Sunday, July 6, 2025
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‘चीन युद्ध नेहरू ने शुरू किया, उनकी ही गलती से भारत हारा, एयरफ़ोर्स तैयार थी लेकिन नेहरू राजनीति में उलझे थे’

इस वीडियो में वे बताते हैं, "1962 के युद्ध में सेना के हाथ में कुछ नहीं था। वो युद्ध बेहद राजनीतिक था, जिसे नेहरू ने हारा। शुरू भी उन्होंने किया और हारे भी वे। उन्होंने केवल कूटनीति पर भरोसा किया और सेना की उपेक्षा की। हमारे पास सर्दी के कपड़े तक नहीं थे। जब हमें पहाड़ों में धकेला गया।"

भारत चीन विवाद को लेकर तरह-तरह की चर्चाएँ हैं। हर व्यक्ति इस घड़ी अपनी जानकारी के मुताबिक स्थिति का आँकलन कर रहा है। मगर, इस बीच कुछ बुद्धिजीवी लोग वो भी हैं, जो 1962 के युद्ध में मिली हार की दुहाई दे देकर भारत का मनोबल गिराने में जुटे हैं।

ऐसे समय में पूर्व एयर मार्शल डेंजिल कीलोर का बयान 1962 के युद्ध पर बेहद प्रासंगिक है। जिसे उन्होंने वाइल्डफिल्म्स इंडिया से बातचीत के दौरान दिया और बताया कि आखिर उस समय भारत के हार की मुख्य वजह क्या थी?

पूर्व एयर मार्शल डेंजिल कीलोर दो टूक कहते हैं कि 1962 का युद्ध भारत केवल पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कारण हारा। उन्होंने उस समय एयरफोर्स का समर्थन नहीं किया। न ही सेना के जवानों को गर्म कपड़े उपलब्ध कराए। भारत यदि हारा तो उसकी वजह नेहरू थे।

पूर्व एयर मार्शल के इस बयान की वीडियो इस समय सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही है। इस वीडियो में वे बताते हैं, “1962 के युद्ध में सेना के हाथ में कुछ नहीं था। वो युद्ध बेहद राजनीतिक था, जिसे नेहरू ने हारा। शुरू भी उन्होंने किया और हारे भी वे। उन्होंने केवल कूटनीति पर भरोसा किया और सेना की उपेक्षा की। हमारे पास सर्दी के कपड़े तक नहीं थे। जब हमें पहाड़ों में धकेला गया।”

वे आगे बताते हैं, “एयरक्राफ्ट को संचालित करने की अनुमति नहीं थी। हम उसे चीन तक ले जा सकते थे। लेकिन उन्होंने सारी चीजों को उलझा दिया और हमें इसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ी। मगर, हमने उस समय उन चीजों से सीखा। अगर ये सब नहीं हुआ होता तो मुमकिन है हमारे लिए 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में चीजें सहज होतीं।”

इतिहास की कड़वी सच्चाई बताते हुए पूर्व एयर मार्शल 1962 के युद्ध के संदर्भ में कहते हैं, “वो राजनीतिक लोग ही थे, जो ये सब नहीं चाहते थे। उसमें खासकर कॉन्ग्रेस थी, जो उस हार के पीछे की कड़वी सच्चाई लोगों को नहीं बताना चाहती थी। जिसका खामियाजा हमारी सेना ने भुगता।”

गौरतलब है कि भले ही इतिहास के पन्नों में भारत चीन युद्ध का साल 1962 कहा जाता हो। लेकिन सच तो ये है कि भारत चीन युद्ध की शुरुआत 28 जुलाई, 1959 से हो गई थी। जब चीन ने विस्तारवादी नीतियों को बढ़ाते हुए उत्तरी पूर्वी लद्दाख में अपनी घुसपैठ की और इस आहट को उस समय की हमारी सरकार समझ न सकी।

इसके बाद चीन ने कई बार नापाक हरकतें की। लेकिन नेहरू सरकार इन सबमें दिलचस्पी दिखाने से बचती रही। नतीजतन सितम्बर 1962 में प्रधानमंत्री नेहरू को जानकारी मिली कि लद्दाख की गलवान नदी तक के इलाके तक चीनी सेना अवैध कब्जा जमा चुकी है।

एक महीने बाद दोनों देशों की सेनाएँ एक-दूसरे के सामने थीं। लगभग एक महीने चले इस युद्ध में चीन ने गलवान नदी तक अपनी स्थिति को बरकरार रखा। मगर, बाद में प्रधानमंत्री नेहरू ने भी इस इलाके को वापस लाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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