Sunday, November 24, 2024
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अयोध्या के पौराणिक मणि पर्वत की तीन तरफ बना दी गई दरगाह, गणेश कुंड के पास नई मजार बनाने की तैयारी: ईरान और बगदाद के नाम पर हैं कब्रें

तीन तरफ से दरगाहों से घिरा हुआ है अयोध्या का पौरणिक मणिपर्वत। गणेश कुंड के पास नई दरगाह बनाने की तैयारी। PAC कैम्प के बगल सैकड़ों पक्की कब्रें। इन कब्रों में ईरान और बगदाद तक के लोगो के होने का दावा किया जा रहा है। कब्रों को हरे रंग से रंगा गया है। इन कब्रों के नीचे प्राचीन ईंटों के अवशेष साफ देखे जा सकते हैं।

अयोध्या में 22 जनवरी 2024 को रामजन्मभूमि पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। देश और दुनिया के विशिष्ट लोग इस अवसर पर अयोध्या पहुँच रहे हैं। ये सभी लोग अन्य दर्शनार्थियों के साथ कड़ी सुरक्षा में अयोध्या में मौजूद विभिन्न स्थलों का दर्शन करेंगे। इन्हीं दर्शनीय स्थलों में से एक है मणिपर्वत, जो कि मुख्य अयोध्या तीर्थ के विद्याकुंड से सटा हुआ है।

भगवान राम से जुड़े और पौराणिक रूप से अति महत्वपूर्ण इस स्थान के 3 तरफ दरगाहें बना दी गई हैं। इन दरगाहों पर रंग-रोशन एकदम नया दिखाई देता है। इसके अलावा, एक नई दरगाह भी बनाने की तैयारी चल रही है। आसपास तमाम पक्की कब्रों को भी देखा जा सकता है, जिसके नीचे पुराने समय के निर्माण मौजूद हैं।

क्या है मणिपर्वत का इतिहास

ऑपइंडिया की टीम ने मणिपर्वत का दौरा किया। यह पवित्र स्थल भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग (ASI) द्वारा संरक्षित है। मंदिर ऊँचाई पर बना हुआ है और वहाँ जाने के लिए कई सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। यहाँ के पुजारी ने हमें बताया कि इसी स्थान पर कभी भगवान राम और माँ सीता एक साथ झूला झूलते थे। साथ ही माँ सीता के विवाह के बाद उनके पिता जनक ने उपहार में इतनी मणियाँ भेंट की थीं कि उससे एक पहाड़ खड़ा हो गया था। कालांतर में बाहरी लुटेरों के आक्रमण में इस जगह को विकृत करने का प्रयास किया गया।

मणिपर्वत अयोध्या

आज भी अयोध्या और आसपास के गाँवों में मणिपर्वत से जुड़े लोकगीत महिलाओं द्वारा गए जाते हैं। इन्हीं में से एक लोकगीत के बोल हैं, “झलुआ पड़ा मणि पर्वत पय। हम सखि झूलय जाबय ना।” अर्थात ‘मणिपर्वत पर झूला पड़ा है और मैं अपनी सहेलियों के साथ वहाँ झूलने जाऊँगी।’ पहले के समय में इन गीतों को टेपरिकॉर्डर से घर-घर में बजाया जाता था। इन प्राचीन लोकगीतों को आज भी यूट्यूब पर सुना जा सकता है। मणिपर्वत पर आज भी हर सावन को मेला लगता है जहाँ देश भर के श्रद्धालु आते हैं।

मणिपर्वत के दक्षिण में हजरत शीष अलहै सलाम की दरगाह

मणिपर्वत के दक्षिण में हजरत शीष की दरगाह है। मणिपर्वत से इस दरगाह की दूरी 100 मीटर से भी कम है। कहना गलत नहीं होगा कि मणिपर्वत की बाउंड्री से ये दरगाह लगभग सटी हुई है। बाकायदा मुख्य सड़क पर इसका बोर्ड भी लगाया गया है। बोर्ड में हलाल अहमद और मौलाना मोहम्मद आसिफ फिरदौसी का नाम और मोबाइल नंबर लिखा हुआ है।

दरगाह के बाहर हमें गुजरात के रजिस्ट्रेशन नंबर की एक मारुति अर्टिगा गाडी खड़ी मिली। सफ़ेद रंग की इस दरगाह को चारों तरफ से पक्की दीवालों से घेर दिया गया है। दरगाह के आसपास हिस्सों की साफ-सफाई भी लगातार जारी है। साफ किए जा रहे इन हिस्सों से दरगाह का आकार बढ़ता जा रहा है।

दरगाह हजरत शीष

बाउंड्री में आधे दर्जन से अधिक मजार

जब ऑपइंडिया की टीम इस दरगाह के अंदर गई तो वहाँ मुस्लिम समुदाय के लगभग 5 लोग मौजूद थे। कम-से-कम 5 अलग-अलग हिस्सों में बाँटी गई इस दरगाह में 6 से अधिक कब्रें हैं। इन कब्रों में कुछ तो सामान्य इंसानों की साइज की हैं, जबकि एक की लम्बाई 10 फुट के करीब है।

इन कब्रों के नाम हजरत बाबा जलील नक्शबंदी, नजीरुद्दीन कादरी बगदादी मजार, ईरान की शहजादी हजरात बीवी सैयदा जाहिदा, मजार हजरत शीष, हजरत शीष की बेगम और उनके बच्चे आदि रखे गए हैं। ईरान की शहजादी सैयदा जाहिदा के बारे में हमें मजार पर बताया गया कि वो जियारत करने आईं थीं और वहीं बस गईं।

एक ही दरगाह के अंदर कई कब्रें

जिस दिन कायनात बनी उस दिन से दरगाह का दावा

यहाँ के खादिम ने दावा किया कि दरगाह जब से दुनिया बनी तब से है। हजरत शीष को उन्होंने संसार के पहले इंसान और अपने पैगंबर हजरत आदम का तीसरा बेटा बताया। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि हजरत शीष की लम्बाई 70 गज थी। इस लम्बाई को उन्होंने मणिपर्वत तक फैला बताया।

उन्होंने यह भी कहा कि तारीखों के हिसाब से हजरत शीष की कब्र मणि पर्वत तक होनी चाहिए। खादिम का यह भी कहना है कि देश और विदेश तक लोग उस दरगाह पर आते हैं। इन लोगों में खादिम ने स्थानीय नेताओं के भी शामिल होने का दावा किया। हर साल यहाँ उर्स भी होता है। इस दरगाह के रख-रखाव के लिए यहाँ के खादिम को चंदा मिलता है।

दरगाह के खादिम और उनके सहयोगी

पूर्वी कोने पर कोतवाल बाबा की दरगाह

ऑपइंडिया ने मणिपर्वत के पूर्वी हिस्से की पड़ताल की तो वहाँ एक और दरगाह मिली। यह दरगाह एक पेड़ को घेर कर बनाई गई है। बाकायदा ऊँचा सा चबूतरा बनाकर उस पर एक पक्की मजार खड़ी कर दी गई है। इसे हरे रंग से रंगा गया है। इस पर नई चादर आदि भी चढ़ाई गई है। इसे कोतवाल बाबा की दरगाह नाम दिया गया है। मजार पर नल भी लगाया गया है।

इसी मजार के पास एक नई मजार खड़ी की गई है, जिसका नाम सैयद शाह बाबा रखा गया है। इन दोनों दरगाहों की देखभाल एक मुस्लिम महिला करती है। महिला ने बताया कि दोनों दरगाह उसके शौहर ने अपने जीवित रहते बनवाई थी। फ़िलहाल महिला अब सरकार से विधवा पेंशन ले रही है।

पेड़ को घेरकर बनी कोतवाल बाबा की दरगाह

कोतवाल बाबा के बारे में पता चला कि वो कोई पूर्व पुलिस अधिकारी था, जो किसी जमाने में अयोध्या कोतवाली में तैनात था। जो महिला इन दोनों दरगाहों की देखभाल करती है, उसका घर वहाँ से लगभग 3 किलोमीटर दूर है। यहाँ भी हर साल उर्स होता है, जिसमें काफी चंदा जमा हो जाता है। इस दरगाह पर भी नेपाल तक के लोगों के आने का दावा किया जाता है। इस दरगाह के बगल भी मौजूद जंगलों की साफ-सफाई यहाँ के संरक्षकों द्वारा जारी है।

कोतवाल बाबा दरगाह के पास सैयद शाह मजार

उत्तरी कोने पर शमशुद्दीन शाह बाबा की दरगाह

मणिपर्वत के उत्तरी कोने पर एक और दरगाह बनी हुई है। इसका नाम हजरत अली सैयद शमशुद्दीन शाह बाबा है। यह दरगाह भी एक पेड़ को घेरकर बनाई गई है। मणिपर्वत से उतरने वाली सीढ़ियाँ जहाँ खत्म होती हैं, वहीं ये दरगाह बनाई गई है। इसे हरे रंग से पेंट किया गया है। सीमेंट के ऊँचे चबूतरे पर चढ़ने के लिए बाकायदा सीढ़ियाँ बनाई गईं हैं।

दरगाह के ऊपर मौजूद कब्र को हरे रंग की चादर से ढँका गया है। इसका रख-रखाव और मेंटिनेंस भी अनवरत जारी है। दरगाह हजरत अली सैयद शमशुद्दीन शाह बाबा से सटी हुई खुले मैदान में एक और दरगाह बनाई गई है। इसके नाम का बोर्ड आदि नहीं दिखा। इन दोनों दरगाहों पर कोई खादिम भी हमें मौजूद नहीं मिला।

उत्तर दिशा में शमशुद्दीन शाह दरगाह

सैकड़ों की तादाद में पक्की कब्रें

उपरोक्त तीनों दरगाह- शीष, शमशुद्दीन और कोतवाल बाबा के बीच में सैकड़ों कब्रें मौजूद हैं। इन कब्रों पर ऊपर हाल ही में पक्का निर्माण किया गया है। नीचे प्राचीन काल की ईंटें दिखाई देती हैं। पक्की कब्रों पर अरबी भाषा में कुछ लिखा गया है। नव निर्माणों को हरे रंग से कलर किया जा रहा है।

हरजत शीष दरगाह के खादिम का कहना है कि वो जगह पहले से ही कब्रिस्तान है। उसका कहना है कि आज भी वहाँ आसपास के मुस्लिमों को दफनाया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो मणि पर्वत के पश्चिमी और दक्षिणी कोने के हिस्सों में सामूहिक कब्रों का अम्बार लगा है।

पुराने निर्माण के ऊपर बनी नई कब्रें और रंग-रोशन

गणेश कुंड पर नई दरगाह भी बनाने की तैयारी

जिस अयोध्या तीर्थ के नवनिर्माण में वर्तमान सरकार दिन-रात एक किए हुए है, वहाँ अंदर ही अंदर नई दरगाहों को भी बनाने की तैयारी चल रही है। जब ऑपइंडिया की टीम दरगाह कोतवाल बाबा पर मौजूद थी तो उसके पास हमें गणेश कुंड दिखा। गणेश कुंड का हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार पर्यटन विभाग द्वारा सौंदर्यीकरण करवाया गया है।

हमने गणेश कुंड के पास एक जगह मिट्टी का उभार देखा। मिट्टी का ये उभार एक कब्र के आकार का था। जब हम इस जगह को देख रहे थे, उसी समय कोतवाल शाह दरगाह की देखरेख करने वाली महिला हमारे पास पहुँच गई। उसने हमें मिट्टी से दूर रहने के लिए कहा।

गणेश कुंड (पीछे) के पास नई दरगाह बनाने की तैयारी

महिला ने बताया कि वो उस जगह पर नई दरगाह बनाना चाहती है, जिसके लिए पैसे जुटाए जा रहे हैं। दरगाह का नाम पहले से ही सोचकर रहमतुल्लाह रखा गया है। महिला ने यह भी दावा किया कि रहमतुल्लाह की दरगाह बनाने का सपना उसके मरहूम (मृत) शौहर का है, जिसे वो पूरा करना चाहती है।

दरगाह की केयर टेकर मुस्लिम महिला

दरगाहों से सटा हुआ सुरक्षाबलों का कैम्प

ऑपइंडिया की टीम ने मणिपर्वत के साथ आसपास के इलाकों को भी खंगाला। कोतवाल शाह की देखरेख करने वाली महिला ने दावा किया कि झाड़ियों के अंदर अभी और भी कई मजार मौजूद हैं। इन मजारों के पास गणेश और विद्याकुंड जैसे पवित्र और पौराणिक धर्मस्थल भी मौजूद हैं, जिनका संबंध सीधे भगवान राम से है। ये सभी अयोध्या मुख्य तीर्थ क्षेत्र अथवा धर्मनगरी इलाके में आते हैं।

इन मजारों से एकदम सटकर उत्तर प्रदेश पुलिस की PAC विंग का बड़ा-सा कैम्प है। इस कैम्प में जवानों के आवास, वाहनों की पार्किंग के साथ-साथ उनके हथियारों को भी रखा जाता है। कहना गलत नहीं होगा कि 3 तरफ मजारों से घिरा यह क्षेत्र न सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि सुरक्षा के लिहाज से भी काफी संवेदनशील है।

दशरथ समाधि और मणिपर्वत वाली दरगाह का एक ही खादिम

ऑपइंडिया ने 2 जनवरी 2024 की अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में अयोध्या शहर से 14 किलोमीटर दूर स्थित महाराजा दशरथ की समाधि के पास एक दरगाह होने का खुलासा किया था। तब ऑपइंडिया ने बताया था कि उस दरगाह को पौराणिक क्षेत्र बिल्वहरि शरीफ से जोड़कर बेलहरी शरीफ कहा जाने लगा है।

मणिपर्वत के पास मौजूद बड़ी दरगाह हजरत शीष की पड़ताल में एक नई जानकारी निकल कर सामने आई है। इस दरगाह के खादिम के परिवार द्वारा ही दशरथ समाधि के बगल वाले दरगाह को संचालित किया जाता है। दूसरे शब्दों में एक ही मुस्लिम परिवार द्वारा अयोध्या के 2 अलग-अलग धार्मिक स्थलों पर बनी दरगाहों को चलाया जा रहा है।

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राहुल पाण्डेय
राहुल पाण्डेयhttp://www.opindia.com
धर्म और राष्ट्र की रक्षा को जीवन की प्राथमिकता मानते हुए पत्रकारिता के पथ पर अग्रसर एक प्रशिक्षु। सैनिक व किसान परिवार से संबंधित।

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