Monday, July 1, 2024
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‘संविधान पीठ का फैसला मानने के लिए सरकार बाध्य’: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज नरीमन ने कहा- जवाब के लिए दी जाए समय सीमा, फिर कर दी जाए नियुक्ति

कानून मंत्री जजों की नियुक्ति और कॉलेजियम सिस्टम में सुधार की लगातार वकालत करते रहे हैं। उनका तर्क है कि जजों की नियुक्ति प्रशासनिक काम है और यह सरकार के जिम्मे है। कॉलेजियम पर भाई-भतीजावाद का भी आरोप है। इस संबंध में रिजिजू ने कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड को पत्र भी लिखा था। हालाँकि, CJI ने इसे खतरनाक प्रक्रिया बताया था।

जजों की नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम और सरकार के बीच खींचतान जारी है। सरकार द्वारा बार-बारी अनुशंसित नामों को खारिज करने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम उन्हीं नामों को भेज रहा है। हालाँकि, 11 दिन बीत जाने के बाद भी मोदी सरकार ने कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नामों को स्वीकृत नहीं किया है। उधर, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने कहा कि कॉलेजियम के नामों को स्वीकार करने के लिए सरकार बाध्य है।

दरअसल, ये सरकार और कॉलेजियम का मसला पाँच वकीलों के नाम को लेकर है, जिसे सुप्रीम कोर्ट जज बनाने पर अड़ा हुआ है, लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है। इसके लिए सरकार ने रॉ (R&AW) और इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) का भी हवाला दिया, लेकिन कॉलेजियम सरकार के तर्क को मानने को तैयार नहीं है।

सरकार ने खुफिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि वकील सौरभ कृपाल को जज नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि वे गे हैं और उनका पार्टनर विदेशी है। सरकार ने कहा कि गे राइट को लेकर वे मुखर रहे हैं। ऐसे में उनके फैसलों में पूर्वाग्रह दिख सकता है।

कॉलेजियम जिन नामों को बार-बार भेज रहा है, इनमें सौरभ कृपाल भी शामिल हैं। कृपाल सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बीएन कृपाल के बेटे हैं। इसके अलावा, इस सूची में अमितेष बनर्जी, शाक्य सेन, एस सुदरसन और आर जॉन साथ्यन शामिल हैं।

अमितेष जस्टिस यूसी बनर्जी के बेटे हैं। यूसी बनर्जी ने गोधरा ट्रेन अग्निकांड की जाँच की थी। बनर्जी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ट्रेन जलाने में किसी तरह की साजिश नहीं की गई। वहीं, शाक्य सेन इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के बेटे हैं। सेन ने शारदा चिट फंड घोटाले की जाँच की थी।

कॉलेजियम द्वारा भेेजे गए इन नामों पर सरकार बार-बार आपत्ति दे रही है, लेकिन कॉलेजियम बार-बार इन्हीं नामों को भेज रहा है। इसके देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन एफ नरीमन ने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम की सिफारिशों पर सरकार द्वारा जवाब देने की समय-सीमा तय होनी चाहिए।

नरीमन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को एक संविधान पीठ का गठन करना चाहिए। यह पीठ सरकार को कॉलेजियम की सिफारिश पर जवाब देने की 30 दिन की समय सीमा तय करेगी। वर्तमान में कॉलेजियम की सिफारिश पर किसी आपत्ति की स्थिति में सरकार के जवाब देने की समय सीमा तय नहीं की गई है।

जस्टिस नरीमन ने कहा कि यदि एक बार कॉलेजियम द्वारा सरकार को नाम भेज दे और तय समय सीमा में सरकार कोई जवाब ना तो मान लिया जाना चाहिए कि सरकार को आपत्ति नहीं है। कानून मंत्री पर कटाक्ष करते हुए जस्टिस नरीमन ने कहा, “एक बार पाँच या उससे अधिक जजों ने संविधान की व्याख्या कर ली, तो यह अनुच्छेद 144 के तहत एक प्राधिकरण के रूप में आपका कर्तव्य है कि आप उस निर्णय का पालन करें।”

गौरतलब है कि 1993 के सेकेंड जजेज केस, जिससे कॉलेजियम सिस्टम की शुरुआत हुई, उसमें कहा गया है कि यदि कॉलेजियम नामों को दोहराता है तो सरकार को उसे मानना होगा। हालाँकि, इसे सरकार इसे फैसला भर मानती है, जबकि नियुक्ति को प्रशासनिक मामला।

कानून मंत्री जजों की नियुक्ति और कॉलेजियम सिस्टम में सुधार की लगातार वकालत करते रहे हैं। उनका तर्क है कि जजों की नियुक्ति प्रशासनिक काम है और यह सरकार के जिम्मे है। कॉलेजियम पर भाई-भतीजावाद का भी आरोप है। इस संबंध में रिजिजू ने कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड को पत्र भी लिखा था। हालाँकि, CJI ने इसे खतरनाक प्रक्रिया बताया था।

बता दें कि साल 2015 में नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन एक्ट (NJAC) लाया गया था। इसमें जजों की नियुक्ति को लेकर कई बदलावों की बात थी। इसके मुताबिक NJAC की अगुआई सीजेआई को करनी थी। इनके अलावा 2 सबसे वरिष्ठ जजों को रखा जाना था और साथ में कानून मंत्री और प्रतिष्ठित लोगों को इसमें शामिल करने का सिस्टम इस एक्ट में दिया गया था। 

ऐसे ही NJAC में प्रतिष्ठित लोगों का चयन प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और CJI के पैनल को करने की व्यवस्था थी। मगर अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया। अब सीजेआई को लिखे गए पत्र को नए NJAC के तौर पर देखा जा रहा है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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