ज्ञानवापी विवादित ढाँचे में शिवलिंग मिलने के बाद से जैसे-जैसे ये मामला तूल पकड़ रहा है वैसे-वैसे टीकाधारी वकील हरिशंकर जैन और वकील विष्णु जैन लगातार मीडिया चर्चा में हैं। इन्हीं पिता-पुत्र की जोड़ी ने वाराणसी कोर्ट के अंदर हिंदू पक्ष को इतना मजबूत किया है कि दूसरे पक्ष की हर दलील घुटने टेक रही है। ऐसा पहली दफा नहीं है कि इस जोड़ी ने हिंदुओं को उनका हक दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया हो। लगभग ऐसे 102 मामले बताए जाते हैं जिनमें इस जोड़ी ने या इनमें से कम से कम एक ने हिंदुओं को अदालत में मजबूत करने का काम किया है।
This case has been fought by the Father-Son Advocate duo, Shri Hari Shankar Jain and Shri Vishnu Shankar Jain. @Vishnu_Jain1
— Yashwant Kumar (@GudumbaSatti) May 21, 2022
(15/n)#GyanvapiMasjid #KashiVishwanathTemple pic.twitter.com/AR147frl7W
मौजूदा जानकारी के अनुसार, ज्ञानवापी केस को हिंदुओं की तरफ से लड़ने वाले वरिष्ठ वकील हरिशंकर जैन को वकालत करते-करते 4 दशक बीत गए हैं। उन्होंने 1976 में वकालत शुरू की थी। वहीं उनके बेटे विष्णु जैन का जन्म 9 अक्टूबर 1986 को हुआ था और उन्होंने 2010 में कानून की पढ़ाई पूरी करके वकालत में अपने करियर का आरंभ किया था। विष्णु पढ़ाई से फारिक होकर अपने पिता की सहायता में तब से लेकर आज तक लगे हैं। साल 2016 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता का पेपर पास करके नई उपाधि हासिल की थी और उसके बाद उनकी प्रैक्टिस की शुरुआत ही श्रीराम जन्मभूमि मामले से हुई थी।
हिंदुओं से संबंधी करीब 102 मामले ऐसे हैं जिनमें हरिशंकर जैन और विष्णु जैन में से कोई एक या फिर दोनों अदालत में पेश हुए हों। इनमें सबसे पुराना मामला साल 1990 का है। दिलचस्प बात ये है कि ज्यादातर केसों को पिता-पुत्र की जोड़ी ने जिता कर ही दम लिया। वहीं कुछ हैं जो अब भी चल रहे हैं।
मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि का मामला सबसे बड़े मामलों में से एक है जिसे इस पिता-पुत्र की जोड़ी ने संभाला है। इसके अलावा कुतुब मीनार बनाने के लिए मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए 27 हिंदू और जैन मंदिरों का केस, ताजमहल के शिवमंदिर होने का दावा, वर्शिप एक्ट औक वक्फ एक्ट 1995 को चुनौती देने का मामला भी यही दोनों संभाल रहे हैं। ऐसे ही हिंदुओं की ओर से लखनऊ में स्थित टीले वाली मस्जिद के शेष गुफा होने का दावा भी इनके द्वारा करवाया जा रहा है। सबसे बड़ी बात कि हरिशंकर जैन और विष्णु जैन ने भारत के संविधान की प्रस्तावना में जो सोशलिस्ट और सेकुलर शब्द शामिल किया गया है उस संशोधन की वैधता को भी चुनौती दी है।
ज्ञानवापी मामले के बाद हर जगह सराही जा रही इस जोड़ी से जुड़े और भी कई किस्से हैं। जैसे एक बार विष्णु जैन ने अपने पिता के बारे में बताया था कि श्रीराम जन्मभूमि मामले में उन्हें बाबरी विवादित ढाँचे का पक्ष रखने का प्रस्ताव आया था लेकिन उन्होंने अंतरात्मा न बेचने का फैसला किया और फीस मिलने के बाद भी प्रस्ताव मना कर दिया। इतना ही नहीं 6 दिसंबर 1992 को हरिशंकर की माँ का देहांत हुआ था। वे अपनी माँ से बहुत जुड़े थे क्योंकि उन्हीं से उन्हें हिंदुत्व का और धर्म का ज्ञान मिला था। वे टूटे लेकिन जब उनकी माँ की तेहरवीं खत्म हुई तो 20 दिसंबर 1992 को मुंडा हुआ सिर लेकर हिंदू पक्ष के लिए याचिका डालने इलाहाबद कोर्ट पहुँच गए और तब तक जी जान लगाए रखी जब तक कि कोर्ट ने श्रीराम भगवान की पूजा अर्चना की अनुमति नहीं दी।