आज भारत विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा नेताओं ने विभाजन के दौरान प्राण गँवाने वाले लोगों को याद किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी। पीएम मोदी ने कहा कि 14 अगस्त 1947 के दिन को भुलाया नहीं जा सकता। इस त्रासदी में कई लोगों के घर छूटे, कई लोगों के कई लूटे, कई गुम हुए तो कई जिंदगी भर के लिए उसमें खो गए।
यह वह दिन था, जब एक तरफ भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो रहा था तो दूसरी तरफ उसके टुकड़े हो रहे थे। आज के दिन विश्व के पटल पर पाकिस्तान नाम के मुल्क का उदय हो रहा था, जो धर्म के आधार पर आधारित था।
Today, on #PartitionHorrorsRemembranceDay, I pay homage to all those who lost their lives during Partition , and applaud the resilience as well as grit of all those who suffered during that tragic period of our history.
— Narendra Modi (@narendramodi) August 14, 2022
भारत विभाजन विश्व के खूनी इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक है। वैसे तो मुस्लिम आक्रांताओं के हमलों के बाद से भारत की भूमि पीड़ा, वेदना और प्रताड़ना से रक्तरंजित होती रही है, लेकिन इस घटना में आजादी के नाम पर जिस तरह का विस्थापन और हिंसा देखने को मिली, वह विश्व में कहीं अन्य देखने को नहीं मिलता।
लोग अपनी पुरखों की जमीन और मेहनत की कमाई छोड़ रहे थे। बड़े, बुढ़े, महिलाएँ, युवा, बीमार, लाचार सब अपना घर-बाड़ छोड़कर अपनी जान बचाने की कोशिश में लगे थे। महिलाओं की इज्जत लूटी जा रही थी, हत्याएँ कर ट्रेनों में भेजे जा रहे थे। जो परिवार अपनी महिलाओं की इज्जत बचाने में जो खुद को असमर्थ पा रहे थे वो अपने ही हाथों से उनकी जान ले रहे थे। ये उस दौर के वो मंजर थे, जिसे सुनकर ही आत्मा काँप उठती है।
हर तरफ मजहबियों और उन्मादियों की भीड़ दिख रही थी, जो मुल्क मिलने के बाद भी ‘काफिरों’ के खून के प्यासे बने घूम रहे थे। हर तरफ लोगों को सिर्फ और सिर्फ अंधेरा नजर आ रहा था। ऐसा नहीं है कि ये तांडव आजादी के मिलने के दिन ही शुरू हुआ। यह 1947 में आजादी मिलने के वर्षों पहले शुरू हो चुका था, लेकिन इसका भयावह रूप 1947 के शुरुआती महीने में ज्यादा दिखने लगा और आजादी मिलने के बाद के कुछ महीनों तक दिखता रहा।
हिंदू-सिखों को बचाने के लिए संघ आया आगे
ऐसे असहाय लोगों की उम्मीद के रूप में एक प्रकाश पूँज नजर आ रहा था, वह था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)। वही आरएसएस जिस पर विपक्षी दल तमाम तरह के तोहमत लगाते रहते हैं। खासतौर पर कॉन्ग्रेस के नेता पूछते हैं कि संघ की भूमिका क्या रही है।
उस काली रात में लोगों की मदद के लिए कोई दिख रहा था तो संघ और उसके स्वयंसेवक। संघ के स्वयंसेवकों ने ना सिर्फ लोगों को सुरक्षित निकालने में मदद की, बल्कि उनके रहने-खाने और दवा का भी इंतजाम किया। जिन लोगों को संघ ने बचाया उनमें कई कॉन्ग्रेसी नेताओं के परिजन भी थे। इस पुनीत कार्य में कई लोगों ने अपने प्राण भी गँवाए।
संघ के स्वयंसेवकों ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर को बचाया
लेखक अरुण प्रकाश ने अपने लेख में बताया है कि अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर पर ‘मुस्लिम लीग’ और उसके सशस्त्र दस्ते ‘नेशनल गार्ड्स’ ने 6 मार्च 1947 की रात को और 9 मार्च 1947 में दिन के वक्त हमला किया था। इस दौरान स्वयंसेवकों ने मोर्चा सँभाला और सिखों के पवित्र स्थान स्वर्ण मंदिर को बचाया।
6 मार्च 1947 को नेशनल गार्ड्स के नेतृत्व में मुस्लिमों की भीड़ ने शेरावाला गेट से अमृतसर के चौक फवारा तक बढ़ी। उस दौरान संघ के नेतृत्व में हिंदू-सिखों ने उन पर लाठियों, तलवारों, भालों, चाकुओं और बमों से चौतरफा हमला कर दिया। इस अचानक हमले से उन्मादी इतने भयभीत हो हुए कि वे भाग गए।
हालाँकि, तीन दिन बाद 9 मार्च को दिन में मुस्लिमों की भीड़ ने दोबारा हमला कर दिया। भीड़ को गुरुद्वारा की बढ़ता देख जत्थेदार परेशान हो गए और संघ से मदद माँगी। इसके बाद स्वयंसेवकों के नेतृत्व में हिंदुओं और सिखों ने मोर्चा सँभाला। हर गली-मोहल्ला में जवाब देने की तैयारी की गई। चौक फवारा के पास जैसे ही हमलावर आए, हिंदुओं ने उन पर आक्रमण कर दिया। वे फिर भाग खड़े हुए। इस तरह स्वर्ण मंदिर को दो बार बचा गया।
हिंदुओं को भगवान भरोसे छोड़ निकल भागे कॉन्ग्रेसी नेता
माणिकचंद्र वाजपेयी और श्रीधर पराडकर ने अपने पुस्तक ‘पार्टिशन डे: द फियरी स्ट्रगल ऑफ आरएसएस’ ने लिखा है कि पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से कॉन्ग्रेस के नेता खुद निकल गए, लेकिन हिंदुओं को ‘मुस्लिम लीग’ और उसके हथियारबंद दस्ते ‘नेशनल गार्ड’ के साथ-साथ पाकिस्तानी सेना और पुलिस के खूनी दरिंदों की दया पर छोड़ दिया था।
इस घड़ी में संघ और उसके स्वयंसेवक सामने आए और गली-गली से लोगों को निकालने का काम किया। कई जगहों पर राहत शिविर लगाए और असुरक्षित जगहों पर रहने वाले हिंदुओं को लाकर इन शिविरों में रखा। महीनों तक उनके लिए खाने-पीने का इंतजाम किया और उनकी देखभाल की।
पाकिस्तान के गली-मुहल्लों से हिंदू-सिखों को निकाला गया
लाहौर में अंग्रेजी के प्रोफेसर एएन बाली ने 1949 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘नाउ इट कैन बी टोल्ड’ में इस त्रासदी का विस्तार से जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि संघ के स्वयंसेवकों ने सूबे के हर मोहल्ले में हिंदू-सिख महिलाओं और बच्चों को खतरनाक इलाकों से निकालकर सुरक्षित केंद्रों तक पहुँचाने का काम किया।
हिंदुओं और सिखों को भारत ले जाने वाली ट्रेनों तक पहुँचाने के लिए लॉरी और बसों की व्यवस्था की गई और उसकी सुरक्षा के उपाय किए गए। हिंदू और सिख इलाकों में चौकसी रखी जाती थी और हमला होने पर बचाव के उपाय सिखाए जाते थे। यहाँ तक कि पंजाब के कई जिलों में कॉन्ग्रेस के नेताओं ने भी अपने परिवारों और रिश्तेदारों को बचाने के लिए आरएसएस की मदद माँगी थी।
कश्मीर सीमा पर निगरानी और शरणार्थियों के लिए राहत शिविर
संघ के स्वयंसेवकों पाकिस्तान के नापाक इरादों से वाकिफ थे। कश्मीर सीमा पर वे पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर नजर रख रहे थे। इसके लिए उन्हें कोई प्रशिक्षण नहीं मिला था। यह काम उन्होंने राष्ट्रभक्ति से प्रेरित किया था। जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी लड़ाई लड़ते हुए अपने प्राण दिए।
इसके अलावा, पाकिस्तान से हिंदुओं और सिखों का जत्था लगातार आ रहा था। उन लोगों को जम्मू में रहने की व्यवस्था का जिम्मा संघ के स्वयंसेवकों ने संभाला। उन्होंने सैकड़ों राहत शिविर स्थापित किए और पीड़ितों को हर तरह से मदद की।
सरदार पटेल ने केएम मुंशी के संघ के काम को सराहा
भले ही कॉन्ग्रेस आज संघ से उसके काम को पूछे, लेकिन उसके नेता स्वयंसेवकों की बहादुरी की सराहना कर चुके हैं। जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी और संविधान सभा के सदस्य केएम मुंशी ने आरएसएस के स्वयंसेवकों द्वारा पंजाब और सिंध में दिखाई गई बहादुरी की तारीफ की थी।
तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने 11 अगस्त 1948 को संघ के दूसरे सरसंघचालक एमएस गोलवरकर ‘गुरुजी’ को लिखे पत्र में कहा था कि आरएसएस ने संकट के समय में हिंदू समाज की सेवा की है। संघ के युवाओं ने महिलाओं और बच्चों की रक्षा की और उनके लिए बहुत कुछ किया।
आज जब पूरा देश विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मना रहा है, ऐसे में संघ के इस निस्वार्थ सेवा को भी याद करने का दिन है। अगर संघ के स्वयंसेवकों ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर हिंदू-सिखों की मदद नहीं की होती तो ना जाने और कितने लोगों को अपने प्राण गँवाने पड़ते या जलालत की जिंदगी जीनी पड़ती।