Friday, March 29, 2024
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मुश्किल से मिलती थी दो वक्त की रोटी, आज दुनिया ‘किसान चाची’ के नाम से जानती है: मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक कर चुके हैं तारीफ

किसान चाची ने देश के कई राज्यों में किसान महोत्सवों में अपने स्टॉल लगाए। उनकी सफलता कि कहानी अब पूरे देश को पता चल चुकी है और यही वजह है कि आज बिहार के सीएम से लेकर देश के पीएम और राष्ट्रपति तक किसान चाची की तारीफे करते हैं।

बिहार की किसान चाची आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। लाखों महिलाओं की रोल मॉडल हैं। तो चलिए आज आपको किसान चाची की ही कहानी बताते हैं। ये कहानी आपको निजी जीवन में बड़ी से बड़ी कठिनाइयों को झेलने की प्रेरणा देगी। इसके अलावा आपके अंदर एक आत्मविश्वास भी भर देगी। किसान चाची जिनका असली नाम राजकुमारी देवी (Rajkumari Devi) है। लेकिन आज पूरा देश उन्हें किसान चाची के नाम से जानता है। किसान चाची मूल रूप से मुजफ्फरपुर के सरैया प्रखंड के आनंदपुर की रहने वाली हैं। किसान चाची ने महिलाओं के बीच स्वावलंबन की ऐसी अलख जगाई है कि आज पूरे देश में उनके चर्चे हैं।

बिहार के मुजफ्फरपुर की रहने वाली राजकुमारी देवी ने अपने बुलंद हौसले के दम पर न सिर्फ सामाजिक बंधनों का विरोध किया, बल्कि उन्होंने अपनी मेहनत से बड़ी संख्या में महिलाओं की तकदीर को भी बदलने का काम किया। मुजफ्फरपुर के सरैया ब्लॉक से अपने सफर की शुरुआत करने वाली किसान चाची के नाम से मशहूर राजकुमारी देवी को उनके कामों के लिए सरकार ने पद्मश्री से भी सम्मानित किया।

इस सफर को तय करने के लिए ‘किसान चाची’ को काफी सामाजिक और पारिवारिक बाधाओं का सामना करना पड़ा, जहाँ एक वक्त पराए तो दूर अपनों ने भी उन्हें अकेला छोड़ दिया था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने सामाजिक बंधन की खिलाफत करते हुए अपने जमीन पर खेती करने का निश्चय किया और समाज व परिवार के सारे लोगों के विरोध के बाद भी वो निरंतर आगे बढ़ती रहीं।

कच्ची पगडंडियों पर मीलों साइकिल चलाकर किसानों के बीच जागरूकता की अलख जगाने वाली राजकुमारी ने अब तक पुरुषों का कार्यक्षेत्र माने जाने वाले कृषि में एक नई क्रांति का आगाज किया है। उन्नत तकनीक एवं मिट्टी की गुणवत्ता की अच्छी परख रखने वाली किसान चाची आज सफल खेती का दूसरा नाम और महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकी हैं। चेहरे पर उम्र के निशान, लेकिन हाथ में हिम्मत की लाठी और दिल में कुछ नया करने का जज्बा लिए आज जब वह पीछे मुडक़र देखती हैं, तो उन्हें हजारों सफल किसानों एवं आत्मनिर्भर महिलाओं के मुस्कुराते चेहरे नजर आते हैं। 

उन्होंने सैकड़ों महिलाओं को न केवल खेती में उतारा, बल्कि उन्हें यह जानकारी दी कि खेती को लाभकारी कैसे बनाया जाए। नई तकनीक की जानकारी हासिल कर उन्हें दूसरे किसानों के साथ साझा करने के लिए वह कहीं भी जाने को तैयार रहती हैं। राजकुमारी की उपलब्धियों को देखते हुए बिहार सरकार ने उन्हें 2006 में ‘किसान श्री’ सम्मान से नवाजा और एक लाख रुपए की धनराशि प्रदान की। वह सरैया कृषि विज्ञान केंद्र की सलाहकार समिति एवं राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन की सदस्य हैं। किसान चाची अब तक दर्जनों पुरस्कार पा चुकी हैं। उन पर केंद्र सरकार के कृषि विभाग द्वारा डॉक्यूमेंट्री भी बनाया जा चुका है। यहीं से उनका नाम ‘किसान चाची’ पड़ा। वह वाइब्रेंट गुजरात-2013 में आमंत्रित की गईं और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर उनका फूड प्रोसेसिंग मॉडल सरकारी वेबसाइट पर डाला गया। 2015 और 2016 में अमिताभ बच्चन ने उन्हें केबीसी में भी बुलाया था।

किसान चाची का जन्म शिक्षक पिता के घर में हुआ था। उस समय कम उम्र में शादी हो जाती थी, इसलिए मैट्रिक पास होते ही 1974 में उनकी शादी एक किसान परिवार में अवधेश कुमार चौधरी से कर दी गई। शादी के बाद वह अपने परिवार के साथ आनंदपुर-सरैया गाँव में रहने लगीं। राजकुमारी शिक्षक बनना चाहती थीं, 1980 में उन्होंने बाकायदा इसकी ट्रेनिंग भी ली, लेकिन परिवार और समाज के विरोध के चलते वह नौकरी नहीं कर सकीं। शादी के नौ साल तक संतान न होने और पति की बेरोजगारी के चलते घर की दहलीज से बाहर कदम रखने वाली राजकुमारी परिवार एवं समाज से बहिष्कृत कर दी गईं।

वह कहती हैं कि करीब 15 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी। शिक्षक पिता ने प्यार से पाला था, लेकिन ससुराल में स्थिति ठीक उलट थी। जब तक कुछ समझते, परिवार ने हमें अलग कर दिया। केवल जमीन से परिवार चलाना संभव नहीं था। 1983 में जब बेटी का जन्म हुआ, तब भी ताने मिले। 1990 में चौधरी के चार भाइयों में बंटवारा हुआ और हमारे हिस्से में केवल ढाई बीघा जमीन आई। परिवार में तंबाकू की खेती करने की परंपरा थी, जिसे तोड़ते हुए उन्होंने आर्थिक तंगी की हालत में कुछ नया करने की ठानी।

वर्ष 1990 में परंपरागत तरीके से खेती करते हुए वैज्ञनिक तरीके को अपनाकर अपनी खेती-बाड़ी को उन्नत किया। इसके बाद उन्होंने अचार बनाने की शुरुआत की। साल 2000 से उन्होंने घर से ही अचार बनाना शुरू किया जो आज किसान चाची की अचार के नाम से पूरे देश में प्रसिद्ध हैं।

उन्होंने खुद को खड़ा करने के बाद अन्य महिलाओं की तरफ मदद का हाथ बढ़ाया और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने के लायक बनने के लिए तैयार किया। शुरुआती दौर में उन्होंने आस-पास की महिलाओं के साथ जुड़कर खेती उपज से आम, बेल, निम्बू और आंवला आदि के आचार को बाजार में बेचना शुरू किया। इसके बाद धीरे-धीरे समहू में महिलाओं की संख्या बढ़ी और उनका क्षेत्र बढ़ता चला गया। अब तक वह 40 स्वयं सहायता समूहों का गठन कर चुकी हैं।

इस क्षेत्र में अपने पहल और योगदान के लिए उन्हें कई बार सामाजिक संगठनों, राज्य और केंद्र सरकार से भी समान्नित किया गया। वर्ष 2019 में उन्हें पद्मश्री सम्मान भी मिला। पद्मश्री राजकुमारी देवी (किसान चाची) ने बताया, “वर्ष 1990 में खेती करना शुरू किए फिर वर्ष 2000 से ब्लॉक में ट्रेनिंग हुआ तो हमने देखा कि कम पैसे में तो अचार बनाना ही बेहतर होगा इसलिए हम अचार बनाने के लिए ट्रेनिंग लिए। इसके बाद ‘ज्योति जीविका’ स्वयं सहायता समूह बनाकर 160 महिलाओं को जोड़ा और घर पर ही महिलाओं को काम मिलने लगा।”

वो बताती हैं कि अब वो 20 से ज्यादा किस्मों की आचार बनाती हैं, जिसकी सप्लाई दिल्ली के प्रगति मैदान, पटना खादी मॉल, विस्कॉमान सहकारिता विभाग तक होती है। वहीं इनके आचारों को लोकल बाजार और कई प्रदर्शनियों में भी देखा गया है। किसान चाची ने कहा, “महिलाओं को यही कहेंगी कि कोई काम छोटा नहीं होता है और उसमें बेहतर करने से एक दिन वही काम बड़ा हो जाता है।”

राजकुमारी ने अपने जैसी उन महिलाओं को साथ लिया, जो गरीब थीं, लेकिन कुछ करना चाहती थीं। उन्होंने अपने घर पर उन्हें खेती करने और अचार बनाने के तरीके सिखाए। समय के साथ उनके अचार और अन्य फूड प्रोडक्ट्स का व्यापार बढ़ता गया। आज भी उनके घर पर 10 महिलाएँ नियमित रूप से काम करके धनोपार्जन कर रही हैं। 

उनके समूह में काम करने वाली ग्रामीण महिलाओं ने बताया कि पहले घर में रहते थे आज इनसे जुड़कर पैसा कमा रहे हैं। पहले घर पर थे, घर से बाहर नहीं निकलते थे। बाहर निकले तो यहाँ काम मिला जिसके बाद मोरब्बा अचार बनाने लगे, जिससे आमदनी होने लगी। वहीं, एक दूसरी महिला ने बताया कि घर में रहकर काम करते हुए अच्छी आमदनी होती है। कोई जरूरी नहीं कि बाहर गए तो काम मिल ही जाए और यहाँ तो निश्चित रूप से काम मिलता है।

बकौल राजकुमारी, महिलाएँ केवल खेत में मजदूरी करते हुए नजर आती थीं, उन्हें कृषि तकनीक का ज्ञान नहीं था और वे पुरुषों के बताए अनुसार ही काम करती थीं। उन्होंने सोचा कि जब हम महिलाएँ खेत में मेहनत करती ही हैं, तो क्यों न बेहतर कृषि तकनीक अपनाई जाए। किसान चाची की वजह से असंख्य महिलाओं की जिंदगी में बदलाव आया।

शुरुआती दिनों में जब वह साइकिल पर सवार होकर गाँव से बाहर निकलतीं, तो लोग आपस में कानाफूसी करते और उन्हें पागल करार देते। शादी के कई सालों तक संतान न होने के कारण वह पहले ही तिरस्कार झेल रही थीं, उस पर खेती और शुरू कर दी। परिवार और समाज ने उन्हें बहिष्कृत कर दिया, लेकिन उनके कदम नहीं रुके। उन्होंने खेती के साथ ही छोटे-मोटे कृषि उत्पाद बनाने शुरू किए। साइकिल उठाई और मेलों-बाजारों में एवं घर-घर जाकर उनकी बिक्री शुरू की। भूखे रहने पर न पूछने वाला समाज दो रोटी कमाने के इस तरीके पर और भी सख्त हो गया। पति भी नाराज। अवधेश चौधरी ने कहा कि साइकिल से सामान बेचना उन्हें अच्छा नहीं लगा।

आज स्थिति बहुत बदल गई है। गाँव के अलावा जिले और बाहर के लोग भी खेती के गुर सीखने के लिए उन्हें बुलाते हैं। 2003 के किसान मेले में उनके उत्पाद को पुरस्कार मिला। जनवरी 2010 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वैशाली प्रवास के दौरान उन्हें आमंत्रित किया और ‘रोल मॉडल’ की संज्ञा देते हुए कहा कि उनके जैसी महिला समाज में जागृति ला रही है। 14 मार्च 2010 को जब नीतीश सरैया प्रखंड में जैविक खाद प्रोजेक्ट का उद्घाटन करने आए, तो  उन्होंने राजकुमारी के घर जाकर उनके उत्पादों एवं जैविक खेती का जायजा लिया। किसान चाची के यहाँ ओल, लीची, बेर, नींबू, आम, लहसुन, गोभी व गाजर का सुखौता, ओल की सेंवई, आलू चिप्स, गुलाब सीरप, ऑरेंज सीरप, पपीता जैम एवं आँवले का मुरब्बा देखकर उन्होंने उनके प्रयासों की प्रशंसा की। 

किसान चाची बताती हैं कि खेती-किसानी में महिलाएँ पुरुषों से ज्यादा काम करती हैं, इसके बाद भी महिलाओं को किसान का दर्जा नहीं मिलता। कृषि भूमि उनके नाम न होने से सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिलता। जिस दिन महिला किसान समृद्ध हो गईं, किसान परिवार खुशहाल हो जाएँगे। घरेलू उत्पादों की बिक्री और निर्यात को बढ़ावा मिले, बाजार उपलब्ध हो। पद्मश्री की घोषणा होने पर उनके घर बधाई देने वालों का ताँता लगा रहा। कोई खुद पहुँचा, तो कई लोगों ने फोन किए। उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी बधाई दी और कहा कि उन्हें पद्मश्री मिलने से पूरा बिहार गौरवांवित है।

किसान चाची ने देश के कई राज्यों में किसान महोत्सवों में अपने स्टॉल लगाए। उनकी सफलता कि कहानी अब पूरे देश को पता चल चुकी है और यही वजह है कि आज बिहार के सीएम से लेकर देश के पीएम और राष्ट्रपति तक किसान चाची की तारीफे करते हैं। किसान चाची ने वर्षों तक मेहनत करके बिहार समेत देश भर की बेटियों और महिलाओं को एक रास्ता दिया है, जो तमाम मुश्किलों से आपको निकाल सफलता के रास्ते पर ले जा सकता है।

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