चीन के वुहान से शुरू हुआ कोरोना का संक्रमण अब तक करीब 11 हजार जानें ले चुका है। देश में भी अब तक पॉंच मौतें हो चुकी है। इसका प्रसार रोकने के लिए लोगों से बड़ी संख्या में एक जगह जमा नहीं होने और आवश्यक नहीं होने पर घर से बाहर नहीं निकलने की सलाह दी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च यानी रविवार को जनता कर्फ्यू का आह्वान किया है। लेकिन, मजहबी लोगों को इससे कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा।
ऑल इंडिया सूफी उलेमा काउंसिल ने रविवार को लोगों से मस्जिद में जमा होने की अपील की है। कहा है कि मस्जिदों में इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अपने बुरे कर्मों के लिए अल्लाह से माफ़ी मॉंगें। काउंसिल के प्रेसिडेंट हकीम सूफी सैय्यद मोहम्मद खैरुद्दीन कादरी ने कहा है कि घर में बैठ फिजूल के कामों में समय नष्ट करने से कहीं बेहतर है कि हम मस्जिद में पहुँच इस दुनिया को बनाने वाले के सामने अपने किए पर पछतावा जाहिर करें, उससे माफ़ी माँगें।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार कादरी ने मस्जिदों की प्रबंधन कमेटियों से अपील की कि वे विशेष प्रार्थनाओं और कुरान पढ़ने के लिए इंतजाम करें। इसके अलावा उसने मस्जिदों में सामूहिक ‘इतिकाफ’ करने की भी पैरवी की। इस्लाम में ‘इतिकाफ’ का मतलब है व्यक्तिगत रूप से या सामूहिक तौर पर मस्जिदों में अल्लाह की इबादत करने में सारा समय समर्पित करना।
इस तरह के अजीबोगरीब बयान सामने आने का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी इस्लामिक धर्मगुरु कोरोना को चीन में जारी उइगर मुस्लिमों के उत्पीड़न से भी जोड़ चुके हैं। इलियास शराफुद्दीन नाम के एक धर्मगुरु ने कहा था कि उइगर मुस्लिमों से क्रूरता करने के कारण अल्लाह ने चीन पर इस वायरस का कहर बरपाया है और उन्हें दंडित किया है। एक वायरल ऑडियो में धर्मगुरु को कहते सुना गया था कि याद करो कैसे उन्होंने मुस्लिमों को धमकी दी थी और दो करोड़ मुस्लिमों की जिंदगी बर्बाद करने की कोशिश की। मुस्लिमों को शराब पीने के लिए मजबूर किया गया, उनकी मस्जिदों को तोड़ दिया गया और उनकी पवित्र पुस्तकों को जला दिया गया। उन्होंने कहा था कि चीन ने सोचा कि कोई भी उन्हें चुनौती नहीं दे सकता, लेकिन अल्लाह सबसे शक्तिशाली है, अल्लाह ने चीन को सजा दी।
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए जरूरी सोशल डिस्टेंसिंग पर जारी अपीलों के बाद भी ‘मजहब’ सामान्य समझ पर हावी है। इसका उदाहरण कल उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में देखने को मिला था। कोरोना को देखते हुए उम्मीद थी कि जुमे को मुस्लिम समुदाय के लोग जुमे की नमाज को मस्जिद में न पढ़कर अपने-अपने घरों में पढ़ेंगे, जिससे सैंकड़ों लोगों के एक जगह एकत्रित होने से बचा जा सकेगा। लेकिन अफ़सोस कि इस संदर्भ में की गईं तमाम अपीलों के बावजूद भी गोरखपुर में जुमे की नमाज के लिए कई जगह सैंकड़ों की भीड़ देखी गई। आम दिनों की तरह ही घंटाघर और कलेक्ट्रेट में शुक्रवार को दोपहर से ही भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी।
वहीं शाहीन बाग़ में भी 95 दिनों से जारी धरना पर कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर जारी किसी अपील, नियम-कानून का कोई प्रभाव पड़ता दिखाई नहीं देता। महिलाएँ अब वहाँ जमीन पर बैठने की बजाए लकड़ी की चौकियों पर बैठी हुई हैं।