Thursday, November 14, 2024
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‘हमने पिथौरा को जिंदा दबोच इस्लामी फौज को सौंप दिया’: ‘गरीब नवाज’ ने क्यों लिया था पृथ्वीराज चौहान की हार का श्रेय?

MA अकबर की पुस्तक के अनुसार, मोईनुद्दीन चिश्ती को निजामुद्दीन औलिया के बाद दूसरा सबसे बड़ा सूफी संत माना गया लेकिन उसने अजमेर के आनासागर झील को अपवित्र कर दिया था। उसने अल्लाह और पैगम्बर की मदद से झील के किनारे बसे मंदिरों को जमींदोज करने का ऐलान किया था।

अगर चंद दिनों के लिए दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले हेमू को छोड़ दें तो पृथ्वीराज चौहान दिल्ली पर राज करने वाले अंतिम हिन्दू सम्राट थे। उनके काल में ही मोईनुद्दीन चिश्ती नामक एक ‘सूफी संत’ भारत आया था, जिसे ‘गरीब नवाज’ कहा गया। आज के राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के अधिकतर हिस्सों के अलावा उत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश के कई इलाकों में भी तब चौहान का ही शासन था। उन्होंने 1178 से लेकर 1192 ईश्वी तक राज किया। उन्हें ‘पृथ्वीराज रासो’ के कारण ज्यादा जाना जाता है।

पृथ्वीराज चौहान के काल में ही अजमेर में एक फकीर आकर बसे थे, जिसे लोग सूफी संत भी कहते हैं। उसका नाम था – ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती। जी हाँ, वही मोईनुद्दीन चिश्ती, जिसकी दरगाह अजमेर में आज भी मौजूद है और हर साल लाखों मुस्लिमों के साथ-साथ हिन्दू भी वहाँ चादर चढ़ाने जाते हैं। प्रधानमंत्री तक की तरफ से वहाँ चादर जाता है। लेकिन, क्या आपको पता है कि दिल्ली से हिन्दू शासन को उखाड़ फेंकने में उसका भी हाथ था?

12वीं शताब्दी का खत्म होने वाला समय वो काल था, जब भारत में चीजें तेजी से बदल रही थीं। मोहम्मद गोरी सीमा पर आ बैठा था, जिसे तराइन के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने हरा दिया था। अपमानित गोरी को पृथ्वीराज ने जीवनदान दिया, लेकिन उनकी इस एक गलती ने भारत की सदियों की गुलामी की पटकथा लिख दी और दिल्ली श्रीहीन हो गई। मोहम्मद गोरी वापस गजनी जाकर एक बड़ी फौज तैयार करने लगा।

ये महज ‘संयोग’ ही था या कुछ और कि जिस साल मोहम्मद गोरी हार कर भागा, उसके अगले ही साल या कुछ ही दिनों बाद एक सूफी संत ने अजमेर में डेरा जमाया, पृथ्वीराज चौहान की राजधानी में। वहाँ वह कई चमत्कार करने लगा। आस-पास के लोगों में उसके प्रति जिज्ञासा जागी। वह लोगों से काफी अच्छे से पेश आता। गाँव के गाँव इस्लाम में धर्मांतरित होने शुरू हो गए। बिना हथियार उठाए चिश्ती ने वो जमीन तैयार कर दी, जहाँ वो अगले 44 वर्षों तक इस्लाम का प्रचार-प्रसार करता रहा।

इस्लामी जिहाद के लिए भारत आया था चिश्ती?

1191 में गोरी हारा और 1192 में दोबारा लौट कर आया। इसी अवधि के बीच चिश्ती ने अजमेर में डेरा जमाया। आखिर ऐसे संवेदनशील समय में चिश्ती भारत क्यों आया था? वो अपने चेलों-शागिर्दों के साथ पहुँचा था। ‘Islamic Jihad: A Legacy of Forced Conversion, Imperialism, and Slavery‘ में MA खान लिखते हैं कि चिश्ती ‘काफिरों के खिलाफ इस्लामी जिहाद’ के लिए भारत आया था।

इस पुस्तक में लिखा है कि पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ गद्दारी वाला युद्ध लड़ने के लिए ही मोईनुद्दीन चिश्ती भारत आया था, ताकि वो मोहम्मद गोरी की तरफ से उसकी सहायता कर सके और उसका काम आसान कर सके। ये इतिहास है कि तराइन का दूसरा युद्ध 1192 में हुआ और उसमें पृथ्वीराज चौहान की हार हुई। चौहान ने भले ही गोरी को छोड़ दिया हो, गोरी ने ऐसा बिलकुल भी नहीं किया और उनकी आँखें फोड़वा दीं।

तभी तो पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद ‘ख्वाजा’ मोईनुद्दीन चिश्ती ने जीत का श्रेय लेते हुए कहा था, “हमने पिथौरा (पृथ्वीराज चौहान) को जिंदा दबोच लिया और उसे इस्लाम की फौज के हवाले कर दिया।” ये भी कहा जाता है कि एक दिन अचानक से ‘गरीब नवाज’ चिश्ती को स्वप्न में पैगम्बर मोहम्मद का संदेश मिला कि उसे भारत में उनके दूत के रूप में भेजा जा रहा है। फिर वो भारत आ गया। उसकी सोच एकदम ऐसी ही थी, जैसी अभी जाकिर नाइक की है।

MA खान की पुस्तक के अनुसार, मोईनुद्दीन चिश्ती को निजामुद्दीन औलिया के बाद दूसरा सबसे बड़ा सूफी संत माना गया लेकिन उसने अजमेर की आनासागर झील को अपवित्र कर दिया था। उसने अल्लाह और पैगम्बर की मदद से झील के किनारे बसे मंदिरों को जमींदोज करने का ऐलान किया था। साथ ही वो मंदिरों और उसमें स्थित मूर्तियों की पूजा होते देख कर खफा भी था। बता दें कि इस्लाम में मूर्तिपूजा हराम है।

ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के चेले रोज एक गाय काट कर लाते थे और उसी झील के किनारे मंदिरों के प्रांगण के नजदीक खाते थे, जहाँ राजा-महाराजा से लेकर ब्राह्मण-श्रद्धालु तक प्रार्थना किया करते थे। जहाँ माँस तक वर्जित था, वहाँ गोमांस का कबाब चलने लगा। लोगों का ये भी मानना था कि चिश्ती ने आनासागर और पनसेना की दो झीलों को ‘चमत्कार से’ सुखा दिया था, जो कि हिन्दुओं के लिए पवित्र थे।

इस अनासागर झील का निर्माण ‘राजा अरणो रा आनाजी’ ने 1135 से 1150 के बीच करवाया था। ‘राजा अरणो रा आनाजी’ सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पिता थे। आज इतिहास की किताबों में अजमेर को हिन्दू-मुस्लिम’ समन्वय के पाठ के रूप में तो पढ़ाया जाता है, लेकिन यह जिक्र नहीं किया जाता है कि ये सूफी संत भारत में जिहाद को बढ़ावा देने और इस्लाम के प्रचार के लिए आया था, जिसके लिए उसने इस्लामी धर्मांतरण को ही अपना एकमात्र लक्ष्य बनाया।

पृथ्वीराज चौहान को कई इतिहासकार भारत में मुस्लिम राज की एंट्री के लिए दोषी मानते हैं क्योंकि उनके आस-पास के कई हिन्दू राजाओं के साथ सम्बन्ध अच्छे नहीं थे। जो पृथ्वीराज चौहान 11 वर्ष की उम्र में राजा बन गए थे, उन्हें धोखे से हराने के लिए इस्लामी आक्रांताओं को कई तिकड़म बुनने पड़े। ‘हम्मीर महाकाव्य’ कहता है कि मोहम्मद गोरी को पृथ्वीराज ने 8 बार हराया था और कई अन्य राजाओं के राज उसे लौटाने को भी कहा था। 9वीं बार वो पृथ्वीराज को हराने में सफल रहा।

‘पृथ्वीराज रासो’ और ‘प्रबंध कोष’ की मानें तो पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को 20 बार हराया था और 21वीं बार वो खुद हार गए। हर बार उन्होंने गोरी को बिना नुकसान पहुँचाए छोड़ दिया। तराइन के प्रथम युद्ध के विवरणों से ही स्पष्ट है कि पृथ्वीराज चौहान ने या तो मोहम्मद गोरी की अति-महत्वाकांक्षा को पढ़ने में भूल कर दी, या निर्दयी शत्रु के सामने रूरत से ज्यादा उदारता दिखा दी और उसे छोड़ दिया।

16वीं शताब्दी के मुस्लिम इतिहासकार फिरिश्ता की मानें तो पृथ्वीराज चौहान की सेना विशाल थी और उसमें 2 लाख घोड़ों के अलावा 3000 हाथी भी थे। असल में मोहम्मद गोरी ने तबारहिंदह (ताबर-ए-हिन्द) पर कब्जा कर लिया था। आज इस क्षेत्र को बठिंडा के नाम से जानते हैं। ये खबर सुन कर वहाँ पृथ्वीराज पहुँचे और तराइन का प्रथम युद्ध हुआ। मोहम्मद गोरी गोरी घायल हुआ और पकड़ा गया। पृथ्वीराज चौहान ने हारी हुई सेना का पीछा तक नहीं किया और सभी को जाने दिया।

तराइन के दूसरे युद्ध में गोरी पूरी तैयारी के साथ आया था और उसने वापस जाकर 1.2 लाख अफगान, ताजिक (पर्सियन-ईरानी) और तुर्क फौज इकट्ठा की – सब के सब मँझे हुए योद्धा। ‘पृथ्वीराज रासो’ कहता है कि अजमेर और दिल्ली के हिन्दू सम्राट तब भोग-विलास में व्यस्त हो गए थे। युद्ध में गोरी ने धोखा, लालच और तिकड़मों से काम लिया और पृथ्वीराज की हार हुई। फिर हजारों के खून बहे, कई को वो दास बना कर साथ ले गया और कई मंदिरों को ध्वस्त किया।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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