ऑक्सफॉर्ड में हिंदूफोबिया का शिकार हुई रश्मि सामंत के बाद अब लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में करण कटारिया के साथ नस्लीय भेदभाव की घटना सामने आई है। करण कटारिया ने अपनी आपबीती सोशल मीडिया पर शेयर की। उन्होंने बताया कि कैसे उनके साथ स्टूडेंट यूनियन इलेक्शन के दौरान भेदभाव हुआ और उन्हें टारगेट करके चुनाव से डिसक्वालिफाई करवा दिया गया। उन्होंने कहा कि वो हिंदूफोबिया के विक्टिम नहीं बनने वाले। उन्होंने माँग उठाई कि यूनिवर्सिटी अपने फैसलों में पारदर्शिता रखे।
करण ने बताया कि वो हरियाणा के एक ऐसे परिवार से आते हैं जहाँ स्नातक स्तर तक पहुँचने वाले वो पहले शख्स हैं। वह बताते हैं कि उन्होंने जब लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पोस्टग्रेजुएशन की पढ़ाई शुरू की तो छात्रों की भलाई की दिशा में काम करने के सपने देखे। हालाँकि ये सपने तब चकनाचूर हुए जब LSE में उनके भारतीय और हिंदू होने के कारण कैंपेन शुरू किया गया।
उन्होंने बताया कि LSE के लॉ स्कूल में उन्हें अपने समूह का प्रतिनिधि बनने का मौका मिला। इसके अलावा वो नेशनल स्टूडेंट फॉर यूनियन में भी डेलीगेट की तौर पर चुने गए। इन्हीं पदों पर छात्रों के लिए किए गए कार्यों को देख करण के चाहने वालों ने उन्हें जनरल सेक्रेट्री का चुनाव लड़ने को कहा।
I have faced personal, vicious, and targeted attacks due to the anti-India rhetoric and Hinduphobia. I demand that the @lsesu is transparent about its reasoning.
— Karan Kataria (@karanatLSE) April 2, 2023
I will not be a SILENT victim of Hinduphobia.
@LSEnews @HCI_London @BobBlackman pic.twitter.com/65LKaFAI7J
करण कहते हैं, “दुर्भाग्य से कुछ लोग भारतीय-हिंदू को LSESU का नेतृत्व करता देखने के लिए तैयार नहीं हुए और उन्होंने मेरे चरित्र और मुझे बदनाम करना शुरू कर दिया। साफ दिख रहा था कि वो हमारी उस संस्कृति के खिलाफ हैं जिसके जहन में रखकर हमारा पालन हुआ।”
कटारिया कहते हैं कि छात्रों का समर्थन पाने के बावजूद उन्हें LSE स्टूडेंट यूनियन के जनरल सेक्रेट्री चुनाव से डिसक्वालिफाई कर दिया गया। वह बताते हैं, “मुझपर होमोफोबिक, इस्लामोफोबिक, क्विरफोबिक (Queerphobic) होने का इल्जाम लगा और मुझे हिंदू राष्ट्रवादी कहा गया। मेरे खिलाफ कई शिकायतें हुईं। कई झूठे आरोप लगने के बाद मेरी छवि और मेरे चरित्र पर कीचड़ उछाला गया जबकि मैंने तो हमेशा समाज में सकारात्मक बदलाव और सामाजिक सद्भाव रखने की पैरवी की है।ठ
करण कहते हैं LSESU ने उनके खिलाफ नफरती अभियान चलाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, उलटा उनका फॉर्म कैंसिल कर दिया। ये निर्णय न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हैं। यूनिवर्सिटी ने उनका पक्ष सुने बिना ही और उनके वोट बताए बिना ही उन्हें डिस्क्वालिफाई कर दिया।
इतना ही नहीं, चुनाव के आखिरी दिन, भारतीय छात्रों को उनकी भारतीय और हिंदू पहचान के लिए निशाना बनाकर परेशान किया गया था। छात्रों ने यह मुद्दा उठाया लेकिन LSESU ने इसे खारिज कर दिया। करण कहते हैं कि LSESU का आरोपितों के खिलाफ ऐसा शांति रवैया स्टूडेंट यूनियन के हिंदूफोबिक होने का स्पष्टीकरण देता है।
उन्होंने कहा, “सामाजिक विज्ञान का छात्र होने के नाते मैं लोकतांत्रिक मूल्यों की कदर करता हूँ और हर निजी राय और विचारधारा का आदर करता हूँ। हालाँकि LSESU के एक्शन दिखाते हैं कि वो कैसे सामाजिक सद्भाव, विभिन्नता और भारतीय-हिंदू छात्रों को खुद से जोड़ने की दिशा में भेदभाव करते हैं। मैं यूनिवर्सिटी के शीर्ष से मुझे सपोर्ट देने के लिए कहता हूँ, हर छात्र के लिए न्याय चाहता हूँ और ये चाहता हूँ कि कैंपस में हर आवाज सुनी जाए। ”
उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले ऐसा ही नस्लीय भेदभाव ऑक्सफॉर्ड की रश्मि सामंत के साथ भी हुआ था। उस समय उन्हें स्टूडेंट यूनियन के चुनाव जीतने के कुछ समय बाद वामपंथियों ने निशाना बनाया। रश्मि इस ताजा घटना पर लिखती हैं, “जब हिंदू धर्म में पैदा और उससे जुड़े बैकग्राउंड होने के कारण मुझपर हमला हुआ, मेरा शोषण किया गया, मुझे बुली किया गया..मैंने सोचा था कि काश ये सब किसी और केस साथ न हो। मगर करण की कहानी और अनुभव फिर दिल दुखाने वाला है।”