भारत की आजादी को 75 साल होने के बाद ऐसी तमाम कहानियाँ एक बार फिर सामने आनी लगी हैं जिन्हें 1947 के दौर में लोगों ने जिया। ऐसे तमाम लोग अब भी जीवित हैं जो उस समय पाकिस्तान को छोड़-छोड़ भारत दौड़े आए थे। उन्हें न तो अपने मकान की चिंता थी और न ही जमीन, जायदाद की। उनके मन में बस एक भाव था कि वो यदि रहना चाहते हैं तो सिर्फ उस भारत में, जहाँ उनके धर्म की, उनके देवी-देवताओं की इज्जत हो।
यकीन करना शायद मुश्किल होगा लेकिन उस समय जब पाकिस्तान में हिंदुओं को नाम पूछ-पूछकर उन्हें काटा जा रहा था, उस दौरान लोग अपनी पेटियों में छिपाकर अपने भगवान की मूर्ति भारत ला रहे थे और कुछ लोग तो अखंड लौ ही ट्रेन में लेकर घुस गए थे। उनकी श्रद्धा और हिम्मत ही कहिए कि आज श्रीजी भगवान का मंदिर भारत में है और दुर्गापुरा के श्री झूलेलाल महाराज मंदिर में आज भी पाकिस्तान के गिदुबंदर से लाई गई अखंड लौ जलती है।
पेटियों में सुरक्षित भारत लाए गए श्रीजी
दैनिक भास्कर में प्रकाशित समीर शर्मा के लेख में हाल में ऐसे ही लोगों के बारे में बताया गया है। इनमें एक मनोहर लाल सिंघवी भी हैं। उन्होंने बताया कि जब पाकिस्तान में हालात बिगड़े उस समय वो 11 साल के थे और दंगे-फसाद देख पाकिस्तान छोड़ने की तैयारी बना रहे थे। उन्हें और उनके समाज के लोगों को पता चल चुका था कि वहाँ श्रीजी भगवान का मान बरकरार नहीं रह पाएग, इसलिए उन लोगों ने श्रीजी भगवान को अपने साथ लिया। इसके अलावा संगमरमर से बनी अन्य प्रतिमाओं को भी लकड़ी की पेटियों में भरा और मुंबई के लिए प्लेन बुक किया।
आज 86 साल के हो चुके मनोहरलाल सिंघवी बताते हैं कि 1947 में भारत लौटते समय वह छिपते-छिपाते मुल्तान के एरोड्रम तक आए थे। वहाँ पेड़ों पर लोगों को मारकर लटकाया गया था। उनमें कुछ दम तोड़ चुके थे और कुछ तड़प रहे थे। ये सारे भयावह दृश्य देखते-देखते सब लोग एरोड्रम पहुँचे थे। वहाँ प्लेन पहले से बुक था। लेकिन वो छोटा था।
यात्रियों की संख्या और सामान देख पायलट ने कहा कि इतने सामान के साथ प्लेन नहीं उड़ पाएगा। पहले लोगों ने समझाने की कोशिश की, लेकिन जब पायलट ने नहीं सुनी तो कई हिंदू प्लेन से उतर गए और बोले- “हमारी चिंता मत करो, पेटियों को भारत पहुँचा दो, हम यही रह जाएँगे।” यात्रियों की बात सुन पायलट भी हैरान था। उसे हालात मालूम थे। उसने लोगों की बात सुन कहा कि सब लोग बैठ जाएँ, वो प्लेन उड़ाने की कोशिश करेगा।
सब लोग जहाज में चढ़े और एक सफल उड़ान भरी गई। अंत में प्लेन जोधपुर उतरा। पायलट ने तब जाकर सवाल किया कि आखिर इन पेटियों में ऐसा भी क्या था। उसने इतना हल्का जहाज कभी नहीं उड़ाया। हिंदुओं ने जवाब दिया- “इसमें तो बस हमारे भगवान हैं।” पायलट हक्का-बक्का रह गया। उसने पेटियों के हाथ जोड़े और वहाँ से चला गया।
आज श्रीजी की पूजा अर्चना करने वाले लोग उन हिंदुओं का धन्यवाद करते नहीं थकते जिनकी वजह से भारत में श्रीजी आ पाए। श्रीजी के मंदिर के लिए समाज के लोगों ने घर-घर गुल्लक रखवाए और जैसे ही पैसा इकट्ठा हुआ, वैसे ही उनका मंदिर बनवाया गया। श्रीजी के मंदिर के लिए अन्य कोई सहायता बाहर से नहीं ली गई।
जब ‘अखंड लौ’ पाकिस्तान से भारत ट्रेन में आई
इसी तरह दुर्गापुरा के मंदिर में जलने वाली अखंड लौ की भी कहानी है। रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के हैदराबाद में रहने वाले बाबा जेठगिल और उनकी पत्नी पपूर बाई को जब भारत आना हुआ तो उनको डर था कि उनके भारत जाते ही झूलेलाल मंदिर की अखंड लौ बुझ जाएगी।
उनकी इसी चिंता ने उन्हें हिम्मत दी और वह जलती लौ को रेलवे स्टेशन लेकर पहुँच गए। पूरी गाड़ी पर दंगाइयों का खतरा था। चलती ट्रेन से हिंदू फेंके जा रहे थे। फिर भी उस लौ को बचाने हिंदू एकजुट हुए दंगाइयों को ढकेल ट्रेन का दरवाजा बंद कर लिया गया।
इसके बाद लाहौर से ट्रेन निकली और भारत तक आई। यहाँ लंबे समय बाबा जेठगिल और उनकी पत्नी दिल्ली-जयपुर कैंपों में रहे। वहाँ भी उन्होंने सुनिश्चित किया कि वो खुद सही रहें या न रहें लेकिन लौ जलती रहे। जब हालात सुधरे तो उन्होंने दुर्गापुर मंदिर बनवाया और वो लौ वहाँ प्रतिष्ठित हुई। आज भी यहाँ रोज धूप आरती होती है। मंदिर में आने वाले लोग बाबा जेठगिल के साहस को सुन उन्हें प्रणाम करना नहीं भूलता।