आज हम एक ऐसे बुजुर्ग दम्पति की बात करने जा रहे हैं, जिनके दो बेटों को तेजाब से नहला कर मार डाला गया। इस मामले में उनका तीसरा बेटा गवाह था लेकिन इससे पहले कि वो अदालत पहुँचता, उसकी भी हत्या कर दी गई। लेकिन, इस मामले में आरोपित का उस समय कुछ नहीं हो पाया, क्योंकि उसका नाम था – सैयद शहाबुद्दीन। वही शहाबुद्दीन, जिसके नाम से ही सीवान और आसपास के इलाक़े थर-थर काँपते थे। वो दम्पति हैं – चंदा बाबू और उनकी पत्नी कलावती।
वो बुजुर्ग दम्पति आज भी न्याय के लिए दर-दर भटक रहे हैं। भगवान और न्यायालय पर अभी भी उन्हें पूरा भरोसा है, लेकिन उन्हें ज़िंदगी में ठोकरों से सिवा कुछ नहीं मिला। शहाबुद्दीन भले ही जेल में है लेकिन वहाँ से अक्सर उसकी तस्वीरें आती रहती हैं। लालू यादव से उसकी जेल से ही फोन पर बातचीत हुई थी, जिसका ऑडियो वायरल हुआ था। बन्दूक के बल पर कभी वहाँ शासन करने वाला शहाबुद्दीन चुनावों में भी बार-बार जीता।
सैयद शहाबुद्दीन और सीवान में उसका साम्राज्य
सीवान एक ऐसा शहर है, जहाँ 90 के दशक में और इक्कीसवीं सदी की शुरुआत के दशक में सिर्फ मोहम्मद शहाबुद्दीन की ही तूती बोलती थी। विभिन्न ठेकों का टेंडर हो या फिर मुखिया से लेकर जिला परिषद तक के चुनाव, हर जगह उसकी ही पसंद चलती थी। उसने 1996, 98, 99 और 2004 में यहाँ से सांसद बन कर जीत का चौका लगाया। अब जब शहाबुद्दीन जेल में है, उसकी पत्नी हीना शहाब 2009, 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव हार चुकी हैं।
मोहम्मद शहाबुद्दीन पर सीधा राजद सुप्रीमो और 15 साल तक बिहार में सत्ता के सर्वेसर्वा रहे लालू प्रसाद यादव का हाथ था। वो राजद की नेशनल एग्जीक्यूटिव कमिटी का हिस्सा था। फ़िलहाल वो छोटेलाल गुप्ता नामक वामपंथी नेता का अपहरण कर के उन्हें गायब कराने सहित कई मामलों में जेल की सज़ा भुगत रहा है। ये इतर बात है कि यही वामपंथी दल आज राजद के साथ गठबंधन बना कर विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी कर रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि शहाबुद्दीन ने सिर्फ लोकसभा चुनाव ही जीता, इससे पहले वो जीरादेई विधानसभा क्षेत्र से 2 बार विधायक चुना जा चुका है। उसे उसके समर्थक ‘साहेब’ कह कर बुलाते हैं। सजायाफ्ता गैंगस्टर शहाबुद्दीन पर अपहरण, हत्या और लूट के इतने मामले दर्ज हैं कि उसके सामने बड़े से बड़े अपराधी भी छोटे लगें। और सबसे बड़ी बात तो ये है कि बिहार का ये गैंगस्टर शिक्षित है, काफी पढ़ा-लिखा है।
आर्ट्स से मास्टर्स की डिग्री लेने वाले मोहम्मद शहाबुद्दीन ने राजनीतिक विज्ञान में पीएचडी की डिग्री ले रखी है। शुरू में उसने जनता दल के टिकट पर दो विधानसभा चुनाव जीते लेकिन लालू प्रसाद द्वारा राजद के गठन के साथ ही उसका प्रभाव बढ़ता ही चला गया। उस समय कहा जाता था कि मोहम्मद शहाबुद्दीन जो भी करे, उसे क़ानूनी कार्रवाइयों से छूट प्राप्त है और उसे सत्ता का पूर्ण संरक्षण मिला हुआ है।
जिस तरह से उत्तर प्रदेश में विकास दुबे ने 8 पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया था, उसी तरह शहाबुद्दीन भी पुलिसकर्मियों को मार डालता था और उस पर कार्रवाई तक नहीं होती थी। ऐसा ही एक वाकया मार्च 2001 में हुआ, जब उसने एक पुलिस अधिकारी को ही पीट दिया। स्थानीय राजद नेता को गिरफ्तार करने गई पुलिसकर्मियों को पकड़-पकड़ कर उसके समर्थकों ने पिटाई की, जिससे इलाक़े में हड़कंप मच गया। मुठभेड़ में 2 पुलिसकर्मी सहित 8 लोग मारे गए थे।
2004 के चुनाव में तो स्थिति ये थी कि शहाबुद्दीन के जेल में होने के बावजूद चुनाव प्रचार के दौरान जिसने भी विपक्षी उम्मीदवारों के पोस्टर-बैनर भी टाँगे वो गायब हो गया। इस चुनाव में न जाने कितने अपहरण और हत्या की वारदातें हुईं। जेल से निकल कर अस्पताल में शिफ्ट हुए शहाबुद्दीन जिससे चाहे उससे मिल सकता था। उसके लिए कोई रोकटोक नहीं थी। उस चुनाव में विपक्ष एक तरह से था ही नहीं।
जब चुनाव हुए तो साइलेंट वोटर्स का भी बोलबाला रहा और जदयू उम्मीदवार ने 2 लाख से भी ज्यादा (33%) मत पाकर शहाबुद्दीन को तगड़ी फाइट दी, भले ही वो जीत गया। शाहबुद्दीन के ईगो को इससे ठेस पहुँची और उसके बाद जदयू कार्यकर्ताओं की हत्याएँ शुरू हो गईं। जिस गाँव में जदयू उम्मीदवार को ज्यादा मत मिले थे, वहाँ का मुखिया ही मारा गया। जदयू उम्मीदवार के घर पर ताबड़तोड़ गोलीबारी हुई। वो जदयू उम्मीदवार आज सीवान के सांसद हैं और भाजपा किसान मोर्चा के उपाध्यक्ष भी।
चंदा बाबू के 2 बेटों की तेजाब से नहला कर हुई थी हत्या
शहाबुद्दीन को उसके तीन सहयोगियों सहित जिस मामले में हाईकोर्ट से उम्रकैद की सज़ा मिली और जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरक़रार रखा गया, वो यही मामला है। रंगदारी नहीं देने और अपनी जमीन शहाबुद्दीन के हवाले न करने के कारण चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ़ चंदा बाबू के दो बेटों गिरीश और सतीश का अपहरण कर लिया गया था। इसके बाद उन्हें शहाबुद्दीन के गाँव प्रतापपुर स्थित उसकी कोठी पर ले जाया गया।
फिर अगस्त 16, 2004 को वहाँ जो हैवानियत का नंगा नाच हुआ, उसने पूरे देश को हिला कर रख दिया। वहाँ दोनों भाइयों को तेज़ाब से नहलाया गया और तब तक ऐसा किया गया, जब तक उनकी तड़प-तड़प कर मौत न हो गई। इस मामले में गवाह थे चंदा बाबू के तीसरे बेटे राजीव रौशन, लेकिन कोर्ट जाते समय उनकी भी हत्या कर दी गई। तीनों बेटों की माँ कलावती की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई थी।
लेकिन, इस मामले में शहाबुद्दीन को अभियुक्त बनने में 5 वर्ष लग गए। 2009 में सीवान के तत्कालीन एसपी अमित कुमार जैन के निर्देश पर केस के आइओ ने शहाबुद्दीन, असलम, आरिफ व राज कुमार साह को प्राथमिक अभियुक्त बनाया गया और ये मामला स्थानीय कोर्ट और हाईकोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, जहाँ कुछ ही मिनटों में तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई ने शहाबुद्दीन की याचिका खारिज कर दी।
आप सोच सकते हैं कि जो व्यक्ति महज 10-12 फ़ीट लम्बाई-चौड़ाई वाली जमीन के लिए एक ही परिवार के तीन बेटों की हत्या कर सकता है, वो कितना खूँखार रहा होगा और उसने अपने हर एक चुनाव में विपक्षियों को खामोश करने के लिए कितने खून बहाए होंगे। इस पूरे प्रकरण की शुरुआत तब हुई, जब अगस्त 2004 के पहले सप्ताह में सीवान के गोशाला रोड निवासी चंदा बाबू के निर्माणाधीन मकान में बनी एक दुकान पर असामाजिक तत्वों ने कब्जे की कोशिश की।
इस विवाद को सुलझाने के लिए प्रयास चल ही रहे थे कि गुंडे चंदा बाबू के घर पर पहुँच गए और उन्होंने पूरे परिवार को मारना-पीटना शुरू कर दिया। अपने घर में रखे तेजाब का इस्तेमाल कर के किसी तरह पूरे परिवार ने अपनी जान बचाई। आत्मरक्षा के लिए फेंके गए तेजाब से 2 गुंडे जख्मी हो गए और यहीं से उनके मन में प्रतिशोध की ऐसी आग भड़कने लगी कि उसका अंजाम इतना भयावह होगा, किसी ने सोचा तक नहीं था।
आखिरकार दोनों भाइयों की एसिड से ही नहला कर हत्या कर दी गई। राजीव रौशन ने बताया था कि उनके सामने ही उनके दोनों भाइयों की हत्या कर दी गई थी। उन्होंने कोर्ट में बयान दिया था कि उनके सामने ही उनके मरे हुए भाइयों के शवों को टुकड़े-टुकड़े कर के बोरे में डाला गया और दफ़न कर दिया गया था। फिर 2015 में जब भाजपा और जदयू का गठबंधन हुआ, उसके 2 दिन बाद ही राजीव रौशन की भी हत्या कर दी गई।
चंदा बाबू आज भी अपनी जान का भय लिए जीते हैं। उनके पास न तो आमदनी का कोई स्रोत है और न ही उनकी सुरक्षा के लिए कुछ व्यवस्था की गई है। हाँ, उन्हें 2 बॉडीगॉर्ड्स ज़रूर मिले हैं लेकिन उनका कहना है कि वो कुछ नहीं कर सकते, शहाबुद्दीन अंततः उन्हें मरवा ही डालेगा। ऐसे में इतने बड़े अपराधी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक जाना उनके हार न मानने वाले जज्बे की ओर इशारा करता है। वहीं शहाबुद्दीन की पत्नी हीना शहाब इस मामले में केंद्र सरकार को दोषी मानती हैं।
शहाबुद्दीन, सत्ता के संरक्षण में पला सबसे बड़ा अपराधी
कहते हैं, मोहम्मद शहाबुद्दीन की जिस भी चीज पर नज़र होती थी, उसे पाने के लिए वो कुछ भी कर सकता था। और जब बात संपत्ति की हो तो वो और उसके गुर्गे कितने भी खून बहाने से नहीं हिचकते थे। चंदा बाबू के बेटों से भी उसने 2 लाख की रंगदारी माँगी थी। रंगदारी न मिलने पर उसकी नज़र उस दुकान पर थी। साथ ही सीवान में चंदा बाबू की कुछ जमीनें थीं, जिसे वो हर हाल में लेना चाहता था।
ये वो समय था, जब शाहबुद्दीन के पास वो सारे हथियार और उपकरण थे – जो आम आदमी रख ही नहीं सकता है। उसने बिहार में एके-47 के इस्तेमाल को आम बनाया। शहाबुद्दीन के घर पर जब 2005 में पुलिस की छापेमारी हुई तो वहाँ से कई एके-47 हथियारों के अलावा नाइट विजन गॉगल्स और लेजर गाइडेड गन्स के अलावा कई ऐसी चीजें मिली, जिन्हें रखने के अधिकार सिर्फ सेना के पास थे, आम आदमी के पास नहीं।
यूपीए-1 की सरकार के दौरान उसे दिल्ली में न सिर्फ बंगला मिला हुआ था बल्कि वो संसद भी नियमित रूप से जाता-आता था। उसे गिरफ्तार करने गई बिहार पुलिस दिल्ली में 3 महीने तक ख़ाक छानती रही। बिहार के तत्कालीन डीजीपी डीपी ओझा ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि शहाबुद्दीन की पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई के साथ संपर्क थे। उसे गिरफ्तार करने के एक-दो नहीं बल्कि 8 गैर जमानती वारंट जारी हुए थे, जी हाँ – आठ।
उसने क़ानून को चकमा देने के लिए हर तरकीब आजमाई। कभी उसने फिट होते हुए भी बीमारी का बहाना बना कर कोर्ट की सुनवाई में हिस्सा नहीं लिया तो कभी सांसद होने के कारण पुलिस की गिरफ़्तारी से बचता रहा। कभी गवाहों की ही हत्या हो गई तो कभी पीड़ित ही मुकर गए। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो 100 से अधिक शव तो उसके प्रतापपुर स्थित कोठी में ही गाड़े गए हैं। ये वही लोग हैं, जिनकी हत्या करवा दी गई।
जुलाई 2009 में तो सेशन जज वीबी गुप्ता को ही धमकी मिल गई। शहाबुद्दीन के वकील महताब आलम ने पहले तो उन्हें लालच दिया, फिर जान की धमकी देने पर उतर आया। अंततः पटना हाईकोर्ट के आदेश पर वकील के खिलाफ भी मामला दर्ज हुआ। जेलर को भी उसके समर्थकों ने ‘तड़पा-तड़पा कर मारने’ की धमकी थी। फ़िलहाल वो जेल में हैं, लेकिन उसके भय से जो सीवान में दूषित माहौल बना था, उसका असर अब तक पूरी तरह मिटा नहीं है।