Sunday, September 8, 2024
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‘मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देना शरिया कानून के खिलाफ’: AIMPLB सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और UCC को देगा चुनौती, NCW बोला- सभी महिलाओं के लिए हो एक कानून

वहीं, यूसीसी को लेकर कासिम इलियास ने कहा कि उनकी कानूनी टीम इसको लेकर काम कर रही है। उन्होंने कहा, “विविधता हमारे देश की पहचान है, जिसे हमारे संविधान ने सुरक्षित रखा है। यूसीसी इस विविधता को खत्म करने का प्रयास करती है। यूसीसी न केवल संविधान के खिलाफ है, बल्कि हमारी धार्मिक स्वतंत्रता के भी खिलाफ है।"

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने रविवार (14 जुलाई 2024) को कहा कि मुस्लिम महिलाओं से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश को वह चुनौती देगा। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को इद्दत की अवधि के बाद भी गुजारा भत्ता माँगने की अनुमति दी थी। बोर्ड उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता (UCC) को भी चुनौती देगा। वहीं, राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने कहा है कि महिलाओं से संबंधित सभी धर्मों में कानून एक समान होने चाहिए।

दरअसल, आज रविवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कार्यसमिति की बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में इन दोनों मुद्दों सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई। बोर्ड के प्रवक्ता सैयद कासिम रसूल इलियास ने बताया कि बैठक में आठ प्रस्तावों को मंजूरी दी गई है। इसमें पास पहला प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही है।

इलियास ने कहा, “पहला प्रस्ताव हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में था। यह फैसला शरिया कानून से टकराता है। इस्लाम में शादी को पवित्र बंधन माना जाता है। इस्लाम तलाक को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ‘महिलाओं के हित’ में बताया जा रहा है, लेकिन शादी के नजरिए से यह फैसला महिलाओं के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।”

सैयद कासिम रसूल इलियास ने आगे कहा, “अगर तलाक के बाद भी पुरुष को गुजारा भत्ता देना है तो वह तलाक क्यों देगा? और अगर रिश्ते में कड़वाहट आ गई है तो इसका खामियाजा किसे भुगतना पड़ेगा? हम कानूनी समिति से सलाह-मशविरा करके इस फैसले को वापस लेने के बारे में विचार-विमर्श करेंगे।”

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को फैसला सुनाया कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 मुस्लिम विवाहित महिलाओं सहित सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होती है और वे इन प्रावधानों के तहत अपने पतियों से भरण-पोषण का दावा कर सकती हैं। इसको लेकर मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 इस धर्मनिरपेक्ष कानून पर लागू नहीं होगा।

वहीं, यूसीसी को लेकर कासिम इलियास ने कहा कि उनकी कानूनी टीम इसको लेकर काम कर रही है। उन्होंने कहा, “विविधता हमारे देश की पहचान है, जिसे हमारे संविधान ने सुरक्षित रखा है। यूसीसी इस विविधता को खत्म करने का प्रयास करती है। यूसीसी न केवल संविधान के खिलाफ है, बल्कि हमारी धार्मिक स्वतंत्रता के भी खिलाफ है।”

उधर, मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि महिलाओं के लिए सभी धर्मों को कानून समान होने चाहिए। शर्मा ने कहा, “महिलाओं के अधिकार सार्वभौमिक होने चाहिए, धर्म के आधार पर निर्धारित नहीं होने चाहिए। महिलाओं से संबंधित सभी धर्मों के कानून भी समान होने चाहिए।”

उन्होंने कहा, “हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के बाद आपको गुजारा भत्ता मिलता है तो मुस्लिम महिला को यह क्यों नहीं मिलना चाहिए? मैं सुप्रीम कोर्ट द्वारा कही गई बात का स्वागत करती हूँ।” NCW प्रमुख ने कहा कि यह निर्णय इस सिद्धांत को पुष्ट करता है कि किसी भी महिला को कानून के तहत समर्थन और सुरक्षा के बिना नहीं छोड़ा जाना चाहिए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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