दुष्ट गौभक्त-ब्राह्मणवादी-पितृसत्तावादी ‘चाउविनिस्ट’ मंगल पांडे को आज भारत को क्रिकेट और अंग्रेजी की नियामतें देने वाले महान अंग्रेजों ने मौत के घाट उतार दिया था। और बिलकुल सही किया- क्योंकि अंग्रेज पहले से इस बात की आकाशवाणी सुन चुके थे कि 150 साल बाद मंगल पांडे के नाम का इस्तेमाल 2-4 हिंसक गौरक्षकों के कर लेने से भारत का लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा। इसलिए उन्होंने भारत को लोकतंत्र बाद में दिया, पर उसके लिए खतरा बन सकने वाले गौ-रक्षक को 90 साल पहले ही दण्डित कर दिया।
पर इस दुष्ट गौरक्षक को रोकने के पीछे एक नाम उस शांतिदूत का भी था, जिस बेचारे को अंग्रेजों ने इतिहास में दबा के गुमनाम कर दिया, और गौरक्षकों की आफत रोकने में उसका सब योगदान बिसर गया। पर इतिहास के पन्नों से उखाड़ कर हम इस वीर की वीरगाथा लाए हैं, जिसे पूरा पढ़ने के लिए आपको चाचा नेहरू, जिल्लेलाही अकबरे आजम और सम्राट अशोक के सेक्युलरिज्म की कसम!
न जाने कितने मार लेता मंगल पांडे, अगर शांतिदूत पल्टू न होता
जैसा कि शांतिदूत शेख पल्टू के नाम से जाहिर है, वो ‘यूनेस्को-सर्टिफाइड सबसे शांतिप्रिय मज़हब’ का शांतिप्रिय बाशिंदा था।
29 मार्च, 1857 के दिन बैरकपुर में तैनात अंग्रेज साहब लेफ्टिनेंट बॉघ को पता चला कि मंगल पांडे नाम का कोई सैनिक कारतूसों में गाय की चर्बी होने के कारण हिन्दुओं और सूअर की चर्बी के कारण समुदाय विशेष को, उनके इस्तेमाल से इंकार करने के लिए उकसा रहा है। उनके कोमल-वीर कानों में यह बात भी पड़ी कि परेड ग्राउंड में खड़े मंगल पांडे ने यह कदम यही कह कर उठाया है कि इससे आने वाले समय में मोदी नामक प्रधानमंत्री के शासन में गौरक्षकों को उसके कारनामे से बल मिलेगा, और इसलिए वह उनके लिए उदाहरण पेश कर रहा है। मंगल पांडे ने पहले गोरे (हाउ रेसिस्ट??) को देखते ही गोली मार देने की धमकी दी है, ऐसा भी उन्होंने सुना।
परेड ग्राउंड में पहुँचे सार्जेंट-मेजर ह्यूसन ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को आगे ठेला कि वो मंगल पांडे को काबू में करे और गिरफ्तार करे। ईश्वरी प्रसाद ने हाथ खड़े कर दिए कि उसके सारे सिपाही मदद माँगने गए हैं और वह अकेले मंगल पांडे को नहीं गिरफ्तार कर सकता।
तभी लेफ्टिनेंट बॉघ हथियारों से लैस हो वहाँ घोड़ा टपाते पहुँच गया। उन्हें देखते ही दुष्ट मंगल पांडे ने उनके घोड़े पर निशाना लगाकर गोली चला दी, और लेफ्टिनेंट जी धराशायी हो गए। बॉघ जी ने मंगल पांडे पर निशाना लगाया पर चूक गए और निर्दयी मंगल पांडे ने अपनी तलवार निकाल ली। और उसने तो बेचारे लेफ्टिनेंट जी को चलता ही कर दिया होता अगर हमारे वीर सिपाही शेख पल्टू ने हस्तक्षेप न किया होता।
शेख पल्टू ने मंगल पांडे को धर लिया, और तब तक धरे रहा जब तक लेफ्टिनेंट बॉघ जी और सार्जेंट-मेजर ह्यूसन जी अंगड़ाईयाँ ले उठ खड़े नहीं हुए।
अपने ही लोगों ने साथ नहीं दिया बेचारे शेख पल्टू का
शेख पल्टू जब दुष्ट काफ़िर गौभक्त मंगल पांडे के साथ दंगल-दंगल कर रहे थे, तभी उनके साथ के सिपाही चुपचाप टीएनए मैच की तरह देख रहे थे। शेख पल्टू चिल्लाते रहे मदद के लिए, मगर किसी भी बेदर्द के दिल में उनकी ‘स्वामीभक्ति’ के लिए सम्मान नहीं जगा।
जब एक-दो बड़े साहबों के धमकियाने पर वह आगे बढ़े भी तो भी उन्होंने दुष्ट मंगल पांडे की बजाय शेख पल्टू जी पर हमला बोल दिया, उन पर जूते और पत्थर फेंके (जिसके लिए मोदी को त्यागपत्र दे सरदार पटेल की मूर्ति के ऊपर से छलांग लगा देनी चाहिए), और उन्हें गोली मार देने की धमकी दी। पर वे संत आदमी काफ़िर पांडे को धरे रहे।
Mob-lynching से हुआ शेख पल्टू जैसे जांबाज वीर का अंत: दुखद!
शेख पल्टू जी की स्वामिभक्ति जताने की निन्जा टेक्नीक से प्रभावित हो 9 अप्रैल को उन्हें हवलदार बना दिया गया, और काफ़िर मंगल पांडे को 18 अप्रैल बोल कर 8 को ही फांसी दे कर ‘एप्रिल फूल’!!
पर इस देश के लिए यह बहुत ज्यादा शर्म की बात है कि शेख पालतू पल्टू जी अपना हवलदारत्व ज्यादा दिन तक ‘एन्जॉय’ नहीं कर पाए। 34 बंगाल नेटिव इन्फैंट्री, जिसके मंगल पांडे सैनिक थे और लेफ्टिनेंट बॉघ जी अफसर – इस पूरी इन्फैंट्री को बर्खास्त कर दिया गया था। क्यों? क्योंकि वो चुपचाप इस हृदय-विदारक गौभक्त-हिंसा को देखते रहे थे, अफसरों का कहना नहीं माना था। उसी 34 बंगाल नेटिव इन्फैंट्री के कुछ दुष्ट पूर्व-सैनिकों ने (गुप्त सूत्र बताते हैं कि वे सभी सवर्ण, मनुवादी, गौभक्त हिन्दू थे) धोखे से शेख पल्टू जैसे निश्छल वीर को ‘खोपचे’ में बुलाया और इनकी mob-lynching कर दी… और इस तरह शेख पल्टू गौभक्तों के आतंक को रोकने वाले पहले वीर भी थे, और mob lynching के पहले शहीद भी!
(जिन्हें इस कहानी पर शक है, उन्हें पूरा निमंत्रण है कि निम्नलिखित किताबों को खंगालें…)
- The Indian Mutiny of 1857: Colonel George Bruce Malleson
- Eighteen Fifty-Seven: Surendra Nath Sen