वैसे तो ये रिपोर्ट पाँच साल पहले ही केरल सरकार के पास पहुँच गई थी, लेकिन इसे सार्वजनिक अब किया गया है। कहा जा रहा है कि आरटीआई के दबाव में आकर केरल सरकार ने 295 पेजों की इस रिपोर्ट को जारी किया वो भी तब जब प्रारंभिक ड्रांफ्ट से 60 के आसपास पन्ने हटा दिए गए। ये रिपोर्ट न केवल फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं पर बीत रही आपबीती को बताती है बल्कि पुरुषों के उस समूह के राज भी खोलती है जिन्हें लेकर कहा जाता है कि वो ही इस इंडस्ट्री पर कब्जा किए हुए हैं।
आगे बढ़े उससे पहले जान लेते हैं कि हेमा कमेटी क्या है
दरअसल, साल 2017 में 14 फरवरी को मलयालम फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री अपनी कार से कोच्चि जा रही थीं, तभी उन्हें रास्ते में अगवा कर लिया गया और फिर उनका उन्हीं की कार में यौन उत्पीड़न हुआ। जानकारी जब खबरों में आई तो हर कोई सन्न रह गया। पुलिस ने उस समय तो आरोपितों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया लेकिन इस घटना ने तमाम हिरोइनों की सुरक्षा पर सवाल उठा दिए। आंदोलन तेज होता गया।
जब दबाव सरकार पर पड़ा तो मजबूर होकर वारदात के पाँच महीने बाद जुलाई में केरल हाईकोर्ट की रिटायर्ड जस्टिस हेमा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी गठित हुई। इसी कमेटी को जो टास्क दिया गया उसमें पूरी मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिला कलाकारों, सहयोगियों और अन्य स्टाफ की सेवा शर्तें, काम के बदले समुचित मेहनताना, शूटिंग स्थल पर सुरक्षा के पर्याप्त इंतजामात आदि को लेकर रिपोर्ट देना था।
आदेशानुसार, कमेटी ने सैकड़ों की संख्या में महिला कलाकारों, टेक्नीशियन्स तथा अन्य से बातचीत की। उनके बयान रिकॉर्ड किए और फिर 2019 के आखिर में अपनी रिपोर्ट ले जाकर सीएम विजयन को दी। कमेटी ने इस रिपोर्ट के साथ इस मामले में विस्तृत जाँच के लिए न्यायाधिकरण के गठन की सिफारिश भी की। हालाँकि केरल सीएम ने उस पर सुनवाई तो दूर… इस रिपोर्ट को ही पब्लिक नहीं होने दिया।
लोगों ने इस मुद्दे को बार-बार उठाया, मगर सरकार ने इसे सार्वजनिक करने से मना कर दिया। विधानसभा में बताया गया कि अगर ये रिपोर्ट सार्वजनिक हुई तो निजता का उल्लंघन होगा। बाद में पांच आरटीआई कार्यकर्ताओं और मीडियाकर्मियों ने केरल राज्य सूचना आयोग से संपर्क किया तो उसने 6 जुलाई 2024 को आदेश दिया कि आयोग के सामने गवाही देने वालों की निजता बरकरार रखते हुए रिपोर्ट को कंट्रोल रिलीज किया जाए।
क्या-क्या है हेमा कमेटी की रिपोर्ट में
आज ये रिपोर्ट सार्वजनिक है। इस पर तमाम खबरें प्रकाशित हैं। इन्हीं स्रोतों को आधार बनाकर यदि बताएँ तो इस रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे मलयालम इंडस्ट्री को पुरुषों का एक समूह नियंत्रित करता है। वहीं महिलाएँ यौन उत्पीड़न का शिकार होती हैं वो भी उन लोगों द्वारा जिनका इंडस्ट्री में अच्छा खासा नाम है।
इसके अलावा इसमें ये भी बताया गया है कि इंडस्ट्री में शुरुआत से ही उनके साथ शोषण शुरू हो जाता है। उन्हें कभी ‘अडजस्ट’ करने को कहा जाता है तो कभी ‘कॉम्प्रोमाइज’ करने को। जब महिलाएँ इसका विरोध करती हैं तो उन्हें टॉर्चर झेलना पड़ता है। कभी बेसिक सुविधाओं से वंचित रखा जाता है तो कभी वेतन देने में भेदभाव किया जाता है।
कार्यस्थल पर उनके आगे नशे करना, दुर्व्यवहार करना, घटिया कमेंट करना भी रिपोर्ट पढ़कर सामान्य बातें लगती है। इसके अलावा कॉन्ट्रैक्ट में काम की जानकारी दिए बिन नग्न सीन कराने की शिकायत भी रिपोर्ट से पता चलती है।
जैसे, उदाहरण के लिए एक महिला एक्ट्रेस ने जानकारी दी कि उसे फिल्म के दौरान बताया ही नहीं गया था कि सीन के लिए कितना नग्न होना पड़ेगा। उसे बस कहा गया था कि उसमें उसकी बैक दिखाई जाएगी। हालाँकि बाद में जब सीन करना हुआ तो पता चला उसमें लिक-लॉक भी है और अन्य चीजें भी। एक्ट्रेस ने वो सीन करने से मना कर दिया और कहा कि उसे ये सब पहले नहीं बताया गया था।
इसी तरह एक मामले में तीन महीने की तैयारी की शूटिंग के बाद, एक निर्देशक ने अचानक एक अभिनेत्री को बताया कि उसे नग्न सीन करना होगा और लिप लॉक भी। महिला एक्ट्रेस ने मना किया बावजूद इसके उससे वो सीन कराया गया और अगले दिन बाथटब सीन के साथ अधिक रिवीलिंग सीन करने को कहा गया।
एक अन्य मामले में अभिनेत्री को एक शख्स के साथ सीन करने को मजबूर होना पड़ा जो पहले उसका शोषण कर चुका था। अभिनेत्री के चेहरे पर असहजता दिख रही थी लेकिन डायरेक्टर ने उससे वजह जानने की बजाय उसे सीन लेट करने के लिए फटकारा था।
इन सबके अलावा रिपोर्ट बताती है कि कैसे इंडस्ट्री में वेतन देते समय लिंग असमानता साफ झलकती है। बिन कॉन्ट्रैक्ट काम करवाया जाता है। वहीं जो कॉन्ट्रैक्ट साइन कराए जाते हैं उसमें अक्सर वेतन से जुड़ी बातें रेखांकित नहीं होतीं। बाद में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले उचित वेतन तक नहीं मिलता। इसी तरह केवल महिला कलाकार इस भेदभाव को नहीं झेलते बल्कि कलाकारों के साथ तकनीशियनों को भी ये झेलना पड़ता है। कॉन्ट्रैक्ट न होने के कारण न उनके काम के घंटे तय होते हैं और न ही सैलरी। रिपोर्ट में एक मामला पढ़ने को मिलता है जहाँ एक अभिनेत्री को 32 दिन की शूटिंग के लिए उसे केवल 8 हजार रुपए दिए गए थे। वहीं दूसरे मामले में, एक अभिनेत्री को 20 दिनों के काम के लिए 50,000 रुपए देने का वादा किया गया था, लेकिन उसे मिले सिर्फ 4000 रुपए ही थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जाँच के दौरान निर्देशकों, निर्माताओं और अभिनेताओं समेत 15 बड़े शॉट्स से जुड़े एक पुरुष समूह का पता चला है। उनके अनुसार इंडस्ट्री में यही पावर ग्रुप तय करता है कि इंडस्ट्री में किसे रहना चाहिए और किसे फिल्मों में काम देना चाहिए। रिपोर्ट में इन शक्तिशाली समूह को माफिया भी बताया गया है जो अपने खिलाफ आवाज उठाने वालों का करियर बर्बाद कर देते हैं।
ग्लैमर की दुनिया का सच
235 पन्नों की रिपोर्ट से ये कुछ बिंदु हैं जो अभी तक उभर कर सामने आए हैं। इसे देख भले ही मन में सवाल उठें कि आखिर एक इंडस्ट्री से इतनी घटनाएँ सामने आती हैं और कोई कुछ कहता कैसे नहीं, लेकिन हकीकत यह है कि ये समस्या सिर्फ मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की नहीं है। ये समस्या बॉलीवुड इंडस्ट्री में भी है और सामान्य कॉर्पोरेट जगत में भी। हेमा कमेटी की रिपोर्ट ने तो बस इस बिंदु को और पुख्ता किया है कि कार्यक्षेत्रों में लिंग असमानता और कास्टिंग काउच जैसी बातें हवाई नहीं हैं।
वेतन असमानता की समस्या महिलाएँ ग्लैमर की दुनिया में भी झेल रही हैं। उनके साथ दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के मामले वहाँ भी हो रहे हैं जहाँ कोई सोच नहीं सकता। बस इन पर चर्चा इसलिए नहीं क्योंकि सोशल मीडिया पर इतनी चमक-दमक दिखाई जाती है कि हम मानने को तैयार ही नहीं होते कि ये भी एक कड़वा सच है। अगर कोई खुलकर इस मुद्दे पर बोले भी तो हम सोशल एक्टिविटी से अंदाजा लगाते हैं कि उसके साथ जो हो रहा है वो सही है या नहीं। नतीजा ये होता है कि महिलाएँ बोलने से घबराने लगती हैं कि कहीं पुलिस तक बात जाने पर उनके चरित्र पर ही सवाल न खड़े हो जाएँ।