Wednesday, April 24, 2024
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जिसने फाड़ा राम जन्मभूमि का नक्शा और की मस्जिद की वकालत, मुस्लिम पक्ष ने उस वकील को ही हटा दिया

“मुझे एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड और जमीयत का प्रतिनिधित्व करने वाले एजाज मकबूल ने बाबरी मामले से हटा दिया है। मैंने बिना आपत्ति के उन्हें खुद को हटाए जाने के निर्णय को स्वीकार करते हुए औपचारिक पत्र भेज दिया है।”

अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद में मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन को केस से हटा दिया गया है। इसकी जानकारी खुद उन्होंने दी। राजीव धवन ने फेसबुक पोस्ट पर लिखा, “मुझे ये बताया गया कि मुझे केस से हटा दिया गया है, क्योंकि मेरी तबियत ठीक नहीं है। ये बिल्कुल बकवास बात है। जमीयत को ये हक है कि वो मुझे केस से हटा सकते हैं लेकिन जो वजह दी गई है वह गलत है।” बता दें कि राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट में सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम पार्टियों का पक्ष रखा था।

एक अन्य पोस्ट में उन्होंने लिखा, “मुझे एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड और जमीयत का प्रतिनिधित्व करने वाले एजाज मकबूल ने बाबरी मामले से हटा दिया है। मैंने बिना आपत्ति के उन्हें खुद को हटाए जाने के निर्णय को स्वीकार करते हुए औपचारिक पत्र भेज दिया है।”

आगे उन्होंने कहा कि अब वे इस मामले में शामिल नहीं होंगे। इससे पहले सोमवार (दिसंबर 2, 2019) को जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल किया है। अपनी याचिका में जमीयत ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वो 9 नवंबर को सुनाए गए फ़ैसले की समीक्षा करे। इतना ही नहीं, हिन्दुओं के पक्ष में आए उस फ़ैसले पर स्टे लगाने का भी आग्रह किया गया है। इसके साथ ही इस पुनर्विचार याचिका में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में ’14 गलतियाँ’ गिनाई गई हैं और दावा किया गया है कि समीक्षा का आधार भी यही है।

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को अयोध्या मामले पर अपना फैसला सुनाया था। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई की अध्‍यक्षता वाली पाँच जजों की पीठ ने विवादित जमीन पर रामलला विराजमान के हक में फैसला दिया है। साथ ही सरकार को यह भी आदेश दिया कि वह मस्जिद के लिए सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड को अलग से पाँच एकड़ जमीन मुहैया कराए। कोर्ट ने केंद्र सरकार को राम मंदिर के लिए 3 महीने में एक्शन रिपोर्ट बनाकर निर्माण कार्य शुरू करने का आदेश दिया है।

जमीयत ने इसे शरीयत के ख़िलाफ़ बताया था। मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि एक बार जिस जगह पर मस्जिद बन गई, क़यामत तक वहाँ सिर्फ़ मस्जिद ही रहती है। जमीयत ने अपनी याचिका में कहा है कि मुस्लिम पक्ष ने मस्जिद के लिए कहीं और जमीन नहीं मॉंगी थी। लेकिन, फैसले में संतुलन बनाने के इरादे से ऐसा आदेश सुनाया गया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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