भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में हुए युद्ध के बलिदानी अब्दुल हमीद को उनकी वीरता और साहस के लिए याद किया जाता है। अब्दुल हमीद को उनके वीरगति को प्राप्त होने के उपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया था। अगस्त 2019 में उनकी पत्नी रसूलन बीबी का निधन हुआ था, जो 95 वर्ष की थीं। अब्दुल हमीद गाजीपुर जिले के धामूपुर गाँव के निवासी थे। सितम्बर 2020 में वीर अब्दुल हमीद के बलिदान को 55 वर्ष हो जाएँगे। यहाँ आगे हम बताएँगे कि कैसे उन्होंने अपनी ‘बहन’ से किया राखी का वादा निभाया।
जब सितम्बर 10, 2017 में भारतीय सेना के तत्कालीन प्रमुख (अब सीडीएस) जनरल विपिन रावत ने रसूलन बीबी के पाँव छूकर आशीर्वाद लिया था उन्होंने कहा था कि रावत उनके बेटे की तरह हैं। आज भी अब्दुल हमीद को जब उनकी वीरता के लिए याद किया जाता है तो उन लोगों को उनके बारे में याद दिलाना ज़रूरी है जो समुदाय विशेष को गुमराह करने के लिए राजनीति करते हैं।
सम्मानित दिवंगत पत्रकार शिवकुमार गोयल अपनी पुस्तक ‘जवानों की गाथाएँ‘ में वीर अब्दुल हमीद की वीरता का वर्णन सबसे अलग तरीके से करते हैं। वो चौथी ग्रेनेडियर्स के कम्पनी क्वार्टर मास्टर हवलदार थे, जिन्होंने लाहौर के कुसूर क्षेत्र से भी आगे तक पाकिस्तानी सेना को घर में घुस कर खदेड़ा था। ये सितम्बर 17, 1965 की बात है, जब पाकिस्तान की सेना अपने पैटन टैंकों के साथ आगे बढ़ रही थी। उनके दस्ते में अच्छी-ख़ासी संख्या में जवान थे।
यही वो जगह थी, जहाँ पाकिस्तानी सेना और वीर अब्दुल हमीद के जवानों के बीच जबरदस्त युद्ध हुआ। हवलदार अब्दुल हमीद अपनी जीप पर आरसीएल गन लेकर तैनात थे और उन्होंने उसी से टैंकों वाली सेना के छक्के छुड़ा दिए। उन्होंने उन टैंकों के साए में जाकर उससे मात्र 150 गज की दूरी पर स्थित होकर युद्ध किया था। अब्दुल हमीद का निशाना इतना अचूक था कि उस पराक्रमी जवान ने अपने पहले ही गोले में पाकिस्तानी टैंक को धूल में मिला दिया था।
जिस साहस के साथ वो पाकिस्तानी टैंकों पर गोले बरसा रहे थे, वो देखने लायक था। उन्होंने दूसरा गोला दागा और इसे बाद एक और पाकिस्तानी पैटन टैंक ध्वस्त हो गया। इस वीर जवान ने तीसरे पाकिस्तानी टैंक को भी लगभग उड़ा ही दिया था लेकिन वो वीरगति को प्राप्त हुए। हालाँकि, वो टैंक भी क्षतिग्रस्त ज़रूर हो गया था। उन्हीं टैंकों में से एक का गोला उनके पास आकर गिरा और उन्होंने देश के लिए अपना बलिदान दिया।
In 2018, Gen. Rawat and his wife met Rasoolan Bibi, wife of CQMH Abdul Hamid while unveiling a memorial in his honour in his ancestral village.
— Guardians_of_the_Nation (@love_for_nation) June 30, 2020
Unfortunately, Rasoolan Bibi passed away on 2nd Aug, 2019 at the age of 95. pic.twitter.com/1Dz7evstVi
इस दौरान एक और वाकए का जिर्क करना आवश्यक है। बलिदानी वीर अब्दुल हमीद के पॉकेट से एक चिट्ठी भी निकली थी, जिसमें लिखा था- “बहन! मैंने राखी के तुम्हारे वायदे को पूरा किया। मैंने दुश्मन के दो पैंटन टैंकों को तबाह कर दिया है लेकिन तीसरे को नहीं कर सका। इसके लिए माफ़ करना- तुम्हारा भाई अब्दुल हमीद।” दरअसल, इस चिट्ठी के पीछे भी एक कहानी है, जिसका जिक्र शम्भूनाथ पांडेय ने अपनी पुस्तक ‘प्रेरक कथाएँ‘ में किया है। हालाँकि, उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ कुल मिला कर 6 पाकिस्तानी टैंकों को धूल में मिला दिया था।
दरअसल, 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय देशप्रेम का जज्बा अपने पूरे शबाब पर था। यहाँ तक कि देश का एक-एक बच्चा ख़ुद को सैनिक ही समझ रहा था। सब ने किसी न किसी रूप में योगदान दिया था। अब्दुल हमीद की टुकड़ी भी जब आगे बढ़ रही थी तो उनका जगह-जगह पर लोगों द्वारा अभिवादन किया जा रहा था। ये दिखाता है कि सेना को लेकर लोगों के मन में कितना सम्मान था, आज भी है।
इसी क्रम में हुआ यूँ कि अब्दुल हमीद की टुकड़ी जब तक पंजाब पहुँचती, तब तक रक्षाबंधन की तारीख पास आ गई। मोर्चा संभालने जा रहे जवानों की बहनों को उनकी याद आनी स्वाभाविक थी, ठीक इसी तरह इन जवानों को भी अपनी बहनों की याद आई ही होगी। पंजाब की ही एक महिला ने इस दौरान अबुल हमीद को राखी बाँधी। जैसा कि हर भाई का कर्त्तव्य होता है, अब्दुल हमीद ने भी कुछ भेंट निकाल कर अपनी उस ‘बहन’ को देनी चाही।
लेकिन उस महिला ने वीर सैनिक से कुछ भी लेने से इनकार कर दिया। उसने कहा कि आप युद्ध-क्षेत्र में दुश्मन के छक्के छुड़ा देना, मेरे लिए राखी की सच्ची भेंट यही होगी। अब्दुल हमीद को बलिदान के समय भी थी। उस वीर सैनिक के मन में देशभक्ति के अलावा राखी का ‘कर्ज’ उतारने की बात चल रही थी। जहाँ राखी बँधवाने समय उनके मन में अपार हर्ष था, बलिदान के वक़्त एक दुर्लभ संयम।
Take a good look. That’s what a Patton tank looks like coming at you. & on the right is the 106 mm recoilless rifle mounted on a jeep. In Sept 1965, Abdul Hamid in his jeep knocked out 7 Pattons before he was killed. Hamid won a posthumous Param Vir Chakra.#ArmyDay pic.twitter.com/cVGIcWg6Vh
— Joy Bhattacharjya (@joybhattacharj) January 15, 2020
वीर अब्दुल हमीद के बारे में कुछ और जान लेते हैं। उनका जन्म जुलाई 1, 1933 को हुआ था। उन्होंने मात्र 32 वर्ष की उम्र में देश के लिए अपना बलिदान दिया। दुशमन की गोलीबारी के बीच जब वो घायल हो गए थे, तब भी उनके मुँह से बार-बार यही शब्द निकल कर गूँज रहे थे- ‘आगे बढ़ो।‘ ऐसा नहीं है कि उन्होंने सिर्फ़ भारत-पाकिस्तान के युद्ध में ही अपना शौर्य दिखाया था। इससे पहले 1962 भारत-चीन युद्ध में उन्होंने चीन के भी दाँत खट्टे किए थे।
उस समय वो नेफा मोर्चे पर तैनात थे, जहाँ चीन से भीषण युद्ध हुआ था। उन्हें परमवीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित करते हुए उल्लेख किया गया कि वीर अब्दुल हमीद ने ‘अपनी सुरक्षा की परवाह किए बिना निष्ठापूर्वक कर्त्तव्य पालन’ करते हुए ‘सर्वश्रेष्ठ वीरता’ का प्रदर्शन किया। तत्कालीन यूपी सरकार की तरफ से उनके परिवार को 10 हजार रुपए की सहायता दी गई और खेती-बारी के लिए परिवार को भूमि उपलब्ध कराई गई थी।
अब्दुल हमीद 1954 में भारतीय सेना में शामिल हुए थे। दरअसल, 1965 में वो पंजाब के खेमकरण सेक्टर में सेना की अग्रिम पंक्ति में ही तैनात थे। सितम्बर 8 की रात जब पाकिस्तान ने हमला किया था तब उनके पास पाकिस्तानी सेना को रोकने की चुनौती थी। पाकिस्तान के पास जो पैटन टैंक थे, वो उसे अमेरिका से मिले थे। रक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि अब्दुल हमीद की ‘गन मॉउंटेड जीप’ उन टैंकों के सामने खिलौना भर ही थी।