जिस ‘चमार’ शब्द को बोलने-लिखने तक आपको भारत में जेल हो सकता है, वसीम अकरम उसे नेशनल टीवी पर बोलते हैं। इसके पीछे की वजह है पाकिस्तान के पैदा होने की मजहबी कहानी। वहाँ काफिरों के साथ क्या-क्या किया जाएगा, किया जा रहा है, इसकी एक झलक भर है वसीम अकरम का ‘चमार’ बोलना। ये न सिर्फ दलित समाज का अपमान है, बल्कि एक जाति विशेष पर भी आपत्तिजनक टिप्पणी है। लेकिन, निशाना हिन्दू हैं तो पाकिस्तान में इसकी अनुमति है।
दरअसल, पूरा मामला वसीम अकरम के एक वीडियो से जुड़ा हुआ है। अफगानिस्तान बनाम पाकिस्तान मैच में पाकिस्तान के हारने के बाद एक स्पोर्ट्स चैनल पर पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेटर वसीम अकरम चर्चा कर रहे थे। उनके साथ अन्य पाकिस्तानी खिलाड़ी मोईन खान, शोएब मालिक तथा मिस्बाह उल हक मौजूद थे।
वसीम अकरम इस दौरान मैदान से मैच के बारे में रिपोर्ट करने की बात कर रहे थे। उनका कहना था कि मैदान से एक-डेढ़ घंटे रिपोर्ट करने पर शर्ट पर पसीने के दाग आ जाते हैं और अच्छा नहीं लगता, इस स्थिति की तुलना वह एक विशेष जाति का होने से करते हैं।
It's not acceptable Wasim Akram.
— Mr.Yadav🏹 (@Mr_Yadav360) October 24, 2023
"Chamar" In your opinion, does this word refer to wrong people or bad people?@Profdilipmandal @ambedkariteIND @Sumitchauhaan pic.twitter.com/JJkOllmx6Z
वसीम अकरम का यह बयान अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है और भारत में इस पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं कि वह एक जाति को इस तरह से कैसे कह सकते हैं। हालाँकि, पाकिस्तान में जिस तरह की हालत ‘काफिरों’ की है उससे वसीम अकरम की बात पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हमें ध्यान देना चाहिए कि पाकिस्तान से भारत आए शरणार्थियों या फिर वहाँ अत्याचार झेल रहे हिन्दुओं में बड़ी संख्या में दलित शामिल हैं। वसीम अकरम ने इसी वीडियो में पाकिस्तानी टीम की भी काफी आलोचना की।
वसीम अकरम ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि जो भी व्यक्ति अच्छा नहीं दिख रहा या पसीने में भीग कर गंदा हुआ है, वह जाति विशेष जैसा है। पाकिस्तान में यह सच्चाई भी है। दरअसल, पाकिस्तान में आज भी हिन्दू और ईसाइयों को मात्र सफाईकर्मी का काम ही दिया जाता है। पाकिस्तान में मुस्लिमों को इस काम से बाहर रखा गया है। पाकिस्तान में रहने वाला दलित वर्ग अन्य कोई पेशा नहीं अपना सकता। पाकिस्तानियों के दिमाग में यह पक्षपात आजादी के बाद से चला आ रहा है और वर्तमान में लगातार जारी है।
पाकिस्तान में दलितों से तो सीवर, गटर और नालियां साफ़ ही करवाई जाती हैं बल्कि उन व्यक्तियों से भी यह काम करवाया जाता है जो कि अपना हिन्दू धर्म छोड़कर ईसाई बन चुके हैं। वसीम अकरम के बयान पर इस पूरे प्रोग्राम में बैठे हुए अन्य चारों व्यक्तियों को कोई समस्या नहीं हुई। भारत में ऐसा बोलने पर जेल हो जाती है, सामाजिक बहिष्कार हो सकता है और सोशल मीडिया पर कैम्पेन चलते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत में दलितों के अधिकारों पर काम किया गया है लेकिन पाकिस्तान में इन्हें बराबर के दर्जे के मनुष्य नहीं समझा जाता।
जुलाई 2019 में पाकिस्तान की फ़ौज ने एक विज्ञापन दिया जिसमें स्पष्ट रूप से लिखा हुआ था कि उसे सफाईकर्मी के रूप में ईसाई चाहिए। हालाँकि, बाद में यह विज्ञापन विरोध के चलते वापस ले लिया गया। जिन मुस्लिम सफाईकर्मियों को पाकिस्तान में भर्ती भी किया गया वह नाली नहीं साफ़ करते।
इस काम में पाकिस्तान में केवल ईसाई या हिन्दू दलित समुदाय के लोग ही लगाए जाते हैं। उन्हें मल-मूत्र से भरे गटर में उतारा जाता है। ऐसा ना करने पर उन्हें अन्य कोई रोजगार के साधन भी उपलब्ध नहीं हैं। इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान में मुस्लिमों को तो अधिकार हैं लेकिन अन्य कोई भी धर्म नाली आफ करने से ऊंचे ना उठ सके इसके लिए विशेष नियम बनाए गए हैं। वसीम अकरम का यह ताजा बयान इसी का एक उदारहण है।
ऐसा सिर्फ पाकिस्तान में हो यह भी नहीं है। भारत का सिरमौर कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटने से पहले वाल्मीकि समुदाय को राज्य का नागरिक तक नहीं माना जाता था। आरक्षण आदि तो दूर वह अन्य कोई नौकरियों में भी हिस्सा नहीं ले सकते थे।
इन वाल्मीकि समुदाय के लोगों को जम्मू कश्मीर में 1950 के दशक में ले जाया गया था। तब से इनकी पीढ़ियों को इसी काम में लगाए रखा गया। अधिकारों के नाम पर इन्हें हमेशा वंचित रखा गया। 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटने के बाद इन्हें जम्मू कश्मीर के नागरिक होने का दर्जा मिला और उन्हें सफाईकर्मी के अलावा अन्य कामों को करने की आजादी मिली।