पश्चिम बंगाल में स्टाफ सिलेक्शन कमिशन जनरल ड्यूटी (SSC GD) का फिजिकल टेस्ट देने गए बिहार के दो युवकों के साथ मारपीट की गई है। वीडियो में एक आदमी इनके साथ बदसलूकी करते हुए कहता है, “बिहार के हो तो बंगाल में परीक्षा देने क्यों आए हो”। इसका वीडियो वायरल होने के बाद बवाल मच गया है। सोशल मीडिया से लेकर नेता तक मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आलोचना कर रहे हैं।
यह घटना पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी की बताई जा रही है। घटना कब की है, इसको लेकर अभी तक साफ नहीं हो पाया है। गुरुवार (26 सितंबर) को वीडियो सामने आने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ममता बनर्जी को चिट्ठी लिखी। इसके साथ ही भाजपा नेताओं ने इसकी आलोचना की। छात्रों से मारपीट करने के मुख्य आरोपित रजत भट्टाचार्य और उसके साथी गिरिधारी रॉय को पकड़ लिया गया है।
इस घटना को लेकर बिहार पुलिस का कहना है कि अंकित यादव और उनका एक साथी सिलीगुड़ी में एक कमरे में सो रहे थे। उसी दौरान पश्चिम बंगाल के कुछ स्थानीय लोग इनके कमरे में घुसे और उन्हें जबरदस्ती उठा दिए। इनमें एक व्यक्ति बांग्ला भाषा में इनसे सवाल पूछता है और कहता है कि बिहार से हो तो बंगाल में परीक्षा देने क्यों आए हो। इस दौरान वे छात्रों से उनका डॉक्यूमेंट भी माँगते हैं।
हालाँकि, फाड़े जाने के डर से छात्र ने डॉक्यूमेंट दिखाने से मना कर दिया। इसके बाद उसको थप्पड़ मारा गया और गाली दी गई। इतना ही नहीं, इन लोगों ने इन छात्रों को जेल भेजने की भी धमकी दी। आखिरकार डर छात्र बिना परीक्षा में शामिल हुए ही तुरंत बिहार लौटने की बात कहता है। इसके बाद बंगाल के आरोपित उनसे उठक-बैठक कराते हैं और जल्दी बंगाल से निकलने की धमकी देते हैं।
पीली टी-शर्ट में दिख रहा एक व्यक्ति कहता है, “जब तुम लोग बांग्ला जानते नहीं हो तो क्यों दूसरे जगह आ गए हो।” इस पर एक छात्र कहता है कि वह फिजिकल देने आया, क्योंकि यहाँ सिलीगुड़ी में उसका सेंटर पड़ गया है। उसने कहा कि सिलीगुड़ी में उसका सेंटर पड़ने में उसकी कोई गलती नहीं है। इस पर वह व्यक्ति कहता है, “बंगाल के डोमिसाइल नहीं हो तो क्यों तुमने अप्लाई किया?”
पुलिस की पूछताछ में रजत भट्टाचार्य ने बताया, “बिहार और यूपी से नकली प्रमाणपत्र लेकर बिहार के युवक एसएससी परीक्षा के लिए आ रहे हैं और हमारे युवकों की नौकरियाँ छीन रहे हैं। हम बांग्ला पक्खो संगठन से हैं और हमें बताया गया था कि उनके पास नकली प्रमाणपत्र हैं। इसलिए हम उन्हें पकड़ने के लिए वहाँ गए थे।” दोनों आरोपित सिलीगुड़ी के ही रहने वाले हैं।
जानिए कट्टरपंथी संगठन ‘बांग्ला पक्खो’ के बारे में
बता दें कि ‘बांग्ला पक्खो’ एक कट्टरपंथी संगठन है। ‘बांग्ला पक्खो’ का अर्थ है बांग्ला पक्ष। यह बंगाल की सरकारी नौकरियों में 100 प्रतिशत और अन्य नौकरियों में 90 प्रतिशत बांग्ला भाषियों के लिए आरक्षण की माँग करता है। इसकी स्थापना गार्गा चटर्जी नाम के शख्स ने साल 2018 में की थी। कुछ रिपोर्ट में यह भी कहा जा रहा है कि ममता बनर्जी की तृणमूल कॉन्ग्रेस की यह एक इकाई है।
भाजपा की मुखर विरोधी इस संगठन ने पहले भी पश्चिम बंगाल में हिंदी में लिखे साइनबोर्ड को मिटाने का अभियान चलाया था। यह संगठन पश्चिम बंगाल में सिर्फ बंगाली भाषा की वकालत करता है। इसके साथ ही राज्य में हिंदी भाषियों के खिलाफ कई तरह की आपत्तिजनक पोस्टरबाजी करके उनके खिलाफ माहौल तैयार करता है। इस तरह के कई प्रयासों में उसकी संलिप्तता सामने आ चुकी है।
नवंबर 2023 में छठ महापर्व के दौरान यह संगठन हिंदी भाषी, खासकर बिहारी लोगों के खिलाफ जमकर पोस्टरबाजी की थी। इसमें लिखा था, “जय बांग्ला…जय बांग्ला…’ यानी बंगाल की जय हो, बंगाल की जय हो। ऐसे ही ‘पाहाड़ थेके सोमुद्रो… भूमि पुत्रो, भूमि पुत्रो…’ यानी ‘पहाड़ से समुद्र.. भूमिपुत्र, भूमिपुत्र…।’ आजकल पश्चिम बंगाल में चारों ओर इन्हीं नारों की गूंज है।
छठ पूजा का विरोध और ‘लव जिहाद’ के काउंटर में ‘गुटखा जिहाद’
उस दौरान इस संगठन के संस्थापक गार्गा चटर्जी ने राज्य सरकार, जिला प्रशासन और पुलिस को एक शिकायत पत्र दिया था, जिसमें लिखा था कि छठ पूजा के नाम पर गंगा घाटों, नदियों और तालाबों को दूषित किया जाता है। चटर्जी ने आगे लिखा था कि छठ पूजा के समय जो भोजपुरी या हिंदी गाने बजते हैं, उससे ध्वनि प्रदूषण होता है। इसलिए बंगाल में छठ बंद होना चाहिए। इसे रोकने के लिए नदियों और तालाबों के किनारे सुरक्षा गार्ड तैनात किए जाने चाहिए।
अगस्त 2023 में गार्गा चटर्जी की टिप्पणी के साथ चलती ट्रेन से शूट किए गए एक वीडियो सामने आया था। इसमें बताया गया था कि कैसे दक्षिण 24-परगना जिले का मल्लिकपुर इलाका पिछले 10 सालों में ‘यूपी और बिहार के अपराधियों का अड्डा’ बन गया है। इतना ही नहीं, बांग्ला पक्खो ने भाजपा के ‘लव जिहाद’ को काउंटर करने के लिए ‘गुटखा जिहाद’ शब्द गढ़ा गया था।
बांग्ला पोक्खो बंगाली महिलाओं का हिंदी भाषी पुरुषों से शादी का भी विरोध करता है। इस संगठन ने अपने एक पोस्ट में कहा था कि वह ऐसे बंगाली पुरुषों को अधिक देखना चाहता है, जिनकी बीवियाँ हिंदी भाषी हों। इस संगठन ने बंगाली लड़कियों से अपील की थी कि वह ‘गुटखा पुरुषों’ के चंगुल में ना फँसे।
जनवरी 2020 में सिलीगुड़ी के प्रमुख चौराहों के नाम परिवर्तन पर आपत्ति जताई है। उसे शहर के चौराहों के नामों में ‘चौक’ शब्द स्वीकार नहीं था। उस दौरान संगठन ने कहा था कि ‘चौक’ की जगह ‘मोड़’ या ‘सरणी’ का उपयोग किया जाना चाहिए। ‘चौक’ बिहार व यूपी में प्रचलित हिंदी का शब्द है और यह वहाँ की संस्कृति का परिचायक है। बंगाल की बांग्ला संस्कृति के परिचायक ‘मोड़’ अथवा ‘सरणी’ है।
इसी तरह मार्च 2020 में कोलकाता से लगभग 40 किलोमीटर उत्तर में स्थित चंदननगर शहर के फाटकगोरा इलाके में रहने वाले सोमनाथ सिंह के घर पर ‘बांग्ला पक्खो’ के कई कट्टरपंथी पहुँच गए थे। उन्होंने एक फेसबुक पोस्ट के लिए उन्हें धमकी दी थी। इतना ही नहीं, अनीस सिंह नाम के एक अन्य हिंदी भाषी को भी प्रताड़ित किया था।
नौकरी की तलाश में पश्चिम बंगाल के रानीगंज पहुँचे मुकेश भगत ने एक लड़के ने अपने फेसबुक पर एक वीडियो पोस्ट किया था। इसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि बांग्ला पक्खो के सदस्यों ने निवास प्रमाण पत्र में जालसाजी करने का आरोप लगाकर पुलिस को सौंप दिया। इसके कुछ दिन बाद बांग्ला पोक्खो ने अपने फेसबुक पेज पर भगत का एक वीडियो अपलोड किया, जिसमें वह गार्गा चटर्जी से माफी माँगते दिख रहे थे।
बांग्ला पोक्खो के अनुसार, ‘हिंदी बेल्ट’ वह इलाका है, जहाँ हर कोई गुटखा खाता है, असभ्य और पिछड़ा है, शाकाहारी और भाजपा के मतदाता हैं। तब अपने फेसबुक पेज में बांग्ला पक्खो ने ‘हिंदी/उर्दू बेल्ट’ को ‘काऊ बेल्ट’, ‘बेबी फैक्ट्री बेल्ट’, ‘गुटखा बेल्ट’ और ‘कन्या भ्रूण हत्या बेल्ट’ जैसा नाम दिया था। हिंदी भाषियों के लिए ये लोग ‘गुटखा अपराधी’, ‘गुटखा-आतंकवादी’ या ‘गुटखा जोंटू (जानवर)’ कहते हैं।
कौन है गार्गा चटर्जी, जिसने बनाई है यह संस्था
गार्गा चटर्जी के पास हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री है। उन्होंने मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से मस्तिष्क और संज्ञानात्मक विज्ञान, दोनों पर पोस्ट-डॉक्टरल शोध किया है। वह खुद को भाषाई कार्यकर्ता कहते हैं। उन्होंने साल 2017-18 के आसपास बंगाल की राजनीति में जातीय आयाम लाने में अहम भूमिका निभाई थी।
साल 2022 में असम के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के आरोप में गार्गा के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हुई थी। कोलकाता पुलिस ने उसे गिरफ्तार भी किया था। इसके बाद गुवाहाटी में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) की अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया था।
तब राजनीति खेलते हुए गार्गा चटर्जी ने कहा था, “मैं पूरे भारत में बंगाल और बंगालियों के खिलाफ किए गए अत्याचारों के खिलाफ बहुत मुखर रहा हूँ, जिसमें NRC, CAA, डिटेंशन कैंप शामिल हैं। इसके चलते मुझे निशाना बनाया जा रहा है और यह सब भाजपा के इशारे पर हो रहा है।” गार्गा चटर्जी बांग्ला भाषियों के लिए भारतीय सेना में बंगाल रेजिमेंट बनाने की भी माँग करते रहे हैं।