Monday, November 18, 2024
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ऑपइंडिया टॉप 12: साल की वो खबरें जो वामपंथी मीडिया के नैरेटिव में नहीं आई फिट, हमने देश को पढ़ाया

जब हम नए साल में प्रवेश करने को हैं पाठकों को फिर से उन खबरों की याद दिला रहे हैं जिनकी आवाज हम बने ताकि सनद रहे 'खबरों का राइट एंगल' इधर ही है।

अपने बच्चे को वापस लाने की गुहार लगाता पिता हो या फिर ईसाई मिशनरियों द्वारा गुमराह किए आदिवासियों को पैर पखारकर घर लौटाने वाला युवा नेता, 2021 में भी ऐसे तमाम मौके आए जब वामपंथी मीडिया ने या तो पाठकों से खबर छिपाने की कोशिश की या फिर उन्हें तोड़-मरोड़कर अपने नैरेटिव के हिसाब से पेश किया। जिस लखीमपुर खीरी पर इतना शोर मचा, वहीं मार डाले गए श्याम सुंदर निषाद और रमन कश्यप के परिवार की सुध लेने तक की जहमत नहीं उठाई गई। लेकिन हमने हर वह दरवाजा खटखटाया जिनकी आवाज मेनस्ट्रीम मीडिया ने दबाई। आपके सामने खबर का हर वह कोण रखा जो लिबरल मीडिया की लिस्ट में दूर-दूर तक नहीं था।

जब हम नए साल में प्रवेश करने को हैं पाठकों को फिर से उन खबरों की याद दिला रहे हैं जिनकी आवाज हम बने ताकि सनद रहे ‘खबरों का राइट एंगल’ इधर ही है।

मुस्लिम बीवी से बेटे को वापस पाने के लिए सिख युवक की गुहार

इस वर्ष के बीच में जिस समय जम्मू-कश्मीर में सिख लड़कियों के धर्मांतरण का मामला गरमाया हुआ था, उसी बीच ऑपइंडिया से बात करते हुए एक सिख युवक ने आपबीती सुनाई थी। व्यक्ति का नाम तरलोचन सिंह संधू था, जिन्होंने ऑपइंडिया से बात करते हुए बताया था कि 2008 में मुस्लिम युवती नगीना से शादी करने के बाद उनके जीवन में समस्याओं का पहाड़ टूट गया। धीरे-धीरे हाल (खबर के समय) ऐसे हुआ कि नगीना के परिजन उनपर धर्म बदलने का दबाव बनाने लगे, उनके सिख होने पर आपत्ति जताई और उन्हें ताहिर खान बनाकर कलमा पढ़ाना चाहा। तरलोचन का आरोप था कि उनके ससुरालवाले बेटे का भी खतना कराना चाहते हैं। इसलिए वो चाहते हैं कि बस उनका बेटा किसी तरह उन्हें वापस मिल जाए।

मुस्लिम पत्नी सिख पति
पीड़ित सिख युवक तरलोचन सिंह अपने बेटे के साथ (पहले की फोटो)

जब मुस्लिम भीड़ के शिकार बने दुबे भाई

किसी आपराधिक घटना में यदि मुस्लिम भीड़ आरोपित हो तो वामपंथी इसे अक्सर अपनी रिपोर्ट्स में बड़ी चालाकी से छिपा ले जाते हैं। कुछ ऐसा ही सितंबर माह में मध्य प्रदेश में घटित एक घटना के समय भी हुआ जब रीवा जिले की जवा तहसील में एक मामूली विवाद के बाद आधा दर्जन से ज्यादा मुस्लिम समुदाय के लोगों ने दो भाइयों को घेर कर बुरी तरह मारा। ब्रजेंद्र दुबे और विवेक दुबे पर हुए इस हमले में दोनों को गहरी चोट आई थी। ऐसे में ऑपइंडिया ने उनसे बात की और घटना के विषय में विस्तार से जाना। इसके बाद अपने पाठकों को घटना की विस्त़ृत रिपोर्ट दी जिसमें बताया गया था कि कैसे इस हमले में एक भाई का दिमागी संतुलन बिगड़ गया है। वहीं दूसरा भाई भी बुरी तरह तरह घायल हो गया था।

रीवा ब्रजेंद्र विवेक मार
हमले में घायल ब्रजेंद्र दुबे और विवेक दुबे (बाएँ से)

लखीमपुर में मार डाले गए श्याम सुंदर निषाद

लखीमपुर खीरी हिंसा में किसानों पर हुई बर्बरता की आज जगह-जगह चर्चा है, पर हिंसा में मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं पर कोई कुछ नहीं कहता। घटना के वक्त भी यही हाल था। तब ऑपइंडिया ने हिंसा में मारे गए बीजेपी सदस्य श्याम सुंदर निषाद के भाई से बात की थी। बातचीत में संजय ने घटना की और अपने भाई की आखिरी वीडियोज के आधार पर उग्र किसानों की भीड़ को जल्लाद बताया था। साथ ही अपने भाई की मृत्यु पर कहा था कि अगर उनके भाई पर हमला करने वाले किसान होते तो उनके भाई श्याम निषाद के साथ ऐसा नहीं होता।

लखीमपुर खीरी हिंसा, भाजपा नेता श्याम सुंदर निषाद
लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए भाजपा सदस्य श्याम सुंदर निषाद

रमन कश्यप के परिवार का दर्द

किसान प्रदर्शनकारी और भारतीय जनता पार्टी के नेता व कार्यकर्ताओं के बीच लखीमपुर खीरी में हुई हिंसक झड़प में मारे जाने वाले पत्रकार रमन कश्यप भी थे। उनकी मौत की खबर भी लगातार मीडिया में आ रही थी। ऐसे में ऑपइंडिया ने मृतक के पिता से संपर्क किया तो पता चला कि कैसे घटनास्थल की कवरेज करने पहुँचे रमन को गाड़ी ने टक्कर मारी और फिर तमाम भीड़ ने उन्हें वहीं पर पड़े रहने दिया। मृतक के पिता राम दुलारे कश्यप ने बताया था कि घटना दोपहर में हुई थी और उन्हें देर रात जाकर इस बात के बारे में पता चला कि उनका बेटा अब इस दुनिया में नहीं है। जब उन्होंने मार्चरी में जाकर चेक किया तो उनके बेटे की लाश तिरछी पड़ी थी। ऑपइंडिया से बात करते हुए राम दुलारे ने बिलखते हुए कहा था कि अगर उसको कहीं दिखाया गया होता तो हो सकता है वो हमारे बीच होता।

लखीमपुर खीरी हिंसा, पत्रकार रमन कश्यप, पिता और बच्चे
लखीमपुर खीरी हिंसा का शिकार हुए पत्रकार रमन कश्यप (बाएँ) और उनके पिता व बच्चे (दाएँ)

10000 से ज्यादा लोगों की घर वापसी कराने वाला युवा नेता

हमारे समाज में धर्मांतरण की घटनाएँ समय के साथ बढ़ी हैं उससे साफ पता चलता है कि किस तरह लोगों की मजबूरियों का फायदा उठाया गया और उन्हें लालच देकर धर्म परिवर्तन करवा दिया गया। हालाँकि, अब समय बदला है। लोग जागरूक हुए हैं और अपने मूल धर्म में वापसी कर रहे हैं। पिछले दिनों ऐसे कई वाकये सामने आए जब सैंकड़ों लोगों ने मिलकर हिंदू धर्म अपनाया। इसी क्रम में ऑपइंडिया ने उस शख्स से बात की जो इस अभियान को सक्रियता से आगे बढ़ा रहा है। ये व्यक्ति कोई नहीं बल्कि भाजपा प्रदेश मंत्री प्रबल प्रताप सिंह हैं जो जशपुर राजपरिवार से संबंध रखने के बाद भी अपने पिता व बीजेपी के दिग्गज नेता दिलीप सिंह जूदेव की तरह उन आदिवासियों को मूल धर्म में घरवापसी करवा रहे हैं जिन्हें ईसाई मिशनरियों ने जाल में फांस लिया था। घरवापसी के समय वह लोगों के चरण पखारते हैं और विधिवत ढंग से लोगों की हिंदू धर्म में वापसी कराते हैं। इस बातचीत में प्रबल प्रताप ने ऑपइंडिया को बताया था कि वो अब तक 10 हजार से ज्यादा लोगों की घरवापसी करवा चुके हैं। हाल में उन्होंने 250 परिवार के 600 लोगों को हिंदू धर्म में पैर धोकर स्वागत किया था।

जूदेव पिता-पुत्र
चरण पखार घर वापसी करवाते प्रबल प्रताप सिंह जूदेव, बाएँ उनके दिवंगत पिता दिलीप सिंह जूदेव

YouTube ने जब कुचली एक राष्ट्रवादी की आवाज़

इसी साल नवंबर के महीने में यूट्यूब की मनमानियों का एक नमूना सामने आया था जब सब-लोकतंत्र की स्थापना करने वाले रचित कौशिक के चैनल को यूट्यूब ने प्रतिबंधित कर दिया था। अजीब बात ये थी कि यूट्यूब ने कभी हेट स्पीच तो कभी चाइल्ड सेफ्टी पॉलिसी का हवाला दे देकर उनकी वीडियोज को हटाना शुरू किया था। जब रचित कौशिक ने यूट्यूब की इस तानाशाही भरे रवैये के ख़िलाफ़ अपील की तो उन्हें बताया गया कि ऐसा कोई वीडियो नहीं है जिसमें नियमों का उल्लंघन होता हो। बावजूद इसके उनके चैनल को सस्पेंड किए रखा गया। बाद में एक नए चैनल से रचित कौशिक ने अपनी बात रखनी शुरू की। मगर यूट्यूब इसके पीछे भी पड़ा। इस पूरे घटनाक्रम में ऑपइंडिया लगातार सब-लोकतंत्र के साथ किए जा रहे बर्ताव पर रिपोर्ट कर रहा था।

YouTube, सब लोकतंत्र, रचित कौशिक
YouTube की करतूतों की वजह से ‘सब लोकतंत्र’ के संस्थापक रचित कौशिक को छोड़ना पड़ा ये प्लेटफॉर्म

जब एक सोसायटी हुआ मुस्लिम बहुल तो हिंदुओं का क्या हुआ

गुजरात के भरूच में हुए डेमोग्राफिक बदलाव के बाद वहाँ हिंदुओं की जो हालात हुई उस पर अक्टूबर में ऑपइंडिया ने अपने पाठकों के लिए एक रिपोर्ट की थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कैसे जलाराम बापा मंदिर में होने वाली शाम की आरती पर शौकत अली के विरोध के बाद रोक लग गई। इसके अलावा इस खबर में ये भी बताया गया था कि कैसे हिन्दू अपने घरों और मंदिरों को बेचने के लिए मजबूर हो चुके हैं क्योंकि क्षेत्र में मुस्लिमों की संख्या बढ़ती जा रही है। सूत्रों ने ऑपइंडिया को ये भी बताया था भरूच के कुछ हिस्सों में 2019 में अशांत क्षेत्र अधिनियम लागू किया गया था, लेकिन प्रशासन सहित कुछ लोगों ने इसमें छिपी खामियों का फायदा उठाते हुए कुछ क्षेत्रों में पूरी जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) ही बदल डाला। अब स्थिति यह हो गई है कि हिंदू केवल भरूच के सोनी फलियो (Soni Faliyo) और हाथीखाना (Hathikhana) क्षेत्रों में रह गए हैं। अब वहाँ भी मुश्किल से कोई 20-25 हिंदू परिवार बचे हैं। और वो भी अब यहाँ से अपने घरों को बेचकर और वह इलाका छोड़ देने का फैसला कर चुके हैं।

भरूच का एक सोसायटी हुआ मुस्लिम बहुल तो शिव मंदिर बन गया ‘मूत्रालय’, जलराम बापा मंदिर पर लगा ‘बिक्री का बोर्ड’

भारत से हार के बदले पाकिस्तानी उठा लेते थे हिंदू लड़कियाँ

भारत-पाकिस्तान के वर्ल्ड कप मैच के बाद भारत की हार पर जगह-जगह जश्न मनाने की खबरें आईं थी। शायद इतनी खुशी इसलिए थी क्योंकि पाकिस्तान ने पहली बार भारत को वर्ल्ड कप मैच में हराया था। पाकिस्तानियों ने भी अपनी टीम की जीत का खूब जश्न मनाया था। मगर इस दौरान एक पाकिस्तानी हिंदू शर्णार्थी ने ऑपइंडिया से बात करते हुए वो सच्चाई बताई जिसके बारे में शायद ही कोई जानता हो। दिल्ली के आदर्श नगर इलाके के शर्णार्थी कैंप में मूलभूत जरूरतों के लिए भी तरसने वाली एक हिंदू शर्णार्थी ने ऑपइंडिया से बात करते हुए कहा था कि उन्हें दुख है कि पाकिस्तान जीता मगर इससे पहले तक जब भी इंडिया जीतता था वहाँ (पाकिस्तान) के लोग इसका बदला हिंदू लड़कियों को उठाकर लेते थे और पुलिस भी कुछ नहीं करती। कई बार लड़कियाँ लौटती थीं और कई बार नहीं भी आती थीं।

आदर्श नगर हिन्दू कैंप बिजली
बिजली की समस्या से सिर्फ बीमारी ही नहीं मौत भी झेल रहे पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी: आदर्श नगर कैंप का आँखों देखा हाल

वह साधु जिसने 6 दिसंबर 1992 की देखी अयोध्या

6 दिसंबर की तारीख आते ही यूँ तो आप अयोध्या पर बहुत से लेख पढ़ते होंगे। लेकिन इस बार इस विशेष दिन पर ऑपइंडिया आपके लिए कुछ अलग लेकर आया था। ऑपइंडिया ने अपनी रिपोर्ट में आपको एक साधू से हुई बातचीत पेश की थी जो उस 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में थे। आज उन्हें संत ब्रजमोहन दास के नाम से जाना जाता है। हमसे बातचीत में उन्होंने बताया था कि 6 दिसंबर के करीब 15 दिन पहले ही वहाँ कारसेवकों का आना शुरू हो गया था। हर दिन उनकी संख्या बढ़ रही थी। चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाकर्मी थे। अयोध्या वाले इसी सोच में थे कि 6 दिसंबर को क्या होगा। महंत से हुई बातचीत की इस रिपोर्ट में न केवल 6 दिसंबर से पहले का विस्तारपूर्वक जिक्र किया गया है बल्कि अयोध्या की व्यवस्था, सुरक्षाबलों का बर्ताव, जयघोष की ऊर्जा, अयोध्या का माहौल सबका वर्णन है। महंत आज भी उस दिन और दृश्य पर अचंभित होते हैं जहाँ 6 दिसंबर 1992 को कुछ समय तक ढांचा खड़ा था और कुछ देर बार रोड़ी भी देखने को नहीं थी।

अयोध्या, 6 दिसंबर 1992
महंत ब्रजमोहन दास: अयोध्या का एक चश्मदीद

दिल्ली में बिजली को तरसते हिंदू शरणार्थियों की व्यथा रहे हिंदू शर्णार्थी

दिल्ली के हिंदू शरणार्थियों पर ऑपइंडिया आपके लिए ग्राउंड रिपोर्ट अक्सर लाता रहता है। इन रिपोर्ट्स में शरणार्थियों की समस्या या उनके साथ घटित घटनाओं की चर्चा होती है। इस साल जब ऑपइंडिया ने आदर्श नगर के हिंदू शर्णार्थियों से बात की तो पता चला बिजली की समस्या से सिर्फ शरणार्थियों को बीमारी ही नहीं होती बल्कि मूलभूत जरूरत न पूरी होने के कारण पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी मौत भी झेल रहे हैं। 

रोशनी अली की हिंदू घृणाकी हिंदू घृणा

कलकत्ता हाईकोर्ट ने दिवाली / काली पूजा के दौरान पूरे बंगाल में सभी प्रकार के पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का जो आदेश दिया था, उसकी चर्चा हर जगह हुई। ऐसे में एक नाम रोशनी अली का था जो सुर्खियों में रहा और जिसकी याचिका पर ये फैसला लिया गया। ऑपइंडिया ने आपको इसी रोशनी अली पर एक विस्तृत रिपोर्ट दी थी जिसमें बताया था कि पर्यावरण की चिंता करने वाली रोशनी अली को बीफ से कितना प्रेम है और कैसे वो भगवान गणेश के उत्सव को व्यर्थ बताकर, जन्माष्टमी में प्रोपगेंडा फैलाकर हिंदू त्योहारों व हिंदू देवताओं से घृणा दिखाती रहती हैं।

रोशनी अली पटाखा दिवाली
याचिकाकर्ता रोशनी अली (साभार: Facebook)

गीता कचरे में फेंकने वाली, देवी-देवताओं को गाली देने वाली टीचर

बिहार के गया जिले में पिछले दिनों चौथी कक्षा में पढ़ने वाले एक बच्चे ने अपनी मुस्लिम टीचर पर श्रीमगभगवद्गीता को डस्टबिन में फेंकने और हिंदू देवी-देवताओं को गाली देने का आरोप लगाया था। इसके बाद बच्चे की वीडियो वायरल हुई और ऑपइंडिया ने सच जानने के लिए बच्चे से बात की। बातचीत में पता चला कि बच्चा पीड़ित छात्र गया स्थित इस्कॉन मंदिर के पुजारी का बेटा है जिसका कहना था कि उसके स्कूल में उसकी हिंदी-उर्दू की टीचर सदफ ने बैग चेकिंग के दौरान उसके बस्ते से श्रीमद्भगवतगीता और माला को कूड़ेदान में फेक दिया था। वहीं बच्चे का कहना था कि टीचर की चप्पल पर गणेश भगवान बने हुए थे। इस खबर की पुष्टि करते हुए पीड़िता के पिता से बात की थी। साथ ही पुलिस से भी संपर्क कर आपके सामने एक विस्तृत रिपोर्ट दी थी। डेलहा थाना प्रभारी ने कहा था कि वो इस मामले में नियमानुसार चल रहे हैं और मामला शिक्षा विभाग से जुड़ा है इसलिए विभाग के वरिष्ठ अधिकारी जाँच कर रहे हैं।

श्रीमद्भगवद्गीता, गया, बिहार, शिक्षिका
बिहार के गया में शिक्षिका पर श्रीमद्भगवद्गीता की पुस्तक फेंकने का आरोप (प्रतीकात्मक चित्र)
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ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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