मुंबई बीएमसी चीफ इकबाल सिंह चहल द्वारा ऑक्सीजन संकट के लिए राज्यों को जिम्मेदार ठहराए जाने के बाद एमिकस क्यूरी (Amicus Curiae) नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता रुपिंदर खोसला ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान अव्यवस्था के लिए राज्यों को ही जिम्मेदार बताया है। यहाँ तक कि दिल्ली में ऑक्सीजन के ब्लैक मार्केटिंग की आशंका भी जताई है।
उन्होंने कहा कि सरकारी आँकड़ों से पता चलता है कि उत्तर में, उत्तराखंड राज्य में 74,114 कोविड -19 मरीज हैं, यहाँ पर आवंटित ऑक्सीजन 103 मीट्रिक टन है। हिमाचल प्रदेश में 32,469 मरीज हैं और ऑक्सीजन के लिए आवंटित कोटा 15 मीट्रिक टन है। चंडीगढ़ में 8,511 मरीज हैं और आवंटित ऑक्सीजन कोटा 40 मीट्रिक टन है। हरियाणा में 1,16,867 कोविड मरीज हैं, यहाँ पर ऑक्सीजन का कोटा 267 मीट्रिक टन है। वहीं पंजाब में 74,343 मरीज हैं और आवंटित ऑक्सीजन कोटा 227 मीट्रिक टन है।
इस तरह पूरे उत्तर भारत में 3,06,304 मरीज हैं लेकिन इन पाँच राज्यों के लिए ऑक्सीजन का कुल कोटा 652 मीट्रिक टन है, वहीं दूसरी तरफ दिल्ली में 86,232 मरीज हैं और ऑक्सीजन का कोटा 700 मीट्रिक टन है। इंडियन एक्सप्रेस से बाचतचीत में खोसला ने सवाल उठाते हुए कहा कि दिल्ली को ऑक्सीजन कोटे के आवंटन में स्पेशल ट्रीटमेंट दिया जा रहा है, ऐसे में इसके मुकाबले इन पाँच राज्यों या पूरे उत्तर भारत के लिए न्याय कहाँ है।
उन्होंने कहा कि इससे पता चलता है कि दिल्ली में ब्लैक मार्केटिंग चल रही है और दिल्ली सरकार ऑक्सीजन कोटा का प्रबंधन और निगरानी नहीं कर पा रही है। यह भी हो सकता है कि दिल्ली में वीआईपी लोग ऑक्सीजन मैनेज कर रहे हों।
बता दें कि देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर जैसे ही आई, वैसे ही ऑक्सीजन की किल्लत खड़ी हो गई। इसको लेकर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में एक याचिका पर सुनवाई हुई। इस सुनवाई में एमिकस क्यूरी (Amicus Curiae) नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता रुपिंदर खोसला ने कहा कि हरियाणा, पंजाब और केंद्र शासित प्रदेश (UT) चंडीगढ़ कोरोना की दूसरी लहर की चुनौतियों से निपटने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। रुपिंदर खोसला ने राज्यों और दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी के बारे में अदालत को अवगत कराया।
यह पूछे जाने पर कि आपको क्या लगता है कि पंजाब, हरियाणा और केंद्र शासित प्रदेश में स्वास्थ्य प्रणाली के पतन के लिए कौन जिम्मेदार है? उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि सरकारें कोविड -19 की दूसरी लहर के लिए तैयार नहीं थीं, इसलिए सिस्टम धराशायी हो गई। पहली लहर खत्म होने के बाद जश्न शुरू हो गया, लेकिन अब दूसरी लहर ने जोरदार प्रहार किया है। वेंटिलेटर, और बेड और अन्य बुनियादी ढाँचे की कमी है जो कोविड के साथ लड़ने के लिए आवश्यक है। दूसरी बात यह है कि हमारे पास वेंटिलेटर से निपटने के लिए प्रशिक्षित कर्मचारी नहीं हैं, जिनकी आवश्यकता है। इसलिए कुछ स्थानों पर स्टाफ है, लेकिन वेंटिलेटर नहीं हैं, और जहाँ वेंटिलेटर हैं, वहाँ कोई प्रशिक्षित कर्मचारी नहीं है, इसलिए यह राज्यों द्वारा पूर्ण कुप्रबंधन है। इसके अलावा जब पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं होगी, तो कर्मचारी भी कुछ नहीं कर सकते हैं।”
गौरतलब है कि इससे पहले मुंबई बीएमसी चीफ इकबाल सिंह चहल ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि ऑक्सीजन संकट के लिए केंद्र नहीं राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। चहल ने कहा था कि केंद्र सरकार को देश में ऑक्सीजन संकट के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। उन्होंने कहा था कि राज्यों को ऑक्सीजन के अपर्याप्त आवंटन के लिए दोषी ठहराया जाना चाहिए।
चहल ने कहा, “भारत सरकार को इन सबके लिए दोष नहीं दिया जाना चाहिए। अगर किसी को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, तो वह राज्य हैं।” चहल ने कहा कि देश के कई राज्य यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे कि उनके यहाँ कोरोना के कुल कितने मामले हैं। ऐसे में केंद्र उन्हें कैसे ऑक्सीजन आवंटित करता?”
चहल ने तर्क देते हुए कहा था कि केंद्र कोविड-19 मामलों की संख्या में भारी अंतर होने के कारण राज्यों को समान मात्रा में ऑक्सीजन कैसे आवंटित कर सकता है। उन्होंने कहा कि केंद्र 6,000 मामले वाले राज्य और महाराष्ट्र को समान रूप से ऑक्सीजन का आवंटन नहीं कर सकता है, जहाँ रोज 60,000 नए मामले दर्ज किए जा रहे हैं।