गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों के लिए नामों का ऐलान होने के बाद एक बार फिर से मोदी सरकार की तारीफें शुरू हो गई। साल 2024 में पद्म पुरस्कार विजेताओं में 132 नाम हैं। इनमें 5 हस्तियों को पद्म विभूषण दिया गया है, 17 को पद्मभूषण और 110 को पद्मश्री सम्मान मिला है।
पद्मविभूषण जहाँ असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए दिया जाता है। वहीं पद्मभूषण उच्च कोटि की विशिष्ट सेवा के लिए, और पद्मश्री विशिष्ट सेवा के लिए। हर वर्ष इन पद्म पुरस्कारों का निर्णय वो पद्म पुरस्कार समिति करती है जिसका गठन प्रधानमंत्री करते हैं। इस समिति में गृह सचिव, राष्ट्रपति के सचिव और चार से छह प्रतिष्ठित व्यक्ति सदस्य के रूप में शामिल होते हैं। समिति की सिफारिशें अनुमोदन के लिए प्रधानमंत्री और भारत के राष्ट्रपति को प्रस्तुत की जाती हैं। फिर नामों का ऐलान होता है।
इस बार इस लिस्ट में फिर उन गुमनाम नामों को सम्मान मिला है जिनकी कहानी और संघर्ष को स्थानीय स्तर पर भले ही पहचान मिली थी लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उनका नाम शायद ही कोई जानता था। इनमें असम के गौरपुर की पार्वती बरुआ हैं तो सरायकेला खरसांवा से चामी मुर्मू भी। इसमें रतन कहार हैं तो जॉर्डन लेप्चा भी। इस तरह कई ऐसे नाम हैं जिनकी कहानी हम तक आप तक नहीं पहुँचती, अगर मोदी सरकार इन्हें ये पुरस्कार देकर विशिष्ट पहचान न देती।
इन्हीं विशिष्ट जनों में से 4 की कहानी हम आपसे साझा करने जा रहे हैं।
पार्वती बरुआ
पहली कहानी पार्वती बरुआ की ही है। 67 साल की पार्वती दिखने में जितनी साधारण हैं उनका काज उतना ही असाधारण है। आमतौर पर सोचते हैं कि महावत का मतलब सिर्फ पुरुष ही होता है। लेकिन पार्वती ने इस सोच को चुनौती दी और देश की पहली महिला महावत बनीं। उन्होंने जंगली हाथियों से निपटने उन्हें पकड़ने में तीन राज्य सरकारों की मदद भी की है। वहीं कइयों की जान बचाने में भी उनकी अहम भूमिका रही है।
संपन्न जीवन होने के बावजूद उन्होंने अपने पिता की तरह हाथियों में रुचि दिखाई। 14 साल की उम्र से वो हाथियों को अपने काबू में करना सीख गई थीं। हालाँकि उनसे जब पूछा गया कि वो इस क्षेत्र में क्यों इतनी प्रतिबद्ध हैं तो उन्होंने जवाब दिया था कि हाथी स्थिर, वफादार, स्नेही और अनुशासित होते हैं इसलिए वह उन्हें पसंद करती हैं। वह एलीफैंट स्पेशलिस्ट ग्रुप की सदस्य हैं। उनपर क्वीन ऑफ द एलिफेंट्स नाम से डॉक्यूमेंट्री बनी है।
राजस्थान के जानकी लाल उर्फ बहरूपिया बाबा
81 वर्षीय जानकी लाल को पद्मश्री से सम्मानित करने का निर्णय हुआ है। उन्हें ये सम्मान उनकी रूप बदलने वाली कला के कारण मिल रहा है। इस कला को बहरूपिया कला कहते हैं जो धीरे धीरे कला शैली से विलुप्त हो रही है। लेकिन जानकी लाल इस कला को वैश्विक दर्शकों लेकर स्थानीयों तक 60 साल से ज्यादा वक्त से भी दिखा रहे हैं।
उन्हें इस कला में महारत अपने पुरखों से हासिल हुई। उनकी तीन पीढ़ियाँ ये काम कर चुकी हैं। इस कला में जटिलता के साथ पौराणिक कथाओं, लोक कथाओं और पारंपरिक कहानियों को दर्शाया जाता है। जानकी लाल ने इस कला को अपने निजी जीवन में आर्थिक तंगी के बावजूद जीवित रखा। वह इस कला को दिखाने लंदन, न्यूयॉर्क, जर्मन, रोम, बर्मिंघम, दुबई, मेलबर्न गए थे। वहाँ उन्हें मंकी मैन कहा जाने लगा था क्योंकि उन्होंने फकीर, बंदर का रोल किया था। उनकी इसी कला को पहचाते हुए अब मोदी सरकार ने पद्म पुरस्कार देने का निर्णय लिया है।
प्रेमा धनराज
8 साल की उम्र में स्टोव फट जाने से 50 फीसद जलने वाली प्रेमा धनराज 14 सर्जरी से होकर गुजरीं थीं। इस छोटी उम्र में उन्होंने जो दर्द झेला उसे महसूस कर उन्होंने निर्णय लिया था कि वो ऐसी पीड़ा से गुजरने वाली महिलाओं की मदद करेंगी। उन्होंने इसके लिए बर्न सर्जन का पेशा चुना और फिर पूरा जीवन उन्हीं के लिए समर्पित कर दिया।
उन्होंने अग्नि रक्षा एनजीओ की स्थापना कर 25,000 बर्न पीड़ितों को मुफ्त सर्जरी प्रदान की है। उन्होंने प्लास्टिक सर्जरी पर 3 किताबें भी लिखीं हैं। इसके अलावा उनके काम को वैश्विक स्तर पहचान मिली है। साथ ही इथियोपिया की पहली बर्न यूनिट स्थापित करने का भी श्रेय जाता है।
बाबू राम यादव
पीतल की कारीगरी का काम करने वाले बाबू राम यादव भी इस बार पद्मश्री पा रहे हैं। वह पीतल पर कलाकारी उकेरने का काम पिछले 6 दशकों से कर रहे हैं। ये कला कभी मरे नहीं इसके लिए वह कलाकारी की ट्रेनिंग भी देते हैं। उन्होंने अब तक दुनियाभर में 40 प्रदर्शनियों में अपना काम दिखाया है। बाबू राम यादव फिलहाल पीतल शिल्पकार के कौशल को बचाए रखने के लिए मुरादाबाद में एक कार्यशाला चलाते हैं। उन्होंने 1962 में पीतल पर कला का कौशल सीखना शुरू किया था। फिर इसे ही अपना पेशा बनाया और मैरोरी शिल्पकार बन गए। बाबू राम यादव पीतल के बर्तनों पर जटिल कलाकृतिया बनाने में माहिर हैं।
बता दें कि इन 4 नामों के अलावा जनजातीय कल्याण कार्यकर्ता जागेश्वर यादव, दिव्यांग सामाजिक कार्यकर्ता गुरविंदर सिंह, 650 से अधिक पारंपरिक चावल वैरायटियों को संरक्षित करने वाले सत्यनारायण बेलेरी, औषधीय चिकित्सक हेमचंद मांझी, दक्षिण अंडमान के जैविक किसान के चेल्लाम्मल, हर्बल चिकित्सा विशेषज्ञ यानुंग जामोह लेगो, पहली महिला प्रतिपादक उमा माहेश्वरी डी, बांस शिल्पकार जॉर्डन लेप्चा समेत कई लोगों के नाम हैं।
कॉन्ग्रेस ने नहीं दिया सम्मान, मोदी सरकार ने दिया पुरस्कार
इन नामों को सुन लोग कह रहे हैं कि पुरस्कार के असली हकदारों को अब जाकर सम्मान मिलना शुरू हुआ है वरना पहले किसी ने सोचा भी नहीं था कि इस तरह दूर दराज शहरों में कलाओं को संजोने वाली हस्तियों को इतने बड़े पुरस्कार से सम्मान मिलेगा। कॉन्ग्रेस के शासन काल में तो उन्हें ही सम्मान मिलता था जो उनके खास होते थे। खुद कॉन्ग्रेस समर्थकों ने भी इस बात को माना है।
पिछले साल मोदी सरकार ने शाह रशीद अहमद कादरी ने पद्म पुरस्कार पाने के बाद कहा था, “मैं शुरू से कॉन्ग्रेसी था… पाँच साल यूपीए शासन में उम्मीद की कि मुझे ये सम्मान मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बीजेपी सरकार आई। हमें लगा ये हमें क्यों देंगे लेकिन ख्याल गलत था। उन्होंने मुझे चुना। बहुत-बहुत धन्यवाद।”
पद्मश्री पाने वाले सुपर 30 के आनंद कुमार, जो आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चों को मुफ्त में आईआईटी प्रवेश परीक्षा की ट्रेनिंग देते हैं, उन्होंने तो यहाँ तक कहा था कि जब सरकार ने उन्हें सम्मानित करने की सूचना दी तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ। उन्होंने
ऐसे ही कर्नाटक के वरिष्ठ नेता प्रमोध माधवराज ने भी 2021 में पद्म पुरस्कारों को लेकर जो मोदी सरकार ने ट्रेंड बदला उसकी तारीफ की थी। उन्होंने कहा था- नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार बनने के बाद, पद्म भूषण और पद्म श्री जैसे पुरस्कार उन लोगों को मिल रहे हैं जो इसके हकदार हैं। उन्होंने कहा था कि अनुकरणीय कारनामों के साथ जमीनी स्तर पर उपलब्धि हासिल करने वालों की पहचान करना और उन्हें पुरस्कार देना एक अच्छी शुरुआत है। उन्होंने ये भी कहा था- “मैं दूसरी पार्टी से हूँ लेकिन फिर भी नरेंद्र मोदी की इस ट्रेंड को बदलने के लिए तारीफ करूँगा।”
मोदी सरकार ने बदली पद्म पुरस्कारों की प्रक्रिया
गौरतलब है मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद पद्म पुरस्कार पाने की प्रक्रिया में बदलाव किया था। पहले जहाँ ये अवार्ड केवल उन लोगों को मिलते थे जो इसके लिए अप्लाई करते थे। उस प्रक्रिया में केवल उन लोगों का नाम आ पाता था था जिन्हें अवार्ड के बारे में पता होता था और जानकारी होती थी कि इसका कब नामांकन करना है, कहाँ उसे जमा कराना है, क्या सोर्स लगानी है आदि-आदि… ये सब बिंदु मिलकर निर्धारित करते थे कि किसका नाम यूपीए शासन में पद्म पुरस्कार के लिए घोषित होगा। इस प्रक्रिया में उन लोगों को अवार्ड ज्यादा मिलता था जो सरकार के करीबी होते थे, वहीं असली संघर्ष करने वाले गुमनाम ही रह जाते थे।
मोदी सरकार जब आई तो उन्होंने इन पुरस्कारों की महत्ता को समझते हुए इन्हें उन हस्तियों तक पहुँचाना शुरू किया जो वाकई जमीनी स्तर पर समाज में उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं मगर उनकी सिफारिश करने वाला कोई नहीं है, उन्हें ये भी नहीं पता है कि पद्म अवार्ड लेने के लिए क्या प्रक्रिया है।
मोदी सरकार ने इस सिस्टम को सुधारने के लिए सबसे पहले नामांकन की प्रक्रिया को पारदर्शी किया। उन्होंने ऑनलाइन नॉमिनेशन शुरू किया जिसमें कोई भी व्यक्ति किसी भी शख्स को उसके कार्यों के लिए नामित कर सकता था। इस प्रक्रिया से फायदा ये हुआ कि वो नाम भी सामने आए जिनके संघर्ष की कहानी लोगों तक नहीं थी। इससे सामान्य जन की इसमें भागीदारी बढ़ी और पद्म पुरस्कार पाकर हस्तियों ने पीएम मोदी का धन्यवाद किया।
लिस्ट उठाकर यदि देखें तो पता चलेगा कि 2016 के बाद से अब तक मोदी सरकार में कई ऐसे लोग सम्मानित हुए हैं जिन्हें उम्मीद ही नहीं थी कि उनके कार्यों के लिए उन्हें कोई पूछेगा। विलुप्त होती कलाओं को संरक्षित करने वालों को इस सम्मान से उत्साह भी बढ़ता है और उन्हें उनके मूल्य का एहसास भी हो पाता है।