Saturday, November 16, 2024
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26/11 जब 3 दिनों तक पाकिस्तानी आतंकवादियों के हाथ में ‘बंधक’ थी मुंबई : इन 22 बलिदानियों को 13वीं बरसी पर राष्ट्र का नमन

भारतीय मूल के कैप्टन रवि धर्निधिरका की गिनती उन बहादुरों में से हैं, जिन्होंने ताज होटल में 157 लोगों की जान बचाई थी। यूएस मरीन में कैप्टन रहे धर्निधिरका हमले के वक्त ताज के अंदर एक रेस्टोरेंट में थे। पहले कैप्टन खुद हमलावरों से मुकाबला करना चाहते थे लेकिन आतंकियों के हथियारों के खतरे को देखते हूए उन्होंने...

साल 2008, तारीख 26 नवंबर, आज से ठीक 13 साल पहले देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकियों ने एक ऐसा हमला किया था, जिसने भारत समेत पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। बम धमाकों और गोलीबारी के बीच एक तरह से करीब 60 घंटे तक मुंबई बंधक बनी रही। आज भी यह आतंकी हमला भारत के इतिहास का वो काला दिन है जिसे शायद ही कोई भूला सकता है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, हमले में 160 से ज्यादा लोग मारे गए, 300 से ज्यादा घायल हुए थे। और इन आतंकियों का सामना करते हुए मुंबई पुलिस, होमगॉर्ड, ATS, NSG कमांडों सहित कुल 22 सुरक्षाबलों ने अपना बलिदान दिया था।

पाकिस्तानी आतंकी हमले को नाकाम करने में वीरगति को प्राप्त हुए सुरक्षाबलों की बात करें तो मुंबई पुलिस, एटीएस, NSG कमाण्डों में प्रमुख नाम ATS प्रमुख हेमंत करकरे, एसीपी अशोक काम्टे, एसीपी सदानंद दाते, एनएसजी के कमांडो मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, एनकाउंटर स्पेशलिस्ट एसआई विजय सालस्कर, इंस्पेक्टर सुशांत शिंदे, एसआई प्रकाश मोरे, एसआई दुरूगड़े, एएसआई नाना साहब भोंसले, एएसआई तुकाराम ओंबले, कॉन्सटेबल विजय खांडेकर, जयवंत पाटिल, योगेश पाटिल, अंबादास पवार और एम.सी. चौधरी जैसे प्रमुख नाम हैं।

इनके अलावा होमगॉर्ड मुकेश बी जाधव, अरुण चिट्टे, हवलदार गजेंद्र सिंह, नागप्पा आर महाले, किशोर के.शिंदे, संजय गोविलकर, सुनील कुमार यादव ने भी आतंकियों का सामना करते हुए अपना बलिदान दिया था।

साभार-न्यूज़ 18

देश के इन वीर-बलिदानियों पर आगे बात करने से पहले उस दिन क्या हुआ था यदि उस पर संक्षेप में एक नजर डालें तो 26/11 मुंबई हमलों की छानबीन से जो कुछ सामने आया है, वह बताता है कि 10 हमलावर कराची से नाव के रास्ते मुंबई में घुसे थे। इस नाव पर चार भारतीय भी सवार थे, जिन्हें किनारे तक पहुँचते-पहुँचते आतंकियों ने मार डाला था। रात के तकरीबन आठ बजे थे, जब ये हमलावर कोलाबा के पास कफ़ परेड के मछली बाजार पर उतरे। वहाँ से वे चार ग्रुपों में अलग-अलग बँट गए और टैक्सी लेकर आतंकी मंसूबों को अंजाम देने मुंबई में अपने टारगेट की तरफ निकल गए।

कहा तो यह भी जाता है कि इन लोगों की आपाधापी और हड़बड़ाहट देखकर कुछ मछुआरों को शक भी हुआ और उन्होंने पुलिस को जानकारी भी दी। लेकिन शुरू में मुंबई पुलिस ने इसे कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी और न ही आगे बड़े अधिकारियों या खुफिया एजेंसियों को जानकारी दी।

मीडिया रिपोर्टों के हवाले से बात करूँ तो रात करीब साढ़े 9 बजे के आसपास छत्रपति शिवाजी टर्मिनल पर गोलीबारी की पहली खबर मिली। यहाँ दो आतंकियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर 52 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। 100 से ज्यादा लोग हमले में घायल भी हुए। आतंकियों के पास एके-47 राइफलें थीं। यहीं पर हमला करने वालों में एक आतंकी अजमल आमिर कसाब भी था, जिसे बाद में मुंबई पुलिस के एएसआई तुकाराम ओंबले ने जकड़ लिया और 10 में से जीवित पकड़ा जाने वाला यही एकमात्र आतंकी था।

यहीं से थोड़ा देर से ही सही पर आतंकियों के खात्मे का मिशन शुरू हो चुका था। आगे अपने विदेशी ग्राहकों के लिए मशहूर लियोपोल्ड कैफे में दो आतंकियों ने जमकर गोलियाँ चलाईं। इस गोलीबारी में भी 10 लोग मारे गए थे। हालाँकि, जल्द ही यहाँ दोनों आतंकियों को भी सुरक्षाबलों ने ढेर कर दिया। इसके बाद हमला नरीमन हाउस बिजनेस एंड रेसीडेंशियल कॉम्प्लेक्स पर हुआ। हमले से कुछ देर पहले ही पास के गैस स्टेशन में बड़ा धमाका भी हुआ। जिसके बाद नरीमन हाउस में मौजूद लोग बाहर की तरफ आए और इसी दौरान आतंकियों ने उन पर फायरिंग झोंक दी। सबसे बड़ा हमला होटल ताज पर था यदि आतंकी यहाँ अपने मंसूबों में पूरी तरह कामयाब होते तो आतंकी इतिहास में इस दिन की चोट और भी गहरी होती।

कसाब, लियोपोल्ड कैफ़े और होटल ताज महल पैलेस एंड टावर

इन पाकिस्तानी आंतकियों से लड़ते-लड़ते देश के वीर जाँबाजों ने अपनी जान की बाजी लगा दी। मुंबई पुलिस के बहादुर पुलिसकर्मियों, ATS के जवानों और एनएसजी कमांडो सहित तमाम सुरक्षाबलों ने इन आतंकियों का डटकर सामना किया और 10 में से 9 आतंकियों को मारकर अनगिनत लोगों की जान बचाई।

उनमें से आइए जानतें हैं कुछ बहादुर योद्धाओं के बारें में जिन्होंने अपनी जान की परवाह न कर उस दिन लोगों की सुरक्षा करते हुए खुद बलिदान हो गए थे।

मुंबई एटीएस चीफ हेमंत करकरे

मुंबई एटीएस के चीफ हेमंत करकरे जब यह आतंकी हमला हुआ उस समय अपने घर में खाना खा रहे थे, जब उनके पास आतंकी हमले को लेकर क्राइम ब्रांच ऑफिस से फोन आया। करकरे तुरंत घर से निकले और एसीपी अशोक काम्टे, इंस्पेक्टर विजय सालस्कर के साथ मोर्चा सँभाला।

हेमंत करकरे

हालाँकि, कामा हॉस्पिटल के बाहर चली मुठभेड़ में आतंकी अजमल कसाब और इस्माइल खान की अंधाधुंध गोलियाँ लगने से वह बलिदान हो गए। बाद में मरणोपरांत उन्हें अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था। हेमंत करकरे ने मुंबई सीरियल ब्लास्ट और मालेगाँव ब्लास्ट की जाँच में भी अहम भूमिका निभाई थी। हालाँकि इनके ऊपर कई कई दूसरे आरोप भी थे जो बाद में इनके बदनामी का कारण भी बनें।

एसीपी अशोक काम्टे

अशोक काम्टे मुंबई पुलिस में बतौर एसीपी तैनात थे। जिस वक्त मुंबई पर आतंकी हमला हुआ, वह एटीएस चीफ हेमंत करकरे के साथ थे। कामा हॉस्पिटल के बाहर पाकिस्तानी आतंकी इस्माइल खान ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी। तभी एक गोली उनके सिर में जा लगी। घायल होने के बावजूद उन्होंने लश्कर आतंकी इस्माइल खान को मार गिराया।

एसीपी अशोक काम्टे

सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर विजय सालस्कर

कभी मुंबई अंडरवर्ल्ड के लिए खौफ का दूसरा नाम रहे सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर विजय सालस्कर भी कामा हॉस्पिटल के बाहर हुई फायरिंग में हेमंत करकरे और अशोक काम्टे के साथ आतंकियों की गोली लगने से बलिदान हो गए थे। विजय सालस्कर को भी मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था।

सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर विजय सालस्कर

एएसआई तुकाराम ओंबले

मुंबई पुलिस के एएसआई तुकाराम ओंबले का जब गिरगाँव चौपाटी पर अजमल कसाब से सामना हुआ, तब वह पूरी तरह निहत्थे थे। यह जानने के बावजूद कि सामने वाले के हाथों में एके-47 है, वह अपनी जान की परवाह किए बिना आतंकी कसाब पर टूट पड़े। इस दौरान उन्हें कसाब की बंदूक से कई गोलियाँ लगीं और वह बलिदान हो गए लेकिन कसाब से अपनी पकड़ ढीली नहीं की। बलिदानी तुकाराम ओंबले को उनकी इस जाँबाजी के लिए शांतिकाल के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था।

एएसआई तुकाराम ओंबले

मेजर संदीप उन्नीकृष्णन

मेजर संदीप उन्नीकृष्णन नेशनल सिक्यॉरिटी गार्ड्स (एनएसजी) के कमांडो थे। वह 26/11 एनकाउंटर के दौरान मिशन ऑपरेशन ब्लैक टारनेडो का नेतृत्व कर रहे थे और 51 एसएजी के कमांडर थे। जब ताज महल पैलेस और टावर्स होटल पर कब्जा जमाए बैठे आतंकियों से लड़ रहे थे तो एक आतंकी ने पीछे से उन पर हमला किया जिससे घटनास्थल पर ही वह बलिदान हो गए। मरणोपरांत 2009 में उनको अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।

मेजर संदीप उन्नीकृष्णन

एनएसजी कमांडो गजेंद्र सिंह

एनएसजी कमांडो गजेंद्र सिंह, 51 एसएजी (स्पेशल एक्शन ग्रुप) का हिस्सा थे, उन्होंने नरीमन हाउस को खाली कराते समय वीरगति को प्राप्त की, आतंकियों द्वारा फेंका गया एक ग्रेनेड उनके पास ही फट गया, जिससे गंभीर रूप से घायल होने के कारण उन्होंने अपना बलिदान दे दिया।

एनएसजी कमांडो गजेंद्र सिंह

शशांक शिंदे

वह छत्रपति शिवाजी टर्मिनल पुलिस स्टेशन मुंबई का प्रभारी था, जब सीएसटी में आतंकी हमला हुआ तब वह तब तक आतंकवादियों को लड़ाई में उलझाए रखा जब तक कि उस पर पीछे से किसी अन्य आतंकवादी द्वारा हमला नहीं कर दिया गया। देश के लिए उनके बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था।

शशांक शिंदे

प्रकाश पी मोरे

प्रकाश पी मोरे, एल.टी. मार्ग थाने में तैनात पुलिस सब-इंस्पेक्टर थे। जिन्होंने अपनी अंतिम साँस तक बहादुरी से लड़ाई लड़ी और देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

प्रकाश पी मोरे को याद करतीं उनकी माँ (साभार-इंडियन एक्सप्रेस)

बापूसाहेब दुरूगड़े

बापूसाहेब दुरूगड़े, एल.ए.1 थाने के पुलिस सब-इंस्पेक्टर थे जो 26/11 के हमलों के दौरान बलिदान हो गए थे।

विशेष रूप से उल्लेखित इन कुछ नामों के अलावा कुल करीब 22 नाम हैं जिन्होंने मुंबई आतंकी हमले में पाकिस्तानी आतंकियों के मंसूबों को नाकाम करने और उन्हें मौत के घाट उतारने में अपना बलिदान देकर बहादुरी की मिसाल पेश की थी। इसके अलावा भी विभिन्न विभागों से जुड़ें ऐसे हजारों दूसरे सुरक्षा बलों के जवान हैं जिन्होंने अनगिनत लोगों की जान बचाने में बड़ी भूमिका निभाई। बता दें कि आतंकियों के खिलाफ मुंबई में 11 जगहों पर पुलिस और सुरक्षा बलों ने कार्रवाई की थी।

आगे एक ऐसे नाम का जिक्र भी करना जरुरी समझता हूँ जिन्होंने ताज होटल से लोगों को निकालने में बड़ी भूमिका निभाई। जो सुरक्षाबल के रूप में आतंकियों से लड़ने नहीं बल्कि वहीं ताज होटल के रेस्टुरेंट में मौजूद थे और अपनी सूझ-बुझ से 100 से अधिक लोगों को सुरक्षित निकालने में कामयाब रहे। वह नाम है कैप्टन रवि धर्निधिरका का।

कैप्टन रवि धर्निधिरका

ऊपर आए नामों का जिक्र कई बार सुना होगा आपने लेकिन इनके नाम से बहुत कम लोग परिचित हैं। भारतीय मूल के कैप्टन रवि धर्निधिरका की गिनती उन बहादुरों में से हैं, जिन्होंने ताज होटल में 157 लोगों की जान बचाई थी। यूएस मरीन में कैप्टन रहे धर्निधिरका हमले के वक्त ताज के अंदर एक रेस्टोरेंट में थे।

कैप्टन रवि धर्निधिरका (साभार -ज़ी न्यूज़)

पहले कैप्टन खुद हमलावरों से मुकाबला करना चाहते थे लेकिन आतंकियों के हथियारों के खतरे को देखते हूए उन्होंने बंधकों को सुरक्षित बाहर निकालने का फैसला किया। जलते हुए होटल की 20वीं मंजिल से 157 लोगों को सुरक्षित बाहर निकालना अपने आप में एक बड़ा मिशन था जिसे कैप्टन ने बखूबी अंजाम दिया। इस काम में उनकी मदद दक्षिण अफ्रीका के दो पूर्व कमांडो ने भी की।

फिरे चंद नागर

NSG के सूबेदार कमांडो फिरे चंद नागर ने भी इस आतंकी हमले में जान की परवाह न कर ताज होटल में फँसे कई लोगों को मुक्त कराया और आतंकियों को भी मार गिराया। इस साहस के लिए कमांडो नागर को सेना मैडल से भी सम्मानित किया गया था।

बता दें कि आतंकी मिशन सिर्फ ताज तक ही सीमित नहीं था। अगले ही दिन यानि आतंकी हमले की अगली सुबह 27 नवंबर को खबर आई कि ताज से सभी बंधकों को छुड़ा लिया गया है, लेकिन जैसे-जैसे दिन चढ़ा तो पता चला अभी कुछ आतंकी बचे हैं जिन्होंने कुछ और लोगों को अभी बंधक बना रखा है जिनमें कई विदेशी भी शामिल हैं। हमलों के दौरान दोनों ही होटल रैपिड एक्शन फोर्स (आरपीएफ़), मैरीन कमांडो और नेशनल सिक्युरिटी गार्ड (एनएसजी) कमांडो से घिरे रहे।

हालाँकि, उसी दौरान कॉन्ग्रेस शासन में इसे एक नाकामी के तौर पर भी देखा गया जब आतंकियों पर संगठित एक्शन देर से शुरू किया गया। तत्कालीन केंद्र सरकार की तरफ से लापरवाही की बात भी सामने आई। सबसे बड़ी आलोचना एनएसजी कमांडो के देर से पहुँचने को लेकर हुई तो हमलों की लाइव मीडिया कवरेज ने भी आतंकवादियों की ख़ासी मदद की। कहाँ क्या हो रहा है, सब उन्हें अंदर टीवी पर दिख रहा था। कहा जाता है कि बरखा दत्त ने मुंबई हमले के दौरान फँसे एक व्यक्ति के किसी रिश्तेदार को फोन किया और उसकी लोकेशन उजागर कर दी। सब कुछ टीवी पर लाइव चल रहे होने के कारण आतंकियों को उस व्यक्ति के छिपे होने का स्थान मालूम पड़ गया था।

इस प्रकार तमाम मुश्किलों के बीच लगातार 3 दिन तक सुरक्षा बल आतंकवादियों से जूझते रहे। इस दौरान, धमाके हुए, आग लगी, गोलियाँ चली और बंधकों को लेकर उम्मीद टूटती-जुड़ती रही और ना सिर्फ भारत से सवा अरब लोगों की बल्कि दुनिया भर की नज़रें ताज, ओबेरॉय और नरीमन हाउस पर टिकी रहीं। सबकी नजरें मुंबई पर थीं। तीन दिनों के भयानक संघर्ष के बाद 29 नवंबर तक 9 हमलावरों का सफाया कर दिया गया।

स्थिति पूरी तरह से नियंत्रण में आ गई थी लेकिन तब तक 160 से ज्यादा लोग मारे जा चुके थे। करीब 22 से अधिक सुरक्षाकर्मी भी बलिदान हो गए थे। एक आतंकवादी अजमल आमिर कसाब जिंदा पकड़ा गया था। उसे बाद में 21 नवंबर 2012 को लंबी कानूनी प्रक्रियाओं के बाद फाँसी पर लटका दिया गया। पाकिस्तानी लश्कर आतंकियों के ढेर होने पर देश ने राहत की साँस ली थी।

सभी बलिदानी जवानों के साथ ही सुरक्षाबलों के उन तमाम जवानों का लोग आज भी ऋणी है जिनकी बदौलत न जाने कितने लोगों की जान बची। आज 13 साल बाद भी और आगे भी जब-जब भविष्य में यह 26/11 को याद किया जाएगा लोग उन बलिदानियों को नमन करेंगे जिन्होंने दूसरों को सुरक्षित रखने के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।

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रवि अग्रहरि
रवि अग्रहरि
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