तमिलनाडु (Tamilnadu) के वेल्लोर स्थित एक अस्पताल में मुफ्त इलाज करवाने का लालच देकर ईसाई धर्म (Christianity) अपनाने के लिए कहा गया। कर्नाटक (Karnataka) का एक हिंदू परिवार यहाँ अपने 3 साल के बच्चे के इलाज के लिए गया था। बताया गया कि यहाँ पर बच्चे का मुफ्त इलाज के बदले में मिशनरी ने उन्हें ईसाई धर्म अपनाने और चर्च में प्रार्थना करने के लिए कहा।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, 34 वर्षीय ढाबा (होटल) कर्मचारी और कर्नाटक के बसवाना बागेवाड़ी के निवासी इराना नागुर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। वह अपने तीन साल के बेटे के इलाज के लिए काफी परेशान थे। इराना पहले ही अपने बेटे के इलाज के लिए 3 लाख रुपए से अधिक खर्च कर चुके थे।
जानकारी के मुताबिक, इस गरीब पिता ने बच्चे के बेहतर इलाज के लिए पूरे दक्षिण भारत की यात्रा की और अंत में वह तमिलनाडु के वेल्लोर स्थित एक अस्पताल में पहुँचे। इस अस्पताल का संचालन ईसाई मिशनरी करती है। जब वे वहाँ पर पहुँचे तो मिशनरी ने उनके बेटे का मुफ्त इलाज करने के बदले कुछ शर्तें रख दीं। मिशनरी ने इराना को ईसाई धर्म अपनाने और कम से कम दो महीने के लिए चर्च में प्रार्थना करने के लिए कहा। इससे उनको अस्पताल में मुफ्त इलाज मिल सकेगा।
मीडिया से बात करते हुए इराना ने बताया कि वह थक गए थे, क्योंकि उन्हें अपने बेटे के इलाज के लिए कहीं से भी कोई आर्थिक सहायता नहीं मिल रही थी। उन्होंने कहा कि वह हर महीने 12,000 रुपए कमाते हैं, लेकिन उन्हें अपनी कमाई का लगभग आधा हिस्सा अपने बीमार बेटे के इलाज पर खर्च करना पड़ता है।
इराना ने बताया कि जब वे वेल्लोर के अस्पताल गए तो उन्होंने उनके बेटे की बोन मैरो सर्जरी (bone marrow surgery) के लिए 10 लाख रुपए सहित हर तरह की व्यवस्था करने का वादा किया। मगर, इसके लिए शर्त यह थी कि उन्हें हर दिन चर्च में जाकर प्रार्थना करनी होगी।
इराना ने इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, “ईसाई धर्म में धर्मांतरण के बारे में भी बातचीत हुई। मैं यीशु को स्वीकार करने के लिए दृढ़ था, क्योंकि अस्पताल के अधिकारियों ने मेरे बेटे के सभी चिकित्सा खर्चों का जिम्मा लेने का वादा किया था।” बता दें कि इराना का एक बेटा और 2 बेटियाँ हैं।
हालाँकि, कर्नाटक के बीजापुर जिले में BLDE एसोसिएशन ने थैलेसीमिया से पीड़ित उनके तीन साल के बेटे का इलाज के लिए इराना की मदद करने के लिए आगे आया है। संस्था ने इराना और उनके परिवार को उनके बेटे का मुफ्त इलाज कराकर उन्हें ईसाई धर्म अपनाने से रोका। परिवार ने अब ईसाई धर्म अपनाने की योजना छोड़ दी है।