संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियॉं गुडविल एंबेसडर यानी सद्भावना दूत नियुक्त करती रहती हैं। जाने-पहचाने चेहरों को यह जिम्मेदारी दी जाती है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक सकारात्मक संदेश पहुॅंचाने में मदद मिले। लेकिन, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी की नई गुडविल एंबेसडर के बॉयो पर जरा गौर फरमाइए।
पुलवामा के आतंकी हमले पर उनके होंठ सिल जाते हैं, लेकिन बालाकोट में आतंकी कैंपों पर एयरस्ट्राइक को वह बेहूदा बताती हैं। वह बॉलीवुड से ‘रईस’ बनती हैं। हिंदी फिल्म के अभिनेता के साथ विदेश में मस्ती कर सुर्खियॉं बटोरती हैं। पाबंदी लगने पर कहती हैं- मैं तो खुद ही छोड़ आई वो गलियॉं। कश्मीर में आतंकवाद से निपटने और आम लोगों की सुरक्षा के लिए मोदी सरकार की ओर से एहतियातन उठाए कदमों पर वह कहती हैं ‘
जन्नत जल रही है…’।
यूएनएचसीआर की नई सद्भावना दूत से अब आप शायद परिचित हो गए होंगे। ये हैं पाकिस्तानी अभिनेत्री माहिरा खान। खुद को गुडविल एंबेसडर चुने जाने की जानकारी देते हुए उन्होंने सोशल मीडिया में यूएन का आभार भी जताया। उनके जिम्मे वही काम होगा जिसके लिए यूएन ने कुछ साल पहले इस्लामिक स्टेट के आतंकियों की सेक्स स्लेव रही 23 साल की नादिया मुराद बासी ताहा को चुना था। मानव तस्करी की शिकार लोगों और खास तौर पर महिलाओं और लड़कियों की पीड़ा के बारे में जागरूकता फैलाना।
माहिरा ने ट्विटर पर लिखा है कि यूएन का एंबेसडर बनना उनके लिए सम्मान की बात है। वे इस बात पर गर्व करती हैं कि उनकी मातृभूमि पाकिस्तान ने पिछले 40 साल से रिफ्यूजियों के लिए अपनी बाहें खोली हुई हैं।
Grateful and honoured to be a @Refugees goodwill ambassador for Pakistan??Proud to be born to a motherland that has opened its arms to refugees for over 40 years ???? @UNHCRPakistan https://t.co/kGagHGJLlv
— Mahira Khan (@TheMahiraKhan) November 6, 2019
गुडविल एंबेसडर चुनने के लिए यूएन ने बकायदा गाइडलाइन तय कर रखी है। अमूमन ऐसे लोगों का चुनाव किया जाता है जिन्होंने अपने काम से मुकाम हासिल किया हो। जिनकी शख्सियत ही संदेश देने का काम करती हो। कला, साहित्य, विज्ञान, मनोरंजन, खेल आदि क्षेत्रों से चुने जाने वाले ऐसे लोगों का काम दूसरे समुदाय, समाज के बीच सद्भावना बढ़ाना होता है। चुनौतियों से निपटने के लिए जागरूकता पैदा करना इनकी जिम्मेदारी होती है।
इस कसौटी पर माहिरा का अब तक का सफर देखते हुए सवाल उठना लाजिमी है कि उनका चुनाव कर यूएन क्या संदेश देना चाहता है? माहिरा की खासियत है कि वो पाकिस्तान और अपने मजहब से जुड़े मुद्दों पर लगातार बोलती हैं। लेकिन आतंकवाद पर चुप्पी साध लेती हैं। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार उन्हें नहीं दिखाई पड़ता। अहमदिया समुदाय के अधिकार की उन्हें फिक्र नहीं है। एक काम जो वे बखूबी करती हैं वह है मौका मिलते ही भारत के खिलाफ जहर उगलना।
न्यूजीलैंड में मस्जिद पर हुए हमले पर गहरा दुख व्यक्त करने वाली माहिरा पुलवामा के समय ट्विटर पर लाइव होने की सूचना दे रही थी, उनकी पूरी टाइमलाइन पर इस हमले को लेकर कोई जिक्र नहीं था। लेकिन जब आईएएफ ने बालाकोट स्थित आतंकी कैंपों पर अपनी कार्रवाई की, तो उन्होंने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ लिखा और कहा कि इससे बेहूदा कुछ नहीं है।
Nothing uglier. Nothing more ignorant than cheering for war. May sense prevail.. Pakistan zindabad. https://t.co/sH0VGGAERC
— Mahira Khan (@TheMahiraKhan) February 26, 2019
इसके बाद जब पाकिस्तान के न सुधरने वाले रवैये पर भारत ने वहाँ के कलाकारों को अपने देश में बैन किया था, तब भी माहिरा ने अपने प्रतिक्रिया देते हुए साफ किया था कि उन्हें इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता। क्योंकि उनका ध्यान पहले से ही अपने मुल्क पर था। कश्मीर से आर्टिकल 370 के निष्प्रभावी पर भी उन्होंने जहर उगलने में कंजूसी नहीं की थी। उन्होंने कहा था कि भारत का यह फैसला निर्दोषों के लिए जान गँवाने जैसा है। ट्वीट किया, “जन्नत जल रही है और हम आँसू बहा रहे हैं।”
Have we conveniently blocked what we don’t want to address? This is beyond lines drawn on sand, it’s about innocent lives being lost! Heaven is burning and we silently weep. #Istandwithkashmir #kashmirbleeds
— Mahira Khan (@TheMahiraKhan) August 5, 2019
माहिरा खान UNHRC द्वारा शेयर की गई एक वीडियो में कहती नजर आ रही हैं कि पाकिस्तान ने पिछले 40 सालों में शरणार्थियों की मेजबानी करके पूरे विश्व में एक उदाहरण कायम किया है। लेकिन, गौर करने वाली बात है कि माहिरा हमेशा अपने देश में अल्पसंख्यकों के साथ होते अत्याचार पर चुप रही हैं। उन्होंने कभी प्रशासन से सवाल पूछने की हिम्मत नहीं जुटाई कि आखिर उनके देश में हिंदुओं, सिखों की हालत इतनी दयनीय क्यों है? आखिर क्यों उनके देश में अहमदियों से मुस्लिम बनने का तमगा छीन लिया गया? आखिर क्यों बलूचिस्तान जैसे प्रांतों में लोग उनकी सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाकर आंदोलन कर रहे हैं और क्यों आवाज उठाने वाले लोगों से लेकर एक दिमागी रूप से कमजोर चोर तक को उनके प्रशासन द्वारा मार दिया जा रहा है?
माहिरा ऐसी गुडविल एंबेसडर हैं जिन्हें अपने मुल्क में पनप रहा आतंक नहीं दिखता। वे कश्मीर में सुरक्षा बढ़ाए जाने को जेल बनाना समझती हैं और लिखती हैं, “जो लोग कश्मीर को जेल बनाने पर आमदा हैं और खुशी मना रहे हैं, उन्हें अपने दिल में झांक कर देखना चाहिए। आपको ऐसा करने पर कश्मीर में परेशान हो रहे लोगों के लिए सहानभूति महसूस होगीl कश्मीर एक बार फिर खुले जेल की तरह हो गया है।”
माहिरा जैसों से तो दिल की सुनने और दिल में झॉंक कर देखने की उम्मीद नहीं की जा सकती। उम्मीद यूएन से है कि वह अपने गुडविल का ध्यान रखे। ऐसा न हो कि शरणार्थियों का दर्द भी कम न हो और उसकी साख को भी बट्टा लग जाए।