Saturday, November 2, 2024
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इंडियन आर्मी ने कश्मीर ही नहीं बचाया, खुद भी बची: सेना को खत्म करना चाहते थे नेहरू

"बकवास! पूरी बकवास! हमें रक्षा नीति की आवश्यकता ही नहीं है। हमारी नीति अहिंसा है। हम अपने सामने किसी भी प्रकार का सैन्य ख़तरा नहीं देखते। जहाँ तक मेरा सवाल है, आप सेना को भंग कर सकते हैं।"

एक समय था जब कश्मीर के युद्ध ने भारतीय सेना को खत्म होने से बचाया था! जी हाँ, आज शायद  इस बात पर आपको यकीन न हो कि युद्ध के होने से सेना कैसे बची? लेकिन मेजर जनरल डीके ‘मोंटी’ पालित ने अपनी किताब ‘मेजर जनरल एए रुद्र: हिज सर्विस इन थ्री आर्मी एंड टू वर्ल्ड वार’ में इसका जिक्र किया है।

किताब के अनुसार, वह समय था जब भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ सर रॉब लॉकहार्ट देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पास एक औपचारिक रक्षा दस्तावेज़ लेकर पहुँचे, जिसे पीएम के नीति-निर्देश की आवश्यकता थी। लेकिन नेहरू ने उस पर संज्ञान लेने की बजाय उन्हें डपटते हुए कहा:

“बकवास! पूरी बकवास! हमें रक्षा नीति की आवश्यकता ही नहीं है। हमारी नीति अहिंसा है। हम अपने सामने किसी भी प्रकार का सैन्य ख़तरा नहीं देखते। जहाँ तक मेरा सवाल है, आप सेना को भंग कर सकते हैं। हमारी सुरक्षा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पुलिस काफ़ी अच्छी तरह सक्षम है।”

इस घटना के बाद सर लॉकहार्ट हक्का-बक्का रहकर दफ्तर लौट आए। जब उनसे पूछा गया कि आखिर क्या हुआ, तो उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने उनके कागज देखे और गुस्से से फट पड़े।

किताब के अनुसार, मेजर जनरल एए रुद्र का मानना था कि कश्मीर युद्ध ने ही भारतीय सेना के अस्तित्व को बचाया। दरअसल, आजादी के बाद भारत में सेना के पहले कमांडर जहाँ सर रॉब लॉकहार्ट बने थे, वहीं पाकिस्तान में इस पद पर जनरल सर डगलस ग्रेसी को नियुक्त किया गया था। दोनों पंजाब से आने-जाने वाले शरणार्थियों के बारे में रोजाना सूचना का आदान-प्रदान रिपोर्ट में करते थे।

एक दिन अक्टूबर 1947 में ग्रेसी ने बताया कि उनके पास रिपोर्ट हैं कि अटक रावलपिंडी में कुछ कबायली इकट्ठा हो रहे हैं। दोनों जानते थे कि पाकिस्तान की ओर से पुंंछ निशाने पर है। लेकिन, तब कश्मीर भारत के प्रभुत्व का हिस्सा नहीं था, इसलिए लॉकहार्ट को लगा कि कबायली भारत के लिए खतरा नहीं हैं। नतीजतन, उन्होंने आगे मंत्रालय को या जनरल स्टाफ को कोई जानकारी साझा नहीं की।

तीन माह बाद उनका सामना नेहरू से हुआ। जहाँ उन्होंने इस बात को स्वीकारा और कहा कि शायद वह बेपहरवाह हो गए थे। नेहरू ने सारा ठीकरा उन पर फोड़ा और पूछने लगे कि कहीं उनकी सहानुभूति पाकिस्तान के साथ तो नहीं थी? हैरान कमांडर ने जवाब में कहा,

“मिस्टर प्राइम मिनिस्टर, अगर आप मुझसे ऐसे सवाल करेंगे तो मुझे यहाँ आपकी सेना का कमांडर इन चीफ बनने में कोई इच्छा नहीं है। मैं जानता हूँ कि बॉम्बे से कुछ दिनों में बोट जा रही है जिसमें ब्रिटिश अधिकारी और उनके परिवार इंग्लैंड जाएँगे। मैं उसमें ही रहूँगा।”

बायोग्राफी के अनुसार इस घटना के बाद जनरल लॉकहार्ट ने अपने सेक्रेट्री मेजर जनरल रुद्र को बुलाया और 26 जनवरी 1948 यानी अगले दिन कहा कि उन्होंने अपने पोस्ट से रिजाइन कर दिया है और अपने उत्तराधिकारी की तलाश में हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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