गणित में एक सवाल होता है। घोंघे वाला। वो एक पोल पर चढ़ रहा होता है। कुछ दूर चढ़ता है, फिर फिसलता है। फिर मेहनत करके चढ़ता है, फिर फिसल जाता है। गणित के कारण इसमें दूरी, मिनट जैसे मानकों को डाला जाता है ताकि विद्यार्थी उत्तर निकाल सके। जो मानक ऐसे सवालों में लिखित नहीं होते हैं, वो जीवन जीने के काम आते हैं। लक्ष्य तक पहुँचना और कभी हार न मानना – ऐसे सवालों के अलिखित मानक होते हैं।
OpIndia हिंदी के लिए साल 2021 की शुरुआत फिसलते घोंघे जैसी ही हुई थी। ट्रैफिक (मतलब हमारी जितनी खबरें लोग पढ़ते हैं) अच्छी नहीं थी। टीम का उत्साह भी इसके कारण प्रभावित था। फरवरी के महीने में हम अपने सबसे नाजुक दौर से गुजर रहे थे। जो मुख्य स्तंभ थे, वो टीम का साथ छोड़ने का मन बना चुके थे। साथ में कुछ लोगों को टीम से बाहर भी कर दिया गया था।
किसी संस्थान की छवि उसके कर्मचारियों से ही बनती है। OpIndia हिंदी भी अपवाद नहीं। हालाँकि सत्य यह भी है कि कोई संस्थान किसी अकेले के भरोसे न चला है, न चलेगा। OpIndia हिंदी के लिए यहाँ भी अपवाद नहीं है। मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, लेकिन इसी मीडिया को यह नहीं भूलना चाहिए कि लिखने वाले, पढ़ने वाले, प्रभावित होने वाले, साथ चलने वाले, हौसला बढ़ाने वाले, सहायता करने वाले… कंटेंट की दुनिया के लिए ये सभी खंभों की तरह हैं। विपरीत धार में बहते हुए हमने इस मूल मंत्र को और कस कर पकड़ लिया।
OpIndia हिंदी के खंभे
टीम छोटी, खबरें कम, ट्रैफिक नीचे… सब कुछ विपरीत धार में बहने जैसा था। ऐसे में कोई साथ था, तो वो आप थे… OpIndia हिंदी के पाठक थे। वैसे पाठक जिन्होंने कभी साथ नहीं छोड़ा। आपके भरोसे पर हमने फिर से टीम बनाई। टीम को बताया कि चाहे जो भी हो परिस्थिति, पाठकों के मानक पर हमेशा खरा उतरना है।
फरवरी से लेकर अप्रैल तक टीम के नए सदस्यों को चुनने, उन्हें ढालने, पाठकों के मानकों पर कसने में खर्च किया गया। यह पूरी प्रक्रिया आसान नहीं रही। समय-घंटे (ऑफिस के तो 8-9 घंटे हो गए, काम खत्म) देखे बिना काम करना पड़ा। और यह अकेले की बात नहीं थी। टीम के हर एक साथी ने हर बाधा को पार किया। किसी ने श्रम से, तो किसी ने दिमाग से, किसी ने समय लगाया तो किसी ने पैसा।
अजीत झा, रवि अग्रहरी, जयन्ती मिश्रा, अनुपम कुमार सिंह, रचना कुमारी – OpIndia हिंदी के ये वो खंभे हैं, जिन्होंने संघर्ष के दिनों में साथ बनाए रखा। इन लोगों ने ही खाद-पानी-पसीना देकर तो कभी गुस्सा-पुचकार से नई पौध भी तैयार की। हमारे जागरूक पाठकों के मानकों पर आज शिव मिश्र, सुधीर गहलोत, सुनिता मिश्रा, कुलदीप सिंह, राहुल पांडेय खरे उतरे हैं, तो उसका श्रेय OpIndia के इन्हीं कंधों पर जाता है।
वामपंथी इकोसिस्टम से लड़ाई
मई आते-आते हमारी टीम बन गई थी। ऐसा लग रहा था कि पटरी पर बस लौटने ही वाले हैं। खबरें भी फास्ट पब्लिश होने लगी थीं, ट्रैफिक भी जोर पर था। हमारे पाठक भी जिन खबरों को मिस कर रहे थे, जिस फ्लेवर-कलेवर में खबरों को चाहते थे, वो OpIndia हिंदी के प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध होने लगे थे। वामपंथी नैरेटिव को लेकिन यह रास नहीं आया।
5 मई से 2 जुलाई तक फेसबुक ने हमारे पेज की पहुँच को बाधित किया। औसतन एक चौथाई ट्रैफिक रह गया था OpIndia हिंदी का। जिस वजह से फेसबुक ने यह रिस्ट्रिक्शन (फेसबुक पर शेयर किए गए आर्टिकल पाठक को दिखेगा ही नहीं, नोटिफिकेशन भी नहीं जाएगा) लगाया था, वो ज्यादा हास्यास्पद था। हास्यास्पद क्योंकि जिस फोटो के लिए फेसबुक ने आपत्ति जताई थी, वो अन्य वेबसाइटों पर लगी भी थी, फेसबुक पर शेयर भी की गई थी। खैर हमने लड़ाई जारी रखी। तर्क पर तर्क देते गए, मेल का खेल खेला गया… और जीत हमारी हुई।
जीत हालाँकि क्षणिक (साल भर के 365 दिनों की तुलना में चंद दिन) ही थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाने की घोषणा की, तो OpIndia हिंदी ने इस पर रिपोर्ट बनाई। दो दिनों के बाद डायरेक्ट एक्शन डे को लेकर एक स्पेशल रिपोर्ट भी बनवाई गई। फेसबुक को इससे भी दिक्कत हुई। पेज को फिर से रिस्ट्रिक्ट किया गया। मतलब दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक नेता की बात को काट कर उसी लोकतंत्र में बिजनेस करने की हनक फेसबुक जैसी कंपनियों ने खुलेआम दिखाई। हमने हार नहीं मानी… न ही कभी रार ठानी।
कॉर्पोरेट के बने-बनाए ढर्रे पर मेल/मैसेज करते गए, बात रखते गए। इसके बाद भी दो मौकों पर फेसबुक ने अपना यही रवैया रखा। लड़ाई आज भी चल रही है। संघर्ष खुशियाँ भी देती हैं, इस बात को भी हमारी टीम ने साबित कर दिखाया। दिसंबर 2021 के चौथे सप्ताह में OpIndia हिंदी ने ट्रैफिक की ऐतिहासिक ऊँचाई को छुआ है। हम एक दिन में उस पायदान तक पहुँचे हैं, जहाँ तक पहले हम हफ्ते-दस दिन में पहुँचते थे। यह दिखाता है कि बाधाएँ आती-जाती रहती हैं, शायद आगे रहेंगी भी… लेकिन न तो हम झुकेंगे, न ही टूटेंगे। हम लड़ेंगे, हम जीतेंगे!
हिंदू-हित व राष्ट्र हमारे साध्य, साधन हैं पाठक
टीम छोटी हो या बड़ी, विरोधी एक हो या अनेक, जीत मिले या लड़ते रहें… यह सब हमारे संघर्ष के साथी हैं। विरोधी को भी संघर्ष का साथी बोलने पर चौंकिए मत। वो इसलिए क्योंकि विरोधियों ने ही इतने काँटे बोए हैं, तभी तो OpIndia हिंदी जैसे प्लेटफॉर्म हैं। वो जब तक हिंदू घृणा की राजनीति और उससे होने वाले फायदे की बात करते रहेंगे, हम आवाज उठाते रहेंगे। वो जब-जब हमारे राष्ट्र को खोखला करने की बात करेंगे, हम उनके खिलाफ लिखते रहेंगे, उनकी पोल-पट्टी खोलते रहेंगे।
कैसे? आपके भरोसे। OpIndia हिंदी के जागरूक पाठकों के भरोसे। आप जब तक हमारे साथ हैं, हमारी लड़ाई चलती रहेगी। मीडिया मठाधीशों का पर्दाफाश होता रहेगा। हर उस राजनीतिक दल, राजनेता और उनकी राजनीति को हम बेनकाब करते रहेंगे, जो भारत को खोखला करने का सपना देखते हैं। हर उस प्रोपेगेंडा पर प्रहार जारी रहेगा, जो देश को तोड़ने के मकसद से रचा जाता है… लेकिन आपके बिना यह संभव नहीं। आप हमारे वो स्तंभ हैं, जिसके सहारे हमें लक्ष्य तक पहुँचना है।
साधन और साध्य दोनों की शुचिता का संबल है OpIndia हिंदी के पास। इसी दम पर हम आगे बढ़ते रहे हैं, आगे बढ़ते रहेंगे। हिंदू-हित और राष्ट्रहित ही हमारे लिए सर्वोपरि है, इससे न कभी विचलित हुए हैं, न कभी होंगे। अपने हितों के लिए हम समाज का निर्माण भी करेंगे, सरकार भी बनाएँगे। सरकारें डगमगाएँगी तो उसी समाज से सरकारों को दिशा-निर्देश देने से लेकर उसे बदल डालने तक की क्षमता भी पैदा करेंगे।
“मैं बंदूकें बो रहा हूँ”
भगत सिंह ने ये कहा था। उम्र तब कम थी। शायद ही पता रहा होगा इसका मतलब भी! दरअसल बो तो वो आजादी रहे थे। वो भी दूसरों के लिए। आजादी ऐसी, जो खुद वो आँखों से देख नहीं पाए। मानसिक आजादी वो प्राप्त कर चुके थे, इसमें कोई शक नहीं। समाज में इसी मानसिक आजादी के बीज बोने का काम करना है – हमें भी, आपको भी।
साल 2021 में जिस चट्टान की तरह आपने हमारा साथ दिया, उसके लिए दिल की गहराइयों से धन्यवाद। आपका प्यार, आपका सहयोग OpIndia हिंदी की टीम के लिए संजीवनी है। 2022 में हम और भी बेहतर करेंगे, कुछ नई चीजें भी आपके लिए लाएँगे… और उम्मीद है कि आपका न सिर्फ साथ होगा बल्कि लक्ष्य तक पहुँचने के लिए सार्थक सहयोग भी होगा। भरसक कोशिश होगी कि हम गलतियाँ न करें लेकिन मानवीय गलतियों पर रोकने-टोकने-सुधारने के लिए आप स्वतंत्र हैं। पूरी टीम की ओर से एक बार फिर आप सभी पाठकों का धन्यवाद, शुक्रिया, आभार!