ने गलती की भी होगी तो क्या इसके लिए सबको पापी कह दिया जाएगा? क्या नोआखली की घटना पर उन्होंने किसी कौम को या किसी पूरे राज्य को पापी कहा? हिम्मत ही नहीं थी। हिन्दू आसान निशाना थे।

नोआखली में क्या हुआ, बिहार तक पहुँची आग

इस लेख में बार-बार नोआखली दंगे की बात आई है तो आपके मन में ज़रूर सवाल उठ रहा होगा कि वहाँ क्या हुआ था। आज ये जगह बांग्लादेश में है, लेकिन अक्टूबर 1946 में यहीं पर हिन्दुओं का भयंकर कत्लेआम किया गया था। इसे भारत के विभाजन के लिए हुई हिन्दू विरोधी हिंसा की शुरुआत कह सकते हैं। इस इलाके में हिन्दू समृद्ध थे, जमींदार थे, मुस्लिमों का जीवन चलाते थे – उन्हीं मुस्लिमों ने उनका कत्लेआम किया। नोआखली और टिप्पेरा में हिंसा भड़काने के पीछे मौलाना सैयद गुलाम सरवर हुसैनी का नाम लिया जा सकता है।

असल में 22-24 मार्च, 1940 में मुस्लिम लीग के लाहौर सत्र में अलग मुस्लिम मुल्क के लिए प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद से ही नोआखली में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के खिलाफ माहौल बनाना शुरू कर दिया गया था। सरवर ने अपने भाषणों में हिन्दू देवियों के लिए ‘वेश्या’ शब्द तक का इस्तेमाल किया था। 1930 के दशक में हिन्दुओं के नियंत्रण वाले बाजारों में खुल कर गोमांस की बिक्री शुरू कर दी गई। नोआखली में इस्लामी ‘मियार फ़ौज’ के बैनर तले भीड़ इकट्ठा कर के हिन्दुओं का नरसंहार किया जाता था।

महात्मा गाँधी ने नोआखली पहुँच कर गाँव-गाँव घूमना शुरू किया और नैतिकता की आड़ में हिन्दुओं को बदला न लेने के लिए कहने लगे, हिन्दू मरते रहे। 16 अगस्त, 1946, जिसे मुस्लिम लीग ने ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ नाम दिया था, उस दिन कलकत्ता में दंगे हुए थे और 10,000 लोग मरे गए थे जिनमें अधिकतर हिन्दू थे। हुसैन शाहिद सुहरावर्दी उस समय बंगाल का मुख्यमंत्री हुआ करता था और उसने इस्लामी भीड़ को आश्वासन दिया था कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।

इसी दौरान गोपाल मुखर्जी के रूप में एक स्थानीय नेता उभरा और उसने कई हिन्दुओं की जान बचाई। उन्हें हम गोपाल पाठा के रूप में भी जानते हैं। अगर मुस्लिम लीग का कलकत्ता को पाकिस्तान में मिलाने का सपना पूरा नहीं हो पाया, उसमें इनका बड़ा योगदान था। उन्होंने महात्मा गाँधी के कहने के बावजूद अपने हथियार सौंपने से इनकार कर दिया था। मुस्लिम लीग ने अंत में उनसे हिंसा रोकने का निवेदन किया और हिन्दुओं की सुरक्षा की गारंटी दिए जाने के बाद उन्होंने बात मानी।

इन्हीं दंगों का असर बिहार में भी दिख रहा था। बिहार में उस साल जून और सितंबर में भी दंगे हो चुके थे। 27 अक्टूबर से लेकर 9 नवंबर तक स्थिति सबसे ज़्यादा बिगड़ गई। भारत के अंतरिम सरकार का गठन 2 सितंबर, 1946 को ही हो चुका था और जवाहरलाल नेहरू इसके मुखिया थे। वो भी मुस्लिमों पर हमले की खबर सुन कर बिहार पहुँचे। ध्यान दीजिए, वो नोआखली नहीं गए जहाँ हिन्दुओं का नरसंहार हुआ था। 5 नवंबर, 1946 को महात्मा गाँधी ने बिहार दंगों के विरुद्ध अनशन की घोषणा कर के इसे तुरंत रोकने को कहा था।

महात्मा गाँधी ने पूरे बिहार को बताया ‘पापी’ और ‘कुकर्मी’

अगले दिन ऑस्ट्रेलियाई अख़बार ‘डेली मिरर’ में खबर छपी थी कि अंतरिम सरकार दंगों की खबर छापने को लेकर भी समाचारपत्रों पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है। महात्मा गाँधी बिहार दंगों के समय कलकत्ता में थे और नोआखली के लिए जाने वाले थे। उन्हें बिहार में हुए दंगों के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन पता नहीं उन्हें किसने बता दिया कि वहाँ केवल मुस्लिम ही मारे जा रहे हैं और इस जानकारी के आधार पर उन्होंने पूछा कि क्या बिहार के 14% मुस्लिमों को बर्बर तरीके से रौंद देना राष्ट्रवाद है?

6 नवंबर, 1946 को उन्होंने कहा था, “मुझे ये कहे जाने की ज़रूरत नहीं है कि मैं कुछ हजार बिहारियों की गलती के लिए पूरे बिहार को पापी न कहूँ। क्या बिहार एक बृजकिशोर प्रसाद और एक राजेंद्र प्रसाद का श्रेय नहीं लेता? मुझे भय है कि अगर बिहार में हिन्दुओं का कदाचार जारी रहा तो दुनिया भारत के सभी हिन्दुओं की निंदा करेगी। बिहारी हिन्दुओं के कुकृत्य कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना के इस तंज को सही साबित करते हैं कि कॉन्ग्रेस एक हिन्दू संगठन है, भले ही ये अपने पदाधिकारियों में सिख, मुस्लिम, ईसाई, जैन और पारसी नेताओं के होने की बात करता हो।”

उन्होंने बिहारी हिन्दुओं पर भारत को कलंकित करने तक के आरोप मढ़ दिए थे। उन्होंने हिन्दुओं को नीचा दिखाते हुए कहा था कि तुम सब अपने अमानवीयता के लिए पश्चाताप करो और कॉन्ग्रेस नेताओं को आश्वस्त करो कि मुस्लिमों का उतना ही ख्याल रखोगे, जितना अपने भाई-बहनों का। उन्होंने हिन्दुओं को ये तक कहा था कि न सिर्फ मुस्लिमों को वापस बुलाएँ, बल्कि उनके घर बनवाएँ और मंत्रियों से उनकी मदद करने को कहें। ये थे हिन्दुओं के लिए महात्मा गाँधी के शब्द, बाक़ी नोआखली में कितने मुस्लिमों ने उनकी बात मानी ये इसी से समझ लीजिए कि आज ये क्षेत्र बांग्लादेश में है, एक इस्लामी मुल्क में।

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