काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में स्थित ज्ञानवापी विवादित ढाँचे के अंदर एक कुएँ से शिवलिंग मिला है, जिसे नमाजियों ने वजूखाना बना कर रख दिया था। अर्थात, वो वहाँ पर अपने हाथ-पाँव धो कर वर्षों से भोले बाबा को अपमानित कर रहे थे। संस्कृत में श्लोक से लेकर त्रिशूल और ॐ तक, ज्ञानवापी में अदालत के निर्देश पर हुए सर्वे में इतने सबूत मिले कि सब कुछ साफ़ हो गया। लेकिन, हमें फिर भी अपना इतिहास और इस मंदिर पर हुए हमलों को भूलना नहीं है।
पिछले लेख में हमने बताया था कि कैसे 10वीं और 11वीं शताब्दी में चन्द्रादित्य और गोविंदचंद्र जैसे प्रतापी गहड़वाल राजाओं ने शिव की नगरी की सुरक्षा की, लेकिन कन्नौज के शासक जयचंद की मृत्यु के बाद मुहम्मद गोरी और कुतुबुद्दीन ऐबक वहाँ टूट पड़ा और मंदिर को ध्वस्त कर दिया। पुनर्निर्माण शुरू हुआ तो ऐबक 4 साल बाद लौटा और काशी विश्वनाथ मंदिर सहित कई शिवालय ध्वस्त कर दिए। गुजरात के जैन मंत्री वास्तुपाल ने मंदिर को फिर से बनवाने के लिए तब 1 लाख रुपए भेजे थे।
अब थोड़ी आगे की बात कर लेते हैं। इल्तुतमिश की मौत होने के बाद उसकी बेटी रजिया सुल्ताना को दिल्ली की गद्दी मिली। उसे इतिहास में भले ही ‘बहादुर महिला’ बता कर पढ़ाया जाता रहा हो, लेकिन ये जानने लायक है कि उसने भी काशी में मंदिरों को ध्वस्त कर के विश्वनाथ मंदिर परिसर में ही एक मस्जिद बनवा दिया। ज्ञानवापी विवादित ढाँचे से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ‘रजिया मस्जिद’ की जगह भी मंदिर ही हुआ करता था।
इसके बाद सन् 1448 में मुहम्मद शाह तुगलक ने आसपास के छोटे-बड़े मंदिरों को भी ध्वस्त कर दिया और रजिया मस्जिद का और विस्तार किया। काशी के प्राचीन इतिहास को पढ़ें तो पता चलता है कि यहाँ कई पुष्कर थे, जिन्हें व्यवस्थित ढंग से तबाह कर के इस्लामी शासकों ने मस्जिद बनवाए। हालाँकि, उससे पहले 13वीं सदी में हिन्दुओं ने फिर से मंदिर को बना कर खड़ा कर दिया था। इसे हिन्दुओं की जिजीविषा कहें या फिर श्रद्धा, इतने अत्याचार और खून-खराबे के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी।
Razia Sultana, a great epitome of woman empowerment , when you read (only) our text books.#Kashi #Temple #Destruction #MeenakshiJain #Book pic.twitter.com/ooZyLHui6i
— ಹಂಸಾನಂದಿ Hamsanandi हंसानन्दि (@hamsanandi) September 6, 2020
होयसल राजा नृसिंह तृतीया ने सन् 1279 में अपने राज्य के नागरिकों को तीर्थाटन के लिए काशी भेजा था, इसीलिए उस समय मंदिर पुनर्निर्मित हो गया रहा होगा। कर्नाटक के बेलूर और फिर हलेबीडू से शासन करने वाला ये कन्नड़ साम्राज्य दक्षिण भारत में कला, धर्म और आर्किटेक्चर के विकास के लिए जाना जाता है। अलाउद्दीन खिलजी (शासनकाल 1296-1316) के दौरान भी काशी में हिन्दुओं ने मंदिरों का पुनर्निर्माण जारी रखा।
इन्हीं मंदिरों में से एक था पद्मेश्वर मंदिर, जिसे काशी विश्वनाथ मंदिर के सामने ही बनवाया गया था। ऐसा विवरण मिलता है कि 14वीं शताब्दी के अंत तक वाराणसी पुनः अपने पुराने गौरव की तरफ लौटने लगा था। 200 वर्ष पूर्व ऐबक-गोरी के विध्वंस से लोग उबर चुके थे। बाहर से लोग भी यहाँ आकर बस रहे थे। बाद में गुरु नानक भी काशी की तीर्थयात्रा के लिए आए थे, लेकिन तुगलक के समय ही जैन आचार्य जिनप्रभ सूरी के भी काशी तीर्थाटन का विवरण मिलता है।
हालाँकि, 1296 ईस्वी में बने पद्मेश्वर मंदिर को भी 15वीं शताब्दी के मध्य में तोड़ डाला गया। पद्म नाम के एक साधु ने इसका निर्माण करवाया था। आप जानते हैं कि ये मंदिर अब कहाँ है? इसके ऊपर ही लाल दरवाजा मस्जिद बनवा दिया गया, जिसे आज भी शर्की सुल्तानों का भव्य आर्किटेक्चर बता कर प्रचारित किया जाता है। उससे पहले 1302 ईस्वी में विश्वेश्वर नाम के एक व्यक्ति ने मणिकर्णकेश्वर मंदिर की स्थापना की थी।
फिरोजशाह तुगलक से लेकर सिकंदर लोदी तक, कई इस्लामी सुल्तानों ने काशी में मंदिरों को बारम्बार ध्वस्त किया। 14वीं शताब्दी के अंत में और 15वीं शताब्दी की शुरुआत में रामानंद ने भी काशी में रह कर शिक्षा दी। एक वैष्णव संत को शिव की नगरी से प्रेम हो गया, यही तो हिन्दू धर्म है। रैदास यहीं पर रामानंद के शिष्य बने। संत कबीर का जन्म यहीं हुआ, इसी काल में। फिर गुरु नानक यहाँ पहुँचे। फिर सन् 1494 में आता है सिकंदर लोदी।
सिकंदर लोदी ने कबीर को भी प्रताड़ित किया। उसने काशी में कई ऐसे मंदिर तोड़े, जिनका अपने खून-पसीने से हिन्दुओं ने पुनर्निर्माण किया था। 16वीं शताब्दी का पहला क्वार्टर ख़त्म होने के बाद दिल्ली में मुगलों का शासन आरंभ हो गया और इसके साथ ही काशी में मंदिरों का निर्माण भी रुक गया। हालाँकि, अकबर के कालखंड में टोडरमल और मानसिंह जैसे राजाओं ने मुगलों का वफादार रहते हुए ही काशी में कई मंदिरों और घाटों का निर्माण करवाया।
The territory of Kashi was also destroyed mercilessly by Ala-ud-din Khilji, at that time it contained more than 1000 'Qasrs' (palaces) and fortified villages
— Piyush Dewan (@MeghdootDiaries) July 27, 2020
Imagination fails to picture this glorious region at the time these medieval Sultans were bulldozing the ancient 🙏 pic.twitter.com/0SshkDz6zn
1514-1594 के कालखंड में ही जगद्गुरु नारायण भट्ट हुए, जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘त्रिस्थली’ में काशी के विश्वनाथ मंदिर के बारे में लिखा है। इसमें उन्होंने कहा है कि अगर म्लेच्छों ने शिवलिंग को हटा दिया है तो वो खाली जगह ही हमारे लिए पवित्र है और उसकी पूजा की जानी चाहिए, अथवा कोई और शिवलिंग स्थापित किया जाना चाहिए। उनके शुरुआती जीवनकाल में मंदिर नहीं बना था, इससे ये पता चलता है। तुगलक और लोदी के विध्वंस से वाराणसी नहीं उबरी थी।
वो नारायण भट्ट ही थे, जिनकी प्रेरणा से राजा टोडरमल ने काशी में पुनः भव्य विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। आज जिस ज्ञानवापी विवादित ढाँचे को आप देख रहे हैं, उसे औरंगजेब ने इसी मंदिर को तोड़ कर इसके ऊपर बनवाया था। काशी की मुक्ति के प्रयास लगातार चलते रहे और यहाँ पूजा-पाठ भी नहीं रोका गया। बार-बार आक्रमण के बावजूद काशी में पुनर्निर्माण चलता रहा। आगे के लेख में हम अकबर और उसके आगे के कालखंड में काशी की हुई दुर्दशा की चर्चा करेंगे।